मशीनगन का आविष्कार अमेरिका के हिरेम मैक्सिम ने सन् 1882 में किया था। यह सिंगल-बैरल का हथियार था और पूरी तरह से स्वचालित था। इसकी लोडिंग, फाइरिंग और खाली कारतूस को बाहर निकालने के साथ फिर से लोड हो जाने की प्रक्रिया इसके प्रतिक्षेप (रिकॉइल) द्वारा संपन्न होती थी। वैसे इसके पहले एक अन्य अमेरिकी व्यक्ति रिचार्ड गैटलिंग ने वर्ष 1862 में एक ऐसी ही मशीनगन बनायी थी, जो एक मिनट में लगभग 125 गोलियाँ छोड़ती थी। परंतु यह पूर्ण स्वचालित मशीनगन नहीं थी। हाँ, इससे गेटलिंग की मशीनगन काफी सुधारी हुई और स्वचालित थी। उसने उसमें एक जल-शीतित बैरल की व्यवस्था थी, जिसमें गोलियाँ भरने के लिए एक लम्बे कपड़े के बैल्ट को लगाया जाता था, जिसमें गोलियाँ एक-सी दूरी पर एक के बाद एक लगी रहती थी। स्वचालन पद्धति के लिए इसमें प्रतिक्षेप-बल (Force of recoil) के सिद्धांत को अपनाया गया था।
फ्रांस में जिस मशीनगन का विकास किया गया, वह प्रोपेलेंट गैस (प्रणोदक गैस) के दबाव की व्यवस्था से चलती थी। आजकल की मशीनगनों में यह प्रणाली अपनाई जाती है। मशीन-गन की सबसे बड़ी समस्या इसके जल्दी गरम हो जाने की थी, क्योंकि इसमें गोलियाँ एक के बाद एक लगातार तेजी से छुटती थीं। इसलिए इसे ठंडा रखने के लिए जल-शीतित जैकेट की व्यवस्था काम में लायी जाती थी, परंतु इससे बड़ी असुविधा होती थी। बाद में इसे ठंडा रखने के लिए हवा की व्यवस्था की गयी।
मूल रूप से मशीनगन राइफल की तरह का ही अस्त्र है। इससे प्रति मिनट 500 से 800 तक गोलियाँ छोड़ी जा सकती हैं। इसकी मार 2500 मीटर तक होती है। इसमें एक विशेष व्यवस्था होती है, जिससे इसकी रफ्तार घटायी-बढ़ायी जा सकती है। मशीनगन में राइफल की 303 की गोलियाँ प्रयोग में लायी जा सकती हैं। इसकी एक पेटी (Belt) में 3501 गोलियों की लड़ी होती है। मशीनगन कई प्रकार की होती हैं। यहाँ हम कुछ प्रकार की मशीनगनों के बारे में जानकारी दे रहे हैं
लूडसगन -: यह हल्की मशीनगन है। इसका वजन 27-28 पाउंड होता है और एक सैनिक इसे आसानी से अपने पास रख सकता है। इसे लड़ाकू विमानों में आसानी से अपने पास रखा जा सकता है और इन विमानों में आसानी से फिट भी किया जा सकता है। इसकी मैगजीन में एक बार में 48 कारतूस भरे जा सकते हैं। यह लगभग 440 मीटर तक सही निशाना लगा सकती है।
ब्रेनगन -: यह भी हल्के किस्म की मशीनगन है। इनकी नाल का मुँह राइफल की नाल के लगभग बराबर ही होता है इसका वजन 20 पाउंड के लगभग होता है। नीचे उड़ते हुए विमान को इससे आसानी से निशाना बनाकर गिराया जा सकता है। इस मशीन-गन से प्रति मिनट 500 गोलियाँ छोड़ी जा सकती हैं। इसका निशाना लगभग 700 मीटर सही लग सकता है। इसकी नाल पर साइलेंसर की व्यवस्था होती है, जिससे इसकी आवाज और चमक ज्यादा नहीं होती।
टामीगन -: यह बहुत अच्छे किस्म की मशीनगन है। इसे सैनिक कंधों पर रखकर बड़ी आसानी से चल सकता है। यह एक मिनट में 600 से 700 गोलियाँ छोड़ती है। इसका वनज 14-15 पाउंड होता है। इससे 60-70 मीटर तक का सही निशाना लगाया जा सकता है। इसमें भी राइफल में प्रयुक्त होने वाला कारतूस इस्तेमाल किया जाता है।
वर्तमान में स्वाचालित मशीनगन अत्याधुनिक हो गयी हैं। इसके आगे के सिरे पर दूर-दूर तक देखने के लिए दूरबीन लगी होती है। वहीं इस में लगा पॉवरफुल साइलेंसर आवाज कम करता है। इससे एक मिनट में आठ सौ से अधिक गोलियां चलाई जा सकती हैं। इसकी मारक क्षमता ढाई हजार मीटर की दूरी से भी अधिक है।
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