-सीएचसी अधीक्षक हुए मजबूर कोई कर्मचारी नहीं सुनने को तैयार
गोण्डा। जिला में जहां कुछ सीएचसी और पीएचसी की कहानी पर तो चर्चा का बाजार गर्म है तो वही रूपईडीह प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र का भी मामला उजागर हुआ है। सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र रूपईडीह खरगूपुर अधिक्षक डॉ अजय यादव रूपईडीह के रूप में तैनात होते हुए भी अपने बदकिस्मती पर आसू बहते हुए बोले की मैं वहा का डॉक्टर नहीं हूं मेरी बात कोई डॉक्टर सुनता नहीं, अब प्रश्न यह उठता है की डॉ अजय यादव वहां के अधीक्षक होते हुए इतना दूरभाष के द्वारा संपर्क किया गया तो बोले एक बार नहीं यह दूसरी बार है कि हम अस्पताल में सभी को बोल चुका हूं फिर भी लोग मनमानी करते हैं इसमें मेरी क्या गलती अब सोचने की बात यह है कि अधीक्षक का जब भी यह हाल है तो मरीज का क्या हाल होगा अधीक्षक साहब यहां तक बोले अस्पताल में सारी दवाइयां उपलब्ध है लेकिन लोग वाली दवाइयां लिखते हैं सुरेश प्रजापति के ऊपर किसी भी अधिकारी का आदेश का कोई प्रभाव नहीं पड़ता लेकिन हम फिर एक बार सीएमओ साहेब को सूचना दे रहा हूं।
मामला प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र रुपईडीह का है, जहां पर तैनात डॉ सुरेश कुमार प्रजापति लगातार अधिकारियों के आदेश को दरकिनार कर रहे है अस्पताल में दवा होते हुए भी भी बाहर की दवाइयां आखिर क्यों लिख रहे है माजरा जो डॉ सुरेश कुमार प्रजापति अस्पताल में दवा होते हुए मरीजों से खरीदवा रहे हैं बाहर मेडिकल से दवाइयां मुख्य चिकित्सा अधिकारी व अधीक्षक के बार बार मना करने के बावजूद भी इन पर कोई फर्क नहीं पड़ता अस्पताल में आयरन सुक्रोस की इंजेक्शन भारी मात्रा में उपलब्ध है फिर भी यह महोदय बाहर से महंगी आयरन सूक्रोस की इंजेक्शन मंगवा कर ही लगाते हैं यही नहीं जब अस्पताल में मरीजों से जानकारी लिया गया तो पता चला कि डॉक्टर साहब लगभग दवाइयां बाहर की ही मंगवाई जाती है कुछ मरीजों ने यहां तक बताया कि डॉक्टर साहब अब दो पर्चा बनाते हैं एक सरकारी अस्पताल से और एक बाहर की दवाइयां की होती है जिससे हम गरीब कभी-कभी दवाइयां लेने में असमर्थ हो जाते हैं लेकिन डॉक्टर साहब को भगवान का दर्जा मानते हुए हम लोग उनके आदेश का पालन जैसे तैसे करने की कोशिश करते हैं आखिर बाहर की दवाई ना लाएं तो करूं क्या अस्पताल में मरीज के साथ आए लोग बैठे क्षुब्ध स्वरों में यहां तक बोल बैठे,, की मरता क्या न करता ,अगर सब कुछ अच्छा होता तो अस्पताल क्यों आते जहा योगी सरकार सारी व्यस्था देने में लगे है वही मरीज के साथ डॉक्टर अपना काम अपने तरीका से करने में पीछे नहीं आते कोई भी कुछ कर ले पर लोग अपने आदत नही बदलते है जब साहेब की आदत ही हो गई तो फिर आगे क्या बोले कुछ तो होगा तभी तो डॉक्टर साहब बाहर मेडिकल की दवाई लिखते हैं।
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