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केला की उन्नत बागवानी कैसे करें ?

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केला, आम के बाद भारत की महत्तवपूर्ण फल की फसल है। इसके स्वाद, पोषक तत्व और चिकित्सक गुणों के कारण यह लगभग पूरे वर्ष उपलब्ध रहता है यह सभी वर्गों के लोगों का पसंदीदा फल है। यह कार्बोहाइड्रेट और विटामिन, विशेष कर विटामिन बी का उच्च स्त्रोत है। केला दिल की बीमारियों के खतरे को कम करने में सहायक है। इसके अलावा गठिया, उच्च रक्तचाप, अल्सर, गैस्ट्रोएन्टराइटिस और किडनी के विकारों से संबंधित रोगियों के लिए इसकी सिफारिश की जाती है। केले से विभिन्न तरह के उत्पाद जैसे चिप्स, केला प्यूरी, जैम, जैली, जूस आदि बनाये जाते हैं। केले के फाइबर से बैग, बर्तन और वॉली हैंगर जैसे उत्पाद बनाये जाते हैं। रस्सी और अच्छी क्वालिटी के पेपर जैसे उत्पाद केले के व्यर्थ पदार्थ से तैयार किए जा सकते हैं। भारत में केला, उत्पादन में पहले स्थान पर और फलों के क्षेत्र में तीसरे नंबर पर है। भारत के अंदर महाराष्ट्र राज्य में केले की सर्वोच्च उत्पादकता है। केले का उत्पादन करने वाले अन्य राज्य जैसे कर्नाटक, गुजरात, आंध्र प्रदेश और आसाम है।

केला सबका लोकप्रिय फल है. केला के अंदर 70 प्रतिशत से भी ज्यादा पानी की मात्रा पाई जाती है. इसका फल पूरे साल हर मौसम में पाए जाने वाला फल है. दक्षिणी भारत में इसकी खेती बड़े पैमाने पर की जाती है. लेकिन वर्तमान में भारत के लगभग हर हिस्से में इसकी खेती की जा रही है. केले के अंदर कैल्शियम, फास्फोरस और शर्करा अधिक मात्रा में पाए जाते है. जो मनुष्य के लिए उपयोगी होते हैं. इसका इस्तेमाल फल के अलावा सब्जी, आटा, चिप्स बनाने में भी किया जाता है. केले का पौधा 2 मीटर से भी बड़ा होता है. इसके पत्ते काफी चौड़ाई वाले होते हैं. जिस कारण लोग इन पर भोजन भी करते हैं. इसके पौधों का इस्तेमाल सजावट के रूप में भी होता है.

केले की खेती के लिए किसी ख़ास जलवायु की जरूरत नही होती. इसकी खेती किसी भी तरह के मौसम में की जा सकती है. इसकी खेती के लिए सामान्य तापमान की जरूरत होती है. और उत्तम जल निकासी वाली जीवांश युक्त दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है.

अगर आप भी केले की खेती करना चाह रहे हैं तो आज हम आपको इसकी खेती के बारें में सम्पूर्ण जानकारी देने वाले हैं.

उपयुक्त मिट्टी
केले की खेती के लिए उत्तम जल निकासी वाली जीवांश युक्त दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है. इसकी खेती के लिए जलभराव वाली काली मिट्टी उपयुक्त नही होती. क्योंकि जलभराव वाली मिट्टी में इसके पौधों पर जल्द रोग लग जाते हैं. जिससे पौधा जल्द खराब हो जाता है. इसकी खेती के लिए मिट्टी का पी.एच. मान 6 से 7.5 तक होना चाहिए.

जलवायु और तापमान
केले की खेती के लिए किसी खास जलवायु की जरूरत नही होती, लेकिन इसको उष्णकटिबंधीय जलवायु का पौधा माना जाता है. इसके पौधे ज्यादा बारिश में अच्छे से विकास करते हैं. लेकिन अगर खेत में पानी भराव होता ही ज्यादा बारिश इसके लिए खराब होती है.

केले की खेती के लिए सामान्य तापमान की जरूरत होती है. लेकिन इसका पौधा न्यूनतम 14 और अधिकतम 40 डिग्री तापमान पर भी अच्छे से वृद्धि कर लेता है. केले के पौधे की पत्तियां अधिक धूप सहन नही कर पाती इस कारण वो किनारों पर से जलना शुरू हो जाती हैं.

केले की किस्में

केला की कई तरह की किस्में हैं. जिन्हें अलग अलग उद्देश्य के लिए तैयार किया गया है.

ड्वार्फ कैवेंडिश
केले की इस किस्म का पौधा बोना पाया जाता है. इस किस्म के पौधे का फल पकने के बाद जल्दी खराब हो जाता है. इस किस्म पर उकठा रोग नही लगता. इसके एक घेरे का वजन 22 से 25 किलो तक पाया जाता है. जिसमें लगभग 160 से 170 फलियां आती हैं.

रोवेस्टा
केले की इस किस्म को पश्चिमी द्वीप समूह से लाई गई किस्म माना जाता है. इसका पौधा 3 से 4 मीटर लम्बा पाया जाता है. इसके एक घेरे का वजन 25 से 30 किलो तक पाया जाता है. जिसके अंदर 200 के आसपास फलियां पाई जाती है. इसके फल पकने के बाद चमकीले पीले रंग के दिखाई देते हैं. इस किस्म के फलों का भंडारण ज्यादा दिनों तक नही किया जा सकता.

बत्तीसा
केला की ये किस्म सब्जी के लिए ज्यादा उपयोगी है. इसके घेरे की लम्बाई ज्यादा पाई जाती है. इसके घेरे में लगने वाली फलियों की लम्बाई और आकार भी बड़ा होता है. एक घेरे में 250 से 300 तक फलियाँ पाई जाती है.

कुठिया
केले की इस किस्म को सब्जी और फल दोनों रूप में उपयोगी माना गया है. इसके कच्चे फल सब्जी के लिए उपयोगी माने जाते हैं. इसके फलों का आकर सामान्य होता है. जिनका अपना अलग ही स्वाद होता है. इस किस्म के पौधे को पानी की भी ज्यादा जरूरत नही होती. इसके एक घेरे का वजन 25 किलो के आसपास पाया जाता है.

रस्थली
इस किस्म के पौधे की ऊंचाई 3 मीटर के आसपास पाई जाती है. इसके पौधे रोपण के एक साल बाद फल देना शुरू कर देते हैं. इसके फलों का आकार चतुष्कोणीय होता है, जो आकार में मोटे होते हैं. इसके घेरे का वजन 20 किलो तक पाया जाता है. इस किस्म के फलों का भण्डारण भी ज्यादा टाइम तक नही किया जा सकता.

पूवन
इसका पौधा मध्यम ऊंचाई का होता है. इस किस्म के पौधे पर रोपण के 10 महीने बाद ही फूल बनने शुरू हो जाते हैं. इसके घेरे की लम्बाई काफी अधिक होती है. जिस पर लगभग 180 फली पाई जाती हैं. इस किस्म के फलों को अधिक टाइम तक भंडारित किया जा सकता हैं. इसके फलों का गुदा कठोर और बिलकुल सफ़ेद होता है.

करपूरावल्ली
इस किस्म का पौधा 10 से 12 फिट लम्बा होता है. इसका तना बाकी किस्मों से मजबूत होता है. इस किस्म के फल त्रिकोणीय होते हैं. जो पौधे पर गुच्छे में लगते है. इसके एक घेरे का वजन 20 किलो के आसपास पाया जाता है. जिसमें 80 फल पाए जाते हैं. इसके फलों का अधिक टाइम तक भण्डारण किया जा सकता है. इसके फलों को चिप्स और आटा बनाने के लिए सबसे उपयोगी माना जाता है.

प्लान्टेन एएबी
इस किस्म की उत्पत्ति दक्षिण भारत में हुई थी. इसके फलों की छाल मोटी होती है. औरइनका आकर भी त्रिकोणीय होता है. इस किस्म के फल बीच में से कुछ मुड़े हुए होते हैं. इसका फल पीला पड़ने पर भी कच्चा दिखाई देता है. इसका इस्तेमाल चिप्स और आटा बनाने में किया जाता है. इसके एक घेरे में 80 से ज्यादा केले पाए जाते हैं.

खेत की जुताई
केले की खेती के लिए खेत की तैयारी एक से डेढ़ महीने पहले की जाती है. इसके लिए पहले खेत की अच्छे से जुताई कर दे. खेत की जुताई रोटावेटर चलाकर करें इससे खेत में मौजूद सभी अवशेष मिट्टी में अच्छे से मिल जाते हैं. उसके बाद खेत में नमी बनाकर उसकी एक बार फिर अच्छे से जुताई करें. जिससे खेत समतल दिखाई देने लगता है.

उसके बाद खेत में एक फिट गहराई और चौड़ाई के गड्डे तैयार कर लें. इन गड्डों को अप्रैल माह में तैयार किया जाता है. गड्डों को एक पंक्ति में डेढ़ मीटर की दूरी पर खोदें.

गड्डों को खोदने के बाद उनमें लगभग 25 किलो पुरानी गोबर की खाद डालकर और 100 ग्राम बी. एच. सी. हर गड्डे में डालकर मिट्टी में मिलाकर गड्डे को फूल भर दें. उसके बाद गड्डे की सिंचाई कर उसे ढक दें. गड्डे तैयार होने के एक महीने बाद इसके पौधे गड्डों में लगाए जाते हैं.

बीज रोपण का टाइम और तरीका

केले के बीज उसके प्रकंद होते हैं. जिन्हें किसी भी नर्सरी से खरीद सकते हैं. लेकिन नर्सरी से खरीदते वक्त अच्छी किस्म का पौध ही खरीदें. इन पौधों को 15 मई से 15 जुलाई तक खेत में लगा देना चाहिए. लेकिन जून की शुरुआत में इन्हें लगाना अच्छा होता है. क्योंकि इस वक्त बारिश का मौसम शुरू हो जाता है. जिससे पौधा अच्छे से विकास करता है.

प्रकंद को खेत में लगाने से पहले उसे बाविस्टीन से उपचारित कर खेत में लगाना चाहिए. जब प्रकंद को खेत में बनाए हुए गड्डों में लगते है तो पहले गड्डों में मौजूद खरपतवार को निकाल देते हैं. उसके बाद गड्डों के बीच में पौधे को लगाते हैं. इसके लिए गड्डों के बीच में एक और छोटा गड्डा बनाकर उसमें इन प्रकंदों को लगा देते हैं.

पौधे की सिंचाई

केले के पौधे को गड्डे में लगाने के तुरंत बाद उसमें पानी दे. पौधे को खेत में लगाने के बाद अगर बारिश टाइम पर होती है तो पौधे की सिंचाई की जरूरत नही होती लेकिन अगर बारिश वक्त पर ना हो तो खेत की आवश्यकता के अनुसार सिंचाई करनी चाहिए. बारिश के मौसम के बाद खेत में सप्ताह में एक बार पानी देना चाहिए. जबकि सर्दियों के मौसम में 10 से 15 दिन के अंतराल में पानी देना चाहिए.

पौधों को सहारा देना

केला का पौधा जब लम्बा हो जाता है और पौधे पर फल आने शुरू हो जाते हैं तब उसे सहारे की जरूरत पड़ती है. इसके लिए पौधे के सहारे किसी बॉस की लकड़ी को गाड़कर उसे सहारा दिया जाता है. लेकिन वर्तमान में रस्सियों से भी पौधों को आपस में बांधकर सहारा दिया जा रहा है.

उर्वरक की मात्रा

केले के पौधे को उर्वरक की ज्यादा जरूरत फल बनने के वक्त होती है. लेकिन पौधे के रोपण के बाद भी पौधे में  उर्वरक डाल देना चाहिए. इसलिए पौधे को गड्डों में लगाने के एक महीने बाद 60 ग्राम नाइट्रोजन पौधों को दें. ऐसा तीन महीने तक करें. पौधे पर जब फुल बनने का वक्त आये तो उससे दो महीने पहले गड्डों में 60 ग्राम नाइट्रोजन पौधों को दें.

पौधे की देखभाल

जब पौधे के घेरे पर फल पूरी तरह आ जाएँ तब घेरे में मौजूद नर फूलों को काटकर उन्हें अलग कर दें. इससे पौधों पर अनावश्यक भार खत्म हो जाएगा.

पौधे के पास बारिश के वक्त पुतियाँ निकलती है. इन पुतियाँ को बड़ा होने से पहले ही निकाल लेना चाहिए. इन पुतियों से नई पौध तैयार की जा सकती है.

खरपतवार नियंत्रण
केले के पौधे में खरपतवार नियंत्रण नीलाई गुड़ाई कर करना चाहिए. इसके लिए पौधे को खेत में लगाने के एक महीने बाद गद्दों की नीलाई गुड़ाई शुरू कर देनी चाहिए. उसके बाद एक महीने के अंतराल में पौधे की गुड़ाई करते रहना चाहिए. और बारिश के मौसम के बाद पौधों के बीच में बची जमीन में पनपने वाली खरपतवार को निकाल देना चाहिए.

पौधे में लगने वाले रोग
केले के पौधे को कई तरह के रोग लगते हैं जो अलग अलग रूप में पैदावार को नुक्सान पहुँचाते हैं.

हानिकारक कीट और रोकथाम
फल की भुंडी : 
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यदि फल की भुंडी का हमला दिखे तो तने के चारों तरफ मिट्टी में कार्बरील 10-20 ग्राम प्रति पौधे में डालें।

राइज़ोम की भुंडी : 
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इसकी रोकथाम के लिए सूखे हुए पत्तों को निकाल दें और बाग को साफ रखें। रोपाई से पहले राइज़ोम को मिथाइल ऑक्सीडेमेटन 2 मि.ली. को प्रति लीटर पानी में डुबो दें। रोपाई से पहले केस्टर केक 250 ग्राम या कार्बरील 50 ग्राम या फोरेट 10 ग्राम प्रति गड्ढे में डालें।

केले का चेपा : 
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यदि इसका हमला दिखे तो मिथाइल डेमेटन 2 मि.ली या डाइमैथोएट 30 ई सी 2 मि.ली. को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।

थ्रिप्स : 
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इसकी रोकथाम के लिए मिथाइल डेमेटन 20 ई सी 2 मि.ली. या मोनोक्रोटोफॉस 36 डब्लयु एस सी 2 मि.ली. को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें। 

निमाटोड : 
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जड़ों को निमाटोड के हमले से बचाने के लिए, कार्बोफ्युरॉन 3 प्रतिशत सी जी, 50 ग्राम से प्रति जड़ का उपचार करें। यदि जड़ का उपचार ना किया गया हो तो रोपाई के एक महीने बाद कार्बोफ्युरॉन 40 ग्राम पौधे के चारों तरफ डालें।

बीमारियां और रोकथाम
सिगाटोका पत्तों पर धब्बा रोग : 
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प्रभावित पत्तों को निकालें और जला दें। जल जमाव हालातों के लिए खेत में से पानी के निकास का उचित प्रबंध करें। किसी एक फंगसनाशी जैसे कार्बेनडाज़िम 2 ग्राम या मैनकोजेब 2 ग्राम या कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 2.5 ग्राम या ज़ीरम 2 मि.ली. या क्लोरोथालोनिल 2 ग्राम को प्रति लीटर पानी मे मिलाकर स्प्रे करें। घुलनशील पदार्थ जैसे सैंडोविट, टीपॉल 5 मि.ली. को 10 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे में मिलायें।

एंथ्राक्नोस : 
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यदि इसका हमला दिखे तो कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 2.5 ग्राम  या बॉर्डीऑक्स मिश्रण 10 ग्राम या क्लोरोथालोनिल फंगसनाशी 2 ग्राम या कार्बेनडाज़िम 1 ग्राम को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।

पनामा बीमारी : 
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यदि इसका हमला खेत में दिखे तो विभिन्न तरह के प्रभावित पौधों को उखाड़े और खेत से दूर ले जाकर नष्ट कर दें। उसके बाद चूना 1-2 किलो गड्ढों में डालें। रोपाई से पहले जड़ों को कार्बेनडाज़िम 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में डुबोयें और रोपाई के  6 महीने  कार्बेनडाज़िम छिड़कें ।

फुज़ेरियम सूखा-
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प्रभावित पौधों को निकाल दें और 1-2 किलो चूना प्रति पौधे में डालें। रोपाई के बाद कार्बेनडाज़िम 60 मि.ग्रा.  दूसरे, चौथे, 6वें महीने में प्रति वृक्ष में प्रति फल पर डालें। कार्बेनडाज़िम 2 ग्राम को प्रति लीटर पानी में मिलाकर धब्बों पर छिड़कें।

गुच्छे बनना : 
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यह चेपे के हमले के कारण होता है। पौधे के प्रभावित भागों को निकालें और खेत से दूर ले जाकर नष्ट कर दें। यदि खेत में चेपे का हमला दिखे तो डाइमैथोएट 20 मि.ली. को 10 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।

फलों की तुड़ाई
फलों की तुड़ाई दो तरीके से की जाती है. पहले तरीके में पौधे से कच्चे फलों को तोड़ लिया जाता है. जिनका उपयोग सब्जी और आटा बनाने में किया जाता है. और दूसरे तरीके में इसके फलों को पकने के बाद तोडा जाता है. जब फलों का रंग पीला दिखाई दे तब इन्हें तोड़ लेना चाहिए.

पैदावार और लाभ
केले के एक घेरे का औसतन वजन 20 से 25 किलो पाया जाता है. जिस हिसाब से एक हेक्टेयर में सालाना 60 से 70 टन पैदावार मिलती है. जबकि एक किलो केले का बाज़ार में थोक भाव लगभग 10 रूपये होता है. जिस हिसाब से किसान भाई एक बार में 6 लाख तक की कमाई आसानी से कर लेता हैं.


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