भारतीय संविधान में आर्टिकल 12 से 35 तक मौलिक अधिकारों का प्रावधान है. संविधान का भाग-3 देश के नागरिकों को दिए गए मौलिक अधिकारों की बात करता है।
भारतीय संविधान में 'अल्पसंख्यक' शब्द को परिभाषित नहीं किया गया है। 27 जनवरी 2014 के भारत के राजपत्र के अनुसार, मुस्लिम, सिख, ईसाई, बौद्ध, पारसी और जैन धर्म के लोगों को भारत में अल्पसंख्यक समुदाय का दर्जा मिला है।
अनुच्छेद 28 (Article 28) कहता है कि जो भी शैक्षणिक संस्थान सरकार द्वारा दिए गए धन से चलते हैं उनमें कोई भी धार्मिक निर्देश नहीं दिया जाएगा।
अनुच्छेद 29 अल्पसंख्यक वर्गों के हितों का संरक्षण-
29(1): भारत के राज्यक्षेत्र या उसके किसी भाग के निवासी नागरिकों के किसी अनुभाग को, जिसकी अपनी विशेष भाषा, लिपि या संस्कृति है, उसे बनाए रखने का अधिकार होगा ।
29(2): राज्य द्वारा पोषित या राज्य-निधि से सहायता पाने वाली किसी शिक्षा संस्था में प्रवेश से किसी भी नागरिक को केवल धर्म, मूलवंश, जाति, भाषा या इनमें से किसी के आधार पर वंचित नहीं किया जाएगा । -संविधान के शब्द
अनुच्छेद 30: शिक्षा संस्थाओं की स्थापना और प्रशासन करने का अल्पसंख्यक-वर्गो का अधिकार
आर्टिकल 30, देश में शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना और प्रशासन के लिए अल्पसंख्यकों को अधिकार देता है।
30(1): धर्म या भाषा पर आधारित सभी अल्पसंख्यक-वर्गों को अपनी रुचि की शिक्षा संस्थाओं की स्थापना और प्रशासन का अधिकार होगा ।
1(1क) खंड (1) में निर्दिष्ट किसी अल्पसंख्यक वर्ग द्वारा स्थापित और प्रशासित शिक्षा संस्था की संपत्ति के अनिवार्य अर्जन के लिए उपबंध करने वाली विधि बनाते समय, राज्य यह सुनिश्चित करेगा कि ऐसी संपत्ति के अर्जन के लिए ऐसी विधि द्वारा नियत या उसके अधीन अवधारित रकम इतनी हो कि उस खंड के अधीन प्रत्याभूत अधिकार निर्बन्धित या निराकृत न हो जाए । अधिकारों को ना तो रोकोगा और ना ही निरस्त करेगा ।
30(2): शिक्षा संस्थाओं को सहायता देने में राज्य किसी शिक्षा संस्था के विरुद्ध इस आधार पर विभेद नहीं करेगा कि वह धर्म या भाषा पर आधारित किसी अल्पसंख्यक-वर्ग के प्रबंध में है ।
आर्टिकल 30 के तहत दी गई सुरक्षा केवल अल्पसंख्यकों तक सीमित है और इसे देश के सभी नागरिकों तक विस्तारित नही किया जाता है।
आर्टिकल 30 अल्पसंख्यक समुदाय को यह अधिकार देता है कि वे अपने बच्चों को अपनी ही भाषा में शिक्षा प्रदान करा सकते हैं। इसका मतलब है कि मुसलमान समुदाय चाहे तो अपने बच्चों को उर्दू और ईसाई चाहे तो अंग्रेजी माध्यम से पढ़ा सकता है।
देश में तीन प्रकार के अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थान हैं; (Types of Minority Institutions in India)
- (a) सरकार से मान्यता लेने के साथ साथ आर्थिक सहायता की मांग करने वाले संस्थान;
- (b) ऐसी संस्थाएँ जो राज्य से केवल मान्यता की मांग करती हैं और आर्थिक सहायता नहीं; तथा
- (c) ऐसी संस्थाएँ जो न तो राज्य से मान्यता और न ही आर्थिक सहायता की माँग करते हैं.
उपरोक्त तीनों प्रकारों के संस्थानों की व्याख्या:-
ऊपर दिए गए a और b प्रकार के संस्थान, सरकारों द्वारा बनाए गए नियमों का पालन करने के लिए बाध्य हैं। ये नियम; शैक्षणिक मानकों, पाठ्यक्रम, शिक्षण कर्मचारियों के रोजगार, अनुशासन और स्वच्छता आदि से संबंधित हैं।
तीसरे प्रकार के संस्थान अपने नियमों को लागू करने के लिए स्वतंत्र हैं, लेकिन उन्हें श्रम कानून, अनुबंध कानून, औद्योगिक कानून, कर कानून, आर्थिक नियम, आदि जैसे सामान्य कानूनों का पालन करना पड़ता है।
इसका मतलब यह नहीं है कि अल्पसंख्यक संस्थानों के तीसरे प्रकार के संसथान या अनएडेड संस्थान, नियुक्तियां करते समय राज्य द्वारा निर्धारित पात्रता मानदंड / योग्यता का पालन नहीं करेंगे. इन संस्थानों को केवल एक तर्कसंगत प्रक्रिया अपनाकर शिक्षकों / व्याख्याताओं और अन्य कर्मचारियों की नियुक्ति करने की स्वतंत्रता होगी।
आर्टिकल 30 पर सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय (Supreme Court decision of Article 30):-
मलंकारा सीरियन कैथोलिक कॉलेज केस (2007) के मामले में दिए गए एक फैसले में, माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि;
अनुच्छेद 30 के तहत अल्पसंख्यक समुदायों को दिए गए अधिकार केवल बहुसंख्यकों के साथ समानता सुनिश्चित करने के लिए हैं और इनका इरादा अल्पसंख्यकों को बहुसंख्यकों की तुलना में अधिक लाभप्रद स्थिति में रखने का नहीं है।
इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा है कि इस बात के कोई सबूत नही हैं कि अल्पसंख्यकों को कानून से बाहर कोई भी गैर-कानूनी अधिकार दिया गया है।
राष्ट्रीय सुरक्षा, राष्ट्रीय हित, सार्वजनिक व्यवस्था,भूमि, सामाजिक कल्याण, कराधान, स्वास्थ्य, स्वच्छता और नैतिकता आदि से संबंधित सामान्य कानूनों का पालन अल्पसंख्यकों को भी करना पड़ता है।
44वां संविधान संशोधन अधिनियम, 1978 की धारा 4 द्वारा (20-6-1979 से) अंतःस्थापित । -संविधान के शब्द
मूल स्रोत - भारतीय संविधान ( The Indian Constitution)
बीजेपी नेता कैलाश विजयवर्गीय ने संविधान के आर्टिकल 30 को लेकर क्यों उठाए हैं सवाल?
भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने एक बार फिर देश में नया बहस छेड़ दिया है. भाजपा नेता कैलाश विजयवर्गीय ने भारतीय संविधान के आर्टिकल 30 के औचित्य पर सवाल उठा दिया है. भाजपा नेता ने गुरुवार को ट्वीट कर कहा है कि संविधान के आर्टिकल 30 ने समानता के अधिकार को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाया है. कैलाश विजयवर्गीय ने अपने ट्वीट में लिखा, '"देश में संवैधानिक समानता के अधिकार को आर्टिकल 30 सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचा रहा है. यह अल्पसंख्यकों को धार्मिक प्रचार और धर्म शिक्षा की इजाजत देता है, जो दूसरे धर्म के लोगों को हासिल नहीं है. जब हमारा देश धर्मनिरपेक्षता का हिमायती है तो इस आर्टिकल 30 की क्या जरुरत है?'
भारतीय संविधान के अनुच्छेद-30 के तहत अल्पसंख्यकों को शैक्षणिक संस्थान चलाने करने का अ
भारतीय संविधान के अनुच्छेद-30 के तहत अल्पसंख्यकों को शैक्षणिक संस्थान चलाने करने का अधिकार प्राप्त है. संविधान का यह अनुच्छेद कहता है कि सरकार वित्तीय मदद देने में किसी भी शैक्षणिक संस्थान के खिलाफ इस आधार पर भेदभाव नहीं कर सकती है कि वह अल्पसंख्यक प्रबंधन के तहत संचालित है.
कैलाश विजयवर्गीय के आर्टिकल 30 से संबंधित इस ट्वीट पर कांग्रेस नेता के के मिश्रा ने पलटवार किया है. के के मिश्रा ने भी ट्वीट किया, "देश-दुनिया में कोरोना के कारण इंसान, इंसानियत खतरे में है, ऐसे में भाजपा का आर्टिकल 30 हटाने का प्रायोजित खेल शुरू हो चुका है. नफ़रत के वायरस, कथित हिंदूवादियों की अल्पसंख्यकों के खिलाफ नफ़रत फ़ैलाने की कोशिश है यह. मोदी सरकार आर्टिकल 30 हटाने का माहौल बना रही है और यह इसकी शुरुआत है."
आर्टिकल 30 कहता है कि सरकार शैक्षिक संस्थानों को मदद देने में किसी भी शैक्षणिक संस्थान के खिलाफ इस आधार पर भेदभाव नहीं कर सकती है कि वह अल्पसंख्यक प्रबंधन के अधीन संचालित है. भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है. धार्मिक अधिकारों और विशेषाधिकारों की सुरक्षा के साथ-साथ जातीय अल्पसंख्यक देश के धर्मनिरपेक्ष मूल्यों की आधारशिला हैं. मूल स्रोत - economictimes
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