आज के युग में बिजली का महत्व सर्वविदित है। इसके बिना आज सामान्य जन-जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती। व्यक्ति की दैनिक उपयोगिता से लेकर किसी भी देश की त्वरित विकास की मूलभूत आवश्यकताओं में से एक है बिजली। आर्थिक विकास के लिए आधारभूत संरचना विकसित करने में विद्युत का विशेष योगदान होता है। लेकिन क्या आपको मालूम है, Bijli ki khoj kisne ki thi? और कैसे कि थी? तो चलिए इसे जानने के लिए जानते है बिजली के खोज एवं विकास के इतिहास को –
बिजली का संक्षिप्त इतिहास
ऐसा अनुमान किया जाता है कि ईसा के लगभग 600 वर्ष पूर्व बिजली की खोज हुयी थी। लेकिन बिजली का जो स्वरूप आज प्रचलित है वह क्रमिक विकास का परिणाम है। बिजली के विभिन्न यंत्र बल्ब, टेलीफोन, रेडियो, पंखे आदि, जिन पर हम आज इतने अधिक निर्भर हैं, का निर्माण पच्चीस सौ वर्ष बाद मानव ने किया।
सबसे पहले यूनान के महान दार्शनिक एवं भौतिक विज्ञानी थेल्स को यह पता चला था कि अंबर (चीड़ के वृक्ष का सड़कर जमने वाला रस या गोंद) को कपड़े पर रगड़ने से उसमें सूखे पत्तों, पंख आदि को अपनी ओर आकर्षित करने की क्षमता आ जाती है।
चूंकि अंबर को यूनानी भाषा में इलेक्ट्रॉन कहा जाता है, इसलिए थेल्स ने इस गुण को ‘Electricity’ नाम दिया और यही शब्द बिजली के लिए प्रयुक्त होने लगा।
अंबर में हल्की वस्तुओं को अपनी ओर आकर्षित करने का गुण चूंकि घर्षण क्रिया से उत्पन्न हुआ था, अतः इस प्रकार उत्पन्न विद्युत को घर्षण विद्युत कहा गया। घर्षण विद्युत की व्याख्या आवेश के इलेक्ट्रॉनिक सिद्धांत के आधार पर की गयी।
इस सिद्धांत के अनुसार हर पदार्थ परमाणुओं से मिलकर बना होता है। परमाणु के केंद्रीय भाग में धनावेशित कण प्रोटॉन तथा उदासीन कण न्यूट्रॉन स्थित होते है। केन्द्रीय भाग व नाभिक के चारों ओर ऋण आवेशित इलेक्ट्रॉन चक्कर लगाते रहते हैं। चूंकि परमाणु में इलेक्ट्रॉनों में प्रोटॉनों की संख्या बराबर होती है, अतः घनावेशों एवं ऋणावेशों की उपस्थिति के बावजूद परमाणु विद्युतीय रूप से उदासीन होता है ।
लेकिन जब एक पदार्थ को किसी दूसरे पदार्थ पर रगड़ा जाता है तो एक पदार्थ से इलेक्ट्रॉन निकलकर दूसरे पदार्थ में चले जाते हैं। जिस पदार्थ से इलेक्ट्राॅन निकलकर दूसरे पदार्थ में जाते हैं उसमें इलेक्ट्रॉनों की कमी हो जाती है। फलतः वह धनावेशित वस्तु के समान व्यवहार करने लगता है। दूसरा पदार्थ, जिसमें इलेक्ट्रॉन चले गये हैं, इलेक्ट्रॉनों की अधिकता की वजह से ऋण आवेशित वस्तु की भांति व्यवहार करता है।
थेल्स की खोज के दो हजार वर्ष बाद विलियम गिलबर्ट ने पता लगाया कि यह विचित्र गुण अंबर के अतिरिक्त बहुत से अन्य पदार्थों में भी है। गिलबर्ट के एक-दो शताब्दियों के बाद के वैज्ञानिकों को भी बिजली के बारे में इससे अधिक जानकारी प्राप्त नहीं हुयी। पर कुछ वर्षों बाद इटालियन वैज्ञानिक ऐले साल्ड्रो वोल्टा (Alessandro Volta) ने एक उपकरण बनाकर बिजली की हल्की सी धारा उत्पन्न करने में सफलता प्राप्त की।
संयुक्त राज्य अमेरिका के वैज्ञानिक एवं दार्शनिक बेंजामिन फ्रैंकलिन ने 1752 में अपने एक खतरनाक परीक्षण से सिद्ध कर दिया था कि आकाश में प्रकाश की चमक बिजली का ही एक रूप है। उसने वर्षा वाले दिन एक पतंग उड़ायी और उसकी डोर निचले सिरे पर एक चाबी बांध दी। चाबी छूने पर उसने बिजली का झटका महसूस किया।
सन् 1865 में फ्रांस के वैज्ञानिक जार्ज लेक्लांशे ने एक गीली बैटरी बनायी जिसकी सहायता से बिजली उत्पन्न की जा सकती थी। उसने अमोनियम क्लोराइड के घोल में जस्ते और कार्बन की छड़ें डुबोकर उन्हें आपस में तार से जोड़कर बिजली का झटका महसूस किया।
अंग्रेज वैज्ञानिक माइकल फैराडे ने विचार किया कि जब बिजली चुंबक पैदा कर सकती है तो चुंबक बिजली पैदा क्यों नहीं कर सकता। और अपनी इस विचारधारा को सत्य में बदलने के प्रयास में वे लग गये। उन्होंने 1831 में चुंबक से बिजली की धारा उत्पन्न कर दी और उन्नति के नये युग को जन्म दिया।
फैराडे की इस खोज को अनेक वैज्ञानिकों ने जी तोड़ परिश्रम कर मानव जाति के लिए अत्यंत उपयोगी बनाया। उन्होंने बिजली से चलने वाले अनेक यंत्रों की खोज की। एडिसन ने बिजली का बल्ब बनाया और उन्होंने ही बिजली पैदा करने वाला पहला बड़ा यंत्र बनाया। उनके द्वारा निर्मित यंत्र एक वर्ग मील क्षेत्र में बिजली पहुंचाता था।
1820 में विलियम स्टर्जन ने विद्युत मोटर का आविष्कार किया। उन्होंने ही पहला विद्युत चुंबक बनाया। पहला सफल जनरेटर जर्मनी के सीमांस नामक वैज्ञानिक ने 1867 में बनाया।
बिजली उत्पादन के स्रोत एवं विकास
तार और टेलीफोन पर बिजली द्वारा संवाद भेजने में मोर्स और बेल नामक वैज्ञानिकों ने सफलता पाइ। वर्तमान में तो बिजली घरों को रोशन कर ही रही है, कारखानों को चला रही है, ट्रेनों को गति दे रही है, विद्युत पंपों के माध्यम से खेतों तक पानी पहुंच रही है – जीवन का कोई भी क्षेत्र आज विद्युत के बिना अधूरा ही है।
विद्युत संयंत्रों में उत्पन्न विद्युत धारा को एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुंचाने में ट्रांसफाॅर्मर की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। पावर हाऊस में उत्पन्न विद्युत धारा की प्रबलता अधिक होती है। इस धारा को इसी रूप में एक स्थान से दूसरे स्थान तक नहीं पहुंचाया जा सकता क्योंकि धारा की प्रबलता अधिक होने से उत्पन्न ऊष्मा का मान अधिक होगा जिससे विद्युत ऊर्जा का उष्मा ऊर्जा में अपव्यय होने लगेगा।
इसके अतिरिक्त प्रबलधारा को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाने के लिए मोटे तार की आवश्यकता होगी जोकि आर्थिक रूप से खर्चीला होगा। अतः धारा की प्रबलता को ट्रांसफार्मर की सहायता से कम करके उसका स्थानांतरण किया जाता है। घरों में विद्युत धारा देने से पहले पुनः ट्रांसफार्मर की सहायता से धारा की प्रबलता को साधारण मान मान पर लाया जाता है।
1898 में अमेरिका में पानी की मदद से बिजली का उत्पादन शुरू हुआ। धीरे-धीरे पवन ऊर्जा, सौर ऊर्जा, परमाणु ऊर्जा, जैव ऊर्जा आदि के द्वारा भी बिजली पैदा की जाने लगी।
परंपरागत तौर से विद्युत का उत्पादन ताप विद्युत संयंत्रों के माध्यम से किया जाता है। कोयला तापीय ऊर्जा का सबसे महत्वपूर्ण साधन है परंतु इसकी सीमित उपलब्धता की वजह से एवं इसके अनवीनीकृत संसाधन होने की वजह से ऊर्जा के वैकल्पिक साधनों की ओर वैज्ञानिकों की दृष्टि गयी।
गैर परंपरागत ऊर्जा के रूप में जल विद्युत ऊर्जा एक महत्वपूर्ण स्रोत साबित हुआ। जल विद्युत संयंत्रों में जल की गति से प्राप्त ऊर्जा को टरबाइन द्वारा विद्युत ऊर्जा में बदला जाता है। इस स्रोत से न केवल सस्ती बिजली प्राप्त होती है बल्कि इस ऊर्जा स्रोत का नवीनीकरण भी किया जा सकता है।
विकिरण के खतरों की चुनौती के बावजूद परमाणु ऊर्जा (Nuclear Energy) विद्युत उत्पादन का महत्वूपर्ण स्रोत है क्योंकि इसमें अल्प मात्रा के ईंधन से ही विशाल ऊर्जा (विद्युत) प्राप्त की जा सकती है। परमाणु ऊर्जा हमें निम्न दो प्रकार से प्राप्त होती है-
- नाभिकीय विखंडन (Nuclear Fission) – जब किसी भारी नाभिक जैसे यूरेनियम 235 पर यदि न्यूट्रॉनों की बौछार की जाती है तब वह अपेक्षाकृत दो हल्के नाभिकों में विखंडित होकर बहुत अधिक ऊर्जा उत्पन्न करता है। इस प्रक्रिया से परमाणु रिएक्टर तथा परमाणु बम में ऊर्जा उत्पन्न होती है।
- नाभिकीय संलयन (Nuclear Fusion) – इस प्रक्रिया में दो हल्के नाभिक जैसे हाइड्रोजन परस्पर संलयन करके भारी नाभिक हीलियम में परिवर्तित हो जाते हैं जिससे अत्यधिक ऊर्जा उत्पन्न होती है। सूर्य की ऊर्जा तथा हाइड्रोजन बम की ऊर्जा का स्रोत नाभिकीय संलयन ही है।
नाभिकीय संलयन द्वारा नियंत्रित ढंग से ऊर्जा उत्पन्न करने की तकनीक अभी संभव नहीं हो सकी है। वर्तमान में नाभिकीय ऊर्जा नाभिकीय विखंडन द्वारा ही उत्पन्न की जाती है।
सौर ऊर्जा या सूर्य के विकिरण द्वारा प्राप्त ऊर्जा भी ऊर्जा का एक अत्यंत महत्वपूर्ण स्रोत है। यह अनुमान लगाया गया है कि पृथ्वी पर पहुंचने वाले सौर विकिरण के केवल 0.1 प्रतिशत हिस्से से ही पृथ्वी के संपूर्ण ऊर्जा जरूरतों की पूर्ति की जा सकती है।
सौर विकिरण को विद्युत ऊर्जा में में प्रमुखतया सौर सेल के माध्यम से परिवर्तित किया जाता है। सौर सेल की ऊपरी सतह प्रकाश के प्रति संवेदनशील पदार्थ जैसे सिकलकाॅन, सेलेनियम, कैडियम सल्फाइड या कॉपर सल्फाइड की बनी होती है।
जब सूर्य की किरणें इस सतह पर पड़ती हैं तो प्रकाश का अवशोषण होता है और सतह से इलेक्ट्रॉन मुक्त होने लगते हैं। इन मुक्त इलेक्ट्रॉनों के कारण ही विद्युत उत्पन्न होती है। इस विद्युत को एक बैटरी की सहायता से एकत्रित कर लिया जाता है, जिसका उपयोग किसी भी समय किया जा सकता है।
किसी एक सौर सेल से उत्पन्न विद्युत ऊर्जा बहुत कम होती है। अतः अनेक सौर सेलों को एक विशेष क्रम में व्यवस्थित कर सौर पैनल बनाकर पर्याप्त मात्रा में विद्युत प्राप्त की जाती है।
इसी तरह विद्युत उत्पादन के लिए पवन ऊर्जा भी एक व्यवहार्य एवं लागत प्रभावी विकल्प है। पवन ऊर्जा की संभावना तीन कारकों – वायु की गति, भूमि की उपलब्धता एवं विद्युत निष्क्रमण के लिए मजबूज ग्रिड पर निर्भर करती है। पवन ऊर्जा की सहायता से विद्युत ऊर्जा का उत्पादन पवन ऊर्जा स्टेशनों में होता है।
वायु पवन चक्की की पत्तियों को घुमाती है जिससे इसके साथ जुड़ा कैंक-शाफ्ट टरबाइन को चलाता है जो अपने से जुड़े डायनेमो को चलाता है और इस प्रक्रिया से विद्युत ऊर्जा का उत्पादन होता है।
इस प्रकार हम देखते हैं कि बिजली की खोज से लेकर आधुनिक युग में जहां बिजली की उपयोगिता में निरंतर वृद्धि होती गई है वहीं उसके उत्पादन के वैकल्पिक साधनों के खोज के क्षेत्र में भी व्यापक कार्य हुये हैं। हालांकि अब तक की विद्युत के क्षेत्र की उपलब्धियां संतोषजनक रही हैं लेकिन बिजली की निरंतर बढ़ती उपयोगिता और अनिवार्यता को देखते हुए इस क्षेत्र में निरंतर अनुसंधानों की जरूरत है।
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