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शिवजी का वाहन - असमिया लोक-कथा

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यह उस समय की बात है, जब भगवान शिव के पास कोई वाहन न था। उन्‍हें पैदल ही जंगल-पर्वत की यात्रा करनी पड़ती थी। एक दिन माँ पार्वती उनसे बोलीं, 'आप तो संसार के स्वामी हैं। क्या आपको पैदल यात्रा करना शोभा देता है?'
शिव जी हँसकर बोले-

'देवी, हम तो रमते जोगी हैं। हमें वाहन से क्या लेना-देना? भला साधु भी कभी सवारी करते हैं?'

पर्वती ने आँखों में आँसू भरकर कहा, 'जब आप शरीर पर भस्म लगाकर, बालों की जटा बनाकर, नंगे-पाँव, काँटों-भरे पथ पर चलते हैं तो मुझे बहुत दुख होता है।'

शिव जी ने उन्हें बार-बार समझाया परंतु वह जिद पर अड़ी रहीं। बिना किसी सुविधा के जंगल में रहना पार्वती को स्वीकार था परंतु वह शिवजी के लिए सवारी चाहती थीं।

अब भोले भंडारी चिंतित हुए। भला वाहन किसे बनाएँ? उन्होंने देवताओं को बुलवा भेजा। नारद मुनि ने सभी देवों तक उनका संदेश पहुँचाया।

सभी देवता घबरा गए। कहीं हमारे वाहन न ले लें। सभी कोई-न-कोई बहाना बनाकर अपने-अपने महलों में बैठे रहे। पार्वती उदास थीं। शिवजी ने देखा कि कोई देवता नहीं पहुँचा। उन्होंने एक हुंकार लगाई तो जंगल के सभी जंगली जानवर आ पहुँचे।

शिवजी ने उनसे कहा- 'तुम्हारी माँ पार्वती चाहती है कि मेरे पास कोई वाहन होना चाहिए। बोलो कौन बनेगा मेरा वाहन?'
सभी जानवर खुशी से झूम उठे। छोटा-सा खरगोश फुदककर आगे बढ़ा-
'भगवन्‌, मुझे अपना वाहन बना लें, मैं बहुत मुलायम हूँ।'
सभी खिलखिलाकर हँस पड़े।
शेर गरजकर बोला-
'मूर्ख खरगोश, मेरे होते, तेरी जुर्रत कैसे हुई, सामने आकर बोलने की?'
बेचारा खरगोश चुपचाप कोने में बैठकर गाजर खाने लगा।
शेर हाथ जोड़कर बोला,

'प्रभु, मैं जंगल का राजा हूँ, शक्ति में मेरा कोई सामना नहीं कर सकता। मुझे अपनी सवारी बना लें।'
उसकी बात समाप्त होने से पहले ही हाथी बीच में बोल पड़ा-

'मेरे अलावा और कोई इस काम के लिए ठीक नहीं है। मैं गर्मी के मौसम में अपनी सूँड में पानी भरकर महादेव को नहलाऊंगा।'
जंगली सुअर कौन-सा कम था? अपनी थूथन हिलाते हुए कहने लगा-
'शिवजी, मुझे सवारी बना लो, मैं साफ-सुथरा रहने की कोशिश करूँगा।' कहकर वह अपने शरीर की कीचड़ चाटने लगा।
कस्तूरी हिरन ने नाक पर हाथ रखा और बोला-
'छि:, कितनी गंदी बदबू आ रही है, चल भाग यहाँ से। मेरी पीठ पर शिवजी सवारी करेंगे।'

उसी तरह सभी जानवर अपना-अपना दावा जताने लगे। शिवजी ने सबको शांत कराया और बोले, 'कुछ ही दिनों बाद मैं सब जानवरों से एक चीज माँगूँगा, जो मुझे वह ला देगा, वही मेरा वाहन होगा।'
नंदी बैल भी वहीं खड़ा था। उस दिन के बाद से वह छिप-छिपकर शिव-पार्वती की बातें सुनने लगा।
घंटों भूख-प्यास की परवाह किए बिना वह छिपा रहता। एक दिन उसे पता चल गया कि शिवजी बरसात के मौसम में सूखी लकड़ियाँ माँगेंगे। उसने पहले ही सारी तैयारी कर ली।

बरसात का मौसम आया। सारा जंगल पानी से भर गया। ऐसे में शिवजी ने सूखी लकड़ियों की माँग की तो सभी जानवर एक-दूसरे का मुँह ताकने लगे। बैल गया और बहुत सी लकड़ियों के गट्ठर ले आया।

भगवान शिव बहुत प्रसन्‍न हुए। मन-ही-मन वे जानते थे कि बैल ने उनकी बातें सुनी हैं। फिर भी उन्होंने नंदी बैल को अपना वाहन चुन लिया। सारे जानवर उनकी और माँ पार्वती की जय-जयकार करते लौट गए।

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