1500वीं सदी के मध्य में ईटालियन अन्वेषक और चित्रकार लिओनार्दो द विंची (1452-1519) ने एक ऐसी ‘उड़न मशीन का डिज़ाइन बनाया था, जिसमें अपने को फंसाकर आदमी पक्षियों की तरह पंख हिला-डुला सकता था। विंची की इस काल्पनिक उड़ान मशीन का नाम था – ‘ओरनीथाप्टर’ (Ornithopter)। 16वीं शताब्दी में कई लोगों ने इससे प्रेरित होकर ओरनीथाप्टर बनाने कि कोशिश कि लेकिन वो कभी सफल नहीं हो पाए और कई तो इसका परीक्षण करते हुए अपनी जान भी गंवा बैठे।
आज कई विशेषज्ञों का मानना हैं कि मनुष्य को हेलीकॉप्टर बनाने कि प्रेरणा विंची की उसी उड़न मशीन ने दिया था।
लेकिन फिर भी आपके मन में यह प्रश्न जरूर उठ रहा होगा कि आज जिस प्रकार के हेलीकाॅप्टरों को हम देखते है, उसे सबसे पहले किसने बनाया था व Helicopter ka avishkar kisne kiya tha और कब? तो इसका उत्तर है- इगोर सिकोरस्की (Igor Sikorsky)। रशियन-अमेरिकन इंजीनियर और विमानन विशेषज्ञ इगोर सिकोरस्की ने आज से लगभग 80 साल पहले 14 सितंबर, 1939 को दुनिया का पहला एक रोटर वाला प्रायोगिक हेलीकाॅप्टर अमेरिका के स्ट्रैटफ़ोर्ड नगर में उड़ा कर दिखाया था।
हालांकि VS-300 नाम का यह हेलीकॉप्टर पहली बार मात्र कुछ मिनटों के लिए ही उड़ा था लेकिन कुछ ही महीनों में (13 मई, 1940) सिकोरस्की ने इसमें अनेको सुधार कर फिर सार्वजनिक रूप से कई उड़ाने पूरी कि।
सिकोरस्की ने सन् 1910 से ही हेलीकाॅप्टरों पर काम करना शुरू कर दिया था तथा 1940 आते-आते VS-300 हेलीकाॅप्टर एक रोटर वाले हेलीकाॅप्टरों के निर्माण के लिए मानक बन गया। आगे सन् 1941 में उन्होंने अमेरिकी सेना के लिए भी एक सैन्य हेलीकॉप्टर ‘XR-4’ का डिज़ाइन तैयार कर उसका निर्माण किया।
सिकोरस्की के हेलीकाॅप्टरों में उन्हें सुरक्षित रूप से आगे, पीछे, ऊपर, नीचे और अगल-बगल उड़ाने के लिए अलग-अलग तरह के कंट्रोलस की व्यवस्था थी। वर्ष 1958 में, सिकोरस्की की रोटरक्राफ्ट कंपनी ने दुनिया के पहले पानी से उड़ान भरने, पानी पर लैंड करने और उस पर तैर सकने वाले हैलीकाॅप्टर का भी निर्माण किया।
वर्ष 1944 में, अमेरिकी इंजीनियर स्टेनली हिलर (1924-2006) ने पहली बार हेलीकाॅप्टर के रोटर के ब्लेड़ों को कठोर बनाने के लिए उन्हें पूरी तरह धातु से तैयार किया। उनके द्वारा ब्लेडों में किये गए इस परिवर्तन से हेलीकाॅप्टर पहले की तुलना में कई गुना तेज उड़ने लगे। वर्ष 1949 में, हिलर ने अपने द्वारा बनाये गये हेलीकाॅप्टर – Hiller 360 से पूरे अमेरिका का चक्कर लगाया था।
Glider का आविष्कार किसने किया था और कब?
दुनिया के पहले सफल ग्लाइडर का निर्माण का श्रेय अंग्रेज इंजीनियर जाॅर्ज केली (George Cayley) को दिया जाता है, जिसका निर्माण उन्होंने सन् 1853 में किया था।
ग्लाइडर हवा से वजनी उस मशीन को कहते हैं, जिसमें इंजन नहीं होता। ग्लाइडर लंबं-चैड़े पंख के बने ढांचे होते थे जिनमें अपनी दोनों बाहों को फैलाकर लोग उड़ते थे। ग्लाइडर को अपनी उड़ान को साधने के लिए हवा की धाराओं का उपयोग करना होता है।
यदि मौसम शांत रहे तो इसे ठेलने के लिए ऊंची पहाड़ी की चोटी पर से उड़ाया जाता है। ग्लाइडर के पंखों से टकराकर जो हवा पीछे की ओर आती है, उससे एक उछाल बल उत्पन्न होता है। यह बल पृथ्वी की आकर्षण शक्ति को जीतने में समर्थ होता है, परिणामस्वरूप ग्लाइडर हवा में उड़ जाता और फिर धीरे-धीरे धरती पर उतर जाता है।
ग्लाइडरों के निर्माण में जर्मनी के लिलिएंथल बंधुओं (ओटो और गुस्ताफ) ने भी बड़ी दिलचस्पी ली और कामयाबी भी हासिल की। ये जर्मनी के उत्तरी भाग के एन्कलम नामक कस्बे के निवासी थे। कहा जाता है कि जब ओटो जर्मनी में हाई स्कूल में पढ़ता था, तभी उसने दो पंख वाला एक ग्लाइडर बना लिया था।
दोनों भाइयों ने जाॅर्ज केली द्वारा विकसित किए गए उड़ने के नियमों तथा पक्षियों के उड़ने की विधि का बड़ा सूक्ष्म निरीक्षण किया। फिर उन्होंने पक्षियों के डैनों की तरह पंख बनाए। इन लोगों ने देखा कि हवा जिस ओर से आती है, पक्षी उसी ओर मुंह करके उड़ते हैं।
इन दोनों भाइयों ने भी अपने ग्लाइडर उसी तरह उड़ाए और एक पंख वाले तथा दो पंख वाले बहुत से ग्लाइडरों का निर्माण किया तथा ग्लाइडरों के जरिए 2,000 से भी अधिक सफल उड़ानें भरी।
लिलिएंथल बंधु बड़े गरीब थे। अतः कई वर्षों तक इन्होंने ग्लाइडरों के उड़ान संबंधी अपने प्रयोग स्थगित रखने पड़े।
जब इनकी माली हालत थोड़ी ठीक हुई तो ओटो लिलिएंथल ने 43 वर्ष की उम्र में सन् 1891 में बर्लिन में थोड़ी जमीन खरीदी। उसमें 50 फुट की ऊंची एक पहाड़ी भी थी।
इतनी लंबी प्रतीक्षा के बाद ग्लाइडरों के उड़ान की बारी आयी। अपने भाई की मदद से वह हवा के बहने की विपरीत दिशा की ओर पहाड़ी की चोटी से धीरे-धीरे नीचे ग्लाइडर लेकर दौड़ता। हवा के उल्टे झोकों से कुछ बल लगने के कारण ग्लाइडर ऊपर की ओर उठने का प्रयास करता। ठीक इसी समय ओटो अपने पैरों को जमीन से ऊपर उठा लेता। ग्लाइडर नीचे की ओर मंडराता हुआ आगे बढ़ता और थोड़ी देर हवा में उड़ने के बाद नीचे उतर आता। ग्लाइडर की मदद से ओटो 50 फुट तक उड़ान भर सका।
ग्लाइडर से उड़ान भरने में उसके दाएं-बाएं या आगे-पीछे होने पर उसे संतुलित करने के लिए ओटो को अपना शरीर ही आवश्यकतानुसार इधर-उधर खिसकाना पड़ता।
ओटो लिलिएंथल ग्लाइडरों को संतुलित करने के तरीकों पर विचार कर ही रहे थे कि इसी बीच एक दुर्घटना हो गयी।
एक दिन ओटो ने अपने ग्लाइडर को हवा के विरूद्ध उड़ाना आरंभ किया। उसका ग्लाइडर 50 फुट की ऊंचाई तक उठ भी चुका था कि हवा का तेज झोंका आया और उसमें ओटो का ग्लाइडर उलट गया। उसे संतुलित करने का मौका ओटो को मिला ही नहीं और ग्लाइडर जमीन पर आ गिरा। इसी में ओटो की जान चली गई। यह घटना वर्ष 1896 की है।
लिलिएंथल बंधुओं के बाद ग्लाइडर में कई सुधार वायुयान के आविष्कारक राइट बंधुओं (Orville & Wilbur Wright) ने भी किया और पूर्ण रूप से संतुलित ग्लाइडर बनाने का श्रेय उन्हीं को जाता है।
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