भगवान परशुराम जी का जन्म अक्षय तृतीया पर हुआ था इसलिए अक्षय तृतीया के दिन परशुराम जयंती मनाई जाती है। यहां पाठकों के लिए प्रस्तुत है भगवान परशुराम की मंगलमयी आरती...
ओउम जय परशुधारी, स्वामी जय परशुधारी।
सुर नर मुनिजन सेवत, श्रीपति अवतारी।। ओउम जय।।
जमदग्नी सुत नरसिंह, मां रेणुका जाया।
मार्तण्ड भृगु वंशज, त्रिभुवन यश छाया।। ओउम जय।।
कांधे सूत्र जनेऊ, गल रुद्राक्ष माला।
चरण खड़ाऊँ शोभे, तिलक त्रिपुण्ड भाला।। ओउम जय।।
ताम्र श्याम घन केशा, शीश जटा बांधी।
सुजन हेतु ऋतु मधुमय, दुष्ट दलन आंधी।। ओउम जय।।
मुख रवि तेज विराजत, रक्त वर्ण नैना।
दीन-हीन गो विप्रन, रक्षक दिन रैना।। ओउम जय।।
कर शोभित बर परशु, निगमागम ज्ञाता।
कंध चार-शर वैष्णव, ब्राह्मण कुल त्राता।। ओउम जय।।
माता पिता तुम स्वामी, मीत सखा मेरे।
मेरी बिरत संभारो, द्वार पड़ा मैं तेरे।। ओउम जय।।
अजर-अमर श्री परशुराम की, आरती जो गावे।
पूर्णेन्दु शिव साखि, सुख सम्पति पावे।। ओउम जय।।
परशुराम जी की आरती (2)
ओउम जय परशुधारी, स्वामी जय परशुधारी।
सुर नर मुनिजन सेवत, श्रीपति अवतारी।। ओउम जय।।
जमदग्नी सुत नरसिंह, मां रेणुका जाया।
मार्तण्ड भृगु वंशज, त्रिभुवन यश छाया।। ओउम जय।।
कांधे सूत्र जनेऊ, गल रुद्राक्ष माला।
चरण खड़ाऊँ शोभे, तिलक त्रिपुण्ड भाला।। ओउम जय।।
ताम्र श्याम घन केशा, शीश जटा बांधी।
सुजन हेतु ऋतु मधुमय, दुष्ट दलन आंधी।। ओउम जय।।
मुख रवि तेज विराजत, रक्त वर्ण नैना।
दीन-हीन गो विप्रन, रक्षक दिन रैना।। ओउम जय।।
कर शोभित बर परशु, निगमागम ज्ञाता।
कंध चार-शर वैष्णव, ब्राह्मण कुल त्राता।। ओउम जय।।
माता पिता तुम स्वामी, मीत सखा मेरे।
मेरी बिरत संभारो, द्वार पड़ा मैं तेरे।। ओउम जय।।
अजर-अमर श्री परशुराम की, आरती जो गावे।
पूर्णेन्दु शिव साखि, सुख सम्पति पावे।। ओउम जय।।
परशुराम जी की आरती (2)
शौर्य तेज बल-बुद्घि धाम की॥
रेणुकासुत जमदग्नि के नंदन।
कौशलेश पूजित भृगु चंदन॥
अज अनंत प्रभु पूर्णकाम की।
आरती कीजे श्री परशुराम की॥1॥
नारायण अवतार सुहावन।
प्रगट भए महि भार उतारन॥
क्रोध कुंज भव भय विराम की।
आरती कीजे श्री परशुराम की॥2॥
परशु चाप शर कर में राजे।
ब्रह्मसूत्र गल माल विराजे॥
मंगलमय शुभ छबि ललाम की।
आरती कीजे श्री परशुराम की॥3॥
जननी प्रिय पितृ आज्ञाकारी।
दुष्ट दलन संतन हितकारी॥
ज्ञान पुंज जग कृत प्रणाम की।
आरती कीजे श्री परशुराम की॥4॥
परशुराम वल्लभ यश गावे।
श्रद्घायुत प्रभु पद शिर नावे॥
छहहिं चरण रति अष्ट याम की।
आरती कीजे श्री परशुराम की॥5॥
रेणुकासुत जमदग्नि के नंदन।
कौशलेश पूजित भृगु चंदन॥
अज अनंत प्रभु पूर्णकाम की।
आरती कीजे श्री परशुराम की॥1॥
नारायण अवतार सुहावन।
प्रगट भए महि भार उतारन॥
क्रोध कुंज भव भय विराम की।
आरती कीजे श्री परशुराम की॥2॥
परशु चाप शर कर में राजे।
ब्रह्मसूत्र गल माल विराजे॥
मंगलमय शुभ छबि ललाम की।
आरती कीजे श्री परशुराम की॥3॥
जननी प्रिय पितृ आज्ञाकारी।
दुष्ट दलन संतन हितकारी॥
ज्ञान पुंज जग कृत प्रणाम की।
आरती कीजे श्री परशुराम की॥4॥
परशुराम वल्लभ यश गावे।
श्रद्घायुत प्रभु पद शिर नावे॥
छहहिं चरण रति अष्ट याम की।
आरती कीजे श्री परशुराम की॥5॥
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