आज के आधुनिकता की चकाचैध व अवैज्ञानिक सोच ने पूरी दुनिया के लोगो की जिन्दगी को नर्क से भी बदतर बनाकर रख दिया। जिसका नतीजा यह देखने को मिल रहा कि जहां पहले के लोगो की स्वस्थ्य रहने की आयु लगभग सौ वर्षो से ऊपर होता था। परन्तु आधुनिकता के दौर में पहले के लोगो द्वारा चलन में लाये जा रहे उपयोगी सामानो को हंसी का पात्र बनाकर उसे लगातर दरकिनार करते जा रहे। जिसका नतीजा आज यह देखने को मिल रहा है कि आज के समय में लोग 40 वर्ष की आयु पार करते ही तमाम तरह के बीमारियो से ग्रस्त होते जा रहे है। उनके अन्दर मानो जैसे बीमारियों से लडने की क्षमता विलुप्त होता जा रहा। जिसके वजह से आज के समय में लोग इन्ही बीमारियो के चलते असमय काल के गाल में समाते जा रहे।
वैदिक संस्कृति में चोटी रखने का महत्व-
वैदिक संस्कृति में चोटी को शिखा कहते हैं। स्त्रियां भी चोटी रखती हैं। उसका भी कारण है। मुंडन और उपनयन संस्कार के समय यह किया जाता है। प्रत्येक हिन्दू को यह करना होता है। इस संस्कार के बाद ही बच्चा द्विज कहलाता है। द्विज का अर्थ होता है जिसका दूसरा जन्म हुआ हो, अब बच्चे को पढ़ाई करने के लिए गुरुकुल भेजा जा सकता है। पहले यह संस्कार करते समय यह तय किया जाता था कि बच्चों को ब्राह्मणत्व ग्रहण करना है, क्षत्रियत्व या वैश्यत्व। जब यह तय हो जाता था तभी उसके अनुसार शिक्षा दी जाती थी। पहले सभी शूद्र कहलाते थे। प्रत्येक स्त्री तथा पुरुष को अपने सिर पर चोटी यानी कि बालों का समूह अनिवार्य रूप से रखना चाहिए। बच्चे की उम्र के पहले वर्ष के अंत में या तीसरे, पांचवें या सातवें वर्ष के पूर्ण होने पर बच्चे के बाल उतारे जाते हैं और यज्ञ किया जाता है जिसे मुंडन संस्कार या चूड़ाकर्म संस्कार कहा जाता है। इससे बच्चे का सिर मजबूत होता है तथा बुद्धि तेज होती है। उपनयन संस्कार बच्चे के 6 से 8 वर्ष की आयु के बीच में किया जाता है। इसमें यज्ञ करके बच्चे को एक पवित्र धागा पहनाया जाता है, इसे यज्ञोपवीत या जनेऊ भी कहते हैं। बालक को जनेऊ पहनाकर गुरु के पास शिक्षा अध्ययन के लिए ले जाया जाता था। वैदिक काल में 7 वर्ष की आयु में शिक्षा ग्रहण करने के लिए भेजा जाता था। आजकल तो 3 वर्ष की आयु में ही स्कूल में दाखिला लेना होता हंे जो कि पूर्णतयः अवैज्ञानिक है। बच्चे का पूर्ण बौद्धिक विकास 7 वर्ष की आयु में होता है ।
सिर पर चोटी क्यों रखी जाती है-
सिर में सहस्रार के स्थान पर चोटी रखी जाती है अर्थात सिर के सभी बालों को काटकर बीचो-बीच के स्थान के बाल को छोड़ दिया जाता है। इस स्थान के ठीक 2 से 3 इंच नीचे आत्मा का स्थान है। भौतिक विज्ञान के अनुसार यह मस्तिष्क का केंद्र है। विज्ञान के अनुसार यह शरीर के अंगों, बुद्धि और मन को नियंत्रित करने का स्थान भी है। हमारे ऋषियों ने सोच-समझकर चोटी रखने की प्रथा को शुरू किया था। इस स्थान पर चोटी रखने से मस्तिष्क का संतुलन बना रहता है। शिखा रखने से इस सहस्रार चक्र को जागृत करने और शरीर, बुद्धि व मन पर नियंत्रण करने में सहायता मिलती है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार सहस्रार चक्र का आकार गाय के खुर के समान होता है इसीलिए चोटी का आकार भी गाय के खुर के बराबर ही रखा जाता है । मिशन विचार क्रांति शान्तिकुंज हरिद्वार के अनुसार असल में जिस स्थान पर शिखा यानी कि चोटी रखने की परंपरा है, वहां पर सिर के बीचोबीच सुषुम्ना नाड़ी का स्थान होता है तथा शरीर विज्ञान यह सिद्ध कर चुका है कि सुषुम्ना नाड़ी इंसान के हर तरह के विकास में बड़ी ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। चोटी सुषुम्ना नाड़ी को हानिकारक प्रभावों से तो बचाती ही है, साथ में ब्रह्मांड से आने वाले सकारात्मक तथा आध्यात्मिक विचारों को कैच यानी कि ग्रहण भी करती है।
चोटी को रखने के ज्योतिषीय लाभ-
जिस किसी की भी कुंडली में राहु नीच का हो या राहु खराब असर दे रहा है तो उसे माथे पर तिलक और सिर पर चोटी रखने की सलाह दी जाती है।
मुंडन का महत्व-
हालांकि मुंडन संस्कार स्वास्थ्य से जुड़ा है। जन्म के बाद बच्चे का मुंडन किया जाता है। इसके पीछे मुख्य कारण यह है कि जब बच्चा मां के गर्भ में होता है तो उसके सिर के बालों में बहुत से कीटाणु, बैक्टीरिया और जीवाणु लगे होते हैं, जो साधारण तरह से धोने से नहीं निकल सकते इसलिए एक बार बच्चे का मुंडन जरूरी होता है। अतः जन्म के 1 साल के भीतर बच्चे का मुंडन कराया जाता है कुछ ऐसा ही कारण मृत्यु के समय मुंडन का भी होता है। जब पार्थिव देह को जलाया जाता है तो उसमें से भी कुछ ऐसे ही जीवाणु हमारे शरीर पर चिपक जाते हैं। नदी में स्नान और धूप में बैठने का भी इसीलिए महत्व है। सिर में चिपके इन जीवाणुओं को पूरी तरह निकालने के लिए ही मुंडन कराया जाता है।
क्या कहता है,सिर पर चोटी रखने का प्राचीन विज्ञान
- ब्राह्मण वर्ग-पौराणिक कहानियों में तो हम देखते-सुनते आ ही रहे हैं लेकिन वर्तमान समय में भी प्रायः पुरुषों को शिखा यानि चोटी रखे देखा जा सकता है। ब्राह्मण वर्ग के लोग तो विशेषतौर पर आज भी सिर पर चोटी रखते हैं।
- प्राचीन समय-प्राचीन समय में सिर पर शिखा रखना इतना जरूरी था कि इसे आर्यों की पहचान तक मान लिया गया था।
- सिर पर शिखा-हम आपको बताएंगे कि आखिर किस कारण से हमारे पूर्वजों ने सिर पर शिखा रखना इतना जरूरी समझा था।
- सुषुम्ना नाड़ी-सिर पर चोटी रखने का सबसे बड़ा और प्रमुख कारण है कि इस स्थान के सीधे नीचे सुषुम्ना नाड़ी होती है, जो कपाल तंत्र के अन्य खुली जगहों (मुंडन के समय) की अपेक्षा ज्यादा संवेदनशील भी होती है।
- ब्रह्मांडीय विद्युत-इस जगह के खुले होने के कारण वातावरण से ऊष्मा और अन्य ब्रह्मांडीय विद्युत-चुंबकीय तरंगें बड़ी ही आसानी से मस्तिष्क के साथ आदान-प्रदान कर सकती हैं।
- मस्तिष्क के ताप को नियंत्रित करना-ऐसी गतिविधियां मस्तिष्क के ताप को भी बढ़ाती हैं, लेकिन वैज्ञानिक तौर पर मस्तिष्क के ताप को नियंत्रित करना बहुत जरूरी होता है इस लिए इस स्थान का ढका होना जरूरी है।
- सिर पर शिखा-सिर पर शिखा (चोटी) रखकर आसानी से ताप को नियंत्रित किया जा सकता है। यही वजह है कि प्राचीन काल से ही सिर पर चोटी रखने का प्रचलन है।
- बौद्धिक क्षमता-आपको शायद यह पता ना हो लेकिन सिर के जिस भाग पर चोटी रखी जाती है वह स्थान बौद्धिक क्षमता, बुद्धिमता और शरीर के विभिन्न अंगों को नियंत्रित करता है। यह धर्म का परिचायक तो है ही साथ ही साथ मस्तिष्क की कार्यप्रणाली को सुचारू रखने में सहायक सिद्ध होता है।
- प्राणायाम-सिर पर शिखा रखने से मनुष्य योगासनों को भी सही तरीके से कर पाता है, इनमें प्राणायाम, अष्टांगयोग आदि प्रमुख हैं। इसकी सहायता से नेत्रों की रोशनी भी सही रहती है और वह शारीरिक रूप से सक्रिय रहता है।
- चोटी की लंबाई-वे लोग जिनकी परंपरा में ही चोटी रखना समाहित है, वे आधुनिकता की वजह से सिर पर बहुत छोटी सी चोटी रख लेते हैं, जबकि शास्त्रों के अनुसार यह वर्णित है कि चोटी की लंबाई और आकार गाय के पैर के खुर के बराबर होनी आवश्यक मानी गई है।
- वैज्ञानिक तौर-लेकिन यह सिर्फ एक मान्यता या परंपरा ही नहीं है वरन् इसे वैज्ञानिक तौर पर भी स्वीकृत किया गया है। आज हम आपको वैज्ञानिक दृष्टिकोण से बताएंगे कि सिर पर चोटी या शिखा रखना क्यों जरूरी माना गया है।
- पांच चक्र-शरीर के पांच चक्र होते हैं, जिसमें से एक है सहस्त्रार चक्र, जो सिर के बीच में होता है। सही जगह पर शिखा रखने से यह चक्र जाग्रत होता है, साथ ही बुद्धि और मन भी नियंत्रित रहते हैं।
- रक्त का प्रवाह-‘शिखा का दबाव होने से रक्त का प्रवाह रहता है, इसका सीधा लाभ मस्तिष्क को प्राप्त होता है।
- रूढ़िवादिता की पहचान- आजकल के लोग सिर पर चोटी रखने को रूढ़िवादिता की पहचान मानते हैं लेकिन असल में यह पूर्णतः वैज्ञानिक तरीका है।
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