मकर संक्रांति का पर्व हिन्दुओं के प्रमुख पर्वों में से एक है। इस पर्व को भारत के अलग-अलग राज्यों में अपनी-अपनी धार्मिक मान्यताएं, रीति-रिवाज और संस्कृति के आधार पर मनाया जाता है। मकर संक्रांति का यह पर्व हर साल 14 या 15 जनवरी को मनाया जाता है। इस त्योहार से विवाह, पूजा, अनुष्ठान जैसे शुभ कामों की शुरुआत होती है। यह त्योहार को किसान अपनी फसल पकने की खुशी में भी सुख-समृद्धि एवं संपन्नता के पर्व के रुप में मनाते हैं। यह त्योहार दान-पुण्य का पावन पर्व है।
मकर संक्रांति पर्व का महत्त्व व मान्यताएं -
शास्त्रों के अनुसार, दक्षिणायन को नकारात्मकता तथा उत्तरायण को सकारात्मकता का प्रतीक माना जाता है।इसीलिए इस दिन जप, तप, दान, स्नान, श्राद्ध, तर्पण आदि धार्मिक कर्मों का विशेष महत्व है। ऐसी धारणा है कि इस दिन किया गया दान सौ गुना बढ़कर पुन: प्राप्त होता है। इस दिन शुद्ध घी एवं कम्बल का दान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। जैसा कि निम्न श्लोक से स्पष्ट होता है-
माघे मासे महादेव: यो दास्यति घृतकम्बलम।
स भुक्त्वा सकलान भोगान अन्ते मोक्षं प्राप्यति॥
मकर संक्रांति से जुड़ी कई प्रचलित पौराणिक कथाएं हैं| ऐसी मान्यता है कि इस दिन भगवान भानु अपने पुत्र शनिदेव से मिलने उनके लोक जाते हैं। शनिदेव मकर राशि के स्वामी हैं। इसलिए इस दिन को मकर सक्रांति के नाम से जाना जाता है।
यह भी माना जाता है मकर संक्रांति के ही दिन भागीरथ के पीछे पीछे माँ गंगा मुनि कपिल के आश्रम से होकर सागर में मिली थीं| अन्य मान्यता है कि माँ गंगा को धरती पर लाने वाले भागीरथ ने अपने पूर्वजों का इस दिन तर्पण किया था| मान्यता यह भी है कि तीरों की सैय्या पर लेटे हुए पितामह भीष्म ने प्राण त्यागने के लिए मकर संक्रांति के दिन का ही चयन किया था। यह विश्वास किया जाता है कि इस अवधि में देहत्याग करने वाला व्यक्ति जन्म मरण के चक्र से पूर्णत: मुक्त हो जाता है।
क्या है मकर संक्रांति? –
सूर्य के एक राशि से दूसरी राशि में जाने को ही संक्रांति कहते हैं। एक संक्रांति से दूसरी संक्रांति के बीच का समय सौर मास कहलाता है। हालांकि, कुल 12 सूर्य संक्रांति हैं, लेकिन इनमें से मेष, कर्क, तुला और मकर संक्रांति मुख्य हैं। इस पर्व की खास बात यह है कि इसे हर साल 14 जनवरी को ही मनाया जाता है। लेकिन कभी-कभी यह एक दिन पहले या बाद में यानि की 13 जनवरी या फिर 15 जनवरी को भी मनाया जाता है। लेकिन ऐसा बहुत कम होता है। इस तरह मकर संक्रांति का सीधा संबंध पृथ्वी के भूगोल और सूर्य की स्थिति से है। जब भी सूर्य मकर रेखा पर आता है, वह दिन 14 जनवरी ही होता है और इसे लोग मकर संक्रांति के त्योहार के रूप में मनाते हैं। वहीं ज्योतिषों की माने तो इस दिन सूर्य धनु राशि को छोड़कर मकर राशि में प्रवेश करता है और सूर्य के उत्तरायण की गति की शुरुआत होती है।
पावन पर्व मकर संक्रांति
संक्रांति के दौरान सूर्य उत्तरायण होते हैं, यानी पृथ्वी का उत्तरी गोलार्द्ध सूर्य की ओर मुड़ जाता है। उत्तरायण देवताओं का अयन है। एक साल दो अयन के बराबर होता है और एक अयन देवता का एक दिन होता है। इसी वजह से मकर के दिन से ही शादियों और शुभ कार्यों की शुरुआत हो जाती है। दान, पुण्य के इस पावन पर्व को लेकर यह मान्यता भी है कि इस दिन भगवान सूर्य अपने पुत्र शनि से मिलने खुद उनके घर जाते हैं। क्योंकि शनिदेव मकर राशि के स्वामी हैं, इसी वजह से इस दिन को मकर संक्रांति के नाम से जाना जाता है। इसके अलावा हिन्दू धर्म में इस त्योहार का खास महत्व माना गया है। वेदों और पुराणों में भी मकर संक्राति के पर्व का उल्लेख देखने को मिलता है। इस दिन जप, तप, स्नान श्राद्ध दान आदि करने का भी बहुत महत्व है। ऐसा माना जाता है जो लोग मकर संक्रांति के दिन गंगास्नान करते हैं, उन लोगों को पुण्य मिलता है।
आपको बता दें कि प्रयागराज (इलाहाबाद) में हर साल गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम पर इस समय गंगा स्नान किया जाता है। यहां दूर-दूर से से श्रद्दालु आते हैं और आस्था की डुबकी लगाकर पुण्य प्राप्त करते हैं। इस दौरान यहां एक महीने मेला भी लगता है। भारत में मकर संक्रांति के इस पावन पर्व को सभी जगह अलग-अलग नामों से जाना जाता है। जैसे कि दक्षिण भारत में पोंगल के नाम से जाना जाता है। आंध्रप्रदेश, केरल और कर्नाटक में इसे संक्रांति कहा जाता है। गुजरात और राजस्थान में इसे उत्तरायण कहा जाता है।
जबकि हरियाण और पंजाब में मकर संक्रांति को माघी के नाम से पुकारा जाता है। यहां इस समय नई फसल का स्वागत किया जाता है और यह लोहड़ी पर्व के रूप में मनाया जाता है। वहीं असम में बिहू के रूप में इस पर्व को पूरे हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाता है। इस तरह हर प्रांत में इस पावन पर्व का नाम और मनाने का तरीका अलग-अलग होता है।
मकर संक्रांति मनाने का तरीका –
अलग-अलग मान्यताओं के अनुसार इस पर्व के पकवान भी अलग-अलग होते हैं, लेकिन दाल और चावल की खिचड़ी इस पर्व की प्रमुख पहचान है। इस दिन खासतौर पर गुड़ और घी के साथ खिचड़ी खाने का महत्व है। इसके अलावा तिल और गुड़ का भी मकर संक्राति पर बेहद महत्व है। इस दिन सुबह जल्दी उठकर तिल का उबटन कर स्नान किया जाता है। इसके बाद परिवार के सभी लोग सूर्य भगवान की पूजा अर्चना करते हैं उन्हें अर्घ्य देते हैं और खिचड़ी चढ़ाते हैं। इसी के साथ लोग मकर संक्रांति के दिन पितरों का ध्यान और उन्हें तर्पण भी देते हैं। इसके अलावा इस दिन तिल और गुड़ के लड्डू एवं अन्य व्यंजन भी बनाए जाते हैं। इस समय सुहागन महिलाएं सुहाग की सामग्री का आदान प्रदान भी करती हैं। ऐसा माना जाता है कि इससे उनके पति की आयु लंबी होती है। सुख, संपदा एवं दान पुण्य के इस त्यौहार को भले ही लोग अपने-अपने तरीके से मनाते हैं लेकिन यह त्योहार लोगों को जोड़ने का काम करता है इसलिए मकर संक्रांति का यह त्योहार खुशी और सोहार्द और एकता का प्रतीक माना जाता है।
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