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रजनीगंधा के फूलों की खेती कैसे करे

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रजनीगंधा को "निशीगंधा" और "स्वोर्ड लिल्ली" के नाम से भी जाना जाता है| यह एक सदाबाहार जड़ी बूटी वाला पौधा है जिस में फूल की डंठल 75-100 सैं.मी. लम्बी होती हैजो 10-20 चिमनी के जैसे आकार के सफेद रंग के फूल उत्पन करता है| कट फ्लावर दिखने में आकर्षित, ज्यादा समय के लिए स्टोर करके और मीठी सुगंध वाले होते हैं इसलिए इनकाप्रयोग गुलदस्ते बनाने के लिए किया जाता है| इसके खुले फूलों का प्रयोग मालाऔर वेणी बनाने के लिए किया जाता है| यह बैड और गमलेमें उगाने के लिए उचित है और तेल निकालने के लिए प्रयोग किया जाता है|

रजनीगंधा अपने सुगंधित और आकर्षक फूलों की वजह से ज्यादा पसंद किया जाता है. इसके फूल सबसे ज्यादा टाइम तक ताज़ा दिखाई देते हैं. इसके फूलों का रंग सफ़ेद होता है. रजनीगंधा के फूलों से गजरा बनाया जाता है. जिसका इस्तेमाल औरतें अपने श्रृंगार के रूप में करती हैं. रजनीगंधा के फूलों का इस्तेमाल आयुर्वेदिक दवाइयों में भी किया जाता है.

रजनीगंधा के फूलों में एक खुशबूदार तेल पाया जाता है. जिस कारण बाज़ार में इसके फूलों की मांग सबसे ज्यादा होती है. रजनीगंधा के फूलों से निकलने वाले तेल का इस्तेमाल इत्र और परफ्यूम बनाने में किया जाता है. इसके तेल से बनने वाले इत्र और परफ्यूम बाज़ार में सबसे महंगे इत्र और परफ्यूमों की श्रेणी में शामिल हैं.

रजनीगंधा की खेती के लिए किसी ख़ास तरह की मिट्टी की जरूरत नही होती. इसकी खेती हल्की क्षारीय और अम्लीय मिट्टी में भी की जा सकती है. इसकी खेती के लिए गर्म और आद्र जलवायु सबसे अच्छी होती है. भारत में इसकी खेती पश्चिम बंगाल, कर्नाटक, महाराष्ट्र, तमिलनाडु और उत्तर प्रदेश में ज्यादा की जा रही है.

अगर आप इसकी खेती करना चाह रहे हैं तो आज हम आपको इसकी खेती के बारें में सम्पूर्ण जानकारी देने वाले हैं.

उपयुक्त मिट्टी
रजनीगंधा की खेती के लिए अच्छी जल निकासी वाली दोमट और बलुई दोमट मिट्टी की जरूरत होती है. दोमट और बलुई दोमट मिट्टी के अलावा इसकी खेती और भी कई तरह की मिट्टी में की जा सकती है. इसके लिए जमीन की उर्वरक क्षमता अच्छी होनी चाहिए. इसकी खेती हल्की क्षारीय और अम्लीय मिट्टी में भी सकती है. जिसके लिए मिट्टी का पी.एच. मान 6.5 से 7.5 तक होना चाहिए.

जलवायु और तापमान
रजनीगंधा की खेती समशीतोष्ण जलवायु वाली जगहों पर सबसे ज्यादा की जाती है. गर्म और आद्र मौसम में रजनीगंधा के फूल ज्यादा और अच्छी तरह से खिलते हैं. जिससे इसकी पैदावार अच्छी होती है. रजनीगंधा की खेती के लिए जमीन खुली जगह पर होनी जरूरी हैं. क्योंकि छायादार जगह पर इसकी खेती नही की जा सकती. छायादार जगहों पर इसकी पैदावार कम होती हैं. इसके फूलों को विकसित होने के लिए सूर्य के प्रकाश की ज्यादा जरूरत होती है.

रजनीगंधा की खेती के लिए 20 से 35 डिग्री तापमान उपयुक्त होता है. इस तापमान पर इसके पौधे अच्छी पैदावार देते हैं. जबकि ज्यादा गर्मी और ठंड इसकी खेती के लिए उपयुक्त नही होती.

रजनीगंधा की उन्नत किस्म

रजनीगंधा की कई किस्में हैं, जिन्हें भारत में बड़े पैमाने पर उगाया जाता है. इनमें से कई तो ऐसी किस्में हैं जिन्हें भारत में संकरण के माध्यम से तैयार किया गया है. रजनीगंधा की सभी किस्मों को एकहरी और दोहरी किस्मों की श्रेणी में रखा गया है.

एकहरी श्रेणी की किस्में
इस श्रेणी की किस्मों में पंखुडियां एक ही कतार में आती हैं.

रजत रेखा
रजनीगंधा की ये एक एकहरी श्रेणी की क़िस्म है. जिसको एन बी आर आई और एन बी आर ने मिलकर तैयार किया है. इसके फूलों पर सिल्वर और सफ़ेद रंग की धारियां पाई जाती हैं. और इसकी पत्तियां सुरमई रंग की होती हैं.

शृंगार
रजनीगंधा की एकहरी श्रेणी की ये एक संकर क़िस्म है. जिसको एन बी आर आई बेंगलूर द्वारा मैक्सिकन सिंगल और डबल के संकरण से तैयार किया गया है. इसके फूल का आकार बड़ा होता है. जिसकी कलिका पर हल्का गुलाबी रंग पाया जाता है. इस किस्म के फूलों की पैदावार 20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक आसानी से हो जाती है.

प्रज्‍जवल
इस किस्म को भी एन बी आर आई बेंगलूर द्वारा मैक्सिकन सिंगल के संकरण से तैयार किया गया है. इस किस्म के फूल शृंगार किस्म के फूलों से बड़े और वजनदार होते हैं. इसके फूलों की प्रति हेक्टेयर पैदावार शृंगार किस्म से 22 प्रतिशत ज्यादा पाई जाती है.

दोहरी श्रेणी की किस्में
इस श्रेणी की किस्मों में फूलों को पंखुडियां कई कतारों में आती है.

स्‍वर्ण रेखा
दोहरी श्रेणी की इस किस्म का ज्यादातर उपयोग सजावट के लिए किया जाता है. इसके किस्म को एन बी आर आई लखनऊ द्वारा गामा किरणों के माध्यम से तैयार किया गया है. इस क़िस्म के पौधे की पत्तियों के किनारों पर पीली कलर की रेखा पाई जाती है.

सुवासिनी
इस किस्म का उत्पादन अन्य कई दोहरी श्रेणी की किस्मों से ज्यादा पाया जाता है. इस किस्म के फूल आकर में बड़े होते हैं. इस किस्म को एन बी आर आई बेंगलूर द्वारा मैक्सिकन सिंगल और डबल के संकरण से ही तैयार किया गया है.

वैभव
रजनीगंधा की ये किस्म सुवासिनी किस्म से भी ज्यादा पैदावार देने के लिए जानी जाती है. इसके फूल सफ़ेद होते हैं. जबकि फूल की कलिका हरे रंग की होती हैं. इसके फूलों का उपयोग कट फ्लावर के रूप में किया जाता है.

खेत की जुताई

रजनीगंधा की फसल के लिए खेत की अच्छे से जुताई करना जरूरी होता है. खेत की पहली जुताई पलाऊ लगाकर करनी चाहिए. उसके कुछ दिन बाद कल्टीवेटर चलाकर अच्छे से खेत की जुताई करें. जुताई करने के बाद खेत में गोबर की खाद डालकर उसे मिट्टी में मिला दें. उसके बाद खेत में पानी देकर खेत की अच्छे से जुताई कर उसकी मिट्टी को भुरभुरा बना लें. और साथ में खेत को समतल बना दें.

बीज लगाने का टाइम और तरीका

रजनीगंधा को मैदानी भागों में फरवरी और मार्च के महीने में लगाया जाता है. जबकि पर्वतीय भागों में इसे मई और जून में लगाना चाहिए. मार्च और जून में लगाने पर पौधे पर फूल ज्यादा मात्रा में खिलते हैं. क्योंकि इसके फूलों को पर्याप्त धूप की जरूरत होती है.

रजनीगंधा के फूलों को दो तरीके से उगाया जाता है. अगर रजनीगंधा की पैदावार पौधों से तेल निकालने के लिए की जाए तो उन्हें 20 सेंटीमीटर की दूरी वाली कतारों में 15 सेंटीमीटर की दूरी पर लगाना सही होता है. लेकिन पैदावार पौधों से फूल लेने के लिए की जाए तो पौधों को 20 सेंटीमीटर की दूरी वाली कतारों में 20 सेंटीमीटर की दूरी पर लगाना चाहिए. इसके पौधों को खेत में समतल भूमि पर ही लगाते हैं. प्रति एकड़ इसके एक लाख पौधे लगाये जा सकते हैं.

पौधे की सिंचाई

रजनीगंधा के बीज को खेत में लगाने के तुरंत बाद पहली सिंचाई कर देनी चाहिए. उसके बाद बीज के अंकुरित होने तक खेत में नमी बनाकर रखना जरूरी होता है. जिसके लिए आवश्यकता के अनुसार पानी देना चाहिए. अगर खेत में अंकुरित बीज लगा रहे हों तो खेत में पहले से नमी का होना जरूरी है. इस दौरान तुरंत सिंचाई की जरूरत नही होती.

पौधे के अंकुरित होने के बाद इसको ज्यादा सिंचाई की जरूरत होती है. अंकुरित होने के बाद फूल तैयार होने तक इसको 7 से 10 सिंचाई की जरूरत होती है. लेकिन बारिश के टाइम इसको सिंचाई की जरूरत नही होती है.

उर्वरक की मात्रा

रजनीगंधा की पैदावार के लिए खेत की उर्वरक क्षमता अच्छी होनी चाहिए. इसके लिए खेत की पहली जुताई के बाद 10 से 15 गाड़ी पुराने गोबर की खाद और कम्पोस्ट खाद खेत में डालनी चाहिए. इसके अलावा एन.पी.के. के 1:2:1 के अनुपात की मात्रा प्रति हेक्टेयर आखिरी जुताई के साथ छिड़ककर खेत में मिला दें.

उसके बाद जब बीज पूरी तरह से अंकुरित हो जाए तब खेत में 50 किलो प्रति हेक्टेयर के हिसाब से यूरिया का छिडकाव करें. इसके 20 से 30 दिन बाद पौधों पर जब फुल खिलने लगे तब यूरिया, ऑर्थोफॉस्फोरिक अम्ल और पोटेशियम साइट्रेट को उचित मात्रा में मिलाकर उसका पौधों पर छिडकाव करें. इससे पौधे पर फूल ज्यादा मात्रा में आते है.

नीलाई गुड़ाई
रजनीगंधा की खेती में खरपतवार ज्यादा नुकसानदायक होती है. क्योंकि इससे पौधे में कई तरह के रोग लग जाते हैं. इस कारण पौधों की नीलाई गुड़ाई कर खरपतवार निकाल देनी चाहिए. और पौधों पर मिट्टी चढ़ा देनी चाहिए. रजनीगंधा की खेती को 2 से 3 गुड़ाई की जरूरत होती है. पहली गुड़ाई बीज लगाने के एक महीने बाद ही कर देनी चाहिए. उसके बाद 15 दिन के अंतराल में नीलाई गुड़ाई करनी चाहिए.

इसकी खरपतवार को रासायनिक तरीके से खत्म करने लिए पौधे को खेत में लगाने से पहले एट्राजीन या डायुरान का छिडकाव खेत में करना चाहिए.

पौधे में लगने वाले रोग

रजनीगंधा के पौधे में कई तरह के रोग पाए जाते हैं. लेकिन इसके पौधे को कीट और फफूंद की वजह से ज्यादा रोग लगते हैं.

तना सड़न
पौधों पर ये रोग सक्लेरोशिअम रोल फसाई फफूंदी की वजह से होता है. इस रोग के लगने से पत्तियों की ऊपरी सतह पर हरे रंग के धब्बे दिखाई देने लगते हैं. जिसके कुछ दिन बाद पत्तियां सड़कर गिर जाती हैं. इस रोग की वजह से पैदावार पर सबसे ज्यादा फर्क देखने को मिलता है. इसकी रोकथाम के लिए मैलाथियान या रोगर का पौधे की जड़ों के पास छिडकाव करना चाहिए.

ग्रास हॉपर
पौधों पर ये रोग किट के माध्यम से फैलता है. यह कीट पौधे की पत्तियों और फूलों को खाकर पौधे को नुक्सान पहुँचाता है. इसकी रोकथाम के लिए पौधे पर मैलाथियान का छिडकाव करना चाहिए.

माहू और थ्रिप्स
पौधों पर ये रोग भी कीटों की वजह से होता है. इसके रोग में पौधे पर लगने वाली कीट आकर में बहुत छोटे होते हैं. जिनका रंग हरा या पीला पाया जाता है. ये कीट पौधे की पत्तियों, फूलों और तने का रस चूसकर उन्हें नष्ट कर देते हैं. इस तरह के रोग की रोकथाम के लिए पौधे पर मोनोक्रोटोफॉस की उचित मात्रा का छिडकाव करना चाहिए.

कली सड़न
पौधों पर ये रोग इरबीनी स्पेसिडा फफूंद की वजह से लगता है. इस रोग के लगने पर पौधे की कलियों का रंग भूरा दिखाई देने लगता है. जिसके बाद इसकी कलियाँ सुखकर नष्ट हो जाती हैं. इस रोग के लगने पर स्ट्रेप्टोसाइक्लिन 500 पी.पी.एम का छिडकाव पौधों पर करना चाहिए.

निमेटोड
पौधों में ये रोग उनकी जड़ों में ज्यादा लगता है. इस रोग का कीट पौधों की जड़ों और कंद को खाकर उन्हें नष्ट कर देता है. जिससे पौधा मुरझाकर सुख जाता है. पौधे पर जब इस रोग के लक्षण दिखाई दें तो कार्बोफ्यूरान या थाइमेट का छिडकाव करना चाहिए.

तंबाकू मोज़ेक वायरस
पौधे पर लगने वाला ये एक वायरस जनित रोग है. जिसको ट्यूब रोज माइल्ड मोजेक वायरस के नाम से भी जाना जाता है. इस रोग के लगने पर पौधे की पत्तियों में छोटे छोटे चित्ते दिखाई देने लगते हैं. और कुछ दिन बाद पूरा पौधा नष्ट हो जाता है. इसकी रोकथाम के लिए प्रमाणित बीज ही लेना चाहिए. इसके अलावा जब इसके लक्षण पौधे पर दिखाई दे तब फिप्रोनिल का छिडकाव पौधों पर करना चाहिए.

फूलों की तुड़ाई
रजनीगंधा में पौधे के रोपण के लगभग 4 महीने बाद ही फूल आने लगते हैं. इन फूलों को तभी तोडना चाहिए जब फूल पूरी तरह खिल जाए. लेकिन अगर फूल कट फ्लावर के लिए तोडने हो तो नीचे के दो या तीन फूल खिलने के बाद डंठल को पौधे से काटकर अलग कर लेना चाहिए. इसके फूलों को सूती कपड़े में बाँधकर उन्हें छायादार जगह पर रखना चाहिए.

इसके फूल के डंडे को 5 सेंटीमीटर ऊपर से काटना चाहिए. इससे पौधे के बल्व को नुक्सान नही पहुँचता. जिन्हें उखाड़कर बाद में फिर से लगाया जा सकता है. इसके बलव को उखाड़ने के बाद कार्बेन्डाजिम और पानी के मिश्रण में आधे घंटे तक डुबोकर रखने पर बल्व संरक्षित रहता है.

रजनीगंधा के फूलों को 17 दिन तक संरक्षित किया जा सकता है. जिस कारण इसे लम्बी दूरी पर भेजना आसान रहता है.

उत्पादन और लाभ
रजनीगंधा के एक हेक्टेयर से लगभग 80 क्विंटल तक फूल प्राप्त किये जा सकते हैं. जिनका बाज़ार भाव 20 रूपये प्रति किलो तक रहता है. जिससे किसान भाई एक बार में 1.5 से 2 लाख तक की कमाई आसानी से कर सकते हैं. जबकि इसके बल्व को कम खर्चे पर तीन बार आसानी से उगाया जा सकता है. जिससे पैदावार पर भी फर्क नही पड़ता. और दूसरे साल की कमाई में इजाफा भी देखने को मिलता है.

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