धर्म का सम्बन्ध आस्था से होता है और आस्था का सम्बन्ध ह्रदय से होता है। हिन्दु धर्म प्यार, भाईचारा, दया, सहिष्णुता और मानवता सिखाता है।
वेद प्राचीन भारत के पवितत्रतम साहित्य हैं जो हिन्दुओं के प्राचीनतम और आधारभूत धर्मग्रन्थ भी हैं। भारतीय संस्कृति में वेद सनातन वर्णाश्रमधर्म के मूल और सबसे प्राचीन ग्रन्थ हैं जिन्हें ईश्वर की वाणी समझा जाता है। ये विश्व के उन प्राचीनतम धार्मिक ग्रंथों में हैं जिनके पवित्र मन्त्र आज भी बड़ी आस्था और श्रद्धा से पढ़े-सुने जाते हैं।
वेद ईश्वरीय ज्ञान है। यह ज्ञान सृष्टि के आरम्भ में मानवमात्र के कल्याण के लिए दिया गया था। वेद वैदिक-संस्कृति के मूलाधार हैं। वे शिक्षाओं के आगार और ज्ञान के भण्डार हैं। वेद संसाररूपी सागर से पार उतरने के लिए नौकारूप हैं। वेद में मनुष्य जीवन की सभी प्रमुख समस्याओं का समाधान है। वेद धर्म की मूल पुस्तक है। वेद वैदिक विज्ञान, राष्ट्रधर्म, समाज-व्यवस्था, पारिवारिक-जीवन, वर्णाश्रम-धर्म, सत्य, प्रेम, अहिंसा, त्याग आदि को दर्पण की भाँति दिखाता है।
वेद ईश्वर द्वारा ऋषियों को सुनाए गए ज्ञान पर आधारित है इसीलिए इसे श्रुति कहा गया है। सामान्य भाषा में वेद का अर्थ होता है ज्ञान। वेद पुरातन ज्ञान विज्ञान का अथाह भंडार है। वेदों में ब्रह्म (ईश्वर), देवता, ब्रह्मांड, ज्योतिष, गणित, रसायन, औषधि, प्रकृति, खगोल, भूगोल, धार्मिक नियम, इतिहास, रीति-रिवाज आदि लगभग सभी विषयों से संबंधित ज्ञान भरा पड़ा है।
वेद उस एक परमेश्वर का वाक्य है जिसे ब्रह्म कहते हैं। ब्रह्म ने ऋषियों को वेद का ज्ञान सुनाया था इसलिए वेदों को श्रुति भी कहा गया है। ऋषियों ने जब इस ज्ञान को सुनकर दूसरे ऋषियों और राजाओं को सुनाया और उन ऋषियों एवं राजाओं ने अपनी-अपनी समझ के अनुसार उसे लिपिबद्ध किया या लोगों को समझाया तो वह स्मृति ज्ञान हो गया। वेदों को छोड़कर सभी ज्ञान स्मृति के अंतर्गत आते हैं। वेद में किसी भी प्रकार की काट-छांट या जोड़-घटाव नहीं किया गया और हो सभी नहीं सकता, क्योंकि वेद कुछ विशेष छंदों बद्ध है जिसमें हेरफेर करना मुश्किल
धर्मग्रन्थ:
हिंदू धर्म के पवित्र ग्रन्थों को दो भागों में बाँटा गया है- श्रुति और स्मृति। श्रुति हिन्दू धर्म or Hindu Religion के सर्वोच्च ग्रन्थ हैं, जो पूर्णत: अपरिवर्तनीय हैं, अर्थात् किसी भी युग में इनमे कोई बदलाव नही किया जा सकता। स्मृति ग्रन्थों मे देश-कालानुसार बदलाव हो सकता है। श्रुति के अन्तर्गत वेद : ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद ब्रह्म सूत्र व उपनिषद् आते हैं। वेद श्रुति इसलिये कहे जाते हैं क्योंकि हिन्दुओं का मानना है कि इन वेदों को परमात्मा ने ऋषियों को सुनाया था, जब वे गहरे ध्यान में थे। वेदों को श्रवण परम्परा के अनुसार गुरू द्वारा शिष्यों को दिया जाता था। हर वेद में चार भाग हैं- संहिता — मन्त्र भाग, ब्राह्मण-ग्रन्थ — गद्य भाग, जिसमें कर्मकाण्ड समझाये गये हैं, आरण्यक — इनमें अन्य गूढ बातें समझायी गयी हैं, उपनिषद् — इनमें ब्रह्म, आत्मा और इनके सम्बन्ध के बारे में विवेचना की गयी है। अगर श्रुति और स्मृति में कोई विवाद होता है तो श्रुति ही मान्य होगी। श्रुति को छोड़कर अन्य सभी हिन्दू धर्मग्रन्थ स्मृति कहे जाते हैं, क्योंकि इनमें वो कहानियाँ हैं जिनको लोगों ने पीढ़ी दर पीढ़ी याद किया और बाद में लिखा। सभी स्मृति ग्रन्थ वेदों की प्रशंसा करते हैं। इनको वेदों से निचला स्तर प्राप्त है, पर ये ज़्यादा आसान हैं और अधिकांश हिन्दुओं द्वारा पढ़े जाते हैं (बहुत ही कम हिन्दू वेद पढ़े होते हैं)। प्रमुख स्मृतिग्रन्थ हैं:- इतिहास–रामायण और महाभारत, भगवद गीता, पुराण, मनुस्मृति, धर्मशास्त्र और धर्मसूत्र, आगम शास्त्र। भारतीय दर्शन के ६ प्रमुख अंग हैं- साँख्य, योग, न्याय, वैशेषिक, मीमांसा और वेदान्त।
वेदों के विषय उनकी व्याख्या पर निर्भर करते हैं। ग्रंथों के हिसाब से इनका विवरण इस प्रकार है –
ऋग्वेद वेद
ऋग्वेद को चारों वेदों में सबसे प्राचीन माना जाता है। इसको दो प्रकार से बाँटा गया है। प्रथम प्रकार में इसे 10 मण्डलों में विभाजित किया गया है। मण्डलों को सूक्तों में, सूक्त में कुछ ऋचाएं होती हैं। कुल ऋचाएं 10520 हैं। दूसरे प्रकार से ऋग्वेद में 64 अध्याय हैं। आठ-आठ अध्यायों को मिलाकर एक अष्टक बनाया गया है। ऐसे कुल आठ अष्टक हैं। फिर प्रत्येक अध्याय को वर्गों में विभाजित किया गया है। वर्गों की संख्या भिन्न-भिन्न अध्यायों में भिन्न भिन्न ही है। कुल वर्ग संख्या 2024 है। प्रत्येक वर्ग में कुछ मंत्र होते हैं। सृष्टि के अनेक रहस्यों का इनमें उद्घाटन किया गया है। पहले इसकी 21 शाखाएं थीं परन्तु वर्तमान में इसकी शाकल शाखा का ही प्रचार है।
यजुर्वेद वेद
इसमें गद्य और पद्य दोनों ही हैं। इसमें यज्ञ कर्म की प्रधानता है। प्राचीन काल में इसकी 101 शाखाएं थीं परन्तु वर्तमान में केवल पांच शाखाएं हैं – काठक, कपिष्ठल, मैत्रायणी, तैत्तिरीय, वाजसनेयी। इस वेद के दो भेद हैं – कृष्ण यजुर्वेद और शुक्ल यजुर्वेद। कृष्ण यजुर्वेद का संकलन महर्षि वेद व्यास ने किया है। इसका दूसरा नाम तैत्तिरीय संहिता भी है। इसमें मंत्र और ब्राह्मण भाग मिश्रित हैं। शुक्ल यजुर्वेद – इसे सूर्य ने याज्ञवल्क्य को उपदेश के रूप में दिया था। इसमें 15 शाखाएं थीं परन्तु वर्तमान में माध्यन्दिन को जिसे वाजसनेयी भी कहते हैं प्राप्त हैं। इसमें 40 अध्याय, 303 अनुवाक एवं 1975 मंत्र हैं। अन्तिम चालीसवां अध्याय ईशावास्योपनिषद है।
सामवेद वेद
यह गेय ग्रन्थ है। इसमें गान विद्या का भण्डार है, यह भारतीय संगीत का मूल है। ऋचाओं के गायन को ही साम कहते हैं। इसकी 1001 शाखाएं थीं। परन्तु आजकल तीन ही प्रचलित हैं – कोथुमीय, जैमिनीय और राणायनीय। इसको पूर्वार्चिक और उत्तरार्चिक में बांटा गया है। पूर्वार्चिक में चार काण्ड हैं – आग्नेय काण्ड, ऐन्द्र काण्ड, पवमान काण्ड और आरण्य काण्ड। चारों काण्डों में कुल 640 मंत्र हैं। फिर महानाम्न्यार्चिक के 10 मंत्र हैं। इस प्रकार पूर्वार्चिक में कुल 650 मंत्र हैं। छः प्रपाठक हैं। उत्तरार्चिक को 21 अध्यायों में बांटा गया। नौ प्रपाठक हैं। इसमें कुल 1225 मंत्र हैं। इस प्रकार सामवेद में कुल 1875 मंत्र हैं। इसमें अधिकतर मंत्र ऋग्वेद से लिए गए हैं। इसे उपासना का प्रवर्तक भी कहा जा सकता है।
अथर्ववेद
इसमें गणित, विज्ञान, आयुर्वेद, समाज शास्त्र, कृषि विज्ञान, आदि अनेक विषय वर्णित हैं। कुछ लोग इसमें मंत्र-तंत्र भी खोजते हैं। यह वेद जहां ब्रह्म ज्ञान का उपदेश करता है, वहीं मोक्ष का उपाय भी बताता है। इसे ब्रह्म वेद भी कहते हैं। इसमें मुख्य रूप में अथर्वण और आंगिरस ऋषियों के मंत्र होने के कारण अथर्व आंगिरस भी कहते हैं। यह 20 काण्डों में विभक्त है। प्रत्येक काण्ड में कई-कई सूत्र हैं और सूत्रों में मंत्र हैं। इस वेद में कुल 5977 मंत्र हैं। इसकी आजकल दो शाखाएं शौणिक एवं पिप्पलाद ही उपलब्ध हैं। अथर्ववेद का विद्वान् चारों वेदों का ज्ञाता होता है। यज्ञ में ऋग्वेद का होता देवों का आह्नान करता है, सामवेद का उद्गाता सामगान करता है, यजुर्वेद का अध्वर्यु देव:कोटीकर्म का वितान करता है तथा अथर्ववेद का ब्रह्म पूरे यज्ञ कर्म पर नियंत्रण रखता है।
हिन्दुओं के ग्रन्थ इतने पुराने हैं कि कोई सही-सही बता ही नहीं सकता कि कौन ग्रन्थ कब लिखा गया। कोई पाँच हजार वर्ष से अधिक पुराना है कोई दो हजार वर्ष पुराना। ऐसी स्थिति में उसके बारे में कुछ भी ठीक-ठीक नहीं कहा जा सकता कि इसमें से क्या मूलरूप में है, क्या बाद में जुड़ा है; क्या सत्य है? क्या अर्धसत्य और क्या केवल कल्पना की उड़ान? इसलिये उस पर बहस करना कोई अर्थ नही रखता।
सज्जनो हिंदी साहित्य और संस्कृत साहित्य अलंकारों, छंदों और प्रयायवाची शब्दों में होता है जिसमे एक ही शब्द के अनेक अर्थ और अनेक भाव होता है सिर्फ हिंदी साहित्य एक ऐसा साहित्य होता है जिसके अर्थो और भावो को एक अच्छा जानकर साहित्यकार ही समाज सकता है. हिन्दू धर्म में जितने भी वेद लिखे गए है वो संस्कृत साहित्य में लिखे गए है जिसमे श्लोक संस्कृत में लिखे गए है जिनके अर्थो और भावो को समझाना बहुत ही कठिन है. ओच्छी मानसिकता वाले लोग साहित्य के जानकर होकर भी उस साहित्य के अर्थ और भावो का अलग ही अर्थ लगाएंगे उसमे अश्लीलता ही खोजेंगे क्योकि व्यक्ति में जितनी बुद्धि होती है वह उतना ही सोच सकता है उससे ज्यादा नहीं
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