सोलर विमान का नाम सामने आते ही थोड़ा-सा भी पढ़ा-लिखा इन्सान इस बात को अपने आप समझ सकता है कि ऐसा विमान जो सोलर एनर्जी यानि सौर ऊर्जा से हवाई सफर तय करता है।
सोलर विमान संसार के आविष्कारों में सबसे नया आविष्कार है। सोलर विमान मार्च, 2015 ई० के पहले सप्ताह से दूसरे सप्ताह के बीच भारत सहित पूरी दुनिया की सुर्खियों में आ गया। भारत में इसकी गूंज 10 मार्च, 2015 को तब सुनाई पड़ी जबकि सोलर इमपल्स 2 विमान ने अहमदाबाद (गुजरात) के रनवे को छुआ।
सौर ऊर्जा से उड़ने वाला सोलर एमपल्स-2 लगतार 1,465 किलोमीटर की उड़ान भरने के बाद अहमदाबाद पहुंचा था। उसने मसकट (खाड़ी देश) की राजधानी ओमान से उड़ान भरी थी। उसने 16 घण्टे की उड़ान के दौरान अरब सागर को पार कर भारतीय वायु सीमा में प्रवेश किया था।
सोलर एमपल्स-2 के आविष्कारक हैं स्विट्जरलैंड के दो पायलट बेस्ट्रांड पिकार्ड और आन्द्रे बोर्शबेर्ग। ये ही इसके पायलट बनकर सौर ऊर्जा के सहारे दुनिया का चक्कर काटने, 35,000 किलोमीटर का सफर करने निकले। इन दोनों चालकों ने यूएई (UAE) की राजधानी अबूधाबी से वर्ल्ड ट्रिप की शुरूआत की। बोर्शबेग ने अबूधाबी से ओमान तक विमान उड़ाया। पिकार्ड ने ओमान से अहमदाबाद तक विमान को उड़ाने का सफर तय किया। इस विमान की वर्तमान में रफ्तार 45 किलोमीटर प्रति घण्टा रही।
सोलर इमपल्स के डैनो की लम्बाई 72 मीटर थी। यह बोइंग के सबसे बड़े विमान 747 जम्बो से भी ज्यादह लम्बे थे। इस सोलर इमपल्स 2 का वजन 2300 किलोग्राम है जबकि 747 जम्बो का वजन 180 टन होता है। सोलर पावर से चलने के लिए विमान का हल्का होना एक बुनियादी आवश्यकता थी। सोलर इमपल्स-2 इस बुनियादी आवश्यकता के हिसाब से हल्का और पूरी तरह कारगर साबित हुआ।
सोलर विमान के डैनों की विशालता इसलिए है क्योंकि इसमें 17,000 से ज्यादा सेल लगे हुए थे। विमान को लैण्ड करने के समय से लेकर उड़ान भरने के दौरान हर समय ये सोलर सेल बैटरियां चार्ज होती रहती। बैटरियों की मदद से चार मोटरें घूमतीं। उड़ान भरते समय मोटरें उसी तकनीक से तेजी से घूमती जैसे अन्य विमानों के इन्जन की मोटरें। ये चारों मोटरें जब पूरे वेग से घूमती तो विमान रनवे पर दौड़कर हवा में उठता चला जाता।
सोलर विमान के उड़ान की सफलता ने दुनिया के लिए हवाई सफर को आसान, कम खर्चीला करने का साधन उपलब्ध कर दिया है। बगैर फ्यूल (तेल ईंधन) के सेलों के सहारे 2,300 किलोग्राम वजन का, दो पायलटों के वजन के साथ सोलर इमपल्स-2 ने 16 घण्टे की उड़ान कैसी भरी? यह सवाल ज़ेहन में उठ सकता है तथा यह अब तक आविष्कार में आने वाले हर उस नए आविष्कार के सामन उत्सुकता का विषय हो सकता है, जो आविष्कार अपने एकदम शुरूआती दौर में दुनिया के सामने आये। वह चाहे एडीसन द्वारा बिजली का बल्ब रोशन होने का आविष्कार रहा हो या जेम्स वॉट द्वारा भाप की शक्ति से बनाए जाने वाले इंजन का विषय रहा हो।
सोलर विमान की उत्सुकता का अंत यहीं हो जाता है जबकि यह बात सामने आती है कि यह सौर ऊर्जा के स्रोत पर आधारित है।
सौर ऊर्जा वह ऊर्जा है जो सीधे सूर्य से प्राप्त की जाती है। सौर ऊर्जा ही मौसम एवं जलवायु का परिवर्तन करती है। यही धरती पर सभी प्रकार के जीवन (पेड़-पौधे और जीव-जन्तु) का सहारा है। वैसे तो सौर ऊर्जा को विविध प्रकार से प्रयोग किया जाता है, किन्तु सूर्य की ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में बदलने को ही मुख्य रूप से सौर ऊर्जा के रूप में माना जाता है।
सूर्य की ऊर्जा को दो प्रकार से विद्युत ऊर्जा में बदला जा सकता है; पहला प्रकाश-विद्युत सेल की सहायता से और दूसरा किसी तरल पदार्थ को सूर्य की उष्मा से गर्म करने के बाद इससे विद्युत यंत्र चलाकर।
सूर्य से सीधे प्राप्त होने वाली ऊर्जा में कई खास विशेषताएँ हैं, जो इस स्रोत को आकर्षक बनाती हैं। इन विशेषताओं में है-इसका अत्यधिक विस्तारित होना, अप्रदूषणकारी होना व अक्षुण्ण होना । सम्पूर्ण भारतीय भूभाग पर 5000 लाख करोड़ किलोवाट प्रति घंटा प्रतिवर्ग मीटर के बराबर सौर ऊर्जा आती है, जो कि विश्व की सम्पूर्ण विद्युत खपत से कई गुना अधिक है। देश में वर्ष में लगभग 250 से 300 दिन ऐसे होते हैं जब सूर्य की रोशनी पूरे दिनभर उपलब्ध रहती है।
सौर ऊर्जा को मानव ने अपनी संस्कृति व जीवनयापन के तरीके के अनुरूप पाया है। विज्ञान व संस्कृति के एकीकरण तथा संस्कृति व प्रौद्योगिकी के साधनों के प्रयोग द्वारा सौर ऊर्जा भविष्य के लिए अक्षय ऊर्जा (नाश न होने वाली) ऊर्जा का स्रोत साबित हो चुकी है।
सोलर विमान (सोलर इमपल्स-2) के सफल आविष्कार के बाद साधारण आर्थिक स्तर का भी हवाई सफर का सपना सहज, सरल हो जाने वाला साबित हो चुका है।
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