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इंडोनेशिया की श्राप वाली देवी के मंदिर का रहस्य

 
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यह एक अनूठी गाथा है। जिसमें एक युवक ने एक युवती को श्राप दे दिया। जिसके कारण वह मूर्ति बन गयी। आश्चर्य की बात यह है कि बाद में उस मूर्ति में एक दैवीय शक्ति उत्पन्न हो गयी और लोग उस मूर्ति की पूजा देवी माँ के रूप में करने लगे। श्राप के कारण उत्पन्न होने वाली देवी माँ की यह मूर्ति भारत में नहीं बल्कि इंडोनेशिया में हैं। इंडोनेशिया का प्रम्बानन नामक भगवान शिव का यह मंदिर पूरे विश्व में प्रसिद्ध है।

इस मंदिर में भगवान शंकर के साथ देवी माँ विराजमान हैं। इस मंदिर में देवी मां की वही अद्भुत मूर्ति स्थापित है जो जिंदा लड़की से पत्थर की बन गयीं थी। जिंदा इंसान से मूर्ति बनने की कहानी बड़ी दिलचस्प और अद्भुत है। इस कहानी को जानने वाला हर व्यक्ति आश्चर्यचकित रह जाता है।

श्राप वाली देवी का पूरा किस्सा क्या है! जावा के उस युवक ने युवती को श्राप क्यों दिया और किस तरह उसने मूर्ति का रूप धारण कर लिया? इस अद्भुत देवी की पूरी कहानी बड़ी चमत्कारिक है। आइये जानते हैं इस श्राप वाली देवी की अद्भुत कहानी।

कहानी

यह कथा 10 वीं शताब्दी से पूर्व की है। तब जावा में प्रबुबका नाम का एक दैत्य राज्य करता था। उसकी एक पुत्री थी, जिसका नाम था रो रो  जोंग्गारंग। जो अत्यंत सुंदर थी। लेकिन अधिकतर महल में ही रहने कारण उस राजा की बेटी की सुंदरता से आम जनता अनजान थी। एक दिन उस दैत्य की पुत्री राजकुमारी रो रो जोंग्गारंग अपने राज्य में घूमने निकली। घूमते-घूमते उसकी नजर एक मूर्तिकार पर पड़ी।

उस मूर्तिकार का नाम था बोंदोवोसो। वह उस समय मूर्ति बना रहा था। उसकी बनायी मूर्तियाँ इतनी सजीव लगती थी कि मानो अभी बोल देंगी। उसकी हाथ की कलाकारी को देखकर ऐसा लगता था कि जैसे उसे दैवीय शक्ति प्राप्त हो। उस दैत्य राजा की पुत्री, उस कलाकार की मूर्तियों से इतनी प्रभावित हुई कि उसकी कला को देखने के लिए अपने रथ से नीचे उतर पड़ी और उस कलाकार की सुंदर मूर्तियां देखने लगी।

मूर्तिकार बोंदोवोसो की नज़र जब अति सुंदर राजकुमारी पर पड़ी तो वह उसकी सुंदरता का दीवाना हो गया। वह मूर्तिकार, दैत्य राज की पुत्री को मन ही मन चाहने लगा। वह उससे विवाह करना चाहता था। लेकिन उसने अपने मन की बात अपने मन में ही रखी क्योंकि उसे पता था कि कहाँ वह राजा की पुत्री और कहाँ वह एक मामूली मूर्तिकार! ऐसे में दोनों का मेल असम्भव था ।

लेकिन एक दिन हिम्मत करके वह मूर्तिकार उस दैत्य राजा के महल पहुँच गया। उसने पहरेदारों से कहा कि वह राजकुमारी से मिलना चाहता है। पहरेदार उस कलाकार का संदेश लेकर अंदर महल में गये। लेकिन राजकुमारी ने उससे मिलने से इंकार कर दिया। फिर मूर्तिकार बोंदोवोसो ने रातोंरात अपने हाथ से बनायी वह मूर्ति जो राजकुमारी के चेहरे से हूबहू मिलती थी; महल के अंदर भेज दी।

दैत्य की पुत्री राजकुमारी रो रो जोग्गारंग ने जब अपनी इतनी सुंदर मूर्ति देखी तो प्रसन्न हो गई और उसने उस मूर्तिकार को महल में बुला लिया। वह मूर्तिकार जब महल में पहुँचा तो दरबार में राजा, उसकी पुत्री और दरबारी सभी बैठे थे। मूर्तिकार बोंदोवोसो ने सोचा कि यह अच्छा अवसर है अपने दिल की बात कहने का। उसने राजा से कहा कि वह उसकी पुत्री से विवाह करना चाहता है।

एक आम आदमी का राजकुमारी से विवाह करने का प्रस्ताव देना, अचंभे से भरा था। उसकी यह बात सुनकर राजा आग बबूला हो गया। उसने अपनी तलवार निकाल ली। लेकिन चालाक राजकुमारी ने अपने पिता को उस मूर्तिकार का कत्ल करने से रोक दिया। उसने उस कलाकार को सबक सिखाने के लिए एक प्रस्ताव रख दिया। राजकुमारी ने कहा कि वह मूर्तिकार से तभी विवाह कर सकती है जब वह एक रात में 1000 मूर्तियां बना दे।

दैत्य की पुत्री को पता था कि एक रात में एक हजार मूर्तियाँ बनाना संभव नहीं है। उसका सोचना था कि न मूर्तियां बन पायेंगी और न शादी हो पायेगी। मूर्तिकार बोंदोवोसो लगन से राजकुमारी की एक रात में 1000 मूर्ति बनाने की शर्त पूरा करने के लिये अपने काम में जुट गया। उसने रातों रात 999 मूर्तियां बना दी और जैसे ही वह अपनी 1000 वीं मूर्ति का निर्माण करने जा रहा था कि उसे लगा कि सुबह हो गई।

उसने अपना काम रोक दिया क्योंकि 1000 मूर्तियाँ रातों- रात पूरी करनी थी। लेकिन सुबह का उजाला होने के कारण मूर्तिकार ने काम रोक दिया और बहुत निराश हो गया, क्यों कि वह शर्त हार गया था। उसे नहीं पता था की राजा की पुत्री ने उसके साथ धोखा किया है। दरअसल राजकुमारी ने पूरे शहर के चावल की खेतों में आग लगवा दी थी। इसके कारण पूरे शहर में उजाला हो गया।

उस उजाले को सुबह जानकर मूर्तिकार ने अपना काम रोक दिया। वह 999 ही मूर्ति बना पाया था। जिसके कारण वह अपनी शर्त हार गया था अतः मूर्तिकार निराश होकर बैठ गया। वह घंटों रोता रहा लेकिन जब वास्तव में सुबह हुई तो उसे राजकुमारी के षडयंत्र के बारे में पता चल गया। वह बहुत क्रोधित हो गया और दौड़ा-दौड़ा राजमहल पहुँच गया।

पहरेदारों के रोकने पर भी मूर्तिकार बोंदोंवोसो अंदर महल में घुस गया और उसने राजकुमारी को श्राप दे दिया कि तूने मेरे साथ छल किया। जिसके कारण मैं 999 मूर्तियां ही बना सका, अब तू मेरी 1000 वीं मूर्ति बन जा। देखते ही देखते राजकुमारी पत्थर की मूर्ति में बदल गयी।

मूर्तिकार ने फिर कहा कि हे राजकुमारी, तूने जीते जी किसी का भला नहीं चाहा लेकिन मूर्ति बनने के बाद तुझे दूसरों का भला करना होगा। उस मूर्तिकार की बात सच हो गयी। राजकुमारी की मूर्ति से माँगी गयी लोगों की मनोकामना पूरी होने लगी। जिसके कारण सभी उसे देवी के रूप में पूजने लगे।


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