अनार भारत की व्यापारिक फसल है। इसका मूल परसिया है। यह कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, कैलशियम, फासफोरस, आयरन और विटामिन सी का उच्च स्त्रोत है। अनार को ताजे फल के तौर पर खाया जा सकता है। इसका जूस भी ठंडा और ताजा होता है। जूस के साथ साथ अनार के प्रत्येक भाग के औषधीय मूल्य हैं। इसकी जड़ें और गुद्दा डायरिया, पेचिश से बचाव और आंतों में कीटों को मारने के लिए प्रयोग किया जाता है। इसकी पंखुड़ियां रंग तैयार करने के लिए उपयोग की जाती हैं। महाराष्ट्र, अनार का मुख्य उत्पादक राज्य है। दूसरे राज्य जैसे राजस्थान, कर्नाटका, गुजरात, तामिलनाडू, आंध्रा प्रदेश, उत्तर प्रदेश, पंजाब और हरियाणा, अनार की खेती छोटे स्तर पर करते हैं।
अनार को रसदार फलों में गिना जाता है. अनार का उपयोग कई तरह से किया जाता हैं. जिसमें अनार का इस्तेमाल जूस बनाने और खाने में सबसे ज्यादा होता है. अनार के अंदर प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, फाइबर, विटामिन जैसे तत्व भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं, जो मनुष्य के लिए लाभदायक होते हैं. अनार के खाने से मनुष्य के खून में वृद्धि होती है.
स्वास्थ्य की दृष्टि से अनार का इस्तेमाल लाभदायक होता है. अनार के इस्तेमाल से कई तरह की बीमारियों से छुटकारा मिलता है. आयुर्वेदिक दवाइयों को बनाने में अनार के बीज और छिलके दोनों का इस्तेमाल किया जाता है. अनार के इस्तेमाल से बुढ़ापे में अक्सर होने वाली अल्जाइमर बिमारी की संभावना भी काफी कम हो जाती है.
अनार का पौधा झाड़ीनुमा होता है, जिस पर पत्तियां काँटों के साथ में आती है. अनार के पौधे को शुष्क वातावरण में उगाया जाता है. इसके पौधे को विकास करने के लिए सामान्य पी.एच. वाली जमीन की आवश्यकता होती है. अनार का पौधा अधिक सर्दी को सहन नही कर पाता हैं. और इसके पौधे को ज्यादा बारिश की भी जरूरत नही होती.
अगर आप भी अनार की खेती करने का मन बना रहे हैं तो आज हम आपको इसकी खेती के बारें में सम्पूर्ण जानकारी देने वाले हैं.
उपयुक्त मिट्टी
अनार की खेती के लिए रेतीली दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है. अच्छी देखरेख कर इसकी खेती अच्छी जल निकासी वाली हल्की भूमि में भी की जा सकती है. इसकी खेती के लिए जमीन का पी.एच. मान 6.5 से 7.5 तक होना चाहिए. भारत में अनार की खेती महाराष्ट्र, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु और गुजरात में बड़े पैमाने पर की जा रही है.
जलवायु और तापमान
अनार के पौधे को उपोष्ण जलवायु का पौधा माना जाता है. इसकी खेती ज्यादातर शुष्क प्रदेशों में ही की जाती है. लेकिन कुछ विशेषज्ञों के अनुसार ये अर्धशुष्क प्रदेशों में भी ये अच्छी पैदावार दे सकता है. अनार की खेती के लिए ज्यादा गर्मी उपयुक्त होती है. जबकि सर्दी और नमी का मौसम इसकी खेती के लिए उपयुक्त नही होता. नमी के मौसम में इसके पौधों को कई तरह के रोग लग जाते हैं.
अनार की खेती के लिए सामान्य से थोड़ा अधिक तापमान उपयुक्त होता है. लेकिन शुरुआत में जब इसके पौधों को खेत में लगाया जाता है, तब इसके पौधों को वृद्धि करने के लिए सामान्य तापमान की जरूरत होती है. अनार के फलों को पकने के लिए उच्च तापमान की जरूरत होती है. क्योंकि उच्च तापमान पर इसके फलों में मिठास बढ़ती है. और फलों का रंग भी आकर्षक बनता है.
उन्नत किस्में
अनार की कई तरह की किस्में पाई जाती है. जिन्हें फलों के आकार, रंग और उपज के आधार पर तैयार किया गया है.
गणेश
अनार की ये किस्म ज्यादा तापमान लम्बे समय तक सहन नही कर पाती. अधिक तापमान के कारण इसके फलों में गुणवत्ता की कमी हो जाती है. इसके छिलके का रंग गुलाबी पीला होता है. जबकि इसके बीजों का रंग गुलाबी होता है. इसके बीज चबाने में बिलकुल नर्म और रसीले होते हैं. इसके फल लगभग 160 दिन में तैयार हो जाते हैं. इसके एक पौधे से 10 से 15 किलो फल प्राप्त किये जा सकते हैं. इस किस्म को महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा उगाया जाता है.
फूले अरक्ता
अनार की इस किस्म को महात्मा फुले कृषि विद्यापीठ, राहुरी, महाराष्ट्र के द्वारा तैयार किया गया है. इसके प्रति पौधे से 25 से 30 किलो तक फल प्राप्त हो जाते हैं. इसके फलों का आकार बड़ा होता है. जिनका रंग लाल और आकर्षक होता है. इसके बीज मुलायम और लाल रंग के होते हैं. इस किस्म को अधिक पैदावार देने के लिए तैयार किया गया है.
मृदुला
अनार की ये एक संकर किस्म है. जिसको गणेश और गुल-ए-शाह के संकरण से महात्मा फुले कृषि विद्यापीठ, राहुरी, महाराष्ट्र ने तैयार किया है. इसके फलों का छिलका चिकना और गहरे लाल रंग का होता है. इसका फल सामान्य आकार का होता है. इसके बीज मुलायम रसदार और गहरे लाल रंग के होते हैं. इसके एक पौधे की उपज 15 से 20 किलो तक पाई जाती है.
ज्योति
अनार की ये भी एक संकर किस्म है. जिसको बेसिन और ढ़ोलका के संकरण से तैयार किया गया है. इसके फलों का आकर सामान्य से थोड़ा बड़ा होता है. जिनका रंग पीलापन लिए हुए लाल चमकीला होते है. और इसके बीजों का रंग गुलाबी होता है. इसके एक पौधे से 8 से 10 किलो फल आसानी से प्राप्त हो जाता हैं.
बेदान
अनार की इस किस्म को अधिक शुष्क जगहों के लिए तैयार किया गया है. इसके फलों का आकार सामान्य होता है और फलों का रंग लाल होता है. इसके बीज भी हल्के लाल रंग के पाए जाते हैं. जो अपने मिठास और अधिक रसदार होने के लिए जाने जाते हैं. इसके एक पौधे की पैदावार 10 किलो के आसपास पाई जाती है.
भगवा
अनार की इस किस्म को सिंदूरी और केसर के नाम से भी जाना जाता है. इसके फल और दाने दोनों का रंग लाल भगवा होता है. इसका छिलका मोटा और फल का आकार थोड़ा बड़ा होता है. इसके दाने चबाने में थोड़े कठोर होते हैं. इसके फल लगभग 150 दिन में पककर तैयार हो जाते हैं. इसके एक पेड़ से 30 से 40 किलो तक अनार आसानी से मिल जाते है.
ढोलका
अनार की इस किस्म को ज्यादातर गुजरात में उगाया जाता है. इस किस्म के पौधे सामान्य लम्बाई के होते हैं. इसके फलों का रंग गुलाबी हरा होता है. जो बहुत अधिक मात्रा में लगते है. इस किस्म में दानो का रंग गुलाबी सफ़ेद होता है. ये किस्म व्यापारिक रूप से बहुत उपयोगी होती है. इस किस्म की एक पौधे से 20 से 25 किलो तक फल प्राप्त हो जाते हैं.
खेत की जुताई
अनार की खेती के लिए शुरुआत में खेत की पलाऊ से गहरी जुताई कर दें. उसके बाद कुछ दिन के लिए खेतों को खुला छोड़ दें. उसके बाद कल्टीवेटर से दो तिरछी जुताई कर दें. और एक बार रोटावेटर चला दें. जिससे मिट्टी भुरभुरी और समतल हो जाती है.
जमीन को समतल करने के बाद उसमें 4 से 5 मीटर की दूरी पर पंक्तियों में गड्डे तैयार कर लें. प्रत्येक गड्डों के बीच तीन से चार मीटर की दूरी बनाते हुए इन्हें मई के महीने में ही तैयार कर लें. गड्डों को गोल या वर्गाकार रूप में दो फिट चौड़ाई और दो फिट गहराई देकर तैयार करें.
गड्डे तैयार होने के बाद उनमें जैविक और रासायनिक खाद की उचित मात्रा को मिट्टी में मिलाकर भर दें. उसके बाद गड्डों की सिंचाई कर दें. जिससे मिट्टी अच्छे से गड्डों में बैठकर कठोर हो जाती है. गड्डों की सिंचाई करने के बाद उसे ढक दें. जिससे मिट्टी जल्द डीकम्पोज हो जाती है. और गड्डों में पनपने वाली खरपतवार भी नष्ट हो जाती है.
पौध तैयार करना
अनार के पौधों को बीज और नर्सरी में तैयार की हुई पौध के रूप में खेतों में लगाते हैं. लेकिन इसे कलम के माध्यम से लगाना अच्छा होता है. क्योंकि बीज से पौधे को उगाने पर पौधा फल देने में ज्यादा टाइम लेता है. जबकि कलम से तैयार पौधा तीन साल बाद फल देना शुरू कर देता है. नर्सरी में अनार की कलमें कई विधि से तैयार की जाती है. जिनमें गूटी बांधना, कास्ठ कलम विधि , ग्राफ्टिंग और कलम विधि प्रमुख हैं. लेकिन इनमें से गूटी बांधना और ग्राफ्टिंग सबसे उपयुक्त विधि हैं.
गूटी बांधना
इस विधि से पौधे की कलम ज्यादातर बारिश के मौसम में तैयार की जाती है. क्योंकि बारिश के मौसम में तैयार की गई पौधा खराब बहुत कम होती हैं. इस विधि से कलम पौधों की शाखाओं पर ही तैयार की जाती है. इसके लिए पौधे की पतली शाखाओं पर गोल छल्ले का आकार बना देते हैं. और शाखाओं की बाहरी परत को हटा देते हैं. जिससे शाखा का कठोर भाग दिखाई देता हैं. इस भाग पर गोबर मिली मिट्टी लगाकर उसे पॉलीथीन से ढक देते हैं. जब कलम में जड़ें बनने लगती हैं तब इसे शाखाओं से हटाकर खेतों के लगा देते हैं.
ग्राफ्टिंग विधि
इस विधि में मूल पौधे की पकी हुई पतली शाखा को किसी जंगली पौधे के साथ काटकर लगा देते हैं. और कलम लगाने वाले भाग को पॉलीथीन से बांध देते हैं. इस विधि से पौधा जल्दी तैयार हो जाता है.
कब और किस तरीके से पौध को खेतों में लगाएं
अनार की पौध खेतों में बारिश के मौसम में लगानी चाहिए. क्योंकि बारिश के वक्त पौध लगाने पर पौध खराब नही होती और पौधे को शुरुआत में अच्छा पोषण और अच्छी जलवायु मिलती है. जिससे पौधा अच्छे से विकास करता है. अगर सिंचाई की उचित व्यवस्था हो तो इसकी पौध बारिश के मौसम से पहले भी लगा सकते हैं. लेकिन बारिश के मौसम से पहले लगाने पर पौधों को अच्छी देखभाल की जरूरत होती है.
अनार की पौध को तैयार किये गए गड्डों में लगाने से पहले गड्डों को क्लोरपाइरीफोस पाउडर से उपचारित कर लेना चाहिए. पौधों को गड्डों के मध्य भाग में एक और छोटा गड्डा तैयार कर उसमें लगाना चाहिए. पौधे को लगाने के बाद उसे चारों तरफ से अच्छे से मिट्टी से ढक देना चाहिए.
पौधे की सिंचाई
पौधे को खेत में लगाने के तुरंत बाद उनकी सिंचाई कर देनी चाहिए. लेकिन अगर पौधे को बारिश के मौसम से पहले खेत में लगा रहे हो तो पौधे की शुरुआती सिंचाई के बाद 4 से 5 दिन में सिंचाई कर देनी चाहिए. बारिश के मौसम में पौधों को सिंचाई की जरूरत नही होती. लेकिन बारिश के मौसम के बाद पौधों की 10 से 15 दिन के अंतराल में सिंचाई करनी चाहिए. और जब पौधे पर फूल खिलने का वक्त आयें तब पौधे की एक से डेढ़ महीने पहले सिंचाई रोक देनी चाहिए. क्योंकि फूल लगने के दौरान सिंचाई करने से पौधे के फूल खराब हो जाते हैं. और जब पौधे पर फल बनने लग जाए तब पौधे की हलकी सिंचाई शुरू करनी चाहिए.
अनार के पौधों की ड्रिप विधि से सिंचाई करना सबसे अच्छा होता है. क्योंकि ड्रिप विधि से सिंचाई करने से पौधों को उचित मात्रा में पानी मिलता है. जिससे पौधे अच्छे से विकास भी करते हैं. जबकि सामान्य सिंचाई से पानी अधिक मात्रा में और कई दिनों में मिलता है.
उर्वरक की मात्रा
अनार की खेती बिना किसी रासायनिक खाद के इस्तेमाल के भी की जा सकती है. इसके लिए पौधों को उचित टाइम पर लगातार जैविक खाद के माध्यम से पोषक तत्व देते रहें. लेकिन वर्तमान में जैविक खाद के साथ साथ रासायनिक खादों का इस्तेमाल तो जैसे अनिवार्य हो चुका हैं. अधिक पैदावार लेने के लिए किसान भाई रासायनिक खादों का इस्तेमाल करते हैं.
अनार की खेती के लिए गड्डों की भराई के वक्त प्रत्येक गड्डों में 10 से 15 किलो गोबर की खाद को मिट्टी में मिलाकर गड्डों में डाले. गोबर की खाद की जगह कम्पोस्ट खाद का भी इस्तेमाल कर सकते हैं. जैविक खाद के अलावा अगर रासायनिक खाद डालनी हो तो एन.पी.के. की 250 ग्राम मात्रा को गोबर की खाद के साथ मिलाकर उसे गड्डों में भर दें. ये प्रक्रिया पौधे के गड्डों में लगाने से एक महीने पहले की जाती है.
पौधों के रोपण के बाद खाद की ये मात्रा दो से तीन साल तक पौधों को देनी चाहिए, इसमें गोबर की खाद की मात्रा हर साल बढ़ा देनी चाहिए. और जब पौधे पर फूल आने का वक्त आयें तब रासायनिक खाद की मात्रा में भी हल्की वृद्धि कर देनी चाहिए.
पौधे की देखरेख
अनार के पौधे को खेत में लगाने के बाद उसमें 4 से 5 फिट की लम्बाई तक तीन से चार तने रखते हैं. और इन सभी तनो पर तीन से चार फिट तक कोई नई शाखा ना बनने दें. इससे पौधे का आकार अच्छा बनता है. पौधों में फल आने से पहले उसकी सूखी हुई शाखाओं की कटाई कर उन्हें निकाल दें. इससे पौधा अच्छे से विकास करता है. और पौधे पर नई शाखाएँ जन्म लेती हैं. जिससे पैदावार में भी इजाफा देखने को मिलता है.
अनार के पौधे पर साल में दो से तीन बार फूल बनते हैं. लेकिन अनार की फसल साल में एक बार ही ली जाती है. इसलिए अनावश्यक टाइम पर आने वाले फूलों को हटा देना चाहिए. क्योंकि इससे एक बार में पौधे से अच्छी फसल प्राप्त की जा सकती हैं.
खरपतवार नियंत्रण
अनार की खेती में खरपतवार नियंत्रण रासायनिक और नीलाई गुड़ाई दोनों तरीके से किया जा सकता हैं. लेकिन इसकी खेती के लिए नीलाई गुड़ाई द्वारा खरपतवार नियंत्रण बेहतर होता है. खेत में पौध लगाने के एक महीने बाद उनकी हल्की नीलाई गुड़ाई कर देनी चाहिए. अनार के पौधे की साल में तीन से चार गुड़ाई करने पर फल अधिक मात्रा में लगते हैं. और फलों का आकार भी अच्छा बनता है.
अतिरिक्त कमाई
अनार का पौधा खेत में लगाने के तीन से चार साल बाद फल देना शुरू करता है. इस दौरान पौधों के बीच खाली जगह में मसाला, दलहन, कम पानी की मात्रा में उगाई जाने वाली सब्जियों को उगा सकते हैं. जिससे किसान भाइयों को आर्थिक परेशानियों का सामना भी नही करना पड़ता हैं. और उनकी अतिरिक्त कमाई भी हो जाती है.
पौधों पर लगने वाले रोग और उनकी रोकथाम
अनार के पौधे पर कई तरह के रोग लगते हैं. जिनकी वजह से पौधे के विकास और उसकी पैदावार पर फर्क देखने को मिलता है. अगर सही वक्त पर पौधे की अच्छे से देखभाल ना की जाए तो पौधा जल्द ही नष्ट हो जाता है.
हानिकारक कीट और रोकथाम
थ्रिप्स :
यदि थ्रिप्स का हमला दिखे तो फिप्रोनिल 80 प्रतिशत डब्लयु पी 20 मि.ली. को 15 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
फल की मक्खी :
यह फल के छिल्के पर अंडे देती है। उसके बाद वे फल के गुद्दे को खाती हैं। प्रभावित फल गल जाता और गिर जाता है। खेत में सफाई रखें। फूल निकलने और फल के विकसित होने के समय कार्बरिल 50 डब्लयु पी 2-4 ग्राम या क्विनलफोस 25 ई सी 2 मि.ली को प्रति लीटर पानी में डालकर स्प्रे करें।
मिली बग :
ये कीट वृक्षों पर रेंगने लगते हैं और फूलों को अपना भोजन बनाते हैं। यह शहद की बूंदों जैसा पदार्थ भी छोड़ते हैं जो बाद में काले रंग की फंगस में बदल जाता है। एक निवारक उपाय के रूप में 25 सैं.मी चौड़ी पॉलीथीन पट्टी वृक्ष के तने के चारों तरफ बांधे। यह पौधों को कीटों से बचाकर रखते हैं ताकि वे अंडे ना दे सकें। बाग को साफ रखें। यदि इसका हमला दिखे तो थाइमैथोक्सम 25 डब्लयू जी 0.25 ग्राम या इमीडाक्लोप्रिड 17 एस एल 0.35 मि.ली. या डाइमैथोएट 30 ई सी 2 मि.ली. को प्रति लीटर पानी में डालकर स्प्रे करें।
चेपा :
यदि चेपे का हमला दिखे तो थाइमैथोक्सम 25 डब्लयु जी 0.20 मि.ली या इमीडाक्लोप्रिड 0.35 मि.ली. को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
टहनी का छेदक कीट :
यदि इसका हमला दिखे तो क्लोरपाइरीफॉस 20 ई सी 2 मि.ली. को प्रति लीटर पानी में डालकर या साइपरमैथरिन 60 मि.ली को 150 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
बीमारियां और रोकथाम
फल के धब्बे :
यदि इसका हमला दिखे तो मैनकोजेब या कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 2.5 ग्राम को प्रति लीटर पानी में डालकर स्प्रे करें।
फल गलन :
फल गलन को रोकने के लिए स्ट्रैप्टोसाइकलिन 50 ग्राम + कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 400 ग्राम को 150 लीटर पानी में डालकर स्प्रे करें। पहली स्प्रे के 15 दिनों के बाद दूसरी स्प्रे करें।
सूखा :
यदि इसका हमला दिखे तो कार्बेनडाज़िम 5 ग्राम को 5 लीटर पानी में मिलाकर प्रभावित पौधे और पौधे के आस-पास बीमार पौधों पर छिड़कें।
फलों की तुड़ाई
अनार के फल को पूरी तरह से तैयार होने के बाद ही तोड़ना चाहिए. अनार के फल फूल आने के लगभग 120 से 130 दिन बाद पककर तैयार हो जाते हैं. इसके फल जब अच्छे से पीलापन लिए हुए लाल दिखाई दे और छिलका चमकीला दिखाई देने लगे तब इसे तोड़ लेना चाहिए. इसके फलों को कुछ दिनों तक भंडारित भी किया जा सकता है. जिससे इन्हें अच्छी कीमत आने पर बाज़ार में बेचा जा सकता है.
पैदावार और लाभ
अनार के पौधे एक बार लगाने के बाद लगभग 20 से 25 साल तक फल देते हैं. अगर पौधे की अच्छे से देखभाल की जाये तो पौधा तीन से चार साल बाद फल देना शुरू कर देते हैं. इसके एक पौधे से औसतन 15 से 20 किलो तक फल प्राप्त किये जा सकते हैं. और एक हेक्टेयर में लगभग 600 से ज्यादा पौधे लगाए जा सकते हैं. जिससे एक हेक्टेयर से हर साल 90 से 120 क्विंटल तक पैदावार की जा सकती है. जिससे किसान भाइयों की एक बार में 5 से 6 लाख तक पैदावार आसानी से हो जाती है.
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