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अपने आप बंद हुआ आर्कटिक के ऊपर बना ओजोन का छेद


नई दिल्‍ली: एक ओर कुदरत इस घातक वायरस के रूप में मानव जाति को सजा दे रही है तो दूसरी ओर हमारे द्वारा प्रकृति को पहुंचाए गए नुकसान की भरपाई भी कर रही है. करीब 25 दिन पहले वैज्ञानिकों ने कहा था कि हमें सूर्य की घातक अल्‍ट्रावायलेट किरणों से बचाने वाली ओजोन लेयर का छेद भरने लगा है.

अब इससे भी बढिया खबर आई है कि आर्कटिक के ऊपर बना ओजोन का ये छेद पूरा बंद हो गया है. यूरोपियन सेंटर फॉर मीडियम-रेंज वेदर फोरकास्ट (ECMWF) के कोपरनिकस एटमॉस्फियर मॉनिटरिंग सर्विस (CAMS) ने इस बात की पुष्टि की है कि यह ओजोन होल अब समाप्‍त हो गया है. बताया गया है कि यह छेद कोई छोटा-मोटा नहीं बल्कि 10 लाख वर्ग किलोमीटर की परिधि वाला था.
लॉकडाउन नहीं है वजह
सीएएमएस ने अपनी रिपोर्ट में पाया कि वसंत में अंटार्कटिक के ऊपर विकसित होना वाला ओजोन छिद्र एक वार्षिक घटना है, उत्तरी गोलार्ध में इस तरह के मजबूत ओजोन क्षरण के लिए स्थितियां सामान्य नहीं हैं. शोधकर्ताओं ने ऐसा होने के पीछे तापमान में उतार-चढ़ाव को जिम्मेदार ठहराया है.

रिपोर्टों के अनुसार, इसके पीछे पोलर वोर्टक्‍स प्रमुख वजह है जो ध्रुवीय क्षेत्रों में ठंडी हवा लाने और ओजोन परत के बाद के उपचार के लिए जिम्मेदार हैं. वैज्ञानिकों ने कहा है कि यह परिवर्तन मानवीय गतिविधियों में कमी आने के कारण नहीं हुआ है. यानि कि इसके पीछे लॉकडाउन या प्रदूषण का कम होने जैसी कोई वजह नहीं है.

बता दें कि जोन एक रंगहीन गैस है जो मुख्य रूप से पृथ्वी के स्ट्रैटोस्फियर में पाई जाती है, जो सूर्य और धरती के बीच एक सुरक्षात्मक परत बनाती है और सूर्य की हानिकारक पराबैंगनी किरणों को अवशोषित करती है. मानवीय गतिविधियों के कारण दशकों से ओजोन परत को नुकसान पहुंच रहा है.

पहली बार 1985 में चला था नुकसान का पता
गौरतलब है कि ओजोन परत को पहली बार 1985 में बड़ी हानि पहुंची थी और इसे अंटार्कटिक ओजोन छिद्र कहा गया. बाद में यह ध्यान दिया गया कि मानव निर्मित रासायनिक यौगिक जिसे क्लोरोफ्लोरोकार्बन (सीएफसी) कहा जाता है, स्ट्रैटोस्फियर में ओजोन की सांद्रता में कमी का कारण बना था.

इसके बाद 1987 में, CFCs के उत्पादन और खपत की जांच के लिए मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल को अपनाया गया, जिसने बाद में इस रासायनिक यौगिक पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा दिया गया था.

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