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महिलाओं के लिए सबसे जरूरी लैब टेस्ट

 
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भारत की अधिकतर महिलाएं आज भी बिना किसी बीमारी के डॉक्टर के पास और लैब टेस्ट के लिए जाना जरूरी ही नहीं समझती है। उनको लगता है ऐसा करना समय और पैसों दोनों की ही बर्बादी है। लेकिन समय रहते बीमारी का पता लगने पर आप कई तरह के रोगों से बच सकती हैं। इसलिए डॉक्टर सभी को समय-समय पर लैब टेस्ट करवाने की सलाह देते हैं। बीमारी कभी भी और किसी भी समय हो सकती है।

इतना ही नहीं महिलाओं को स्वस्थ महसूस होने पर भी अपने स्वास्थ्य के प्रति सजग रहना चाहिए। अधिकतर महिलाएं घर और ऑफिस के काम में इतना व्यस्त हो जाती हैं कि उनको अपनी सेहत पर ध्यान देने का समय ही नहीं मिल पाता है, जबकि ज्यादातर महिलाओं को जांच के अभाव में बढ़ती उम्र में रक्तचाप, थायराइड व कई अन्य रोग कब हो जाते हैं पता ही नहीं चलता। इस कारण हर महिला को समय-समय पर अपने स्वास्थ्य की जांच के लिए कुछ टेस्ट जरूर करवाने चाहिए।

सर्वाइकल कैंसर की जांच - 
सर्वाइकल कैंसर की जांच के लिए पैप टेस्ट (Pap test) किया जाता है। यह टेस्ट ह्यूमन पेपिलोमा वायरस (Human papilloma virus/ HPV/ एचपीवी) की जांच की तरह ही होता है।

किस उम्र में जरूरी –
21 से 65 तक की महिलाओं के लिए आवश्यक होता है।

कितनी बार कराएं –
अगर आपकी उम्र 30 से 65 वर्ष के बीच है तो आपको हर तीन या पांच साल में इस टेस्ट को करवाना चाहिए। इसके लिए आप पैप टेस्ट और एचपीवी दोनों को ही करवा सकती हैं। इसमें आपको श्रोणी की जांच की आवश्यकता नहीं होती है। 

यह क्यों महत्वपूर्ण है –
ये दोनों ही टेस्ट कोशिकाओं में होने वाले बदलावों की जांच के लिए किए जाते हैं। इससे कैंसर की पुष्टि के लिए आगे के जरूरी टेस्ट, जैसे – बायोप्सी (Biopsy) करने की जरूरत के बारे में पता चलता है।

कॉलोरेक्टल कैंसर की जांच -
कॉलोरेक्टल कैंसर (Colorectal cancer) में कॉलन (Colon) और मलाशय (Rectum) दोनों प्रभावित होते हैं। कॉलोरेक्टल कैंसर की जांच के लिए कोलोनोस्कोपी (Colonoscopy) की जाती है।

किस उम्र में जरूरी –
50 से 75 वर्ष की महिलाओं के लिए आवश्यक होता है। 75 वर्ष के बाद आपको डॉक्टर से इस टेस्ट को नियमित करवाने या ना करवाने के बारे में सलाह लेनी होती है।

कितनी बार कराएं –
हर दस साल में एक बार कराना जरूरी होता है। 

यह क्यों महत्वपूर्ण है –
कोलोनोस्कोपी के द्वारा कॉलोरेक्टल कैंसर और इसके शुरूआती लक्षणों की जांच आसानी से की जा सकती है। इस जांच से महिला कॉलोरेक्टल कैंसर के जोखिम को कम कर सकती हैं। स्तन और फेफड़ों के कैंसर की तरह ही यह महिलाओं में होने वाला एक आम कैंसर है। जिन महिलाओं के परिवार में पहले किसी को कॉलोरेक्टल कैंसर हो चुका हो, उनको इसके होने की संभावनाएं अधिक होती है, इसलिए डॉक्टर समय रहते ही इस तरह की जांच को कराने की सलाह देते हैं।

स्तन कैंसर की जांच - 
यह कैंसर महिलाओं के स्तन की कोशिकाओं में विकसित होता है। इसकी जांच के लिए मैमोग्राम (Mammogram) टेस्ट किया जाता है। यह एक इमेजिंग टेस्ट होता है, जिसमें महिलाओं के स्तन की कोशिकाओं की जांच की जाती है।

किस उम्र में जरूरी –
50 – 74 वर्ष की महिलाओं के लिए जरूरी होता है, क्योंकि इस उम्र में महिलाओं को कई तरह के रोग होने के संभावनाएं अधिक होती है। इस टेस्ट को नियमित रूप से कराने व न कराने के विषय में आपको अपने डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए।

कितनी बार कराएं –
अगर आपकी उम्र स्तन कैंसर होने की संभावित उम्र के करीब है, तो आपको हर वर्ष मैमोग्राम टेस्ट को करवाना चाहिए। यदि परिवार में पहले किसी महिला को स्तन कैंसर या अंडाशयी कैंसर हुआ हो, तो आपके डॉक्टर मैमोग्राम टेस्ट को एक साल से कम समय में भी कराने के लिए कह सकते हैं।

यह क्यों महत्वपूर्ण है –
स्तन कैंसर की जांच के लिए कई अन्य तरीके भी मौजूद है। इसलिए आप मैमोग्राम के अलावा स्तन कैंसर की पुष्टि के लिए अन्य टेस्ट भी करवा सकती हैं। मैमोग्राम से महिलाएं समय रहते ही स्तन की कोशिकाओं में होने वाले बदलावों के बारे में पता कर सकती है। इतना ही नहीं इस टेस्ट की मदद से आप कैंसर को शुरूआती दौर में ही दूर करने का प्रयास कर सकती हैं।

ब्लड प्रेशर (रक्तचाप) की जांच -
शरीर में संचारित होने वाले रक्त की गति की जांच के लिए ब्लड प्रेशर परीक्षण किया जाता है। इस जांच में बाजू पर एक मशीन लगाकर रक्त की संचार गति को मापा जाता है।

किस उम्र में जरूरी –
18 वर्ष से अधिक आयु की सभी महिलाओं और युवतियों को इस जांच को करवाना चाहिए। (और पढ़ें - हाई बीपी का इलाज)

कितनी बार कराएं –
यह टेस्ट कितनी बार किया जाएं इस पर थोड़ा विवाद है। फिर भी कुछ विशेषज्ञ बताते हैं कि स्वस्थ महिला या युवती को हर छह माह या साल भर में इस जांच को करवाना चाहिए। जबकि किसी प्रकार के रोग से ग्रसित होने पर आपको अपने डॉक्टर की सलाह के अनुसार ही इसको करवाना चाहिए। 

यह क्यों महत्वपूर्ण है –
महिलाओं में होने वाले हृदय रोग में हाई बीपी एक बड़ा कारण माना जाता है। बीपी की जांच के बाद डॉक्टर आपको स्वस्थ रहने के लिए कई तरह के सुझाव दें सकते हैं। यदि बीपी (रक्तचाप) सामान्य से अधिक या कम हो तो डॉक्टर इसको सामान्य स्तर पर लाने के लिए खानपान और एक्सरसाइज करने का सुझाव देते हैं। इसके अलावा दवाओं के सेवन से भी बीपी को सामान्य किया जा सकता है। बीपी का स्तर कम या ज्यादा होने पर डॉक्टर इसकी नियमित जांच करते हैं, जिससे उनको दवाओं और अन्य सुझावों के प्रभाव के बारे में पता चलता है।

लिपिड पैनल टेस्ट -
शरीर में कोलेस्ट्रॉल की जांच को लिपिड पैनल (Lipid panel) या लिपिड प्रोफाइल (Lipid profile) भी कहते है। डॉक्टर खून में "अच्छा" कोलेस्ट्रॉल (एचडीएल; HDL) और "खराब" कोलेस्ट्रॉल (एलडीएल; LDL) के अलावा ट्राइग्लिसराइड्स (एक प्रकार की वसा) के स्तर को जांचने के लिए इस टेस्ट की मदद लेते हैं। इस टेस्ट को खाली पेट किया जाता है। ऐसा इसलिए कहा जाता है, क्योंकि खाना खाने के बाद ट्राइग्लिसराइड्स नामक वसा के स्तर में असंतुलन होना शुरू हो जाता है। इसी कारण डॉक्टर इस टेस्ट को करने से करीब 4 से 6 घंटे पहले तक किसी भी चीज को ना खाने की सलाह देते हैं।

किस उम्र में जरूरी –
45 और इससे अधिक आयु की महिलाओं को हृदय रोग होने की संभावनाएं होती है। ऐसा नहीं है कि इससे कम उम्र की महिलाओं के हृदय रोग नहीं हो सकता, लेकिन इस उम्र की महिलाओं में कोलेस्ट्रोल स्तर में परिवर्तन अधिक देखें जाते हैं। 

कितनी बार कराएं –
एक स्वस्थ महिला को साल में एक बार इस टेस्ट को अवश्य करवा लेना चाहिए।

यह क्यों महत्वपूर्ण है –
अधिक कोलेस्ट्रोल कुछ बीमारियों का मुख कारण होता है, जैसे कि हार्ट अटैक और स्ट्रोक। इसकी जांच से डॉक्टर आपके हृदय के स्वस्थ होने की स्थिति का पता लगाते हैं। अधिक उम्र की महिलाओं में रजोनिवृत्ति (मेनोपॉज) की स्थिति में अच्छे कोलेस्ट्रोल के स्तर में गिरावट आ जाती है। जिससे हृदय रोग होने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं। इसलिए सही समय पर लिपिड पैनल करवाना जरूरी होता है।

रक्त में ग्लूकोज की जांच - 
ब्लड शुगर या ग्लूकोज टेस्ट द्वारा खून में शुगर (ग्लूकोज) की मात्रा को मापा जाता है। ग्लूकोज एक प्रकार का शुगर (शर्करा) ही होता है, जो खून में मौजूद होता है। इसके लिए डॉक्टर आपको पेशाब या रक्त की जांच के लिए कह सकते हैं। इससे टाइप 2 डायबिटीज या डायबिटीज के शुरूआती चरण की जांच की जाती है। 

किस उम्र में जरूरी –
40-70 आयु वाली महिलाओं को इसकी जांच करवानी चाहिए। इसके अलावा अधिक वजन और मोटी महिलाओं को भी ग्लूकोज के स्तर की जांच जरूर करवानी चाहिए।

कितनी बार कराएं –
स्वस्थ महिलाओं को साल में एक बार ग्लूकोज की जांच करवानी चाहिए, जबकि डायबिटीज के शुरूआती चरण वाली महिलाओं को डॉक्टर की सलाह के अनुसार समय-समय पर यह परीक्षण करवा लेना उचित होता है।

यह क्यों महत्वपूर्ण है –
टाइप 2 डायबिटीज से हृदय रोग का एक मुख्य कारण होता है, लेकिन डायबिटीज से तनाव और खाने संबंधी विकार होने का खतरा नहीं होता है। तनाव और खाने संबंधी विकार सामान्यतः महिलाओं को होने वाली समस्याएं हैं। रक्त में ग्लूकोज के स्तर की जांच से महिलाएं डायबिटीज के खतरे को कम कर सकती हैं। इसके अलावा डॉक्टर भी डायबिटीज की सही स्थिति को समझ पाते हैं।

ऑस्टियोपोरोसिस की जांच - 
ऑस्टियोपोरोसिस में हड्डियां कमजोर हो जाती है और कमजोर होने से इनके टूटने की संभावनाएं बढ़ जाती है। इसमें बोन डेंसिटी टेस्ट (Bone density test/ हड्डियों के घनत्व की जांच) किया जाता है।

किस उम्र में जरूरी –
विकसित देशों में 65 या उससे अधिक आयु की महिलाओं को बोन डेंसिटी टेस्ट कराने की सलाह दी जाती है। लेकिन भारत में कई कारणों की वजह से ऑस्टियोपोरोसिस महिलाओं को इस से कम उम्र में हो जाता है। तो आप 40 की उम्र के बाद ही ये टेस्ट करवा सकती हैं। 

कितनी बार कराएं –
अगर आपको इसके होने की संभावनाएं न हो, तो हर दस साल में एक बार इस टेस्ट को करा सकती हैं। लेकिन अगर आपके परिवार की किसी अन्य महिला को पहले कभी ऑस्टियोपोरोसिस हुआ हो, तो ऐसे में डॉक्टर इस टेस्ट को हर साल करवाने का सुझाव दे सकते हैं।

यह क्यों महत्वपूर्ण है –
बोन डेंसिटी टेस्ट से डॉक्टर महिलाओं की हड्डियों के घनत्व की सही स्थिति को समझ पाते हैं। इतना ही नहीं इस टेस्ट की मदद से ऑस्टियोपोरोसिस के प्रभाव को काफी हद तक कम किया जा सकता है। ऑस्टियोपोरोसिस रोग में हड्डियों के टूटने की संभावना अधिक होती है, साथ ही इस रोग में चलने में भी मुश्किल होने लगती है।

अवसाद की जांच करवाना - 
इसमें महिलाओं को किसी विशेष तरह की जांच की आवश्यकता नहीं होती है। अवसाद मानसिक स्तर होने वाला विकार है। इसमें मनोवैज्ञानिक डॉक्टर मानसिक स्वास्थ्य की स्तिथि को जांचते हैं।

किस उम्र में जरूरी –
हर उम्र की महिलाओं और युवतियों के लिए जरूरी होता है।

कितनी बार कराएं –
अवसाद के लक्षण महसूस होने पर आपको डॉक्टर से मिलना चाहिए। 

यह क्यों महत्वपूर्ण है –
इसकी जांच से महिलाओं का अवसाद कम किया जा सकता है, अवसाद महिलाओं में होने वाली आम समस्या है। अवसाद के कारण महिलाओं को कई अन्य विकार भी हो सकते हैं। लोगों से बात करके महिलाएं अवसाद को कम कर सकती हैं। मनोवैज्ञानिक इसमें महिला के मन की स्थिति को जानने के लिए कुछ प्रश्न करते हैं, उसके बाद अवसाद को दूर करने का इलाज शुरू करते हैं।

थइराइड फंक्शन टेस्ट
थाइराइड ग्रंथी सही तरह से कार्य कर रही है या नहीं, यह जानने के लिए थाइराइड फंक्शन टेस्ट किया जाता है। इसके लिए T3, T3RU, T4, and TSH टेस्ट उपलब्ध हैं। थाइराइड मुख्य रूप से दो प्रकार के हार्मोन उत्पादित करता है, ट्राईआयोडोथायरोनिन और थायरोक्सिन।

किस उम्र में जरूरी है
अमूमन हर उम्र की महिलाओं को यह टेस्ट कराना चाहिए। हालांकि कुछ महिलाओं को लक्षणों के आधार पर भी समय-समय पर टेस्ट कराना चाहिए।

क्यों महत्वपूर्ण है
अगर थाइराइड सही तरह से काम नहीं करता है, तो एकाएक कुछ लक्षण नजर आते हैं जैसे वजन बढ़ना, थकान होना, अवसाद होना। इस स्थिति को हाइपरथायरायडिज्म कहा जाता है। अगर वक्त रहते थाइराइड फंक्शन टेस्ट करा लिया जाए तो इस तरह की समस्या से बचा जा सकता है।

टेस्ट के दौरान
इस टेस्ट के लिए सबसे पहले हाथ से खून निकाला जाता, जिसके लिए उपयुक्त नस की तलाश की जाती है। इस प्रक्रिया को लैब में नर्स या विशेषज्ञ द्वारा किया जाता है। अगर आप गर्भवती हैं या किसी प्रकार की दवा ले रही हैं, तो थाइराइड टेस्ट के दौरान इस संबंध में विशेषज्ञ को बताना आवश्यक होता है। दरअसल दवा लेने की वजह से या फिर गर्भवती होने की वजह से थाइराइड फंक्शन टेस्ट की रिपोर्ट प्रभावित हो सकती है। इसलिए पहले से इसकी जानकारी देना जरूरी होता है। आमतौर पर डाक्टर थाइराइड टेस्ट के लिए टी 4 या थाइराइड स्टीम्यूलेटिंग हार्मोन के लिए कहते हैं। अगर ये टेस्ट असामान्य आते हैं, तो आपसे अन्य टेस्टों के लिए भी कहा जा सकता है।

विटामिन डी टेस्ट
विटामिन डी की जांच के लिए 25-hydroxy vitamin D blood test सबसे बेहतरीन विकल्प है। एक स्वस्थ व्यक्ति में इसका स्तर 20 नैनोग्राम/मिलिलीटर से 50 नैनोग्राम/मिलीलीटर होता है। अगर किसी में इसका स्तर 12 नैनोग्राम/मिलीलीटर से कम है तो माना जाता है कि उसमें विटामि डी की कमी है।

क्यों महत्वपूर्ण है
हड्डी के कमजोर होने व असामान्य होने पर यह टेस्ट कराया जाता है। इससे पता चलता है कि विटामिन डी की कमी की वजह से हड्डी में कमजोरी तो नहीं है। ऐसा अमूमन ऑस्टियोपोरोसिस होने की स्थिति में होता है। इसके अलावा यह भी जाना जाता है कि कहीं आपको ऐसी कोई बीमारी तो नहीं है, जो शरीर में विटामिन डी के उपयोग करने की क्षमता को नुकसान पहुंचाता है। ऐसा आमतौर पर पाचन तंत्र के कमजोर होने, आंत में सूजन होने, सीलिएक डिजीज होने, किडनी संबंधी समस्या होने, लिवर डिजीज और अग्नाशयशोथ होने पर किया जाता है। मतलब यह कि इस तरह की किसी भी बीमारी के लक्षण दिखने पर विटामिन डी का टेस्ट कराया जाता है।

किस उम्र में कराएं
यह टेस्ट हर उम्र वर्ग की महिला, लड़कियों व छोटी बच्चियों को कराना चाहिए। इसके साथ ही उस स्थिति में भी यह  जरुरी होता है जब महिला धूप के संपर्क में कम आती है, बढ़ती उम्र, मोटापा, केवल स्तनपान पर आश्रित शिशु। गैस्ट्रिक बाईपास सर्जरी करवा चुकी महिलाओं को भी यह टेस्ट कराना चाहिए।

टेस्ट के दौरान
विटामिनट डी टेस्ट के लिए सामान्य टेस्ट की तरह बाजू से खून लिया जात है। यह प्रक्रिया विशेषज्ञों द्वारा की जाती है। खून एकत्रित कर एक जार में रखा जात है। यह प्रक्रिया कुछ ही मिनटों में संपन्न हेा जाती है। हालांकि कुछ लोगों को टेस्ट के दौरान कुछ परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है जैसे खून निकालने के दौरान अत्यधिक दर्द होना, खून ज्यादा बहना, बेहोशी के कारण सिर घूमना, त्वचा के नीचे खून जमना और संक्रमण फैलना।

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