राजस्थान के राज्यपाल कल्याण सिंह के राष्ट्रगान के शब्द अधिनायक पर आपत्ति को लेकर विवाद खड़ा हो गया है। अधिनायक आखिर कौन? किसके लिए लिखा गया था यह अधिनायक शब्द? क्यों लिखा गया? राज्यपाल के इन सवालों से पहले भी कई बार इस शब्द पर सवाल खड़े हो चुके हैं। हालांकि पूरा देश राष्ट्रगान के प्रति सम्मान रखता है और इस तरह के विवादों में वह नहीं पड़ना चाहता। ऐसे में राज्यपाल की इस आपत्ति पर भास्कर ने तह में जाने की कोशिश की है। - मूल स्रोत -दैनिक भास्कर
जन गण मन अधिनायक जय हे,
भारत भाग्य विधाता
पंजाब सिंध गुजरात मराठा
द्राविड़ उत्कल बंग
विंध्य हिमांचल यमुना गंगा
उच्छल जलधि तरंग
तव शुभ नामे जागे
तव शुभ आशिष मांगे
गाये तव जय गाथा
जन गण मंगल दायक जय हे
भारत भाग्य विधाता
जय हे जय हे जय हे
जय जय जय जय हे...
-रविन्द्रनाथ टैगोर-
जनगण मन अधिनायक या मंगलदायक
राज्यपाल ने कहा है कि जन गण मन अधिनायक नहीं मंगलदायक हो। उनके सुझाव पर विशेषज्ञों का कहना है कि इतिहास के अनुसार गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर ने ही यह गीत जनगण मन अधिनायक जय हे... लिखा था और इस गीत में अधिनायक शब्द लीडर के लिए उपयोग किया गया है। इतिहासकारों और जानकारों के अनुसार यह गीत गुरुदेव रवींद्रनाथ ने 1911 में लिखा था। तब अधिनायक शब्द का इस्तेमाल उन्होंने अंग्रेजों के दबाव में ब्रिटिश किंग जॉर्ज पंचम द्वितीय और उनकी पत्नी क्वीन मैरी के भारत आने पर उनके स्वागत में लिखा था। यह बात दीगर है कि जब जॉर्ज भारत आए तब यह गीत नहीं गाया गया और फिर कांग्रेस के कोलकाता अधिवेशन में इसे गाया गया। बाद में पंडित जवाहरलाल नेहरू के दबाव में इसे राष्ट्रगान का रूप दिया गया। जबकि सभी चाहते थे कि बंकिम चंद्र चटर्जी का लिखा वंदेमातरम् ही राष्ट्रगान बने।
पहले भी विवादों में आया अधिनायक
सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश मार्कंडेय काटजू पूर्व में राष्ट्र गान पर इस तरह की बातें कह चुके हैं। काटजू ने राष्ट्रगान के रचयिता रवींद्र नाथ टैगोर को अंग्रेजों की कठपुतली बताया था। उन्होंने कहा था कि राष्ट्रगान देश के गौरव के लिए नहीं बल्कि अंग्रेजों की चापलूसी में लिखा गया था। उन्होंने तब भी कहा था कि जिस राष्ट्रगान को हम बहुत गर्व के साथ गाते हैं, वह देश के सम्मान में नहीं, ब्रिटिश किंग जॉर्ज पंचम के सम्मान में लिखा था। काटजू ने तब यह भी बताया था कि कोलकाता के अखबार इंग्लिश मैन ने उस वक्त यह खुलासा किया था। इसे गुरुदेव भी स्वीकार करते थे कि उनसे दबाव में लिखवाया गया था।
हालांकि कांग्रेस इस पर बार-बार सफाई देती आ रही है कि यह गीत भले ही जॉर्ज के सम्मान में लिखा गया था, लेकिन उनके सम्मान में गाया नहीं गया था। काटजू का तर्क था कि अधिनायक शब्द राजा के भगवान से है और उस समय भारत का राजा कौन था। अंग्रेजों का राज था और राजा भी उनका ही। तब अंग्रेजों को ही भारत के भाग्य विधाता कहा गया था।
राज्यपाल ने कहा, राष्ट्रगान में अधिनायक शब्द अंग्रेजों के सम्मान का प्रतीक, इसे बदलना चाहिए-
राजस्थान यूनिवर्सिटी के दीक्षांत समारोह में राज्यपाल कल्याण सिंह ने उद्घाटन करते हुए राष्ट्रगान-जन गण मन... के एक शब्द पर टिप्पणी की। उन्होंने कहा, अधिनायक शब्द अंग्रेजों के सम्मान के लिए लिखा गया था। इसे बदलकर मंगलदायक शब्द किया जाना चाहिए। देश को आजाद हुए सालों हो गए, लेकिन दुर्भाग्य है कि आपत्तिजनक शब्दों को हम आज तक नहीं हटा पा रहे हैं।
लुटेरों को कब तक महान बताते रहेंगे
राज्यपाल ने कहा, आज यहां अकबर महान पढ़ाया जा रहा है। यहां तो कम से कम महाराणा प्रताप महान पढ़ाया जाना चाहिए। हमारे प्रदेश में लुटेरों को महान व्यक्ति के रूप में छात्रों को पढ़ाया जा रहा है। इससे छात्र गलत दिशा में जा सकते हैं । छात्रों को ये पढ़ाया गया कि अकबर- औरंगजेब आदि मुगल महान थे। जबकि हकीकत में महान महाराणा प्रताप और छत्रपति शिवाजी महान थे। लुटेरों को महान बताकर रक्षकों का अपमान करने के साथ छात्रों को गलत सीख दी रही है।
समारोह में उच्च शिक्षा मंत्री कालीचरण सराफ और शिक्षा राज्यमंत्री वासुदेव देवनानी सहित राज्यपाल ने गोल्ड मैडलिस्ट को 1991 से डिग्रियां प्रदान कीं। इस मौके पर सराफ ने यूनिवर्सिटी की मदद का भरोसा जताया। उन्होंने कॉलेज स्टूडेंट्स के लिए 75 फीसदी उपस्थिति नहीं होने पर परीक्षा से वंचित किए जाने जैसे नियमों को कड़ाई से लागू करने की पैरवी की। मूल स्रोत -दैनिक भास्कर
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