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गांधार राज्य के दो थे प्रमुख नगर पुरुषपुर और तक्षशिला

 
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प्राचीन भारत में 400 से अधिक जनपद और 16 से अधिक महाजनपद थे। राम के काल 5114 ईसा पूर्व में नौ प्रमुख महाजनपद थे जिसके अंतर्गत उप जनपद होते थे। जैन 'हरिवंश पुराण' में प्राचीन भारत में 18 महाराज्य थे। पालि साहित्य के प्राचीनतम ग्रंथ 'अंगुत्तरनिकाय' में भगवान बुद्ध से पहले 16 महाजनपदों का नामोल्लेख मिलता है। प्रमुख रूप से 16 महाजनपदों की ही चर्चा अधिक होती है।

16 महाजनपदों के नाम : 1. कुरु, 2. पंचाल, 3. शूरसेन, 4. वत्स, 5. कोशल, 6. मल्ल, 7. काशी, 8. अंग, 9. मगध, 10. वृज्जि, 11. चे‍दि, 12. मत्स्य, 13. अश्मक, 14. अवंति, 15. गांधार और 16. कंबोज। इन्हीं में से एक महाजनपद था गांधार। संस्कृ‍त के विद्वान पाणिनी इसी जनपद के पुरुषपुर के निवासी थे।

गंधार :
1. गंधार का अर्ध होता है सुगंध। गांधारी गांधार देश के 'सुबल' नामक राजा की कन्या थीं। क्योंकि वह गांधार की राजकुमारी थीं, इसीलिए उनका नाम गांधारी पड़ा। यह हस्तिनापुर के महाराज धृतराष्ट्र की पत्नी और दुर्योधन आदि कौरवों की माता थीं।

2. गांधार महाजनपद के प्रमुख नगर थे- पुरुषपुर (पेशावर), अभिसार, बामियान और तक्षशिला आदि। आज के पाकिस्तान का पश्चिमी तथा अफगानिस्तान का पूर्वी क्षेत्र उस काल में भारत का गंधार प्रदेश था। आधुनिक कंदहार इस क्षेत्र से कुछ दक्षिण में स्थित था। अंगुत्तरनिकाय के अनुसार बुद्ध तथा पूर्व-बुद्धकाल में गंधार उत्तरी भारत के सोलह जनपदों में परिगणित था। सिकन्दर के भारत पर आक्रमण के समय गंधार में कई छोटी-छोटी रियासतें थीं, जैसे अभिसार, तक्षशिला आदि।

3. 7वीं शती जब मोहम्बद बिन कासिक का सिंध और बलूचिस्तान पर आक्रमण हुआ तब गंधार के अनेक भागों में बौद्ध धर्म काफी उन्नत स्थित में था और यहां हिन्दूशाही के राजा राज करते थे।

4. 8वीं-9वीं सदी में मुस्लिम खलिफाओं के अभियानों के चलते धीरे-धीरे यह देश उन्हीं के राजनीतिक तथा धार्मिक प्रभाव में आ गया। 870 ई. में अरब सेनापति याकूब एलेस ने इसे अपने अधिकार में कर लिया।
5. पुरुषपुर (आधुनिक पेशावर) तथा तक्षशिला इसकी राजधानी थी। इसका अस्तित्व 600 ईसा पूर्व से 11वीं सदी तक रहा। कुषाण शासकों के दौरान यहां बौद्ध धर्म बहुत फला फूला पर बाद में मुस्लिम आक्रमण के कारण इसका पतन हो गया। पुरुषपुर को भी पहले पौरुषपुर कहते थे। यह पुरुओं का क्षेत्र था।


6. ऋग्वेद में गंधार के निवासियों को गंधारी कहा गया है तथा उनकी भेड़ो के ऊन को सराहा गया है और अथर्ववेद में गंधारियों का मूजवतों के साथ उल्लेख है।
7. वाल्मीकि रामायण के उत्तर कांड में गंधर्वदेश की भी स्थिति बताई गई है। कैकय जनपद इसके पूर्व की ओर स्थित था। कैकयनरेश युधाजित के कहने से रामचंद्र के भाई भरत ने गंधर्वदेश को जीतकर यहां की तक्षशिला एवं पुरूकलावती नामक नगरियों को बसाया था।


8. पुराणों (मत्स्य 48.6; वायु 99,9) में गंधार नरेशों को द्रुहु का वंशज बताया गया है। ययाति के पांच पुत्रों में से एक द्रुहु था। ययाति के प्रमुख 5 पुत्र थे- 1.पुरु, 2.यदु, 3.तुर्वस, 4.अनु और 5.द्रुहु। इन्हें वेदों में पंचनंद कहा गया है। पांचों पुत्रों ने अपने- अपने नाम से राजवंशों की स्थापना की। यदु से यादव, तुर्वसु से यवन, द्रुहु से भोज, अनु से मलेच्छ और पुरु से पौरव वंश की स्थापना हुए।

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