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3 यूरोपीय समुदायों के बारे में कहा जाता है कि ये हैं भारतीय

 
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कहते हैं कि प्राचीन काल में कई लोग और समूह भारत से बाहर जाकर बस गए थे और अब उन्हें पूर्ण रूप से विदेशी माना जाता है। हालांकि उनमें से कुछ समूह यह मानते हैं कि कहीं न कहीं उनका संबंध भारत और उसके धर्म से है। आओ जानते हैं ऐसी ही जातियों के बारे में संक्षिप्त में।

1. जिप्सी : 

रोम, फ्रांस और अन्य योरप की जगहों पर रहने वाली जिप्सी जातियों के लोगों के बारे में कहा जाता हैं कि ये भारतीय मूल के हैं। योरप में कम से कम 6 जिप्सी समुदाय के लोग लाखों की संख्या में रहते हैं। कुछ विद्वान मानते हैं कि आर्यो के समूह विभाजन के समय कुछ समूह ने योरप के रुख किया था उन्हीं में से एक है जिप्सी और कुछ विद्वान मानते हैं कि सिकंदर के भारत पर आक्रमण के समय कुछ भारतीय समूह ने भारत छोड़ दिया था। इन समूह में सिंधि, गुजराती, सोराष्ट्र, मालवी और पंजाबी लोग शामिल हैं। सिंधियों को अब सिंदे सोराष्टियन के लोगों को अब अमेरिका में जोराचीज कहा जाता है। जिप्सीयों के भाषा और उनकी संकृति के आधार पर यह कहा जाता है कि वे भारतीय हैं।

2. रोमा : 

कहते हैं कि दसवीं सदी में भारत से पलायन करने वाली रोमा बंजारा जाति विभिन्न यूरोपीय देशों में रहती है। आज की तारीख में विभिन्न यूरोपीय देशों में रोमा लोगों की तादाद करीब 2 करोड़ से भी ज्यादा है। भारत में 2016 में तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय रोमा कांफ्रेंस एंड कल्चरल फेस्टिवल का आयोजन हुआ था जिसमें यह खुलासा हुआ कि दुनिया के 30 देशों में रोमा समुदाय लोगों की संख्या करीब 2 करोड़ है। अधिकतर मध्य और पूर्वी यूरोप में रहते हैं, लेकिन उनका जीवन मुश्‍किलों भरा है। एक सर्वे के अनुसार भेदभाव के चलते लगभग 80 प्रतिशत रोमा गरीबी रेखा से नीचे है। संगीतकार एल्विस प्रेसली, चित्रकार पाब्लो पिकासो, कॉमेडियन चार्ली चैपलिन के बारे में कहा जाता है कि ये सभी रोमा समुदाय से ही हैं जिसकी जड़ें भारत से जुड़ी हुई हैं।

रोमा समुदाय के लोगों को मानना है कि वे उन बीस हजार भारतीयों के वंशज हैं जिन्हें दो हजार वर्ष पहले सिंकदर अपने साथ यूरोप ले गया था। फिरदौसी द्वारा लिखित शाहनामा के मुताबिक पांचवीं शताब्दी में ईरान के राजा बैराम गुर के निवेदन पर एक भारतीय राजा ने वहां राष्ट्रीय उत्सव के लिए 20 हजार संगीतकार भेजे थे। आज उन्हीं के वंशज सारे यूरोप में प्रसिद्ध कलाकार हैं। इनमें लोहे के हथियार बनाने वाले कारीगर, शिल्पकार और संगीतज्ञ थे। ज्यादातर रोमा रूस, स्लोवाकिया, हंगरी, सर्बिया, स्पेन और फ्रांस में बसे हैं। जबकि कुछ रोमानिया, बुल्गारिया और तुर्की में हैं। इनमें भारत की डोम, बंजारा, गुर्जर, सांसी, चौहान, सिकलीगर, डागर आदि जातियों के लोग हैं। हालांकि कुछ इतिहासकार मानते हैं कि 11वीं सदी में भारत पर महमूद गजनी के आक्रमण के बाद इन लोगों को पलायन करना पड़ा था।

3. सिंती : 

रोमा की तरह सिंती समुदाय को भी भारतवंशी माना जाता है। इस समुदाय को रोमा बिरादरी का माना जाता है। सिंती जाति के बारे में कहा जाता है कि ‘सिंती’ नाम सिंधी से ही बना होना चाहिए, यानी उनके पूर्वज सिंध के रहे होंगे। वे स्वयं भी यही मानते हैं। 2012 में विज्ञान पत्रिका ‘करंट बायोलॉजी’ में प्रकाशित अपने एक शोधपत्र में नीदरलैंड में रोटरडाम के एरास्मस विश्वविद्यालय के मान्फ्रेड काइजर ने लिखा था कि रोमा और सिंती बिरादरी के पू्र्वज करीब 1,500 साल पहले भारत में रहा करते थे और करीब 900 साल पूर्व, यानी 11वीं-12वीं सदी में, वे बाल्कन प्रायद्वीप (यूनान, रोमानिया, बुल्गारिया, भूतपूर्व यूगोस्लाविया) के रास्ते से यूरोप में फैलने लगे थे।
संदर्भ : जिप्सी- भारत की विस्मृत संतति (1984) प्रकाशन विभाग, सूचना ओर प्रसारण मन्त्रांलय- भारत सरकार.


4. यजीदी : 
कहते हैं कि यजीदी लोग का भी भारत से कहीं न कहीं जुड़ा है। हालांकि ये लोग मूल रूप से अरब के ही रहने वाले हैं लेकिन मान्यता के अनुसार यजीदी धर्म को हिन्दू धर्म की एक शाखा माना जाता है। यजीदियों की गणना के अनुसार अरब में यह वे लोग 6,763 वर्ष से विद्यमान हैं अर्थात ईसा के 4,748 वर्ष पूर्व यहूदियों, ईसाइयों और मुसलमानों से पहले से से वे वहां रहते आए हैं और उस काल में उनके लोगों की संख्या जाता थी। यजीदी भी हिन्दु्ओं की तरह पूजा प्रार्थना करते हैं और उनके देवता कार्तिकेय से मिलते जुलते हैं। यजीदी भी पुनर्जन्म को मानते हैं। उनके सभी संस्कार और उनके मंदिर हिन्दुओं की तरह ही है। यह भी कहा जाता है कि अरब और ईरान की कई प्रचीन जातियों का संबंध भारत से है।

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