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गोण्डा जनपद के प्रसिद्ध प्राचीनतम मन्दिरो में मां खैरा भवानी का मन्दिर विख्यात है


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गोण्डा जनपद के प्रसिद्ध मन्दिरो में मां खैरा भवानी का मन्दिर विख्यात है। जो कि मुख्यालय से मात्र एक किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। रेलवे स्टेशशन से उतरने के बाद रेलवे ओवरब्रिज के नीचे गांधी विद्यालय इण्टर कालेज के सामने से जाने का मार्ग बना हुआ है। मुख्य मंन्दिर में माँ खैरा माता का प्रतिमा स्थापित है। किवदंन्तियो के अनुसार जहां पर माँ खैरा का मंन्दिर बना हुआ है। पहले एक जंगल हुआ करता था जहां पर खैर का बृक्ष बहुतायत मात्रा में पाया जाता था। माँ खैरा भवानी की उत्पति भी खैर के एक बृक्ष से हुआ लोगो का ऐसा मानना है। धीरे-धीरे मां खैरा की पूजा करने के लिए आस्था का जनसैलाब उमडता रहा। मां खैरा भवानी के बारे में ऐसा मानना है कि जब गोण्डा में रेलवे का विस्तार हो रहा था। उस समय गोण्डा से बलरामपुर की तरफ जाने वाली रेल लाइन का मार्ग इसी जंगल से होकर बनाया गया। परन्तु रेलवे के  इन्जिनियरो द्वारा बार-बार रेलवे लाइन का निर्माण करने के उपरान्त भी सुबह रेलवे लाइन गायब मिलता था।

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जब रेलवे के इन्जिनियर परेशान हो गये तो मां ने एक ब्राम्हण को स्वपन में दर्शन दिया जिसके उपरान्त मां खैरा भवानी का खैर के बृक्ष पर एक मन्दिर बनाया गया। और रेलवे के इन्जिनियरो ने रेलवे का मार्ग बदलकर दूसरी तरफ से कर दिया। संम्भवत तभी से मां खैरा भवानी के मन्दिर में श्रद्धालुओ का तांता लगना शरू हुआ। मां खैरा भवानी के मन्दिर के प्रवेश द्वार पर दो सिंह गर्जना करते हुए बने हुए है। अन्दर जाने पर मां खैरा भवानी का मन्दिर के मध्य भाग में खैर का पेड आज भी मौजूद है। और उसी केे सामने मां खैरा भवानी के प्रतिबिम्व स्वरूप मां का एक प्रतिमा जिसमें सिर्फ मां का मुख भाग दिखाई देता है। रखा हुआ है। वैसे तो इस मन्दिर में मां के भक्तो का हर समय तांता लगा रहता है।
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परन्तु विशेष कर सोमवार और शुक्रवार को मां के मन्दिर में विशेष श्रद्धालु इक्कठ्ठा होतें है। साथ ही यहा पर शारदीय नवरात्रि व चैत्र नवरात्रि में विशेष श्रद्धालु इक्कठ्ा होतें है। और कई तरह की दूकाने सजी होती है यहा पर जनपद सहित दूर-दूर के श्रद्धालु मां खैरा भवानी का दर्शन करने आते है। मन्दिर के समीप ही एक विशाल पोखरा बना हुआ है। तथा मन्दिर के सामने बाबा भोलेनाथ का एक मन्दि भी बना हुआ है। नवरात्रि के दिन मां के मन्दिर में ढोल नगारे के साथ ही मां के जयकारे की गूंज के साथ श्रद्धालुओ में उत्साह देखने को मिलती है।  

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नवरात्रि के अन्तिम दिन इस मन्दिर में श्रद्धालुओ की संख्या बढ जाती है यही नही नवरात्रि में श्रद्धालु अपने बच्चो का मुंण्डन संस्कार आदि भी मां के मन्दिर के प्रागंण में करवाते है। कहा जाता है कि भक्तों नवरात्र के आखिरी दिन मां जगदंबा के सिद्धिदात्री स्वरुप की पूजा की जाती है। मां सिद्धिदात्री भक्तों को सभी प्रकार की सिद्धियों को प्रदान करती है। देवी दुर्गा के इस अंतिम स्वरुप को नव दुर्गाओं में सबसे श्रेष्ठ और मोक्ष प्रदान करने वाला माना जाता है। मां सिद्धिदात्री के स्वरुप की पूजा देव, यक्ष, किन्नर, दानव, ऋषि-मुनि, साधक और संसारी जन नवरात्र के नवें दिन करते हैं। मां की पूजा अर्चना से भक्तों को यश, बल और धन की प्राप्ति होती है। मां सिद्धिदात्री उन सभी भक्तों को महाविद्याओं की अष्ट सिद्धियां प्रदान करती है जो सच्चे मन से उनके लिए आराधना करते हैं।

मार्कण्डेय पुराण के अनुसार अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिया, प्राप्ति, प्रकाम्य, ईशित्व और वशित्व ये आठ सिध्दियां होती है। देवी पुराण के अनुसार भगवान शिव ने इन्हीं की कृपा से सिद्धियों को प्राप्त किया था। इन्हीं की अनुकम्पा से भगवान शिव का आधा शरीर देवी का हुआ था।  इसी कारण वह संसार में अर्धनारीश्वर नाम से प्रसिद्ध हुए। माता सिद्धीदात्री चार भुजाओं वाली हैं। इनका वाहन सिंह है। ये कमल पुष्प पर आसीन होती हैं। इनकी दाहिनी नीचे वाली भुजा में चक्र , ऊपर वाली भुजा में गदा और बांयी तरफ नीचे वाले हाथ में शंख और ऊपर वाले हाथ में कमलपुष्प है नवरात्रि पूजन के नवें दिन इनकी पूजा की जाती है।

देवी सिद्धिदात्री को मां सरस्वती का स्वरुप माना जाता है। जो श्वेत वस्त्रों में महाज्ञान और मधुर स्वर से भक्तों को सम्मोहित करती है। मधु कैटभ को मारने के लिए माता सिद्धिदात्री ने महामाया फैलाई, जिससे देवी के अलग-अलग रूपों ने राक्षसों का वध किया। यह देवी भगवान विष्णु की अर्धांगिनी हैं और नवरात्रों की अधिष्ठात्री हैं। इसलिए मां सिद्धिदात्री को ही जगत को संचालित करने वाली देवी कहा गया है।

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