हीलियम (संकेत He; परमाणु संख्या 2;) आज हम सभी के लिए जाना माना नाम है। वह इसलिए कि इससे हमारी पहचान आज से 150वें वर्ष में प्रवेश कर गई है। जी हाँ! आज हम जानते हैं कि कैवेंडिश द्वारा खोजे गए हाइड्रोजन के ठीक बाद हीलियम ही हमारे ब्रह्मांड का दूसरा सर्वव्यापी प्रचुर तत्व है जिसका योगदान 24% के करीब है। आज हमने इसे अपनी पृथ्वी पर भी खोज लिया है और प्राकृतिक गैस से इसका बाकायदा उत्पादन हो रहा है। लेकिन प्रश्न यह है कि सबसे पहले हीलियम की खोज किसने की थी? तो जवाब है, इस तत्व की खोज 18 अगस्त 1868 को दो खगोल वैज्ञानिकों पियेरर जेन्सेन (Pierre Janssen) और नाॅरमेन लाॅक्येर (Norman Lockyer) ने साथ मिलकर किया था।
…लेकिन हीलियम की खोज हुई कैसे?
यह 19वीं सदी के उत्तरार्ध की बात है जब दुनिया के अनेक वैज्ञानिक उन सभी मूलतत्वों की खोज में जुटे थे जिनसे हमारी पृथ्वी और हमारा ब्रह्मांड निर्मित हुए हैं। आए दिन नए-नए तत्वों की खोज के दावे छपते थे। तभी उन दिनों एक पूर्ण सूर्यग्रहण का अवसर आया। तब तक चूँकि स्पेक्ट्रमदर्शिकी (Spectroscope) यंत्र बाकायदा अस्तित्व में आ चुका था, अतः दुनिया के वैज्ञानिक सौर-प्रभामंडल (Corona) में किसी नए संभावित तत्व को खोजने निकल पड़े।
इन्हीं में फ्रेंच खगोलज्ञ जेन्सेन तथा अंग्रेज खगोलज्ञ लाॅक्येर भी शामिल थे जिन्हें हीलियम की खोज का श्रेय मिला। दोनों ने 18 अगस्त 1868 के उस दिन सौर वर्णक्रम में एक ऐसी पीली रेखा देखी जो न तो सोडियम की D1 व D2 लाइनों से मिलती थी, न ही किसी अन्य ज्ञात पार्थिव तत्व से।
587.49 नैनोमीटर तरंगदैर्ध्य वाली इस लाइन को D3 नाम मिला और कहा गया कि इसका उदय हीलियम (यानी सूर्यपुत्री) तत्व से हुआ है। माना जाता है कि जेन्सेन ने अपना यह अनुसंधान उस समय गुंटूर (भारत) में आकर किया था। इसके बाद 26 अक्टूबर 1868 के दिन पेरिस विज्ञान अकादमी की सभा में इस महान खोज की न केवल विधिवत घोषणा हुई बल्कि इसके सम्मान में एक विशेष मेडल भी ढाला गया।
हल्की-फुल्की और सुरक्षित हीलियम
इस निष्क्रिय, मोनोएटाॅमिक तत्व के अनुमानित रिजर्व 630 बिलियन क्यूबिक फुट के करीब हैं। इसके आइसोटोप He-4 व He-3 दोनों स्थायी हैं, पर पृथ्वी पर मुख्य रूप से He-4 ही मिलता है। (जबकि चंद्रमा व बृहस्पति पर अधिक प्रचुर है और नाभिकीय संलयन द्वारा ऊर्जा उत्पादन के योग्य माना जाता है)
हीलियम हमारे वायुमंडल से अपने हलकेपन के कारण लगातार अंतरिक्ष की ओर विसरित हो रही है। यह गैस विषैली नहीं। ज्वलनशील भी नहीं। पृथ्वी के वायुमंडल में यह लेशमात्र है, केवल 5 पीपीएम जोकि अत्यंत दिलचस्प तथ्य है। लेकिन प्राकृतिक गैस भंडारों में इसकी प्रचुरता के कारण अमेरिका, कनाडा, अल्जीरिया, रूस व कतर देशों ने इसके व्यवसायिक उत्पादन से खूब लाभ कमाया है।
He-4 आइसोटोप के (2 Proton + 2 Neutron) न्यूक्लियस को हम अल्फा कण व He-3 आइसोटोप के (2 Proton + 1 Neutron) न्यूक्लिष्यस को हम सब हीलियाॅन (Helion) कण के तौर पर आज अच्छी तरह जानते हैं, हैं न? पता नहीं क्यों परंतु यह गैस अत्यंत न्यून ताप (4.2K) पर जाकर ही द्रव में परिवर्तित हो पाती है, और फिर इस ताप के नीचे भी इसे ठोस बना पाना अत्यंत दुष्कर है। ऐसा इसलिए होता है कि क्योंकि इसके परमाणुओं के बीच कोई आंतरिक-आकर्षण नहीं है।
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