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नायलॉन की खोज किसने किया

 
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कुछ साल पहले तक कपड़ा बनाने के लिए जिन रेशों का प्रयोग किया जाता था वे पेड़ों या जीवों से प्राप्त होते थे - जैसे रेशम के धागे, ऊन, रूई और लिनन। आज वैज्ञानिकों ने रेशे बनाने की नई युक्ति निकाल ली है। इनमें से कुछ रेशे हमारे काम में आई हुई रद्दी चीजों से बनते हैं। नायलोन इन आश्चर्यजनक रेशों में से एक है। नायलोन का आविष्कार वैज्ञानिकों ने कोयले, हवा और पानी से किया है। 

नायलॉन क्या है-

नायलॉन (nylon) कुछ ऐलिफ़ैटिक यौगिकों पर आधारित कृत्रिम पॉलीमरों का सामूहिक नाम है। यह एक रेश्मी थर्मोप्लास्टिक सामग्री होती है जिसे रेशों, परतों और अन्य आकारों में ढाला जा सकता है। नायलॉन आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण है और इसका प्रयोग दाँत के बुरुशों, वस्त्रों, मोज़ों, इत्यादि में होता है। अन्य थर्मोप्लास्टिकों की तरह यह अधिक तापमान पर पिघल जाता है इसलिए इसके वस्त्र आग से सम्पर्क में आने पर बहुत संकटमय होते हैं क्योंकि वह पिघलकर त्वचा से चिपक जाते है और फिर आग पकड़ लेते हैं, जिस कारणवश अब इसका प्रयोग अन्य वस्तुओं में अधिक देखा जाने लगा है, जैसे कि इलेक्ट्रॉनिक्स (जिसमें इसके परावैद्युत गुण काम आते हैं), संगीत वाद्यों के तंतुओं, इत्यादि में। विस्तार  जानने के लिए देखे -यूनियनपीडिया

नायलॉन  की खोज किसने किया 

नायलॉन मानव द्वारा संश्लिष्ट किया गया पहला रेशा था। इसका निर्माण अमेरिकी वैज्ञानिक डॉ. वैलेस एच. कैरोथर्स ने 1937 में किया था। नायलॉन ऐसे छोटे कार्बनिक अणुओं के बहुलकीकरण प्रक्रिया द्वारा बनाया जाता है, जो प्राकृतिक रूप से उपलब्ध नहीं है। यह एक पॉली एमाइड रेशे का उदाहरण है जिसमें एमाइड समूह (>CONH2) प्रत्येक इकाई पर होता है तथा बार-बार दोहराया जाता है।

नायलॉन का इतिहास -

नायलोन शब्द किसी प्राचीन शब्द से नहीं निकला है। इस नये पदार्थ के आविष्कारकों ने ही इस शब्द को भी बनाया। वे इसे एक ऐसा नाम देना चाहते थे जो छोटा हो और साथ ही आसान भी।

लोगों को पहली बार सन् 1938 में 'नायलोन' शब्द पढ़ने और सुनने को मिला। यह रेशम की तरह सुन्दर और टिकाऊ होता है। इसके अलावा यह जल्दी सूख भी जाता है। नायलोन के कपड़ों को इस्तरी करने की भी जरूरत नहीं होती। नायलोन जल्द इसलिए सूखता है कि इसके रेशे पानी को नहीं सोखते। इसके लिए र्सि इतना समय चाहिए कि धागों के बीच रुका हुआ पानी भाप बनकर उड़ जाये।

नायलोन के रेशे बनाने के लिए पहले एक गाढ़ा घोल तैयार किया जाता है। यह देखने में शीरे जैसा मालूम होता है। इसके लिए बहुत तेज गर्मी और दबाव की जरूरत होती है। इस गाढ़े तरल पदार्थ को ठंडा होने के लिए पतली पट्टियों में फैला देते हैं। सूखकर यह कड़ा हो जाता है और जगह-जगह दरक जाता है। इस तरह इसकी चिप्पियाँ तैयार हो जाती है। फिर इन चिप्पियों को पिघलाकर लोहे की एक प्लेट में बने बारीक छिद्रों में से नीचे गिराया जाता है। अब यह बहुत बारीक धागों की शक्ल ले लेता है और जल्द ही ठंडा होकर कड़ा हो जाता है। कई धागों को ऐंठकर बुनाई के लिए सूत तैयार किया जाता है। फिर इस सूत को तान दिया जाता है ताकि धागे मजबूत हो जायें। 

आजकल घावों की सिलाई, टेनिस के रेकैट और मछली पकड़ने की बंसी के लिए नायलोन की ताँत का इस्तेमाल होता है। बटन, ग्रामोफोन की सुइयाँ और कुछ मशीनों के पुर्जे भी नायलोन से बनाये जाते हैं।

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