गाय का नाम अक्सर सुर्खियों में रहता है लेकिन इनकी नस्लों के बारे में शायद ही किसी को जानकारी होगी। भारत में साहीवाल, गिर, थारपारकर और लाल सिंधी समेत कई अन्य देसी नस्ल है जिनको भारतीय पशु आंनुवशिक संस्थान ब्यूरो में रजिस्टर्ड किया गया है। भारतीय पशु आंनुवशिक संस्थान ब्यूरो के मुताबिक अपने देश में 43 प्रकार की देसी नस्ल की गायें है। आइये आपको इन सभी देसी नस्ल की गायों के बारे में पूरी जानकारी बताते हैं-
01-बरगुर-
इस नसल का जन्म स्थान भारत के पश्चिमी तामिलनाडू में मौजूद कृष्णागिरि जिले का बरगुर क्षेत्र है। इसके पूरे शरीर पर सफेद या भूरे रंग के धब्बे होते हैं। इसके हड्डीदार और पतले अंग होते हैं। सींग सिरे से तीखे होते हैं और हल्के भूरे रंग के होते हैं। गहरे फर के साथ आकर्षित माथा होता है। इस पशु को दोहरे मंतव के लिए प्रयोग किया जाता है। इस नसल के दूध के कई औषधीय गुण होते हैं। यह गऊ एक ब्यांत में 250-1300 लीटर दूध देती है।
02-हल्लीकर-
यह मुख्यत: मंड्या, बैंगलोर, टुमकुर, कोलार और दक्षिण कर्नाटक के चित्रदुर्गा जिले में पायी जाती है। यह पशु छोटे आकार का होता है। इसका शरीर सफेद से सलेटी रंग का होता है। लंबे सींग होते हैं, जो कि सीधे और पीछे की तरफ झुके हुए होते हैं। बड़ा लेवा होता है और कंधे और पुट्ठे गहरे रंग के होते हैं। यह नसल अच्छा प्रदर्शन कर सकती है यदि इसके हरे चारे में ज्वार, बाजरा शामिल हो। यह गाय प्रति ब्यांत में औसतन 500-550 लीटर दूध देती है। दूध में 5.7 प्रतिशत वसा की मात्रा होती है।
03-डांगी-
इस नसल का प्रयोग भारी बारिश में अच्छे काम के लिए किया जाता है। इसका जन्म स्थान महाराष्ट्र में मौजूद नसिल और अहमदनगर जिले में डांग के पहाड़ी क्षेत्र हैं। इस नसल को नाम, इसके मूल स्थान से दिया गया है। इस नसल को ‘कंदादी’ भी कहा जाता है और यह ज्यादातर गुजरात और महाराष्ट्र के कुछ जिलों में पायी जाती है। इस नसल का बड़े पैमाने पर जोताई और अन्य कृषि के कार्यों के लिए किया जाता है। ये मध्यम आकार के पशु होते हैं। जिनके सींग छोटे, छोटा सिर, छोटी और मजबूत टांगे और मध्यम आकार का लेवा होता है। यह गाय प्रति ब्यांत में औसतन 430 लीटर दूध देती है। दूध में 4.3 प्रतिशत वसा की मात्रा होती है।
04-दिओनी-
05-गाओलाओ-
यह दोहरे मंतव वाली नसल है जिसका जन्म स्थान भारत है। यह नसल मुख्यत: नागपुर, चिंदवाड़ा और वरधा में पायी जाती है। यह मध्यम आकार का पशु है जिसका शरीर सफेद से सलेटी रंग का होता है। इसका सिंर लंबा, मध्यम आकार के कान और छोटे सींग होते हैं। यह गाय प्रति ब्यांत में औसतन 470-725 लीटर दूध देती है। दूध में 4.32 प्रतिशत वसा की मात्रा होती है।
06-गिर-
यह नसल राजस्थान, गुजरात और महाराष्ट्र में पायी जाती है। इसे देसण, गुजराती, सूरती, काठियावाड़ी, और सोरठी भी कहा जाता है। इसका शरीर लाल रंग का होता है जिस पर सफेद धब्बे, सिर गुबंद के आकार का और लंबे कान होते हैं। यह गाय प्रति ब्यांत में औसतन 2110 दूध देती है।
07-गंगातिरी-
यह नसल मुख्यत: उत्तर प्रदेश और बिहार में पायी जाती है। यह दोहरे मंतव वाली नसल है। इसे शाहाबादी या पूर्वी हरिआणा के नाम से भी जाना जाता है। यह मुख्यत: उत्तर प्रदेश के मिर्ज़ापुर, गाज़ीपुर, वाराणसी और बलियां जिलों में और बिहार के भोजपुर जिले में पायी जाती है। यह नसल मध्यम आकार की होती है और इसका माथा आकर्षित होता है। यह प्रति ब्यांत में औसतन 900-1200 लीटर दूध देती है। इसके दूध में 4.1-5.2 प्रतिशत वसा की मात्रा होती है।
08-साहीवाल-
इस नसल का पिछला जिला मोंटगोमेरी (पाकिस्तान) है। इस नसल के पशुओं के शरीर का रंग लाल-भूरा, आकार मध्यम, छोटी टांगे, सिर चौड़ा होता है। छोटे और भारी सींग, गर्दन के नीचे लटकती हुई भारी चमड़ी और भारी लेवा होता है। यह सबसे ज्यादा दूध देने वाली भारतीय नसल है। यह नसल पंजाब के फिरोजपुर और अमृतसर जिलों में और राजस्थान के श्री गंगानगर जिले में पायी जाती है। पंजाब में फिरोजपुर जिले के फाज़िलका और अबोहर कस्बों में शुद्ध साहीवाल गायों के झुंड उपलब्ध रहते हैं। इस नसल के बैल सुस्त और काम में धीमे होते हैं। इस नसल को लंबी बार, लोला, मोंटगोमेरी, मुल्तानी और तेली के नाम से जाना जाता है। इस नसल के प्रौढ़ बैल का औसतन भार 5.5 क्विंटल और गाय का औसतन भार 4 क्विंटल होता है।
09-खेरीगढ़-
यह स्वदेशी नसल है जिसका जन्म स्थान उत्तर प्रदेश का लखमीरपुर जिला है। इसे खेर, खारीगढ़ या खारी के नाम से भी जाना जाता है। यह पशु छोटे आकार का होता है जिसका शरीर सफेद या सलेटी रंग का, छोटा और संकुचित चेहरा, पतले और बड़े सींग, गहरी आंखें, अच्छी तरह विकसित लेवा और एक लंबी पूंछ होती है। इस नसल के प्रौढ़ सांड का औसतन भार 4.7 क्विंटल और गाय का औसतन भार 3.4 क्विंटल होता है। यह गाय प्रति ब्यांत में औसतन 300-500 किलो दूध देती है।
10-लाल सिंधी-
इस नसल का जिला पहले सिंध (पाकिस्तान) था। इसे रेड कराची, सिंधी और माही के नाम से जाना जाता है। यह नसल मध्यम ऊंचाई की होती है। इसके शरीर का रंग गहरा लाल होता है। स्वस्थ शरीर होता है जो कि आकार में मध्यम होता है। सिर चौड़ा, छोटे और मोटे सींग, लंबी पूंछ, छोटी टांगे और ढीली त्वचा होती है। यह नसल विभिन्न मौसमों को सहन कर सकती है। इस नसल को बीमारियां कम लगती हैं। यह गाय प्रति ब्यांत में औसतन 1600 लीटर दूध देती है। दूध में 5.0 प्रतिशत वसा की मात्रा होती है। इस नसल का बैल खेतों में अच्छे से काम करता है। प्रौढ़ बैल का औसतन भार 4.5 क्विंटल और गाय का भार 3.15 क्विंटल होता है।
11-हरिआणा-
यह नसल हरियाणा के रोहतक, हिसार, करनाल और गुड़गांव जिलों से है। यह उत्तर प्रदेश, पंजाब और मध्य प्रदेश के भागों में भी प्रसिद्ध है। इस नसल का शरीर, सफेद या हल्का धुएं के रंग जैसा, तंग और मध्यम आकार का होता है। सिर छोटा, माथा और पुट्ठे गहरे सलेटी रंग के होते हैं। टांगे लंबी, जो कि सीधी होती है। पूंछ पतली और छोटी होती है। बैल खेती का काम अच्छा करते हैं। इस नसल के बैल का औसतन भार 5 क्विंटल और गाय का भार 3.5 क्विंटल होता है। यह गाय औसतन 1.5 किलो दूध प्रतिदिन देती है। इस नसल की गाय का प्रति ब्यांत में औसतन दूध 1000 लीटर होता है। दूध में 4.4 प्रतिशत वसा की मात्रा होती है।
12-थारपारकर-
यह नसल थारपारकर जिला (पश्चिमी पाकिस्तान) से है। यह भारत में मुख्यत जोधपुर, कच्छ और जैसलमेर क्षेत्रों में पायी जाती है। इसे ग्रे सिंधी, वाइट सिंधी और थारी के नाम से भी जाना जाता है। इसके शरीर का रंग राख के जैसा, मध्यम आकार का और चौड़ा सिर होता है। सींग वीणा के आकार के और किनारों पर से तीखे होते हैं। इनकी टांगे छोटी, पतली और लंबी पूंछ, बड़ा और चौड़ा कूबड़ और बड़े आकार का लेवा होता है, जिसमें निप्पल उचित फासले पर होते हैं। यह गाय प्रति ब्यांत में 1400 लीटर दूध देती है। यह नसल एक मिश्रित नसल है। इस नसल के बैल खेत में अच्छा काम करते हैं।
13-एच एफ होल्सटीन फ़्रिसियन-
14-जर्सी-
यह गाय यू. के., जर्सी द्वीप से है। इसके शरीर का रंग लाल हल्का पीला, कोणीय और सघन शरीर और माथा डिश के आकार का होता है। यह अन्य सभी नसलों में से सबसे छोटी नसल है। इसके भूरे रंग के शरीर पर लाल धब्बे होते है।। यह रोज़ 20 लीटर दूध देती है। यह गाय प्रति ब्यांत में 3500-4000 किलो दूध देती है और दूध में 5 प्रतिशत वसा की मात्रा होती है। बैल का औसतन भार 540-820 किलो और गाय का भार 400-500 किलो होता है। भारत में होशियारपुर, रोपड़ और गुरदासपुर मुख्य जिले हैं जहां जर्सी गाय पायी जाती है।
15-ब्राउन स्विस-
यह नसल स्विटज़रलैंड में एल्पज़ की ढलानों से है। इस नसल का कद मध्यम होता है। यह रंगों की विभिन्न किस्मों हल्के से गहरे रंग में पायी जाती है। यह प्रति ब्यांत में 4500-5000 किलो दूध देती है और इसके दूध में 3.9-4.2 प्रतिशत वसा की मात्रा होती है। यह अच्छी गुणवत्ता वाले बछड़े का उत्पादन करती है। इसका पहली बार दोहरे मंतवों के लिए पटियाला, संगरूर और बठिंडा क्षेत्रों में उपयोग किया गया। इस नस्ल के बैल का औसतन भार 590-635 किलो होता है और गाय का भार 900 किलो होता है।
16-रेड डेन-
इसका जन्म स्थान डेनमार्क देश है। इस नसल के पशु का भार मध्यम से भारी होता है। इसके शरीर का रंग गहरा लाल होता है। यह नसल प्रति ब्यांत में 4500-5500 किलो दूध देती है और इसके दूध में 4 प्रतिशत वसा की मात्रा होती है। पहली बार इस नसल का दोहरे मंतव के लिए प्रयोग पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी लुधियाना में किया गया था। इस नसल के बैल का औसतन भार 1000 किलो और गाय का 660 किलो होता है।
17-अंबलाचेरी-
इस नसल को ‘मोतईमधु’ या ‘दक्षिणी’ या ‘जाथीमांडू’ या ‘थेरकुथीमांडु’ या ‘तंजोर’ के नाम से भी जाना जाता है। यह नसल तामिलनाडू के थिरूवारूर और नागापटीनम जिले में पायी जाती है। इस नसल की मादा की त्वचा का रंग मुख्य तौर पर सलेटी होता है और चेहरे पर सफेद रंग के धब्बे होते हैं और नर का रंग गहरा भूरा और टांगे काले रंग की होती हैं। इनका माथा चौड़ा और अलग होता है। इस नसल के नर का औसतन कद 135 सैं.मी. और मादा का औसतन कद 105 सैं.मी. होता है। इस नसल की गाय एक ब्यांत में औसतन 495 किलो दूध देती है, जिसकी वसा 4.9 प्रतिशत तक होती है।
18-बचौर-
इस नसल को “भूटिया” के नाम से भी जाना जाता है। यह नसल मुख्य तौर पर बिहार में पायी जाती है। यह ज्यादातर बिहार के धरबंगा, सीतामढ़ी और मधुबनी इलाकों में पायी जात है। यह नसल लगभग हरियाणा नसल जैसी ही है। बचौर नसल की खाल का रंग सफेद या सलेटी सफेद होता है। इस नसल की कमर सीधी, गर्दन छोटी, सुडौल कंधे, लटके हुए कान, छोटे और मोटे सींग और शरीर गोल होता है। इसका माथा चौड़ा, आंखे बड़ी, और सींग मध्यम आकार के, जो बाहर की तरफ मुड़े हुए होते हैं। इस नसल के नर का औसतन भार 250 किलो और मादा का औसतन भार 200 किलो होता है। इसकी पहले ब्यांत के लिए उम्र 31-36 महीने की होनी चाहिए और इसका एक ब्यांत 11-14 महीने का होता है। इस नसल की गायें बढ़िया दूध उत्पादक नहीं है। यह नसल एक ब्यांत में लगभग 225-630 किलो दूध पैदा करती है और दूध की वसा 5 प्रतिशत होती है।
19-अमृतमहल-
इस नसल को “जवारीदाना”, “दोडादाना” और “नंबरदाना” के नाम से भी जाना जाता है। अमृतमहल का भाव दूध का घर है। यह नसल मुख्य तौर पर सलेटी और सफेद से काले रंग में आती है। कुछ गायों पर सफेद - सलेटी रंग का निशान देखा जाता है। इसका सिर बढ़िया आकार का लंबा, आंखे लाल, कान छोटे और पतले, पतली लटकी हुई अतिरिक्त चमड़ी, अच्छी तरह विकसित कूबड़, घना शरीर, मजबूत और लंबी गर्दन, पतली त्वचा और चमकदार छोटे बालों वाली खाल होती है। इस नसल के नर का औसतन भार 500 किलो और मादा का औसतन भार 318 किलो होता है। इस नसल के नर की औसतन लंबाई 134.1 सैं.मी. और मादा की औसतन लंबाई 126 सैं.मी. होती है। इसके पहले ब्यांत के लिए उम्र 36-72 महीने की होनी चाहिए। ब्याने के बाद यह 210-310 दिनों तक दूध देती है। इस नसल की गायें बढ़िया दूध उत्पादक नहीं हैं। इस नसल की गायें एक ब्यांत में 572 किलो दूध पैदा करती है और दूध की वसा 5.7 प्रतिशत होती है। यह नसल मुख्य तौर पर कर्नाटक के फार्मों में रखी जाती है।
20-बिंझारपुरी-
इस नसल को “देशी” के नाम से भी जाना जाता है। यह नसल ज्यादातर जयपुर और उड़ीसा के भदरक और केंद्रापारा जिले में पायी जाती है। इस नसल की खाल का मुख्य रंग सफेद होता है, पर यह काले, भूरे या सलेटी रंग में भी मिल सकती है। इस नसल के नर की गर्दन, कूबड़, चेहरे का कुछ भाग और कमर काले रंग की होती है। इस नसल के सींग काले और मध्यम आकार के होते हैं, जो ऊपर की तरफ मुड़े होते हैं। यह नसल एक ब्यांत में लगभग 915-1350 किलो दूध पैदा करती है। इसकी पहले ब्यांत में उम्र 41-42 महीने की होनी चाहिए और इसका एक ब्यांत 13 महीने का होता है। इसके दूध में वसा 4.3-4.4 प्रतिशत होती है। इसके रोजाना दूध की पैदावार लगभग 5 किलो प्रतिदिन होती है। इस नसल के नर का औसतन भार 254-261 किलो और मादा का औसतन भार 207-211 किलो होता है।
21-घुमसारी-
इस नसल को “देशी” के नाम से भी जाना जाता है। यह नसल मुख्य तौर पर उड़ीसा में पायी जाती है। यह जानवर छोटे आकार के और मजबूत होते हैं। यह नसल मुख्य रूप में सफेद रंग में आती है। पर कुछ भूरे रंग की शेड में आती हैं। इनके सींग मध्यम आकार के होते हैं जो ऊपर और अंदर की तरफ को मुड़े हुए होते हैं। सिर छोटा और चपटा और माथा चौड़ा होता है। इस नसल के नर का औसतन भार 208 किलो और मादा का औसतन भार 168 किलो होता है। इस नसल के नर की औसतन लंबाई 116 सैं.मी. हाती है और मादा की औसतन लंबाई 107 सैं.मी. होती है। इसके पहले ब्यांत में गाय की उम्र 42 महीने होनी चाहिए और इसका एक ब्यांत 13 महीने का होता है। यह एक ब्यांत में औसतन 450-650 किलो दूध पैदा करती है, जिसकी वसा 4.8- 4.9 प्रतिशत तक होती है।
22-कनक्रेज़-
इस नसल को “वगाड़िया” या “बोनई” या “वागाद” या “तालबंदा” नाम से भी जाना जाता है। यह नसल मुख्य तौर पर गुजरात के जिला बनासकांठा में पायी जाती है। इस नसल के जानवर बड़े आकार के होते हैं। यह नसल मुख्य तौर पर सिल्वर, सलेटी और आयरन सलेटी से काले रंग में आती है। इस नसल के नर का माथा चौड़ा, मुंह छोटा, नाक थोड़ा मुड़ा हुआ, कान लटके हुए और सींग मुड़े हुए होते हैं। इस नसल की गाय एक ब्यांत में औसतन 1800 किलो दूध देती है। इस नसल के बैल का औसतन भार 550-770 किलो और गाय का औसतन भार 330-370 किलो होता है। इसके दूध की वसा 4.8 प्रतिशत होती है। इस नसल की गाय का पहले ब्यांत के समय गाय की उम्र 39-56 महीने होनी चाहिए।
23-केनकथा-
यह भारत की देसी नसल है, इसे केनवारिया भी कहा जाता है। इस नसल का जानवर छोटे आकार वाला होता है, जो उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड में पाया जाता है। इस नसल का मूल स्थान उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश है। इसका शरीर छोटा, सिर छोटा और चौड़ा, माथा डिश के आकार का, कमर सीधी और और कान लटके हुए होते हैं। इस नसल की पूंछ की लंबाई मध्यम, कूबड़ पूरी तरह से विकसित और नर्म-भारी लटक हुई चमड़ी होती है। इस नसल के पशु की औसतन लंबाई 103 सैं.मी. होती है। इसका रंग सिलवर से सलेटी और आयरन सलेटी या स्टील काला होता है। इस नसल के नर का औसतन भार 350 किलो और मादा औसतन भार 300 किलो होता है।
24-खारियार-
इस नसल का मूल स्थान उड़ीसा का नुआपाड़ा जिला है। यह छोटे आकार की नसल है, जिसके सींग सीधे, कमर और चेहरे का कुछ हिस्सा गहरे काले रंग का होता है। इसकी खाल का रंग भूरा होता है। पर यह कभी कभी सलेटी भी होता है। इस नसल के नर का औसतन कद 106 सैं.मी. और मादा का औसतन कद 102 सैं.मी. होता है। इस नसल की गाय एक ब्यांत में औसतन 450 किलो दूध देती है और दूध की वसा 4-5 प्रतिशत होती है।
25-खिलारी-
इस नसल को मंदेशी या शिकारी या थिल्लर के नाम से भी जाना जाता है। इस नसल का मूल स्थान महाराष्ट्र और कर्नाटक के जिले हैं और यह पश्चिमी महाराष्ट्र में पायी जाती है। इस नसल का नाम खिलार शब्द से लिया गया है, जिसका मतलब है पशुओं का झुंड। इस नसल के अंग मजबूत, सींग लंबे, सिर तंग, खाल हल्की और बढ़िया, कान छोटे, कमर ओर छोटा कूबड़ और शरीर बेलनाकार होता है। इसकी खाल मुख्य तौर पर सलेटी - सफेद रंग की होती है। इस नसल के नर का औसतन भार 450 किलो और गाय का औसतन भार 360 किलो होता है। इसके दूध की वसा लगभग 4.2 प्रतिशत होती है। यह नसल एक ब्यांत में औसतन 240-515 किलो दूध देती है।
26-कृष्णा घाटी-
इस नसल को कृष्णा घाटी के नाम से भी जाना जाता है। यह उत्तरी कर्नाटक की देसी नसल है। यह एक पालतू नसल है, जो खेतीबाड़ी के लिए प्रयोग की जाती है। यह मुख्य तौर पर सलेटी - सफेद रंग में पायी जाती है। इस नसल के सींग छोटे, चमड़ी लटकी हुई, कान छोटे और तीखे, शरीर छोटा और टांगे छोटी और मोटी होती है। यह नसल एक ब्यांत में औसतन 900 किलो दूध देती है।
27-मलवी-
इस नसल को मालवी या मनथानी या महांदिओपुरी नाम से भी जाना जाता है। यह नसल ज्यादातर मध्य प्रदेश में पायी जाती है। इसकी खाल का रंग मुख्य तौर पर सफेद सलेटी या सफेद होता है। इस नसल के पशु छोटे आकार के होते हैं जिनके सींग मुड़े हुए, शरीर घना, टांगे और खुर मजबूत, मुंह चौड़ा, कान तीखे और छोटे और माथा डिश के आकार का होता है। यह नसल एक ब्यांत में औसतन 627-1227 किलो दूध देती है और दूध की वसा 4.3 प्रतिशत होती है। इस नसल की मादा की औसतन लंबाई 130 सैं.मी. और नर की औसतन लंबाई 140 सैं.मी. होती है।
28-मेवाती-
यह नसल राजस्थान, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में पायी जाती है। इसे महवाती या कोसी नाम से भी जाना जाता है। यह नसल राजस्थान के भरतपुर और अलवर जिले, हरियाणा के फरीदाबाद और गुड़गांव जिले और उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले तक फैली हुई है। इसका रंग मुख्य तौर पर सफेद होता है। यह पशु मध्यम आकार का होता है जिसके सींग तीखे और लटके हुए होते हैं। इसका मुंह चौड़ा और वर्गाकार, पूंछ और टांगे लंबी, माथा थोड़ा उभरा हुआ, मजबूत अंग, छाती घनी और होते हैं। यह नसल एक ब्यांत में औसतन 958 किलो दूध देती है और एक दिन में दूध की पैदावार 5 किलो होती है।
29-मोतू-
यह नसल उड़ीसा, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में पायी जाती है। इस नसल का नाम उड़ीसा के मलकानगिरी जिले के स्थानक क्षेत्र मोतू के नाम पर रखा गया है। इस नसल का रंग मुख्य तौर पर भूरा या कई बाद सलेटी और सफेद होता है। यह पशु छोटे आकार के होते हैं जिनके सींग सीधे, पूंछ काली और खुर काले रंग के होते हैं। यह नसल एक ब्यांत में औसतन 100-140 किलो दूध देती है और दूध की वसा 4.8-5.3 प्रतिशत होती है। इस नसल की मादा का औसतन भार 137 किलो और नर का औसतन भार 171 किलो होता है। इस नसल की मादा की औसतन लंबाई 104 सैं.मी. और नर की औसतन लंबाई 107 सैं.मी. होता है। इस नसल के पहले ब्यांत के समय गाय की उम्र 52 महीने होनी चाहिए और एक ब्यांत से दूसरे ब्यांत का अंतराल 13 महीने होता है।
30-नागोरी-
इस नसल का मूल स्थान राजस्थान है। इस नसल राजस्थान के जोधपुर, बीकानेर और नागौर जिलों तक फैली हुई है। इसकी खाल का रंग सफेद होता है। इसका मुंह लंबा, माथा चपटा और तंग, कान लंबे और लटके हुए, सींग मध्यम आकार के, आंखे छोटी, शरीर का अगला हिस्सा पूरी तरह विकसित और कमर सीधी होती है। यह एक ब्यांत में औसतन 479-905 किलो दूध पैदा करती है और दूध की वसा 5.8 प्रतिशत होती है।
31-निमारी-
इस नसल को खरगोनी या खरगाओं या खुरगोनी के नाम से भी जाना जाता है। इस नसल का मूल स्थान मध्य प्रदेश है। इसका रंग सफेद, काला या हल्का लाल, लाल, हल्का जामुनी और सफेद या पीला होता है। इसकी चमड़ी हल्की और ढीली, माथा उभरा हुआ, शरीर भारा, सींग तीखे, कान चौड़े और सिर लंबा होता है। यह नसल एक ब्यांत में औसतन 600-954 किलो दूध देती है और दूध की वसा 4.9 प्रतिशत होती है।
32-पोंवार-
इसे ‘पुरनिया’ के नाम से भी जाना जाता है। इस नसल का मूल स्थान आंध्र प्रदेश है। इस नसल के सींग मध्यम आकार के, मुंह तंग, कान बड़े और पतले, आंखे चमकीली, गर्दन छोटी और ताकतवर, शरीर छोटा और तंग, कूबड़ अच्छी तरह से विकसित, पूंछ लंबी और किनारे से पतली, धड़ लंबा और लटकी हुई चमड़ी हल्की और पतली होती है। इनकी खाल सफेद और काले रंग की होती है। इस नसल की मादा की औसतन लंबाई 109 सैं.मी. और नर की औसतन लंबाई 116 सैं.मी. होती है। यह एक ब्यांत में औसतन 460 किलो दूध पैदा करती है। यह नसल भार ढोने और खेतीबाड़ी के कामों के लिए प्रयोग की जाती है।
33-पुंगानूर-
यह नसल आंध्र प्रदेश के चितूर जिले में पैदा हुई है। इस नसल के पशु छोटे आकार के होते हैं, जिनकी खाल हल्के भूरे और सफेद रंग की होती है। यह नसल कई बार लाल या हल्के से गहरे भूरे रंग में पायी जाती है। इसका माथा चौड़ा और सींग छोटे और मुड़े हुए होते हैं। इस नसल की मादा का औसतन भार 115 किलो और नर का औसतन भार 225 किलो होता है। इस नसल का औसतन कद 70-90 सैं.मी. होता है। यह एक ब्यांत में औसतन 194-1100 किलो दूध पैदा करती है और दूध की वसा लगभग 5 प्रतिशत होती है।
34-राठी-
इस नसल का मूल स्थान राजस्थान है। यह नसल राजस्थान के थार मारूस्थल, बीकानेर, गंगानगर और जैसलमेर जिलों तक फैली हुई है। इसकी खाल मुख्य तौर पर भूरे रंग की होती है, जिस पर सफेद धब्बे बने होते हैं और कई बार इसकी खाल काले या भूरे रंग की होती है, जिसपर सफेद धब्बे बने होते हैं। इसके बाकी शरीर के मुकाबले शरीर का निचला भाग रंग में हल्का होता है। इसका चौड़ा मुंह, पूंछ लंबी और लटकी हुई चमड़ी कोमल और ढीली होती है। यह एक ब्यांत में औसतन 1000-2800 किलो पैदा करती है। पहले ब्यांत के समय इस नसल की गाय की उम्र 36-52 महीने होनी चाहिए और इसका एक ब्यांत 15-20 महीने का होता है।
35-लाल कंधारी-
इस नसल का मूल स्थान, कंधार, तहसील नंदेड़, जिला महाराष्ट्र है। इसे ‘लखलबुंदा’ नाम से भी जाना जाता है। यह महाराष्ट्र के नंदेड़, परभानी, अहमद नगर, बीड और लतूर जिले में पायी जाती है। इस नसल के पशु दरमियाने आकार वाले और गहरे लाल रंग के होते हैं। यह नसल हल्के लाल से भूरे रंग में आती है। इसके सींग टेढ़े, माथा चौड़ा, कान लंबे, कूबड़ और लटकी हुई चमड़ी नर्म, आंखे चमकदार और पिछली ओर काले रंग के गोल धब्बे बने होते हैं। इस नसल के नर का औसतन कद 1138 सैं.मी. और मादा का औसतन कद 128 सैं.मी. होता है। यह नसल एक ब्यांत में औसतन 598 किलो दूध देती है, जिसकी वसा लगभग 4.5 प्रतिशत तक होती है। पहले ब्यांत के समय इस नसल की मादा की उम्र 30-45 महीने होनी चाहिए और इसका एक ब्यांत 12-24 महीने का होता है।
36-वेचुर-
इस नसल का मूल स्थान केरला है। यह नसल नमी और गर्म जलवायु के अनुकूल होती है। इसके सींग छोटे और शरीर का पिछला हिस्सा गहरे या गहरे सलेटी रंग के होता है। इस नसल का औसतन कद 90 सैं.मी. और औसतन भार 130 किलो होता है। यह नसल एक ब्यांत में औसतन 561 किलो दूध देती है, जिसकी वसा लगभग 4.7 - 5.8 प्रतिशत तक होती है।
37-सीरी-
इसका मूल स्थान सिक्किम और पश्चिमी बंगाल है। यह ज्यादातर त्रभूम या बनावटी सीरी या कच्चा सीरी के नाम से भी जाना जाता है। इसकी त्वचा का रंग मुख्य तौर पर काला या भूरा होता है, जिस पर सफेद रंग के धब्बे होते हैं। इसका शरीर दरमियाने आकार का होता है। इसकी सींग बड़े, टांगे और पैर मजबूत, हल्की लटकी हुई त्वचा और काले रंग का मुंह होता है। यह एक ब्यांत में औसतन 430 लीटर दूध देती है, जिसकी वसा 2.8-5.5 प्रतिशत होती हैं इस नसल की मादा का औसतन भार 210-300 किलो नर का औसतन भार 260-360 किलो होता है। इस नसल के नर का औसतन कद 138 सैं.मी. और मादा का औसतन कद 100 सैं.मी. होता है।
38-उंगोल-
यह नसल आंध्र प्रदेश में पैदा हुई है। इसे ‘नेलोर’ के नाम से भी जाना जाता है। यह नस्ल बड़े आकार की होती है, जिसके अंग लंबे और सुडौल, गर्दन छोटी, शरीर लंबा, माथा चौड़ा, आंखे अंडाकार कान लंबे और लटके हुए और सींग छोटे तथा मोटे होते हैं। इस नसल के नर का भार लगभग 500 किलो और मादा का भार लगभग 432-455 किलो होता है।
39-कंगायम(तमिलनाडु)-
इस प्रजाति के गोवंश काफी फुतीले होते है। इस जाति के गोवंश कोयम्बटूर के दक्षिणी इलाकों में पाये जाते हैं। दूध कम देने के बावजूद भी यह गाय 10-12 सालों तक दूध देती है।
40-कांकरेज (गुजरात और राजस्थान)
कांकरेज गाय राजस्थान के दक्षिण-पश्चिमी भागों में पाई जाती है, जिनमें बाड़मेर, सिरोही तथा जालौर ज़िले मुख्य हैं। इस नस्ल की गाय प्रतिदिन 5 से 10 लीटर तक दूध देती है। कांकरेज प्रजाति के गोवंश का मुँह छोटा और चौड़ा होता है। इस नस्ल के बैल भी अच्छे भार वाहक होते हैं। अतः इसी कारण इस नस्ल के गौवंश को 'द्वि-परियोजनीय नस्ल' कहा जाता है।
41-अंगोल (आंध्रप्रदेश) -
अंगोल प्रजाति तमिलनाडु के अंगोल क्षेत्र में पायी जाती है। इस जाति के बैल भारी बदन के और ताकतवर होते हैं। इनका शरीर लम्बा, किन्तु गर्दन छोटी होती है। यह प्रजाति सूखा चारा खाकर भी जीवन निर्वाह कर सकती है। इस नस्ल के ऊपर ब्राजील काम कर रही है।
42-कोसली (छत्तीसगढ़)-
कोसली नस्ल की गायें भारत में छत्तीसगढ़ राज्य में पाई जाती हैं। इसका प्रमुख निवास स्थान छत्तीसगढ़ राज्य के मैदानी जिले जैसे रायपुर, राजनांदगांव, दुर्ग और बिलासपुर हैं। इनका आकार छोटा होता हैं। एक मादा का वजन 160-200 कि.ग्रा. और नर का वजन 200-300 कि.ग्रा. तक होता है। कोसली नस्ल की गायों के सींग छोटे आकार के होते हैं।
43-बद्री (उत्तराखंड) -
बद्री गाय केवल पहाड़ी जिलों में पाई जाती है और पहले इसे 'पहाड़ी' गाय के रूप में जाना जाता था। इनका रंग भूरा, लाल, सफ़ेद होता है। इनके कान छोटे से मध्यम आकार की लम्बाई के होते हैं और इनकी गर्दन छोटी एवं पतली होती है। बद्री गायों का प्रतिदिन औसत दुग्ध उत्पादन लगभग 1.12 किग्रा है, लेकिन कुछ गायें 6.9 किग्रा तक दूध का उत्पादन करती हैं। इनका दुग्धकाल 275 दिनों का होता है।













































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