इस एक्ट के जरिए कांग्रेस ने राज्यों को अधिकार दे दिया कि वो किसी भी मंदिर को सरकार के अधीन कर सकते हैं। इस एक्ट के बनने के बाद से आंध्र प्रदेश सरकार नें लगभग 34,000 मंदिर को अपने अधीन ले लिया था। कर्नाटक, महाराष्ट्र, ओडिशा, तमिलनाडु ने भी मंदिरों को अपने अधीन कर दिया था। इसके बाद शुरू हुआ मंदिरों के चढ़ावे में भ्रष्टाचार का खेल। उदाहरण के लिए तिरुपति बालाजी मंदिर की सालाना कमाई लगभग 3500 करोड़ रूपए है। मंदिर में रोज बैंक से दो गाड़ियां आती हैं और मंदिर को मिले चढ़ावे की रकम को ले जाती हैं। इतना फंड मिलने के बाद भी तिरुपति मंदिर को सिर्फ 7 % फंड वापस मिलता है, रखरखाव के लिए।
आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री YSR रेड्डी ने तिरुपति की 7 पहाड़ियों में से 5 को सरकार को देने का आदेश दिया था। इन पहाड़ियों पर चर्च का निर्माण किया जाना था। मंदिर को मिलने वाली चढ़ावे की रकम में से 80 % "गैर हिंदू" कामों के लिए किया जाता है।
तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक हर राज्य़ में यही हो रहा है। मंदिर से मिलने वाली रकम का इस्तेमाल मस्जिदों और चर्चों के निर्माण में किया जा रहा है। मंदिरों के फंड में भ्रष्टाचार का आलम ये है कि कर्नाटक के 2 लाख मंदिरों में लगभग 50,000 मंदिर रखरखाव के अभाव के कारण बंद हो गए हैं।
दुनिया के किसी भी लोकतंत्रिक देश में धार्मिक संस्थानों को सरकारों द्वारा कंट्रोल नहीं किया जाता है, ताकि लोगों की धार्मिक आजादी का हनन न होने पाए। लेकिन भारत में ऐसा हो रहा है। सरकारों ने मंदिरों को अपने कब्जे में इसलिए किया क्योंकि उन्हे पता है कि मंदिरों के चढ़ावे से सरकार को काफी फायदा हो सकता है।
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लेकिन, सिर्फ मंदिरों को ही कब्जे में लिया जा रहा है। मस्जिदों और चर्च पर सरकार का कंट्रोल नहीं है। इतना ही नहीं, मंदिरों से मिलने वाले फंड का इस्तेमाल मस्जिद और चर्च के लिए किया जा रहा है।
इन सबका कारण अगर खोजे तो 1951 में पास किया हुआ कॉंग्रेस का वो बिल है जिसे सरदार बल्लभ भाई पटेल विरोध करते हुए जवाहर लाल को डांट दिया था । पर जवाहर लाल ने जामा मस्ज़िद में जाकर गोल टोपी पहनी उसी दिन यह बिल पास करा कर राष्ट्रपति के पास अनुमोदन के लिए भेज दिया l देश में मंदिरो के फंड का इस्तेमाल मस्जिद, चर्च के लिए हो रहा है !
संविधान के अनुच्छेद 29-30 में अल्पसंख्यकों को सारे धार्मिक अधिकार देने के साथ उनके मस्जिद, चर्च एवं शिक्षा की स्वतंत्र व्यवस्था की गई, लेकिन हिंदू मठों पर आश्रित धार्मिक शिक्षा व्यवस्था को धीरे-धीरे समाप्त करने का सिलसिला कायम किया गया। भारत में प्रत्येक मंदिर के साथ एक विद्यालय, चिकित्सालय, गांव तक आने की सड़क अर्थात संपर्क मार्ग एवं गांव के हर सुख-दुख में संपन्न होने वाले संस्कारों के लिए मंदिर का बड़ा परिसर एवं उसकी ठाकुरबाड़ी का उपयोग होता रहा है। यही भारत की सामाजिक एकता का बड़ा मंत्र था, जिसे नष्ट किया गया। कम-अधिक मात्र में दक्षिण भारत के मठ आज भी शिक्षा एवं स्वास्थ्य से जुड़े काम कर रहे हैं, परंतु उत्तर भारत के मंदिर-मठों में इसका अभाव दिख रहा।
सभी धर्मों के साथ समानता का व्यवहार होना चाहिए,लेकिन भारत में हिंदुओं को धार्मिक आज़ादी नहीं है । यहाँ तक कि हिन्दू मंदिर ही हमेशा सबके निशाने पर रहते हैं । हिन्दू मंदिरों से टैक्स लिया जाता है और उसका प्रयोग दूसरे धर्म के प्रचार में किया जाता है ।
समय आ गया है कि चर्चो के शक्तिशाली संगठन के समानांतर हिंदू मंदिरों का प्रबंध तंत्र खड़ा किया जाए
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एवं महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने मंदिरों में पड़े सोने को अधिगृहित करने की बात कहकर भारतीय राजनीति में धर्म आधारित एक नए ध्रुवीकरण की पूर्व पीठिका तैयार कर दी है। पृथ्वीराज चव्हाण का तर्क है कि वल्र्ड गोल्ड काउंसिल के अनुसार देश के मंदिरों में अनुमानित रूप से एक टिलियन डॉलर (करीब 76 लाख करोड़ रुपये) का सोना है। कुछ समय पहले सोशल मीडिया में वामपंथी लॉबी की ओर से हिंदुओं मंदिर से सोना निकालो का अभियान भी छिड़ा था। इसमें वे भी शामिल थे जिनकी मंदिरों में कोई आस्था नहीं है और सनातन हिंदू धर्म एवं उसकी पूजा-पद्धतियों से कोई लेना-देना नहीं है। हिंदू मंदिरों के प्रति दुर्भावना कांग्रेस के पूर्वाग्रह का मूल है। इसी दुर्भावना के कारण इंदिरा गांधी के जगन्नाथ मंदिर में प्रवेश का विरोध हुआ था।
मंदिरों की संपत्ति का लोभ अकारण नहीं है। मुगल काल का इतिहास हजारों-हजार मंदिरों के टूटने का साक्षी है। भारत में अंग्रेजों के आगमन के बाद यह सोचा जाने लगा था कि मुगलों से जो कुछ बचा है उसे अंग्रेज लूट लेंगे, परंतु धर्म के लिए किसी भी हद तक जाकर संघर्ष करने की हिंदू समाज की भावना के कारण अंग्रेजों ने इस समाज से सीधे टकराव लेने की जगह उसे विभक्त करो और शासन करो की नीति अपनाई। अंग्रेजों ने एक कानून (मद्रास हिंदू टेंपल एक्ट 1843) बनाकर मंदिरों की संपदा को लंदन भेजना शुरू कर दिया। 1857 के विद्रोह के कारण अंग्रेज असफल हो गए, फिर भी उन्होंने धाíमक गतिविधियों को नियंत्रित करने का काम किया। इसके लिए कई कानून बनाए गए जैसे सोसायटी एक्ट, ट्रस्ट एक्ट। 1923 में मद्रास हिंदू टेंपल एंड रिलीजियस प्लेस एंडाउमेंट एक्ट बना। 1920 से लेकर 1947 तक भारत की लाखों हेक्टेयर भूमि चर्चो को चैरिटेबल ट्रस्ट के नाम पर लीज पर दे दी गई। आजादी के बाद कांग्रेस अंग्रेजों की दिखाई राह पर ही आगे बढ़ी। प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की रुचि के कारण मद्रास हिंदू टेंपल एक्ट की जगह द हिंदू रिलीजियस एंड चैरिटेबल एंडाउमेंट एक्ट, 1951 बना। इसके बाद स्वतंत्र भारत ने हिंदू मठ-मंदिरों की संपत्ति का गलत उपयोग होने का नया दौर देखा।
संविधान के अनुच्छेद 29-30 में अल्पसंख्यकों को सारे धार्मिक अधिकार देने के साथ उनके मस्जिद, चर्च एवं शिक्षा की स्वतंत्र व्यवस्था की गई, लेकिन हिंदू मठों पर आश्रित धार्मिक शिक्षा व्यवस्था को धीरे-धीरे समाप्त करने का सिलसिला कायम किया गया। भारत में प्रत्येक मंदिर के साथ एक विद्यालय, चिकित्सालय, गांव तक आने की सड़क अर्थात संपर्क मार्ग एवं गांव के हर सुख-दुख में संपन्न होने वाले संस्कारों के लिए मंदिर का बड़ा परिसर एवं उसकी ठाकुरबाड़ी का उपयोग होता रहा है। यही भारत की सामाजिक एकता का बड़ा मंत्र था, जिसे नष्ट किया गया। कम-अधिक मात्र में दक्षिण भारत के मठ आज भी शिक्षा एवं स्वास्थ्य से जुड़े काम कर रहे हैं, परंतु उत्तर भारत के मंदिर-मठों में इसका अभाव दिख रहा।
2012-13 में केरल सरकार की आधीनता वाले ऐतिहासिक पद्मनाभ मंदिर के स्वर्णाभूषणों की गणना एवं मूल्यांकन लगभग पांच लाख करोड़ रुपये का किया गया था। मूल्यांकन का यह कार्य सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त व्यक्ति की देखरेख में होने के बावजूद करोड़ों का सोना चोरी हो गया, जबकि पुजारी एवं इस मंदिर का निर्माण कराने वाले राजा रवि बर्मन परिवार की देखरेख में हजारों वर्षो में भी दस ग्राम सोने की चोरी का कोई समाचार सामने नहीं आया।
हिंदू धर्म दान एक्ट, 1951 के जरिये कांग्रेस ने राज्यों को अधिकार दे दिया कि बिना कोई कारण बताए वे किसी भी मंदिर को अपने अधीन कर सकते हैं। यह कानून बनने के बाद से आंध्र प्रदेश सरकार ने लगभग 34 हजार मंदिरों को अपने अधीन ले लिया। तिरुपति बालाजी मंदिर की सालाना कमाई लगभग 3500 करोड़ रुपये हैं। इतना धन मिलने के बाद भी तिरुपति मंदिर को सिर्फ सात प्रतिशत फंड मंदिर के रख-रखाव के लिए वापस मिलता है। इस मंदिर के बेशकीमती रत्न ब्रिटेन के बाजारों में बिकते पाए जा चुके हैं। आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री वाईएसआर रेड्डी ने तिरुपति की सात पहाड़ियों में से पांच को सरकार को देने का आदेश दिया था। इन पहाड़ियों पर चर्च का निर्माण किया जाना था। मंदिर को मिलने वाली चढ़ावे की रकम में से 80 प्रतिशत गैर हिंदू कार्यो के लिए खर्च की जाती है। मंदिरों के दान में भ्रष्टाचार का स्तर यह है कि कर्नाटक के दो लाख मंदिरों में से लगभग 50 हजार रखरखाव के अभाव में बंद हो गए हैं।
आचार्य चाणक्य का कहना था कि किसी धर्म को समाप्त करना हो तो उसके आश्रय स्थलों यानी मठ-मंदिरों आदि को समाप्त कर दो। आज भारत में लगभग नौ लाख मंदिर हैं, जिनमें चार लाख मंदिर सरकार के पास हैं। क्या संवैधानिक रूप से पंथनिरपेक्ष राज्य का मुखिया मंदिर, मस्जिद, चर्च, गुरुद्वारा आदि का संचालन कर सकता है? मंदिरों का सोना हिंदू समाज की संपत्ति है, न कि सरकार की। जिन लोगों को मठ-मंदिरों में पड़ा धन दिखा, क्या उन्हें देश में चैरिटी के नाम पर आने वाले लाखों-करोड़ों का चंदा नहीं दिखता?
क्या इस चंदे का इस्तेमाल धर्मातरण में नहीं होता? अब समय आ गया है कि चर्चो के शक्तिशाली संगठन के समानांतर हिंदू मंदिरों का प्रबंध तंत्र खड़ाकर शिक्षा-स्वास्थ्य और प्राचीन ऋषि परंपरा में शोध एवं विकास का काम किया जाए। इस हेतु मंदिरों का योगदान परिलक्षित होना चाहिए। मूल स्रोत -जागरण
मंदिर में दान के पैसे का क्या उपयोग हो रहा है? जानकर रह जाएंगे हैरान
हिंदुओं के मंदिर और उनकी सम्पदाओं को नियंत्रित करने के उद्देश से सन 1951 में एक कायदा बना – “The Hindu Religious and Charitable Endowment Act 1951” इस कायदे के अंतर्गत राज्य सरकारों को मंदिरों की मालमत्ता का पूर्ण नियंत्रण प्राप्त है, जिसके अंतर्गत वे मंदिरों की जमीन, धन आदि मुल्यमान सामग्री को कभी भी कैसे भी बेच सकते हैं और जैसे भी चाहे उसका उपयोग कर सकते हैं । लेख में अधिकांश आंकड़े पुराने हैं । नवीनतम आंकड़े अनुपलब्ध हैं। ट्रावनकोर देवास बोर्ड के अंतर्गत लगभग 1,249 मंदिर आते हैं, जिनमें बड़े पैमाने पर हो रही चोरी की खबर 8 मई 2013 में सामने आयी । सीसीटीवी से पता चला कि नकदी गिनने वाले कर्मचारी चोरी कर रहे हैं। ये सरकारी कर्मचारी थे जिसमे हिन्दू मुसलमान व ईसाई सभी थे।
निम्न वाक्यों पर विचार करें। हिन्दू के लिए सभी का उत्तर “हाँ” है। मुस्लिम ईसाई के लिए “ना”।
- पूजा स्थलों पर सरकारों का नियंत्रण
- किसी भी पूजा स्थल को सरकार नियंत्रण में ले सकती है
- पूजा स्थलों पर चढ़ावे के धन पर सरकार का नियंत्रण
- पूजा स्थलों के प्रबंधन के साथ धार्मिक कार्यों पर सरकार का नियंत्रण
- पूजा स्थलों की संपत्ति सरकार बेच सकती है
- पूजा स्थलों की आय पर टैक्स
- पूजा स्थलों की आय का उपयोग सरकार किसी और कार्य के लिए कर सकती है
कर्नाटक सरकार के मन्दिर एवं पर्यटन विभाग (राजस्व) द्वारा प्राप्त जानकारी के अनुसार 1997 से2002 तक पाँच साल में कर्नाटक सरकार को राज्य में स्थित मन्दिरों से “सिर्फ़ चढ़ावे में” 391 करोड़ की रकम प्राप्त हुई, जिसे निम्न मदों में खर्च किया गया-
- मन्दिर खर्च एवं रखरखाव – 84 करोड़ (यानी 21.4%)
- मदरसा उत्थान एवं हज – 180 करोड़ (यानी 46%)
- चर्च भूमि को अनुदान – 44 करोड़ (यानी 11.2%)
- अन्य – 83 करोड़ (यानी 21.2%)
- कुल 391 करोड़
जैसा कि इस हिसाब-किताब में दर्शाया गया है उसको देखते हुए “सेकुलरों” की नीयत बिलकुल साफ़ हो जाती है कि मन्दिर की आय से प्राप्त धन का (46+11) 57% हिस्सा हज एवं चर्च को अनुदान दिया जाता है (ताकि वे हमारे ही पैसों से जेहाद, धार्मिक सफ़ाए एवं धर्मान्तरण कर सकें)। जबकि मन्दिर खर्च के नाम पर जो 21% खर्च हो रहा है, वह ट्रस्ट में कुंडली जमाए बैठे नेताओं व अधिकारियों की लग्जरी कारों, मन्दिर दफ़्तरों में AC लगवाने तथा उनके रिश्तेदारों की खातिरदारी के भेंट चढ़ाया जाता है। उल्लेखनीय है कि यह आँकड़े सिर्फ़ एक राज्य (कर्नाटक) के हैं, जहाँ 1997 से 2002 तक कांग्रेस सरकार ही थी…
इस देश की जनता पर जो सच्चाई या तो जानना नहीं चाहती और जान कर भी अनजान बनी रहती है, चाहे वह पद्मनाभ मंदिर हो या मुंबई का सिद्धि विनायक या तिरुपति या ओडिशा का श्री जगन्नाथ मंदिर सारे के सारे मंदिर सरकार के अधीन हैं और उनके ट्रस्ट के मैनेजर और उनके बोर्ड में सरकार के आदमी होते हैं जो दान के रूपये कहाँ खर्च किये जाने हैं उसका फैसला लेता हैं।
आँध्रप्रदेश के 43000 मंदिरों के संपत्ति से केवल 18% दान मंदिरों को अपने खर्चों के लिए दिया गया और बचा हुआ 82 % कहाँ खर्च हुआ इसका कोई उल्लेख नहीं ! यहां तक कि विश्व प्रसिद्ध तिरूमाला तिरूपति मंदिर भी बख्शा नहीं गया,हर साल दर्शनार्थियों के दान से इस मंदिर में लगभग 1300 करोड़ रुपये आते हैं जिसमें से 85% सीधे राज्यसरकार के राजकोष में चले जाते हैं, क्या हिंदू दर्शनार्थी इसलिए इन मंदिरों में दान करते हैं कि उनका दान हिंदू-इतर तत्वों के काज करने में लगे? स्टीफन एक और आरोप आंध्र प्रदेश सरकार पर लगाते हैं, उनके अनुसार कम से कम 10 मंदिरों को सरकारी आदेश पर अपनी जमीन देनी पड़ी गोल्फ के मैदानों को बनाने के लिए !!!*
“क्या हिन्दुस्तान में 10 मस्जिदों के साथ ऐसा होने की कल्पना की जा सकती है ?” इसी प्रकार कर्नाटक में कुल 2 लाख मंदिरों से 79 करोड़ रुपए सरकार ने बटोरा जिसमें से केवल 7 करोड़ रुपए मंदिर कार्यकारिणियों को दिए गए । इसी दौरान मदरसों और हज सब्सिडी के नाम पर 59 करोड़ खर्च हुआ ।
(स्टीफन नाप लिखित पुस्तक “Crimes Against India and the Need to Protect Ancient Vedic Tradition” से)
जगन्नाथ मंदिर बेचेगा 1,000 करोड़ रुपये की जमीन (उड़ीसा)
भुवनेश्वर: जगन्नाथ मंदिर के पास कुल 60,654 एकड़ जमीन है औऱ इसमें से 395 एकड़ जमीन की बिक्री की जा रही है ताकि 12वीं सदी के इस मंदिर के रखरखाव के लिए भगवान के नाम
भुवनेश्वर: जगन्नाथ मंदिर के पास कुल 60,654 एकड़ जमीन है औऱ इसमें से 395 एकड़ जमीन की बिक्री की जा रही है ताकि 12वीं सदी के इस मंदिर के रखरखाव के लिए भगवान के नाम पर 1,000 करोड़ रुपये का कोष बनाया जा सके। इनमें से 60,259 एकड़ जमीन जगन्नाथ मंदिर और उड़ीसा के 23 जिलों में है और बाकी के 395 एकड़ जमीन आंध्रप्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल में है। जिसमें से बंगाल में सबसे ज्यादा 322 एकड़ जमीन मंदिर के स्वामित्व में है।
श्री जगन्नाथ मंदिर प्रबंधन (एसजेटीए) के प्रमुख सुरेश मोहपात्रा ने आईएएनएस को बताया, "राज्य सरकार राज्य के बाहर की मंदिर की जमीन को बेचने की प्रक्रिया में है।" इसके अलावा सरकार ने उत्तराखंड के नैनीताल के जिलाधिकारी को मंदिर के स्वामित्व वाली 52 साल पुरानी इमारत के बाजार मूल्य चुकाने को कहा है। इस दोमंजिला इमारत के मालिक ने अपना ग्राउंड फ्लोर 26 अप्रैल 1964 को मंदिर को दान कर दिया था, जिसमें किराए पर डाकघर चलाया जा रहा है। लेकिन राज्य सरकार के पास 23 जिलों के 111 तहसील में फैले 27,331 एकड़ जमीन का कोई पट्टा या कागजात नहीं है।
राज्य के कानून मंत्री अरुण साहू ने विधानसभा में हाल ही में कहा, "एसजेटीए ने जगन्नाथ की 60,259 एकड़ जमीन को चिन्हित किया है। जिसमें से राज्य के पास केवल 32,927 एकड़ का ही रिकार्ड है। बाकी के 27,331 एकड़ जमीन का कोई रिकार्ड नहीं है।" उन्होंने बताया कि श्री जगन्नाथ टेंपल एक्ट 1955 के तहत जमीन कब्जा करने वालों के खिलाफ 340 मामले दर्ज किए गए हैं।
वहीं, सरकार ने मंदिर के राजस्व को बढ़ावा देने के लिए मंदिर के जमीन की नीलामी करने की योजना बनाई है। इसके लिए भुवनेश्वर विकास प्राधिकरण को जमीन का प्लॉट काटकर बेचने को कहा गया है। हालांकि सरकार के इस कदम को अड़चनों का सामना करना पड़ रहा है। क्योंकि खुर्दा जिले के जातानी क्षेत्र के कई गांव वालों ने इस संबंध में ओडिशा उच्च न्यायालय में केस दायर किया है। मोहपात्रा बताते हैं, "उन्होंने ओडिशा उच्च न्यायालय से स्टे ऑर्डर हासिल कर लिया है। हम 125 एकड़ जमीन पर लगे स्टे ऑर्डर को हटवाने का प्रयास कर रहे हैं, ताकि उसे बेचा जा सके।" मूल स्रोत - इंडिया टीवी न्यूज़
सेक्युलर सुझाव क्या हैं ?
- बहुत कुछ हो सकता है इस खजाने से
- यह राशि केरल राज्य के सार्वजनिक ऋण (पब्लिक डेब्ट), जो करीब 71 हजार करोड़ रुपए है, से ज्यादा है। इस राशि से केरल की अर्थव्यवस्था बदल सकती है।
- इससे ‘फूड सिक्युरिटी एक्ट’ (करीब 70 हजार करोड़ रुपए) और ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (करीब 40 हजार करोड़ रुपए) का खर्च निकल सकता है।
- यह राशि भारत के सालाना शिक्षा बजट की ढाई गुणा है।
- इस राशि से भारत का सात माह का रक्षा खर्च पूरा हो सकता है।
- यह राशि भारत के तीन राज्यों- दिल्ली, झारखंड और उत्तराखंड के सालाना बजट से ज्यादा है।
- यह कोरिया की स्टील कंपनी पॉस्को द्वारा उड़ीसा में किए जा रहे 12 बिलियन डॉलर (करीब 54 हजार करोड़ रुपए) के प्रस्तावित निवेश, जो भारत में अब तक का सबसे बड़ा प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) है, से करीब दोगुना है।
- यह राशि भारत की सबसे बड़ी कंपनी रिलायंस इंडस्ट्रीज के मार्केट वैल्यू की एक तिहाई और विप्रो (1.02 लाख करोड़) के लगभग बराबर है।
1 सितंबर 2018 को सांसद उदित राज ने सोशल मीडिया में कहा है कि मंदिरों के धन को बेच करके केरल में बाढ़ से हुए 21 हजार करोड़ के नुकसान का पांच गुणा अधिक धन एकत्र किया जा सकता है। साफ है हिन्दूओं की आस्था और संस्कृति के केन्द्र को समाप्त करने पर आज भी सबकी निगाहें हैं। जबकि बताया जाता है कि केरल में मंदिर के पास जितनी संपत्ति है उससे अधिक चर्च और मिशनरियों के साथ वक्फ बोर्ड के पास है, फिर भी हिंदू विरोधी मानसिकता के कारण इन्हें सिर्फ मंदिर ही दिखाई देता है। भारत में रेलवे के बाद सबसे अधिक जमीन चर्च के पास है, क्यों न आपके वास्तविक मजहब की जमीन नीलाम करके बाढ़ पीड़ितों की मदद की जाए ? – पुष्पेंद्र कुलश्रेष्ठ जी
सरकार को चाहिए की मंदिरों के पैसे का उपयोग सिर्फ हिंदू संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए ही करना चाहिए जैसे कि वैदिक गुरुकुल, आर्युवेदिक हॉस्पिटल, मंदिर निर्माण, हिंदू धर्म ग्रँथ, मीडिया में हिंदू धर्म के प्रचार प्रसार, गरीब हिंदुओं की सहायता, अन्नक्षेत्र, साधु-संतों को पगार आदि के लिए उपयोग करना चाहिए अगर ऐसा नही कर सकते है तो सरकार को अपना नियंत्रण हटा देना चाहिए खुद हिंदू अपने मंदिर संभाल लेंगे। हिंदू भी जिस मंदिर में अपना दान देते हैं उनके संचालकों से हिंदू धर्म के लिए पैसे उपयोग करने के लिए बताएं।
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