हमारे किसान भाइयों के पास खेती के काम के बाद भी काफी समय बच जाता है, वे उस समय का उपयोग मुर्गीपालन करके कर सकते हैं। साथ ही घर के औरतें और बच्चे भी अपने फालतू समय में इस धंधे को आराम से कर सकते हैं। घर में अगर मुर्गियों पाली जायें तो उनके रख-रखाव तथा खुराक पर अधिक खर्च नहीं पड़ता चूंकि घर का बचा- खुचा भोजन, सब्जी के बेकार पत्ते और अनाज के बचावन से उनके लिए अच्छा भोजन, सब्जी के बेकार पत्ते और अनाज के बचावन से उनके लिए अच्छा भोजन प्राप्त हो सकता है तथा उसके बदले हमें बढ़िया मांस और बलदायक अंडे प्राप्त होते हैं।
इस व्यवसाय में मुख्य रूप से तीन प्रकार का धंधा हो सकता है
उन्नत नस्ल की मुर्गियाँ साल भर में लगभग 250-300 अंडे देती हैं जबकि देशी मुर्गियाँ केवल 50-60 अंडे। इन मुर्गियों को साल भर अंडा देने के बाद बेच देना चाहिए क्योकि इनकी अंडा देने की क्षमता घट जाती है तथा दाना खिलाने में लाभ के वनस्पति अधिक खर्च बैठता है। मुर्गीपालन में आहार पर 65-70 प्रतिशत खर्च बैठता है। इसलिए कमजोर तथा कम अंडा देने वाली मुर्गियाँ की बराबर छटाई करते रहना चाहिए।
इस व्यवसाय में मुख्य रूप से तीन प्रकार का धंधा हो सकता है
- क) अंडा और मांस उत्पादन के लिए मुर्गीपालन
- ख) चूजा उत्पादन।
- ग) पौष्टिक आहार मिश्रण तैयार करना तथा आहार, चूजा अंडा, मांस एवं मुर्गी खाद का क्रय विक्रय।
मुर्गीपालन के लिए आवश्यकता-
अधिक अंडा उत्पादन के लिए हमारे देश या विदेश में सबसे अच्छे नस्ल की सफेद मुर्गी होती है जिसे “व्हाइट लेग हार्न” कहते हैं। मांस उत्पादन के लिए कोरनिस, न्यूहेपशायर, असील, चटगाँव आदि नस्लें हैं। मुर्गीपालन के लिए हमेशा ऐसी मूर्गियां पाली जानी चाहिए और बड़े अंडे देने वाली हों। अच्छी मुर्गी का चुनाव करते समय निम्न बातों को ध्यान में रखना चाहिए। अच्छी मुर्गी के सिर चौड़े अता विस्तृत होते हैं, सकरे या गोलाकार नहीं। कलंगी लाल और चमकदार होती है। पेट बड़ा होता है तथा त्वचा कोमल लचीली होती हैं। जघनास्थी चौड़ा तथा योनिमूख अंडाकार होता है।मुर्गी फार्म खोलने कें लिए आवश्यक वस्तूएं
- क) मुर्गीपालन घर
- ख) दाना, पानी देने के लिए बर्तन
- ग) ब्रूडर
- घ) उन्नत नस्ल के चूजे या बड़ी मुर्गियाँ
- ङ) रोगों से बचाव के लिए टीका औषधि तथा दवा
- च) अंडा देने का बक्सा
- छ) रोशनी या बिजली का प्रबंध
- ज) हाट-बाजार जहाँ व्यापार किया जायेगा
- झ) आमदनी – खर्च का हिसाब- किताब
उन्नत नस्ल की मुर्गियाँ साल भर में लगभग 250-300 अंडे देती हैं जबकि देशी मुर्गियाँ केवल 50-60 अंडे। इन मुर्गियों को साल भर अंडा देने के बाद बेच देना चाहिए क्योकि इनकी अंडा देने की क्षमता घट जाती है तथा दाना खिलाने में लाभ के वनस्पति अधिक खर्च बैठता है। मुर्गीपालन में आहार पर 65-70 प्रतिशत खर्च बैठता है। इसलिए कमजोर तथा कम अंडा देने वाली मुर्गियाँ की बराबर छटाई करते रहना चाहिए।
मुर्गी के विभिन्न नस्ल -
घगुस मुर्गी-
यह नस्ल मुख्यत: आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में पायी जाती है। इसके पंख लाल, काले, सलेटी, भूरे और खाड़ी रंग के होते हैं। चोटी, मटर के आकार की और छोटी होती है। छोटी वैटलस होती है, कंठ झालरदार होती है और हल्के पीले रंग की और लंबी टांगे होती हैं।
बसरा मुर्गी-
इस नस्ल का उपयोग मुख्यत: मीट उत्पादन के लिए किया जाता है। यह विभिन्न रंगों में पायी जाती है। इसके मुर्गे का भार 2.5-3 किलो और मुर्गी का भार 2-2.5 किलो होता है। आज कल के दिनों में यह नस्ल कम संख्या में पायी जाती है।
आई बी एल-80 मुर्गी-
यह नस्ल दो मीट उत्पादन करने वाली नस्लों से तैयार की गई है। यह नसल 5 सप्ताह के अंदर अंदर 1250-1350 ग्राम भार प्राप्त कर लेती है। यह नसल 2 किलो दाने खाकर अपना भार 1 किलो बढ़ा लेती है। इसे राष्ट्रीय स्तर पर जारी किया गया है और यह कई राज्यों में पायी जाती है।
सतलुज मुर्गी-
सतलुज नस्ल दो वाईट लैगहॉर्न नसलों से तैयार की गई नसल है। यह नसल प्रतिवर्ष 270-280 अंडे देती है और इसके एक अंडे का औसतन भार 58 ग्राम होता है।
पंजाब वाईट बटेर मुर्गी-
यह नस्ल जिसमें सफेद रंग के पंख होते हैं इसे वन्य जीवन संरक्षण अधिनियम के तहत तवज्जो देकर तैयार किया गया है। इसे ‘पंजाब सफेद बटेर’ के नाम से भी जाना जाता है। जिसे व्यापारिक स्तर पर तैयार किया गया है। यह नस्ल 5 सप्ताह के अंदर अंदर लगभग 225 ग्राम भार प्राप्त कर लेती है। इसके अंडे का भार 12 ग्राम होता है जिसे मुख्यत: आचार बनाने के लिए प्रयोग किया जाता है । इस नस्ल के मीट का स्वाद अच्छा होता है और कई बीमारियों के उपचार के लिए लाभदायक है। इस नस्ल के मीट में उच्च मात्रा में कार्बोहाइड्रेट और विटामिन बी12 होता है। यह नसल बीमारियों के प्रतिरोधक है और इसे किसी टीकाकरण की जरूरत नहीं होती।
कड़कनाथ मुर्गी-
इस नस्ल का मूल स्थान भारत है और यह मध्य प्रदेश में पायी जाती है। इसे काली मासी के नाम से भी जाना जाता है। यह नस्ल इसके अच्छे स्वाद वाले मीट उत्पादन के लिए प्रसिद्ध है। इसकी काली टांगें, काले पंजे, काली चोटी, काली गर्दन, और काले रंग का मांस और हड्डियां होती हैं। इस नस्ल के अंडे हल्के भूरे रंग के होते हैं। इनके पैर, पंजे, पिंडली और चोंच सलेटी रंग की होती है। जीभ जामुनी रंग की होती है। कुछ आंतरिक अंगों में गहन काला रंग देखा जाता है। यह नसल मुख्यत: प्रतिवर्ष 80 अंडों का उत्पादन करती है। इसके अंडे का औसतन भार 46.8 ग्राम होता है।
प्लाईमाउथ रॉक मुर्गी-
प्लाईमाउथ रॉक की सबसे प्रसिद्ध नसल ब्रॉड प्लाईमाउथ रॉक और वाईट प्लाईमाउथ रॉक है। इस नस्ल को दोहरे मंतव के लिए प्रयोग किया जाता है। मीट उत्पादन और अंडा उत्पादन के लिए। इनका शरीर बड़ा, चौड़ी और गोल छाती, गहरे लाल रंग के कान, इकहरी चोटी, पीले रंग की टांगें और पीले या रंग बिरंगी चोंच होती है। नर प्लाईमाउथ रॉक का औसतन भार 3.4 किलो और मादा प्लाईमाउथ रॉक का औसतन भार 2.9 किलो होता है। इस नस्ल को ज्यादातर ब्रॉयलर के रूप में उपयोग किया जाता है।
न्यू हैंपशायर मुर्गी-
यह किस्म रोड आईलैंड और एक अन्य नसल से विकसित की गई है। इसे इसके बहुत जल्दी पंख निकालने, अच्छी गुणवत्ता वाले मीट और अंडा उत्पादन के लिए जाना जाता है। इसे मुख्यत: अंडा उत्पादन से ज्यादा मीट उत्पादन के लिए उपयोग किया जाता है। इनका शरीर चौड़ा होता है। यह भूरे रंग के अंडे देती है और इकहरी चोटी होती है जो कि मध्यम से बड़े आकार की होती है। इस नसल का औसतन भार 2.9-3.9 किलो होता है। यह नस्ल प्रतिवर्ष 120 अंडे देती है।
कॉरनिश रोक मुर्गी-
यह नस्ल मलय नस्ल (अंग्रेजी खेल पक्षी) नस्ल और असील नस्ल के प्रजनन से तैयार की गई है। इस नस्ल के शरीर पर बड़े पैमाने पर मांस होता है। इस नसल को इसकी चौड़ी और मोटी छाती के लिए जाना जाता है। इसकी त्वचा सफेद और चोटी पीले रंग की होती है। नर कोर्निश रॉक अच्छे मीट की किस्म के ब्रॉयलर का उत्पादन करने के लिए उपयोग किया जाता है।
असील मुर्गी-
यह नस्ल दक्षिणी पंजाब, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और आंध्रा प्रदेश में पायी जाती है। यह नस्ल अपनी उच्च सहनशक्ति, झगड़ालूपन और जबरदस्त लड़ने की गुणवत्ता होने के कारण जानी जाती हैं। इनके काले, लाल मिश्रित रंग के पंख होते है। असील की सभी नसलों में रेजा (हल्की लाल), टीकर (भूरी), चित्ता (काले और सफेद सिल्वर), कागर (काली), Nurie 89 (सफेद), यारकिन (काली और लाल) और पीला (सुनहरी लाल) नसलें प्रसिद्ध हैं। इन्हें मुख्यत: मीट उत्पादन के लिए उपयोग किया जाता है क्योंकि ये अंडा उत्पादन में कमज़ोर होती हैं। इनका मुंह लंबा और बेलनाकार होता है जो कि पंखों, घनी आंखों, लंबी गर्दन और छोटी पूंछ के साथ नहीं होता। इनकी मजबूत और सीधी टांगे होती हैं। इस नस्ल के मुर्गे का भार 4-5 किलो और मुर्गी का भार 3-4 किलो होता है। इसके कोकराल (युवा मुर्गे) का औसतन भार 3.5-4.5 किलो और पुलैट्स (युवा मुर्गी) का औसतन भार 2.5-3.5 किलो होता है।
लैगहॉर्न मुर्गी-
यह नस्ल छोटी और हल्के शरीर वाली होती है। इनकी लगभग 13 प्रजातियां हैं जिनमें से इकहरी चोटी वाली सफेद लैगहॉर्न प्रसिद्ध है। जो ज्यादा मात्रा में अंडा उत्पादन के लिए जानी जाती है। नर लैगहॉर्न का औसतन भार 2.4-2.7 किलो और मादा लैगहॉर्न का औसतन भार 2.0-2.3 किलो होता है। इसके पंख सफेद रंग के, त्वचा का रंग पीला और सफेद या क्रीम रंग के कान होते हैं। यह सफेद रंग के अंडे देती है जिसका औसतन भार 55 ग्राम होता है।
रोड-आईलैंड-रैड मुर्गी-
यह नस्ल छोटे और गरीब किसानों के लिए पोल्टरी का काम करने के लिए यूनिवर्सिटी द्वारा तैयार की गई है। क्योंकि यह नस्ल भूरे रंग के अंडों का उत्पादन करती है, इसलिए यह नसल ग्रामीण लोगों के लिए अच्छा चुनाव है। रोड आईलैंड चिकन का रंग गहरे लाल से महोगनी रंग का होता है। मुर्गे का भार 3.85 किलो और मुर्गी का भार 2.95 किलो होता है। यह नस्ल 250-255 अंडे प्रतिवर्ष देती है और एक अंडे का औसतन भार 53-55 ग्राम होता है। ज्यादा कीमत पर बिकने और रंग बिरंगी नस्ल होने के कारण यह छोटे और ग्रामीण किसानों में बहुत प्रसिद्ध है। अंडा उत्पादन के बाद जब इस नस्ल को मीट उत्पादन के लिए प्रयोग किया जाता है तो यह सफेद लेगॉर्न नस्ल से ज्यादा मीट देती है। यह आय का अच्छा स्त्रोत है।
मुर्गी पालन में आवश्यक चारा-
प्रोटीन : -
0-10 सप्ताह के मुर्गी के बच्चों के आहार में 10-20 प्रतिशत प्रोटीन होना जरूरी है। मीट पक्षियों जैसे तीतर, बटेर और टर्की के लिए 22-24 प्रतिशत प्रोटीन आवश्यक होता है। प्रोटीन की उच्च मात्रा से मुर्गी के बच्चों को वृद्धि करने में मदद मिलती है। वृद्धि के लिए उनके आहार में लगभग 15-16 प्रतिशत प्रोटीन होना जरूरी है और लेयरर्स के लिए उनके आहार में 16 प्रतिशत प्रोटीन की मात्रा होनी जरूरी है।
पानी : -
मुर्गी के बच्चों के पहले पानी में 1/4 कप चीनी और 1 चम्मच टैरामाइसिन/ गैलोन शामिल होना चाहिए और दूसरे पानी में 1 चम्मच टैरामाइसिन शामिल होना चाहिए और फिर उसके बाद सामान्य पानी दिया जाना चाहिए। प्रत्येक चार बच्चों को एक चौथाई पानी दें। पानी ताजा और साफ होना चाहिए।
कार्बोहाइड्रेट्स : -
शारीरिक फैट और तापमान को संतुलित बनाए रखने के लिए कार्बोहाइड्रेट्स जरूरी होते हैं। इसके लिए उन्हें एनर्जी की जरूरत होती है जो कि कार्बोहाइड्रेट्स से आती है। उनके भोजन में कार्बोहाइड्रेट्स की मात्रा 10 प्रतिशत से ज्यादा नहीं होनी चाहिए क्योंकि इसे पचाना उनके लिए मुश्किल होता है।
खनिज सामग्री : -
खनिज सामग्री का उपयोग हड्डियों और अंडों को बनाने के लिए और अन्य शारीरिक कार्यों के लिए किया जाता है। खनिज सामग्री में कैल्शियम, मैगनीशियम, सोडियम, पोटेशियम, फास्फोरस, क्लोरीन, सल्फर, मैगनीज़, आयरन, कॉपर, आयोडीन, जिंक, कोबाल्ट और सेलेनियम शामिल हैं। मुख्य रूप से इन सामग्रियों को फीड से प्राप्त किया जाता है।
विभिन्न किस्मों के नस्ल की मुर्गियों देख रेख-
शैल्टर और देखभाल : -
मुर्गी पालन के लिए उपयुक्त ज़मीन का चयन किया जाना चाहिए जहां पर ज्यादा से ज्यादा बच्चे और अंडे विकसित हो सकें। शैल्टर सड़क से कुछ ऊंचाई पर होना चाहिए ताकि बारिश का पानी आसानी से बाहर निकल जाये और इससे उनका बाढ़ से भी बचाव होगा। शैल्टर में ताजे पानी का प्रबंध भी होना चाहिए। 24 घंटे बिजली की आपूर्ति होनी चाहिए। मुर्गियों का आश्रय औद्योगिक और शहरी क्षेत्र से दूर होना चाहिए क्योंकि इससे मुर्गियों की खादें वातावरण में प्रदूषित होंगी और मक्खियों की समस्या भी होगी । ऐसा आश्रय चुनें जो शोर रहित हो। शोर की समस्या पक्षियों के उत्पादन पर प्रभाव डालेगी। फैक्टरियों का धुआं भी पक्षियों पर प्रभाव डालता है।
नए जन्में बच्चों की देखभाल : -
मुर्गियों के नन्हें बच्चों की वृद्धि के लिए उचित ध्यान और इनक्यूबेटर की आवश्यकता होती है। अंडों को उपयुक्त तापमान देकर 21 दिनों के लिए इनक्यूबेटर में रखा जाता है। अंडे सेने के बाद बच्चों को 48 घंटे बाद इनक्यूबेटर से निकाल लिया जाता है। इनक्यूबेटर से निकालने के दौरान बच्चों की संभाल बहुत सावधानी से की जानी चाहिए। इनक्यूबेटर से बच्चों को निकालने के बाद उन्हें ब्रूडर में रखा जाता है। पहले सप्ताह के लिए ब्रूडर का तापमान 95 डिगरी फार्नाहीट होना जरूरी है और प्रत्येक सप्ताह इसका तापमान 5 डिगरी फार्नाहीट कम करना जरूरी है। बच्चों को उचित फीड उचित समय पर देनी चाहिए और ब्रूडर में ताजा पानी हर समय उपलब्ध होना चाहिए।
सिफारिश टीकाकरण : -
मुर्गी के बच्चों की अच्छी वृद्धि के लिए अपडेट किया गया टीकाकरण भी आवश्यक है। कुछ मुख्य टीके और दवाइयां जो कि मुर्गियों की अच्छी सेहत बनाए रखने के लिए आवश्यक हैं, निम्नलिखित हैं।
- जब बच्चा एक दिन का हो तो उसे Marek’s बीमारी से बचाने के लिए HVT का टीका लगवाएं। इस टीके का प्रभाव 18 महीनों तक रहेगा।
- जब बच्चा 4-7 दिन का हो तो उसे रानीखेत बीमारी से बचाने के लिए RD vaccination (F1 strain) का टीका लगवाएं इस टीके का प्रभाव 2-4 महीने तक रहेगा।
- जब बच्चा 18-21 दिन का हो तो उसे गुमबोरो बीमारी से बचाने के लिए IBD का टीका लगवाएं।
- जब बच्चा 4-5 सप्ताह का हो तो उसे रानीखेत बीमारी से बचाने के लिए RD (F1 strain) का टीका लगवाएं।
- जब बच्चा 6-8 सप्ताह का हो तो उसे रानीखेत बीमारी से बचाने के लिए RD (F2B strain) का टीका लगवाएं। बच्चे को 0.5 मि.ली. दवाई दी जाती है।
- जब बच्चा 8-10 सप्ताह का हो तो उसे चिकन पॉक्स बीमारी से बचाने के लिए चिकन पॉक्स का टीका लगवाएं।
बीमारियां और रोकथाम-
र्ब्ड फ्लू (बर्ड फ्लू (एवियन इन्फ्लूएंजा) :
यह इन्फ्लूएंजा के कारण होता है और यह 100 प्रतिशत मौत दर को बढ़ाता है। यह संक्रमण श्वास नाली, आंसू और व्यर्थ पदाथों से आता है। यह बीमारी एक मुर्गी से दूसरी मुर्गी में बड़ी जल्दी फैलती है। यह अस्वस्थ खाना और पानी के बर्तन, कपड़ों से भी फैल सकती है। इसके लक्षण हैं - मुर्गियों का सुस्त हो जाना, भूख कम लगना, अंडों का कम उत्पादन और चोटी का पीले रंग में बदल जाना और जल्दी मौत हो जाना है।
इलाज : चिकन फार्म से कुछ भी अंदर या बाहर ले जाना बंद कर दें। फार्म के अंदर प्रयोग किए जाने वाले जूते अलग रखें। गड्ढा बनाएं और उसमें दी गई मात्रा में दवाई डालें। ताकि फार्म में जाने से पहले अपने पैरों को इस उपचारित पानी में डुबोया जा सके। फार्म के चारों तरफ Qualitol की स्प्रे करके कीटाणुओं को नष्ट करें।
बीमारी के दौरान सावधानियां : क्योंकि यह बीमारी इंसानों को प्रभावित करती है इसलिए बीमारी से प्रभावित मुर्गियों को उठाने से पहले उचित कपड़े और दस्ताने पहनें। मरी हुई और संक्रमित मुर्गियों को जला दें या मिट्टी में दबा दें। मीट को 70 डिगरी सेल्सियस पर बनायें इससे संक्रमण मरता है और इसे खाने के लिए प्रयेाग किया जाता है।
विटामिन ए की कमी :
इस बीमारी के लक्षण हैं चोंच और टांगों का पीला पड़ना और सिर चकराना।
इलाज : खाने में विटामिन ए की मात्रा बढ़ाएं और हरी फीड दें।
पंजों का कमज़ोर होना : यह बीमारी मुख्यत: विटामिन बी 2 की कमी के कारण होती है और यह मुख्यत: बढ़ते हुए पशुओं में देखी जाती है। इससे पंजे अंदर की तरफ मुड़ जाते हैं।
इलाज : फीड में विटामिन बी2 दें।
विटामिन डी की कमी :
यह बीमारी मुख्यत: विटामिन बी 2 की कमी के कारण और शरीर में कैल्शियम और फास्फोरस के संतुलन बिगड़ने के कारण होती है।
इलाज : फीड में विटामिन डी 3 दें।
चिकन पॉक्स :
यह संक्रमण द्वारा फैलने वाली बिमारी है और यह किसी भी उम्र के पक्षी में फैल सकती है। इसके लक्षण हैं चोटी, आंखों और कानों के आस-पास फोड़ों का होना है।
इलाज : चिकन पॉक्स से बचाव के लिए होमियोपैथिक दवाई antimonium torterix 5 मि.ली. प्रति 100 पक्षियों को दें।
कोकसीडियोसिस :
यह एक परजीवी बीमारी है, जो कि कोकसीडियान प्रोटोज़ोआन के कारण होती है। यह बीमारी मुख्यत: मुर्गी के 3-10 सप्ताह के बच्चों में होती है। यह प्रौढ़ बच्चों को भी प्रभावित करती है।
इलाज : उचित साफ सफाई की जानी चाहिए। लगभग 12 सप्ताह के मुर्गी के बच्चों को फीड में कोकसीडियोस्टैट दें। उदाहरण के लिए befran या amprol 50 ग्राम, clopidol 125 ग्राम प्रति क्विंटल, stanorol 50 ग्राम प्रति टन फीड में दें। प्रत्येक 1-2 वर्ष बाद दवाई बदलते रहें। दवाई को फीड में अच्छी तरह से मिक्स करें।
ल्यूकोसिस और मर्क का:-Leucosis and marek’s:
Marek’s के लक्षण : यह मुख्यत: 1-4 महीने के मुर्गी के बच्चों में फैलती है और कई बार यह 30 दिन के बच्चों को भी हो जाती है। इसके लक्षण हैं टांगों, पंखों और गर्दन का कमज़ोर होना, सलेटी रंग की आंखे होना और पक्षी का अपने आप अंधा हो जाना।
Leucosis के लक्षण : यह मुख्यत: 4 महीने से ज्यादा उम्र के बच्चों में होती है। इसके लक्षण हैं लीवर का आकार बढ़ना और नसों को छोड़कर बाकी सारे शरीर के भागों में अल्सर का पाया जाना।
इलाज : जब बच्चा 1 दिन का हो तो उसे Marek’s का टीका लगवायें। साफ सफाई का उचित ध्यान रखें और अच्छी तरह से देखभाल करें।
रानीखेत बीमारी :इसे न्यू कैस्टल बीमारी (New Castle disease) भी कहा जाता है। यह बहुत ही संक्रामक बीमारी है और हर उम्र के पक्षी में फैलती है। इसके लक्षण हैं मौत दर का बढ़ना, सांस लेने में समस्या, टांगों और पंखों का कमज़ोर होना।
इलाज : जब बच्चे 1-6 दिन के हों तो इन्हें रानीखेत दवाई F strain का टीका लगवायें और 4 सप्ताह के अंतराल पर F-1 का टीका ब्रॉयलर को लगवाया जाना चाहिए।
Fatty liver syndrome (FLS) : यह बीमारी मुख्यत: फीड की अपच की समस्या के कारण होती है जिसकी वजह से शरीर में फैट का जमाव हो जाता है। यह बीमारी मुख्यत: अंडा उत्पादित मुर्गी और ब्रॉयलर में पायी जाती है जिन्हें ज्यादा एनर्जी वाला भोजन दिया जाता है। इसके लक्षण हैं 50 प्रतिशत कम अंडों का उत्पादन, 20-25 प्रतिशत भार का कम होना और लीवर और शरीर पर रक्त के धब्बे दिखना आदि।
इलाज : फीड में ऊर्जा की मात्रा कम कर दें। 1क्विंटल फीड में 100 ग्राम choline chloride, 10000 I U Vitamin E, 1.2 मि.ग्रा. Vitamin B12 और 100 ग्राम incitol मिक्स करें।
Aflatoxin : यह मुख्यत: नमी और गर्म मौसम और बारिश के मौसम के कारण होती है। इसके लक्षण हैं भूख कम लगना, अंडों के उत्पादन में कमी, प्यास का बढ़ना और रक्त के स्तर का कम होना आदि हैं।
इलाज : Livol या liv-52 या tefroli tonic फीड में दें और पानी के द्वारा दें। विटामिन ए और विटामिन ई 60000 IU और 300 IU प्रति एकड़ में दें।
No comments:
Post a Comment
कमेन्ट पालिसी
नोट-अपने वास्तविक नाम व सम्बन्धित आर्टिकल से रिलेटेड कमेन्ट ही करे। नाइस,थैक्स,अवेसम जैसे शार्ट कमेन्ट का प्रयोग न करे। कमेन्ट सेक्शन में किसी भी प्रकार का लिंक डालने की कोशिश ना करे। कमेन्ट बॉक्स में किसी भी प्रकार के अभद्र भाषा का प्रयोग न करे । यदि आप कमेन्ट पालिसी के नियमो का प्रयोग नही करेगें तो ऐसे में आपका कमेन्ट स्पैम समझ कर डिलेट कर दिया जायेगा।
अस्वीकरण ( Disclaimer )
गोण्डा न्यूज लाइव एक हिंदी समुदाय है जहाँ आप ऑनलाइन समाचार, विभिन्न लेख, इतिहास, भूगोल, गणित, विज्ञान, हिन्दी साहित्य, सामान्य ज्ञान, ज्ञान विज्ञानं, अविष्कार , धर्म, फिटनेस, नारी ब्यूटी , नारी सेहत ,स्वास्थ्य ,शिक्षा ,18 + ,कृषि ,व्यापार, ब्लॉगटिप्स, सोशल टिप्स, योग, आयुर्वेद, अमर बलिदानी , फूड रेसिपी , वाद्ययंत्र-संगीत आदि के बारे में सम्पूर्ण जानकारी केवल पाठकगणो की जानकारी और ज्ञानवर्धन के लिए दिया गया है। ऐसे में हमारा आपसे विनम्र निवेदन है कि आप किसी भी सलाह,उपाय , उपयोग , को आजमाने से पहले एक बार अपने विषय विशेषज्ञ से अवश्य सम्पर्क करे। विभिन्न विषयो से सम्बन्धित ब्लाग/वेबसाइट का एक मात्र उद्देश आपको आपके स्वास्थ्य सहित विभिन्न विषयो के प्रति जागरूक करना और विभिन्न विषयो से जुडी जानकारी उपलब्ध कराना है। आपके विषय विशेषज्ञ को आपके सेहत व् ज्ञान के बारे में बेहतर जानकारी होती है और उनके सलाह का कोई अन्य विकल्प नही। गोण्डा लाइव न्यूज़ किसी भी त्रुटि, चूक या मिथ्या निरूपण के लिए जिम्मेदार नहीं है। आपके द्वारा इस साइट का उपयोग यह दर्शाता है कि आप उपयोग की शर्तों से बंधे होने के लिए सहमत हैं।