गोण्डा लाइव न्यूज एक प्रोफेशनल वेब मीडिया है। जो समाज में घटित किसी भी घटना-दुघर्टना "✿" समसामायिक घटना"✿" राजनैतिक घटनाक्रम "✿" भ्रष्ट्राचार "✿" सामाजिक समस्या "✿" खोजी खबरे "✿" संपादकीय "✿" ब्लाग "✿" सामाजिक "✿" हास्य "✿" व्यंग "✿" लेख "✿" खेल "✿" मनोरंजन "✿" स्वास्थ्य "✿" शिक्षा एंव किसान जागरूकता सम्बन्धित लेख आदि से सम्बन्धित खबरे ही निःशुल्क प्रकाशित करती है। एवं राजनैतिक , समाजसेवी , निजी खबरे आदि जैसी खबरो का एक निश्चित शुल्क भुगतान के उपरान्त ही खबरो का प्रकाशन किया जाता है। पोर्टल हिंदी क्षेत्र के साथ-साथ विदेशों में हिंदी भाषी क्षेत्रों के लोगों के बीच बहुत लोकप्रिय है और भारत में उत्तर प्रदेश गोण्डा जनपद में स्थित है। पोर्टल का फोकस राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों को उठाना है और आम लोगों की आवाज बनना है जो अपने अधिकारों से वंचित हैं। यदि आप अपना नाम पत्रकारिता के क्षेत्र में देश-दुनिया में विश्व स्तर पर ख्याति स्थापित करना चाहते है। अपने अन्दर की छुपी हुई प्रतिभा को उजागर कर एक नई पहचान देना चाहते है। तो ऐसे में आप आज से ही नही बल्कि अभी से ही बनिये गोण्डा लाइव न्यूज के एक सशक्त सहयोगी। अपने आस-पास घटित होने वाले किसी भी प्रकार की घटनाक्रम पर रखे पैनी नजर। और उसे झट लिख भेजिए गोण्डा लाइव न्यूज के Email-gondalivenews@gmail.com पर या दूरभाष-8303799009 -पर सम्पर्क करें।

16 नबम्बर 1915 शहीद कर्तार सिंह सराभा मात्र 19 वर्ष की उम्र में फांसी दी गयी,प्रसिद्ध क्रान्तिकारी भगत सिंह उन्हे अपना आदर्श मानते थे

Image SEO Friendly

नोट -भारत की आजादी में शहीद हुए जवानो के बारे में यदि आपके पास कोई जानकारी हो तो कृपया उपलब्ध कराने का कष्ट करे . जिसे प्रकाशित किया जा सके इस देश की युवा पीढ़ी कम से कम आजादी कैसे मिली ,कौन -कौन नायक थे यह जान सके । वैसे तो यह बहुत दुखद है कि भारत की आजादी में कुल कितने क्रान्तिकारी शहीद हुए इसकी जानकार भारत सरकार के पास उपलब्ध नही है। और न ही भारत सरकार देश की आजादी के दीवानो की सूची संकलन करने में रूचि दिखा रही जो बहुत ही दुर्भाग्य पूर्ण है। 

यहीं पाओगे महशर में जबां मेरी बयां मेरा, मैं बन्दा हिन्द वालों का हूं है हिन्दोस्तां मेराय
मैं हिन्दी ठेठ हिन्दी जात हिन्दी नाम हिन्दी है, यही मजहब यही फिरका यही है खानदां मेराय
मैं इस उजड़े हुए भारत का यक मामूली जर्रा हूं, यही बस इक पता मेरा यही नामो-निशां मेराय
मैं उठते-बैठते तेरे कदम लूं चूम ऐ भारत! कहां किस्मत मेरी ऐसी नसीबा ये कहां मेराय
तेरी खिदमत में ऐ भारत! ये सर जाये ये जा जाये, तो समझूंगा कि मरना है हयाते-जादवां मेरा 

कर्तार सिंह सराभा (जन्म 24 मई 1896 - फांसी 16 नवम्बर 1915 ) भारत को अंग्रेजों की दासता से मुक्त करने के लिये अमेरिका में बनी गदर पार्टी के अध्यक्ष थे। भारत में एक बड़ी क्रान्ति की योजना के सिलसिले में उन्हें अंग्रेजी सरकार ने कई अन्य लोगों के साथ फांसी दे दी। 16 नवंबर 1915 को कर्तार को जब फांसी पर चढ़ाया गया, तब वे मात्र साढ़े उन्नीस वर्ष के थे। प्रसिद्ध क्रांतिकारी भगत सिंह उन्हें अपना आदर्श मानते थे। 

1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की विफलता के बाद ब्रिटिश सरकार ने सत्ता पर सीधा नियन्त्रण कर एक ओर उत्पीडन तो दुसरी ओर भारत में औपनिवेशिक व्वयस्था का निर्माण शूरू कर दिया था। चूँकि खुद ब्रिटेन में लोकतान्त्रिक व्यवस्था थी इसलिए Municipality  आदि संस्थाओ का निर्माण भी किया गया लेकिन भारत का आर्थिक दोहन अधिक से अधिक हो इसलिए यहा के देशी उद्योगों को नष्ट करके यहा से कच्चा माल इंग्लैंड भेजा जाना शुरू किया गया द्य साथ ही पुरे देश में रेलवे का जाल बिछाना शुरू हुआ।
ब्रिटिश सरकार ने भारत के सामन्तो को अपना सहयोगी बनाकर किसानो का भयानक उत्पीडन शूरू किया। नतीजन 19वी सदी के अंत तक आते आते देश के अनेक भागो में छुटपुट विद्रोह होने लगे। महराष्ट्र और बंगाल तो इसके केंद्र बने ही , पंजाब में भी किसानो की दशा पुरी तरह खराब होने लगी। परिणामतः 20 वी सदी के आरम्भ में ही पंजाब के किसान कनाडा ,अमेरिका की ओर मजदूरी की तलाश में जाने लगे। मध्यमवर्गीय छात्र भी शिक्षा प्राप्ति के लिए इंग्लैंड ,अमेरिका और यूरोप के देशो में जाने लगे। 

अमेरिका और कनाडा में भारत से काम की तलाश में सबसे पहले 1895 और 1900 के बीच कुछ लोग पहुचे। 1897 में कुछ सिख सैनिक इंग्लैंड में डायमंड जुबली में हिस्सा लेने आये और लौटते हुए कनाडा से गुजरे। उनमे से कुछ वही रुक गये लेकिन ज्यादातर पंजाबी मलाया ,फिलिपिन्स ,ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड आदि देशो से सबसे पहले कनाडा और अमेरिका पहुचे। 1905 में कनाडा पहुचने वाले भारतीयों की संख्या सिर्फ 45 थी जो 1908 में बढकर 2023 तक पहुच गयी थी। 
एक विद्वान के अनुसार 1907 में वहा 6000 तक भारतीय पहुच चुके थे इनमे से 80 प्रतिशत पंजाबी सिख किसान थे। 1909 में कनाडा में प्रवेश के कानून कड़े कर दिए जाने पर भारतीयों का रुख अमेरिका की ओर हुआ जहा 1913 में भारतीयों की संख्या एक अनुमान के अनुसार 5000 थी।  इन भारतीयों में 90 प्रतिशत पंजाबी सिख किसान और कुछ मध्यमवर्गीय विद्यार्थी थे। 
Image SEO Friendly
कनाडा और अमेरिका पहुचे पढ़े लिखे भारतीयों ने शीघ्र ही वहा से भारतीय स्वतंत्रता की मांग उठाने वाली पत्र पत्रिकाए निकालनी शूरू की।  तारकनाथ दास ने Free Hindustan  पहले कनाडा से निकाला तो बाद में अमेरिका से। गुरुदत्त कुमार ने कनाडा से United India League  बनाई और “स्वदेश सेवक ” पत्रिका भी निकाली ।  कनाडा और अमेरिका में अतिरिक्त इंग्लैंड , फ्रांस ,जर्मनी ,जापान एवं अन्य देशो में पहुचे भारतीयों ने स्वतंत्रता की अलख जगाई। भारत से बाहर जाकर भारतीय स्वतंत्रता के लिए आन्दोलन करने वाले भारतीयों में सबसे पहला चर्चित नाम श्यामजी कृष्ण वर्मा का है जिन्होंने पहले इंग्लैंड और उसके बाद पैरिस में स्वतंत्रता का बिगुल बजाया । इंग्लैंड से शुरू हुआ Indian Sociologist अंग्रेजो की कोप दृष्टि का शिकार होकर पैरिस पहुचा और वहा से भारत और दुसरी जगहों पर पहुचता रहा। पेरिस में श्यामजी कृष्ण वर्मा के साथ साथ सरदार सिंह राणा और मदाम भीकाजी कामा बहुत सक्रिय रही। 1907 में स्टुट्गार्ट में हुए समाजवादी सम्मेलन में भीकाजी ने पहली बार भारत कस झंडा फहराया। जर्मनी में “चट्टो ” के नाम से चर्चित वीरेन्द्र नाथ चट्टोपाध्याय और चम्पक रमन पिल्लै सक्रिय रहे। इन्ही के साथ स्वामी विवेकानन्द के छोटे भाई डा. भूपेन्द्र नाथ दत्त सक्रिय रहे। 
पंजाब से पहुचे मदनलाल ढींगरा ने 1909 में कर्जनवायली की हत्या कर दी जिस कारण उन्हें डेढ़ महीने के भीतर ही लन्दन में फाँसी दे दी गयी।  भारत से बाहर भारत की आजादी के लिए फाँसी पर चढकर शहीद होने वाले वह शायद पहले भारतीय थे। इसके 31 साल बाद एक ओर पंजाबी देशभक्त उधम सिंह ने जलियांवालावाला बाग के कुख्यात खलनायक ओडवायर की हत्या कर 1940 में लन्दन में फिर शहादत हासिल की। इस बीच इरान में सूफी अम्बा प्रसाद और कनाडा में भाई मेवा सिंह शहीद हुए। 
भारत से अमेरिका गये भारतीय जिनमे से ज्यादातर पंजाबी थे , प्रायः पश्चिमी तट के नगरो पोर्टलैंड ,सेंट जॉन , एस्टोरिया ,एवरेट आदि में रहते और काम की तलाश करते थे जहा लकड़ी के कारखानों एवं रेलवे वर्कशॉप में काम करने वाले भारतीय बीस-बीस ,तीस -तीस की टोलियों में रहते थे। कनाडा एवं अमेरिका में गोरो की नस्लवादी रवैये से भारतीय मजदूर काफी दुखी थे। भारतीयों के साथ इस भेदभावपूर्ण व्यवहार के विरुद्ध कनाडा में संत तेजा सिंह संघष कर रहे थे तो अमेरिका में ज्वाला सिंह कार्यरत थे। इन्होने भारत से विद्यार्थियों को पढाई करने के लिए अमेरिका बुलाने के लिए अपने जेब से छात्रवृतिया भी दी। 
Image SEO Friendly
दसवी कक्षा पास करने के बाद करतार सिंह सराभा के परिवार से उच्च शिक्षा प्रदान करने के लिए उन्हें अमेरिका भेजने का निर्णय किया गया।  उस समय उनकी आयु 15 वर्ष से कुछ महीने अधिक थी। इस उम्र में सराभा ने उडीसा के रेवनाशा कॉलेज से 11वी की परीक्षा पास कर ली थी।  सराभा गाँव का रुलिया सिंह 1908 में ही अमेरिका पहुच गया था और अमेरिकाप्रवास के प्रारंभिक दिनों में सराभा अपने गाँव रुलिया के पास ही रहे । करतार सिंह सराभा भारत को अंग्रेजो की दासता से मुक्त कराने के लिए अमेरिका में बनी गदर पार्टी  के अध्यक्ष थे। भारत की एक बड़ी क्रांति की योजना के सिलसिले में उन्हें अंग्रेजी सरकार ने कई अन्य लोगो के साथ फाँसी दे दी थी।  16 नवम्बर 1915 को उन्हें जब फाँसी पर चढाया गया ,तब वह मात्र 19 वर्ष के थे। 1912 के आरम्भ में पोर्टलैंड में भारतीय मजदूरों का एक बड़ा सम्मेलन हुआ जिसमे बाबा मोहन सिंह भकना ,हरनाम सिंह टुंडीलात और काशीराम आदि ने हिस्सा लिया।  ये सभे बाद में गदर पार्टी के महत्वपूर्ण नेता बनकर उभरे। इस समय करतार सिंह की भेंट ज्वाला सिंह ठठीआ से भी हुयी ,जिन्होंने बर्कले विश्वविद्यालय में दाखिला लेने के लिए प्रेरित किया , जहा सराभा रसायन शाश्त्र के विद्यार्थी बने। बर्कले विश्विद्यालय में करतार सिंह पंजाबी होस्टल में रहने लगे। बर्कले विश्विद्यालय में उस समय करीब तीस विद्यार्थी पढ़ रहे थे ये विद्यार्थी दिसम्बर 1912 में लाला हरदयाल के सम्पर्क में आये , जो उन्हें भाषण देने गये थे।
लाला हरदयाल ने विद्यार्थियों के सामने भारत की गुलामी के संबध में काफी जोशीला भाषण दिया । भाषण के पश्चात उन्होंने विद्यार्थियों से व्यक्तिगत रूप से भी बातचीत की। लाला हरदयाल और भाई परमानन्द ने भारतीय विद्यार्थियों के दिलो में ब्रिटिश औपनिवेशिक सरकार के खिलाफ भावनाए पैदा करने में बड़ी अहम भूमिका निभाई। भाई परमानन्द बाद में भी सराभा के सम्पर्क में रहे। इससे धीरे धीरे ज्ञंतजंत ैपदही ैंतंइीं सराभा के मन में देशभक्ति की तीव्र भावनाए जागृत हुयी और वह देश के लिए मर मिटने का संकल्प लेने की ओर अग्रसर होने लगे। सराभा और उसके अन्य क्रन्तिकारी साथियों ने गदर आन्दोलन की शुरुवात अमेरिका में की।
भारत पर काबिज ब्रिटिश औपनिवेशवाद के खिलाफ 19 फरवरी 1915 को “गदर” की शुरुवात की थी। इस “गदर ” यानि स्वतंत्रता संग्राम की योजना अमेरिका ने 1913 में अस्तित्व में आई “गदर पार्टी ” ने बनाई थी और उसके लिए लगभग 8000 भारतीय अमेरिका और कनाडा जैसे देशो से सुख सुविधाओ से भरी जिन्दगी छोडकर भारत को अंग्रेजो से आजाद करवाने के लिए समुद्री जहाजो पर भारत पहुचे थे। ”गदर ” आन्दोलन शांतिपूर्ण आन्दोलन नही था यह सशस्त्र विद्रोह था लेकिन “गदर पार्टी ” ने इसे गुप्त रूप न देकर खुलेआम उसकी घोषणा की थी और गदर पार्टी के पत्र “गदर” जो पंजाबी ,हिंदी , उर्दू एवं गुजराती चार भाषाओ में निकलता था  , के माध्यम से इसका समूची जनता से आह्वान किया था। 
                
अमेरिका की स्वतंत्र धरती से प्रेरित हो अपनी धरती को स्वंतंत्र करवाने का यह शानदार आह्वान 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम से प्रेरित था और ब्रिटिश औपनिवेशवाद ने जिसे अवमानना से “गदर ” नाम दिया , उसी “गदर ” शब्द को सम्मानजनक रूप देने के लिए अमेरिका में बसे भारतीय देशभक्तो ने अपनी पार्टी और उसके मुखपत्र को ही “गदर ” नाम से विभूषित किया। 
जैसे 1857 के “गदर” यानि प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की कहानी बड़ी रोमांचक है वैसे ही के लिए दूसरा स्वतंत्रता सशश्त्र संग्राम यानि “गदर ” भी चाहे असफल रहा लेकिन इसकी कहानी भी कम रोचक नही है। विश्व स्तर पर चले इस आन्दोलन में 200 से ज्यादा लोग शहीद हुए , “गदर” एवं अन्य घटनाओ में 315 ने अंडमान जैसी जगहों पर काला पानी की उम्रकैद भुगती और 122 ने कुछ कम लम्बी कैद भुगती। सैकड़ो पंजाबियों को गाँवों में वर्षो तक नजरबन्दी झेलनी पड़ी थी।
उस आन्दोलन में बंगाल से राह्बिहारी बोस एवं शचीन्द्रनाथ सान्याल , महाराष्ट्र से विष्णु गणेश पिंगले  एवं डा.खानखोजे ,दक्षिण भारत से डा.चेन्न्या एवं चम्पक रमण पिल्लै तथा भोपाल से बरकतउल्ला आदि ने हिस्सा लेकर उसे एक ओर राष्ट्रीय रूप दिया तो शंघाई ,मनीला ,सिंगापूर आदि अनेक विदेशी नगरो समें हुए विद्रोह ने इसे अंतर्राष्ट्रीय रूप भी दिया।
1857 की भांति ही “गदर” आन्दोलन भी सही मायनों में धर्म निरपेक्ष संग्राम था जिसमे सभी धर्मो और समुदायों के लोग शामिल थे। 16 नवम्बर 1915 को साढ़े उन्नीस साल के युवक करतार सिंह सराभा को उनके छरूसाथियो बख्शीश सिंह , हरनाम सिंह , जगत सिंह ,सुरेन सिंह , सुरैण तथा विष्णु गणेश पिंगले के साथ लाहौर जेल में फाँसी पर चढ़ा कर शहीद कर दिया गया था।  इनमे से जिला अमृतसर के तीनो शहीद एक ही गाँव गिलवाली से संबधित थे। 
करतार सिंह सराभा , ,गदर पार्टी आन्दोलन के लोक नायक के रूप में अपने बहुत छोटे राजनितिक जीवन के कार्यकलापो के कारण उभरे। कुल दो-तीन साल में ही सराभा ने अपने प्रखर व्यक्तित्व की ऐसी प्रकाशमान किरने छोडी कि देश के युवको की आत्मा को उन्होंने देशभक्ति के रंग में रंग दिया। ऐसे वीर नायक को फाँसी देने से न्यायादीश भी बचना चाहते थे और सराभा को उन्होंने अदालत में दिया ब्यान हल्का करने का मशविरा और वक्त भी दिया लेकिन देश के नवयुवको के लिए प्रेरणास्त्रोत बनने वाले इस वीर नायक के बयान हल्का करने की बजाय ओर सख्त किया गया तथा फाँसी की सजा पाकर खुशी से अपना वजन बढ़ाते हुए हंसते हंसते फाँसी पर झूल गया। 
गदर पार्टी आन्दोलन की यह विशेषता भी रेखाकिंत करने लायक है कि विद्रोह की असफलता से गदर पार्टी समाप्त नही हुयी बल्कि उसने अपना अंतर्राष्ट्रीय अस्तित्व बचाए रखा एवं भारत की कम्युनिस्ट पार्टी में शामिल होकर एवं विदेशो में अलग अस्तित्व बनाये रखकर गदर पार्टी बे भारत की स्वाधीनता संग्राम में महत्वपूर्ण योगदान दिया। आगे चलकर 1925-26 से पंजाब का युवक विद्रोह जिसके लोकप्रिय नायक भगत सिंह बने , भी गदर पार्टी एवं करतार सिंह सराभा से प्रेरित रहा।

अभी थोड़े समय  पहले अहिंसा और बिना खड्ग बिना ढाल वाले नारों और गानों का बोलबाला था ! हर कोई केवल शांति के कबूतर और अहिंसा के चरखे आदि में व्यस्त था लेकिन उस समय कभी इतिहास में तैयारी हो रही थी एक बड़े आन्दोलन की ! इसमें तीर भी थी, तलवार भी थी , खड्ग और ढाल से ही लड़ा गया था ये युद्ध ! जी हाँ, नकली कलमकारों के अक्षम्य अपराध से विस्मृत कर दिए गये वीर बलिदानी  जानिये जिनका आज बलिदान दिवस ! आज़ादी का महाबिगुल फूंक चुके इन वीरो को नही दिया गया था इतिहास की पुस्तकों में स्थान !  किसी भी व्यक्ति के लिए अपने मुल्क पर मर मिटने की राह चुनने के लिए सबसे पहली और महत्वपूर्ण चीज है- जज्बा या स्पिरिट। किसी व्यक्ति के क्रान्तिकारी बनने में बहुत सारी चीजें मायने रखती हैं, उसकी पृष्ठभूमि, अध्ययन, जीवन की समझ, तथा सामाजिक जीवन के आयाम व पहलू। लेकिन उपरोक्त सारी परिस्थितियों के अनुकूल होने पर भी अगर जज्बा  या स्पिरिट न हो तो कोई भी व्यक्ति क्रान्ति के मार्ग पर अग्रसर नहीं हो सकता। देश के लिए मर मिटने का जज्बा ही वो ताकत है जो विभिन्न पृष्ठभूमि के क्रान्तिकारियों को एक दूसरे के प्रति, साथ ही जनता के प्रति अगाध विश्वास और प्रेम से भरता है। आज की युवा पीढ़ी को भी अपने पूर्वजों और उनके क्रान्तिकारी जज्बे के विषय में कुछ जानकारी तो होनी ही चाहिए। आज युवाओं के बड़े हिस्से तक तो शिक्षा की पहुँच ही नहीं है। और जिन तक पहुँच है भी तो उनका काफी बड़ा हिस्सा कैरियर बनाने की चूहा दौड़ में ही लगा है। एक विद्वान ने कहा था कि चूहा-दौड़ की सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि व्यक्ति इस दौड़ में जीतकर भी चूहा ही बना रहता है।  अर्थात इंसान की तरह जीने की लगन और हिम्मत उसमें पैदा ही नहीं होती। और जीवन को जीने की बजाय अपना सारा जीवन, जीवन जीने की तैयारियों में लगा देता है। जाहिरा तौर पर इसका एक कारण हमारा औपनिवेशिक अतीत भी है जिसमें दो सौ सालों की गुलामी ने स्वतंत्र चिन्तन और तर्कणा की जगह हमारे मस्तिष्क को दिमागी गुलामी की बेड़ियों से जकड़ दिया है। आज भी हमारे युवा क्रान्तिकारियों के जन्मदिवस या शहादत दिवस पर ‘सोशल नेट्वर्किंग साइट्स’ पर फोटो तो शेयर कर देते हैं, लेकिन इस युवा आबादी में ज्यादातर को भारत की क्रान्तिकारी विरासत का या तो ज्ञान ही नहीं है या फिर अधकचरा ज्ञान है। ऐसे में सामाजिक बदलाव में लगे पत्र-पत्रिकाओं की जिम्मेदारी बनती है कि आज की युवा आबादी को गौरवशाली क्रान्तिकारी विरासत से परिचित करायें ताकि आने वाले समय के जनसंघर्षों में जनता अपने सच्चे जन-नायकों से प्ररेणा ले सके। आज हम एक ऐसी ही क्रान्तिकारी साथी का जीवन परिचय दे रहे हैं जिन्होंने जनता के लिए चल रहे संघर्ष में बेहद कम उम्र में बेमिसाल कुर्बानी दी।    


No comments:

Post a Comment

कमेन्ट पालिसी
नोट-अपने वास्तविक नाम व सम्बन्धित आर्टिकल से रिलेटेड कमेन्ट ही करे। नाइस,थैक्स,अवेसम जैसे शार्ट कमेन्ट का प्रयोग न करे। कमेन्ट सेक्शन में किसी भी प्रकार का लिंक डालने की कोशिश ना करे। कमेन्ट बॉक्स में किसी भी प्रकार के अभद्र भाषा का प्रयोग न करे । यदि आप कमेन्ट पालिसी के नियमो का प्रयोग नही करेगें तो ऐसे में आपका कमेन्ट स्पैम समझ कर डिलेट कर दिया जायेगा।

अस्वीकरण ( Disclaimer )
गोण्डा न्यूज लाइव एक हिंदी समुदाय है जहाँ आप ऑनलाइन समाचार, विभिन्न लेख, इतिहास, भूगोल, गणित, विज्ञान, हिन्दी साहित्य, सामान्य ज्ञान, ज्ञान विज्ञानं, अविष्कार , धर्म, फिटनेस, नारी ब्यूटी , नारी सेहत ,स्वास्थ्य ,शिक्षा ,18 + ,कृषि ,व्यापार, ब्लॉगटिप्स, सोशल टिप्स, योग, आयुर्वेद, अमर बलिदानी , फूड रेसिपी , वाद्ययंत्र-संगीत आदि के बारे में सम्पूर्ण जानकारी केवल पाठकगणो की जानकारी और ज्ञानवर्धन के लिए दिया गया है। ऐसे में हमारा आपसे विनम्र निवेदन है कि आप किसी भी सलाह,उपाय , उपयोग , को आजमाने से पहले एक बार अपने विषय विशेषज्ञ से अवश्य सम्पर्क करे। विभिन्न विषयो से सम्बन्धित ब्लाग/वेबसाइट का एक मात्र उद्देश आपको आपके स्वास्थ्य सहित विभिन्न विषयो के प्रति जागरूक करना और विभिन्न विषयो से जुडी जानकारी उपलब्ध कराना है। आपके विषय विशेषज्ञ को आपके सेहत व् ज्ञान के बारे में बेहतर जानकारी होती है और उनके सलाह का कोई अन्य विकल्प नही। गोण्डा लाइव न्यूज़ किसी भी त्रुटि, चूक या मिथ्या निरूपण के लिए जिम्मेदार नहीं है। आपके द्वारा इस साइट का उपयोग यह दर्शाता है कि आप उपयोग की शर्तों से बंधे होने के लिए सहमत हैं।

”go"