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क्या है गाजर घास के प्रभाव व नियंत्रण

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प्रकृति में अत्यंत महत्त्व पूर्ण वनस्पतियों के अलावा कुछ वनस्पतियाँ ऐसी भी हैं, जो कि धीरे-धीरे एक अभिशाप का रूप लेती जा रही हैं बरसात का मौसम शुरू होते ही गाजर के तरह की पत्तियों वाली एक वनस्पति काफी तेजी से बढ़ने और फैलने लगती है। जिसे पार्थेनियम हिस्टेरोफोरोस यानी कोंग्रस ग्रास या गाजर घास क नाम से जाना जाता है ।

यह  Asteraceae कुल का सदस्य है। यह वर्तमान में विश्व के सात सर्वाधिक हानिकारक पौधों में से एक है तथा इसे मानव एवं पालतू जानवरों के स्वास्थ्य के साथ-साथ सम्पूर्ण पर्यावरण के लिये अत्यधिक हानिकारक माना जा रहा है।

गाजर घास अमेरिका, एशिया, अफ्रीका व ऑस्ट्रेलिया में पाई जाने वाली नॉक्सियस) (NOXIOUS ) खरपतवार है। भारत में गाजर घास यानी पार्थेनियम देश क विभिन्न भागों में अलग अलग नामों जैंसे सफ़ेद टोपी, चटक चांदनी, गंधी बूटी, कांग्रेस घास आदि नामों से जाना जाता है। हमारे देश में सबसे पहले १९५५ में देखी गई थी, अब ये लगभग ३.५ मिलियन हैक्टर क्षेत्रफल में फैल चुकी है।

भारत में गाजर घास का आगमनः

अर्जेन्टीना, ब्राजील, मैक्सिकों एवं अमरीका में बहुतायत से पाए जाने वाले इस पौधे का कृषि मंत्रालय और भारतीय वन संरक्षण संस्थान के सर्वेक्षण के अनुसार भारत में पहले कोई अस्तित्व नहीं था।

ऐसा माना जाता है, कि इस घास के बीज 1950 में अमरीकी संकर गेहूँ पी.एल.480 के साथ भारत आए। इसे सर्व प्रथम पूना में देखा गया। आज यह घास देश में लगभग सभी क्षेत्रों में फैलती जा रही है। उत्तर प्रदेश, बिहार, पंजाब, हरियाणा एवं महाराष्ट्र जैसे महत्त्व पूर्ण कृषि उत्पादक राज्यों के हजारों एकड़ क्षेत्र में यह घास फैल चुकी है। इसे अब राजस्थान, केरल एवं कश्मीर में भी देखा जा सकता है।

अहमदाबाद, दिल्ली, पूना, मद्रास, चंडीगढ़ एवं बंगलुरु जैसे शहरों में इस की भयंकर वृद्धि और इसके प्रभावों की समस्या सामने आ चुकी है।

यह मुख्ययतः खाली स्थानों, अनुउपयोगी भूमियों, बगीचों, स्कूलों, औधोगिक क्षेत्रों, रेलवे लाइन के किनारों इत्यादी जगहों पे पाई जाती है. पिछलें कुछ वर्षों से इसका प्रकोप सभी प्रकार की खाद्यानो फसलों, सब्जियों एवं उद्यानों में भी बढ़ता जा रहा है।

वैसे तो गाजर घास पानी के मिलने पर पुरे वर्ष उगाई जा सकती है किन्तु वर्षा के मौसम में इसका अधिक अंकुरण होने क कारन यह अधिक प्रकोप ले लेती है। इसके फूल सफेद व छोटे होते हैं, जिनके अंदर काले रंग के और वज़न में हल्के बीज होते हैं।

गाजर घास का पौधा ३-४ महीनो में अपना फसल चक्र पूरा कर लेता है तथा इसी प्रकार से यह एक वर्ष में अपनी ३-४ पीढ़ी पूरी कर लेता है।

गाजर घास के हानिकारक प्रभावः

इसकी पत्तियों के काले छोटे-छोटे रोमों में पाया जाने वाला रासायनिक पदार्थ ‘पार्थिनम’मनुष्यों में एलर्जी का मुख्य कारण है। दमा, खाँसी, बुखार व त्वचा के रोगों का कारण भी यही पदार्थ है। गाजर घास के पराग कण सांस की बीमारी का भी कारण बनते हैं। अत्यधिक प्रभाव होने पर मनुष्य की मृत्यु तक हो जाती है।

पशुओं के लिये भी यह घास अत्यन्त हानिकारण सिद्ध हो रही है। इसकी हरियाली के प्रति लालायित होकर पशु इस के करीब आते हैं,  परन्तु इसकी गंध से निराश होकर लौट जाते हैं। यदा-कदा घास की कमी होने से जो पशु इसे खाते हैं,  उनका दूध कड़वा एवं मात्रा में कम हो जाता है।

गाजर घास के तेजी से फैलने के कारन अन्य उपयोगी वनस्पतियों की संख्या कम होने लगाती है। जैव विविधता के लिया भी गाजर घास एक खतरा बनती जा रही है। इसके कारन फसलों की उतपाधगता भी कम होती जा रही है।

गाजर घास के नियंत्रण के उपाय

आज आवश्यकता इस बात की है, कि विभिन्न संस्थाओं के वैज्ञानिक एकत्रित होकर इसे समूल नष्ट करने का कोई ऐसा हल निकालें, जो आर्थिक दृष्टि से भी अनुकूल हो।

  1. यदि इसे जड़ से उखाड़कर आग लगा दी जाए, तो शायद किसी सीमा तक इससे छुटकारा मिल सकता है।
  2. इसे हाथ से न छुआ जाए। अन्यथा एलर्जी एवं चर्म रोग होने का खतरा हो सकता है।
  3. इसके पौधों को जोर से न काटा जाए, अन्यथा इसके बीज और ज्यादा दूर तक फैल सकते हैं।
  4. वर्षा ऋतू में गाजर घास के फूल आने से पहले जड़ से उखाड़कर कम्पोस्ट वर्मीकम्पोस्ट बनाना चाइये।
  5. घर के आसपास गेंदे के पौधे लगाकर गाजर घास के फैलाव व वृद्धि को रोकना चाहिए वर्षा आधरित क्षेत्रों में शीग्र बढ़ने वाली फैसले जैसे ढैंचा, जवार, मक्का आदि की फैसले लेनी चाहिए।
  6. आकृषित क्षेत्रों में शाकनाशी रसायन जैसे गलीफोसाटे १-१.५ प्रतिशत या मेट्रिब्यूजिन ०.३-०.५ प्रतिशत घोल फूल आने के पहले छिड़काव करे।
  7. कैसियासीरेसिया नामक पौधा भी गाजर घास का नियंत्रण प्रभावी ढंग से करता है। अतः इसके बीजों को उन स्थानों पर बोया जाता है,  जो स्थान पार्थेनियम से अत्यधिक प्रभावित हैं। चार माह के कैसियासीरेसिया के पौधे गाजर घास के पौधों की संख्या 93 प्रतिशत तक कमी कर देते हैं। एक शोध-कार्य के परिणामों के अनुसार यदि गाजर घास के बीजों को कैसिरासीरेसिया के सम्पूर्ण पौधे के निष्कर्ष से उपचारित किया जाए, तो बीजों के अंकुरण का प्रतिशत 87 प्रतिशत तक कम हो जाता है। तथा बीजांकुर की वृद्धि भी अत्यधिक प्रभावित होती है।
पार्थेनीयम में एलिलोपैथी का गुण होता है जिसके कारण यह अपने आस-पास अन्य पौधों को उगने नहीं देता है। अतः इस दिशा में भी शोध कार्य किया जाना जाहिए कि क्या इसके निष्कर्ष या किसी भाग को शाकनाशी की तरह उपयोग किया जा सकता है।


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