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कागज का आविष्कार किसने और कब किया ?

 
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दोस्तों, चट्टानें तथा गुफाओं की दीवारें आज भी प्रागैतिहासिक धरोहर के रूप में सम्पूर्ण विश्व में मनुष्य की अभिव्यक्ति के प्रयासों को सुरक्षित रखे हुए हैं। धीरे-धीरे लिपियों का विकास हुआ तथा इनको आलिखित करने के लिए माध्यम की आवश्यकता पड़ी। जब मनुष्य को धातुओं का ज्ञान हुआ, तब सीसे, तांबे, पीतल या कांसे के पत्रों पर लिखने का प्रयास हुआ। यह कार्य अत्यंत कठिन तो था, परन्तु इनके स्थायित्व के कारण महत्वपूर्ण विषयों तथा नियमों को दीर्घ काल तक सुरक्षित रखने के उद्देश्य से इनका उपयोग किया गया। लेकिन जिस खोज ने आलेखन के माध्यम को पूरी तरह बदल दिया वह था ‘कागज’। किंतु क्या आपको पता है Kagaj ka avishkar kisne kiya एवं कब? तो इसका जवाब है, चीन को आज के कागज से मिलते-जुलते कागज बनाने की कला का जन्मदाता माना जाता है। चीन के हान वंश के सम्राट होती के दरबार के राजनेता काई लुन (Cai Lun) ने सन् 105 इसका आविष्कार किया था।

सन् 105 में काई लुन ने ही सम्राट के दरबार में इसका आख्यान भी किया था। इसके लिए शहतूत तथा अन्य पेड़ों की छाल, मछली पकड़ने के पुराने जाल, पुराने वस्त्र तथा अन्य रेशेदार पदार्थों से रेशों को अलग कर उन्हें पानी में मिलाया जाता था और एक पतली परत के रूप में सुखा लिया जाता था।

कागज बनाने की यह कला जापान (सन् 610) और फिर समरकंद (सन् 751), बगदाद (सन् 793), दमिश्क, मिश्र तथा मोरक्को होते हुई मूरों के साथ यूरोप पहुंची। यूरोप में सबसे पहले कागज का निर्माण सन् 1150 में स्पेन में हुआ। फिर क्रमशः इटली, फ्रांस, जर्मनी, इंग्लैंड, पोलैंड, आस्ट्रिया, रूस, डेनमार्क तथा नॉर्वे में कागज निर्माण का उल्लेख मिलता है।
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स्पेनवासी कागज बनाने के ज्ञान को अपने साथ उत्तरी अमेरिका ले गये तथा मेक्सिको सिटी के पास कागज उद्योग स्थापित हुआ। संयुक्त राज्य अमेरिका में पहली कागज मिल सन् 1690 में विलियम रिटन हाउस के प्रयासों द्वारा जर्मनटाउन पेंसिलवेनिया में बनी। कनाडा की पहली फैक्ट्री सन् 1803 में सेंट एंड्रयूज, क्यूबिक में स्थापित हुई। यह इतना कागज बना लेती थी कि मोंट्रियल गजट नामक पत्रिका इस पर छापी जा सके।

कागज बनाने के ये सभी ऐतिहासिक प्रयास मूल रूप से चीनी पद्धति पर आधारित थे। जब तक अविराम गति से कागज बनाने की मशीनें नहीं बनी, कागज के चैकोर पत्र एक-एक कर बनते थे। आज भी हाथ से बना कागज इसी विधि द्वारा बनता है।

कागज बनाने की वर्तमान तकनीक में तीन प्रमुख घटकों की सम्मिलित भूमिका रही है। पहली तो यह थी कि जैसे-जैसे अधिक कागज उपलब्ध होने लगा सर्वसाधारण की पढ़ने-लिखने की जिज्ञासा भी बढ़ती गई। सन् 1450 में योहानेस गुटेनबर्ग द्वारा छपाई की मशीन के आविष्कार ने छपी हुई पठन-सामग्री को अधिक सुलभ बना दिया था। फल यह हुआ कि कागज की मांग उत्तरोत्तर बढ़ने लगी।

दूसरी यह थी कि इस बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए मशीनीकरण की आवश्यकता पड़ी। तीसरी यह थी कि मशीनों के लिए कच्चे माल की बढ़ती हुई आपूर्ति की खोज में वृक्षों का काष्ठ एक उपयोगी विकल्प सिद्ध हुआ। यह एक नवीकरणीय प्राकृतिक संसाधन था।

उन्नीसवीं सदी के आरंभ में एक फ्रांसीसी वैज्ञानिक को इसका श्रेय जाता है जिसने लकड़ी को पीटकर उसके रेशों को पृथक किया तथा उससे कागज का निर्माण किया। उन्नीसवीं और बीसवीं सदी में रसायन विज्ञान के अभूतपूर्व विकास ने काष्ठ को पल्प में बदलने का मार्ग प्रस्तुत किया, क्योंकि पल्प निर्माण की रासायनिकी स्पष्ट हो चुकी थी। यह लगने लगा था कि रसायन शास्त्र तथा कागज उद्योग का सम्बन्ध बहुत गहरा है।

प्राचीन समय में कागज के रूप

सुमेरियन सभ्यता में चिकनी मिट्टी के बने पत्रों पर आलेखन कार्य की प्रथा थी। 6000 वर्ष पूर्व के इनके अवशेष पूर्वी भूमध्यसागरीय देशों में आज भी मिलते हैं। परन्तु लेखन के माध्यम के रूप में इन सब प्रयासों की अपनी सीमा थी। आज से 5000 वर्ष पूर्व मिस्र में नील नदी के किनारे प्रचुरता से प्राप्त होने वाली पैपरिस नामक घास के डंठलों के बाहरी आवरण से एक प्रकार का कागज बनाया जाता था।

यह आवरण रेशों की भांति एक पदार्थ था जिन्हें सावधानी से आड़े-तिरछे रखकर दबाया जाता था। घास से उपलब्ध रेशों के साथ गोंद की तरह प्राकृतिक पदार्थ भी रहता था जो इन रेशों को परस्पर जोड़ने का काम करता था। सूखने पर उपलब्ध पदार्थ कागज के पत्रों के रूप में प्राप्त होता था। यह कार्य कई शताब्दियों तक लिखने का माध्यम बना रहा। कालान्तर में ‘पेपर’ शब्द की उत्पत्ति इसी ‘पेपिरस’ (Papyrus) से हुई।

प्राचीन रोम तथा यूनान में लकड़ी की पतली तख्तियों को जोड़कर पुस्तक का रूप दिया गया। इन तख्तियों को जोड़कर पुस्तक का रूप दिया गया। इन तख्तियों के ऊपर मोम या अन्य पदार्थों का आवरण चढ़ाया जाता तथा धातु की लेखनी से लिखने का कार्य किया जाता था। यूनान में इन पुस्तकों को कोडिस कहा जाता था।

चीन में 250 ईस्वी पूर्व में बुने हुए कपड़े को लिखने तथा चित्रकारी के लिए उपयोग किया जाता था। आलेखन के लिए ऊंट के बालों से बने ब्रुश तथा एक स्याही का उपयोग किया गया। इस कपड़े को मोड़कर बेलनकार वर्तिलेख के रूप में रखा जा सकता था। यही पुस्तक का तत्कालीन और प्रथम आकार था।

भारत तथा इसके पड़ोसी देशों में ताड़ के पत्तों तथा भोजपत्र पर लेखन किया गया। भोजपत्र पर्वतीय क्षेत्रों में पाया जाने वाला एक वृक्ष है जिसके तनों की छाल कागज की तरह पतली तथा हल्के रंग की परत से लिपटी रहती है। वृक्ष इस परत को स्वयं छोड़ते रहते हैं। इस परत को ही भोजपत्र (Birch Bark) कहते हैं तथा इसे निकालने से पेड़ को कोई हानि नहीं पहुंचती। आगे चलकर इन्हीं पत्रों के नाम पर कागज के पत्र को लीफ कहा जाने लगा।
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ताड़ के पत्रों तथा भोजपत्र पर अंकित अनेक दुलर्भ ग्रंथों की प्राचीन प्रतिलिपियां आज भी अनेक निजी तथा संस्थागत संग्रहालयों में सुरक्षित हैं। प्राचीन रोमन जिस वृक्ष की छाल का उपयोग करते थे, वह लिबर कहलाता था। इसी से पुस्तक के लिए प्रयुक्त लैटिन शब्द लिबर का जन्म हुआ। आगे चलकर लाइब्रेरी शब्द की उत्पत्ति इसी से हुई।

यूनान में लगभग 4000 वर्ष पूर्व भेड़, बकरी इत्यादि जानवरों की खाल से पार्चमेंट बनाया गया था। इसके लिए खाल को साफ कर बाल हटा लिये जाते थे। तत्पश्चात खुरचकर इसकी दोनों सतहों को समतल बनाया जाता तथा अंत में प्यूमिस के चूर्ण से रगड़कर चिकना बना लेते थे। पार्चमेंट का उपयोग इस पर लिखने के लिये किया जाता था। यह एक सुदृढ़ तथा दीर्घस्थायी पदार्थ है।

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