हिन्दू धर्म में 16 संस्कारों में से एक कर्ण वेध संस्कार का उल्लेख मिलता है। इसे उपनयन संस्कार से पहले किया जाता है। आओ जानते हैं कर्ण वेध संस्कार के बारे में संक्षिप्त जानकारी। कान छिदवाने के कई कारण होते हैं। इस संस्कार के अनुसार दो लाभ होते हैं पहले यह कि राहु और केतु संबंधी प्रभाव समाप्त होता है और दूसरा यह कि संतान स्वस्थ रहे, उन्हें रोग और व्याधि परेशान न करें।
कान छिदवाना हिंदू संस्कारों का हिस्सा है, हालांकि, अब ये फैशन का हिस्सा भी बन गया है। कान छिदवाने की रिवाज प्राचीन काल से चली आ रही है। कान छिदवाने की कई धार्मिक मान्यताएं हैं तो वहीं इसके पीछे कई स्वास्थ्य के लाभ भी छुपे हैं। कई लोगों का विश्वास है कि कान छिदवाने से दुष्ट आत्माओं को दूर रखने में मदद मिलती है। प्राचीन काल में बच्चों की याददाश्त बढ़ाने के लिए कान छेदने की प्रथा थी। ऐसी मान्यता थी कि कान छिदने से दिमाग की शक्ति बढ़ती है। यहीं कारण था कि पहले बच्चा पैदा होने के एक साल के अंदर-अंदर उनके कान छिदवा दिए जाते थे।
कहा जाता है कि कान छिदवाने से कई लाभ मिलते हैं। कान छिदवाने के लाभों के बारे में जानकार आपको जरूर हैरानी हो सकती है। कान छिदवाने के बारे में महान ऋषि सुश्रुत का कहना है कि कान छिदवाने से दिमाग का विकास होता है। कान के निचले में एक प्वाइंट होता है, जिसका संबंध मस्तिष्क के एक भाग से होता है। जब कान छिदवाया जाता है तो दिमाग का यह हिस्सा एक्टिव बनता है, जिससे दिमाग की शक्ति बढ़ जाती है।
सावधानी- ध्यान रहे कि कान विधिपूर्वक ही छिदवाएं अन्यथा आपको नुकसान भी हो सकता है, क्योंकि आजकल लोग एक ही कान में चार-चार छेद करने लगे हैं जो कि अनुचित है। कुछ लोग एक ही कान छिदवाते हैं तो कुछ लोग दोनों कान छिदवाते हैं। हालांकि नियम दोनों ही कान छिदवाने का है।
कब करना चाहिए यह संस्कार-
इस संस्कार के बारे में कहा जाता है कि यह बालक के जन्म से दसवें, बारहवें, सोलहवें दिन या छठे, सातवें आठवें महीने में किया जा सकता है। बालक शिशु का पहले दाहिना कान फिर बायां कान और कन्या का पहले बायां कान फिर दायां कान छेदना चाहिए।
किस मुहूर्त में करना चाहिए यह संस्कार-
नक्षत्र- इस संस्कार के लिए मृगशिरा, रेवती, चित्रा, अनुराधा, हस्त, अश्विनी, पुष्य, अभिजीत, श्रवण, घनिष्ठा और पुनर्वसु अति शुभ माने जाते हैं। इन नक्षत्रों में से किसी भी नक्षत्र में आप यह संस्कार कर सकते हैं।
वार- कर्ण वेधन के दिन सोमवार, बुधवार, बृहस्पतिवार और शुक्रवार में से कोई वार होना चाहिए।
तिथि- कर्ण वेध संस्कार के लिए चतुर्थ, नवम एवं चतुर्दशी तिथियों एवं अमावस्या तिथि को छोड़कर सभी तिथि शुभ मानी गयी है।
लग्न- वैसे तो सभी लग्न जिसके केन्द्र (प्रथम, चतुर्थ, सप्तम, दशम) एवं त्रिकोण (पंचम, नवम) भाव में शुभ ग्रह हों तथा (तृतीय, षष्टम, एकादश) भाव में पापी ग्रह हों तो वह लग्न उत्तम कहा जाता है। यहां वृष, तुला, धनु व मीन को विशेष रूप से शुभ माना जाता है। यदि बृहस्पति लग्न में हो तो यह सर्वोत्तम स्थिति कही जाती है।
निषेध- खर मास, क्षय तिथि, हरिशयन (आषाढ़ शुक्ल एकादशी से कार्तिक शुक्ल एकादशी तक जन्म मास (चन्द्र मास) सम वर्ष (द्वितीय, चतुर्थ) इत्यादि को कर्ण-वेध संस्कार में त्याज्य किया जाना चाहिए। चन्द्र शुद्धि एवं तारा शुद्धि अवश्य की जानी चाहिए।
कान छिदवाने के बाद क्या करें-
कान छिदवाने के बाद उसमें चांदी या सोनी की तार पहनें। कान पके नहीं इसके लिए हल्दी को नारियल के तेल में मिलकर तब तक लगाएं तब तक की छेद अच्छे से फ्री ना हो जाए।
एक्यूप्रेशर के अहम प्वाइंट हैं कान, नाक
सदियों पहले प्रचलित यह संस्कार महिलाओं के सोलह श्रृंगार का जहां हिस्सा रहे। वहीं इन संस्कारों के महत्व को विज्ञान ने भी स्वीकार करते माना है कि यह स्थान एक्यूप्रेशर में अहम स्थान है। कान, नाक के वेधन से कई तरह के रोगों का निदान भी होता है। आईए आपको बताएं कि कान, नाक वेधन से महिलाओं के सोलह श्रृंगार के अलावा उनके स्वास्थय में किस तरह का लाभ हो सकता है।
महिलाओं के सोलह श्रृंगार का हिस्सा है नाक, कान छेदन
यह सच है कि हर महिला की खूबसूरती उसके सोलह श्रृंगार के बिना अधूरी रहती है। हिंदू धर्म में सोलह शृंगार को बेहद अधिक महत्व दिया गया है। यदि किसी महिला का कान व नाक छेदन नहीं होता है, तो उसका सोलह श्रृंगार ही पूरा नहीं होता है। सोलह श्रृंगार को बेहद माना गया है। सोलह श्रृंगार की पूर्ति नाक और कान के छिदवाने के बिना पूरी नहीं हो सकती है।
सदियों से जारी है नाक, कान छिदवाने की परंपरा
महिलाओं में नाक और कान छिदवाने की प्रथा सदियों से चली आ रही है। मौजूदा समय में नाक और कान छिदवाने की प्रथा अब एक फैशन में बदल चुकी है। इस समय नाक व कान छिदवाने का शौक पुरुषों में सिर चढ़ कर बोल रहा है, लेकिन यह परंपरा खासकर महिलाओं के लिए ही शुरू की गई थी। हिंदू धर्म में नाक छिदवाने की प्रथा को बेहद सत्कार दिया जाता है। हिंदू धर्म में इसे संस्कार के रप में मान्ता प्रदान की गई है। कान वेधन से सुनने की शक्ति की वृद्धि, कान में आभूषण पहनने तथा स्वास्थ्य रक्षा के लिये किया जाता है।
लड़कियों के कान, नाक छिदवाने का विधान
लड़कियों के बचपन में ही कान व नाक छेदन का विधान है। लड़कियों के सबसे पहले बाएं कान में, फिर दाहिने कान में छेद करके तथा बाएं नाक में छेद किया जाता है। इनमें आभुषण पहनाने का विधान है।
कान व नाक छिदवाने से कौन-कौन से रोगों से मिलती है राहत
साइंस अनुसार कान व नाक में छेद किए जाने वाले प्वाइंट एक्यूप्रेशर के होते हैं। इस तरह से मस्तिष्क के दोनों भागों को प्रभावशील बनाने के लिए नाक और कान में छेद कर सोना पहनना लाभकारी माना गया है। नाक में नथुनी पहनने से नाक संबधी रोगों में कमी आती है। सर्दी-खांसी में राहत भी मिलती है। माना जाता है कि जिन महिलाओं के नाक में छेद किया होता है। उनमें प्रसव के दौरान पीड़ा को सहने की शक्ति अधिक होती है। क्यों कि यह स्थान एक्यूप्रेशर प्वाइंट एक प्रकार का हार्मोन पैदा करता है। यह हार्मोन प्रसव के दौरान होने वाली पीड़ा से राहत दिलाने में मदद करता है। इतना ही नहीं इस हार्मोन की मदद से पेट दर्द भी कम होने की शिकायत होती है। नाक छिदवाने से महिलाओं में सिर दर्द की समस्या भी कम हो जाती है।
कान छिदवाने के फायदे-
- कहते हैं कि कान छिदवाने से सुनने की क्षमता बढ़ जाती है।
- कान छिदवाने से आंखों की रोशनी तेज होती है।
- कान छिदने से तनाव भी कम होता है।
- कान छिदने से लकवा जैसी गंभीर बीमारी होने का खतरा काफी हद तक कम हो जाता है।
- इससे बुरी शक्तियों का प्रभाव दूर होता है और व्यक्ति दीर्घायु होता है।
- इससे मस्तिष्क में रक्त का संचार समुचित प्रकार से होता है। इससे दिमाग तेज चलता है।
- पुरुषों के द्वारा कान छिदवाने से उनमें होने वाली हर्निया की बीमारी खत्म हो जाती है।
- यह भी कहा जाता है कि पुरुषों के अंडकोष और वीर्य के संरक्षण में भी कर्णभेद का लाभ मिलता है।
- मान्यता अनुसार कान छिदवाने से व्यक्ति के रूप में निखार आता है।
- कान छिदवाने से मेधा शक्ति बेहतर होती है तभी तो पुराने समय में गुरुकुल जाने से पहले कान छिदवाने की परंपरा थी।
- लाल किताब अनुसार कान छिदवाने से राहु और केतु के बुरे प्रभाव का असर खत्म होता है। जीवन में आने वाले आकस्मिक संकटों का कारण राहु और केतु ही होते हैं अत: कान छिदवाना जरूरी है।
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