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सनातन धर्म में तिलक लगाने का महत्व

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चित्रकूट के घाट पर भई संतन की भीड़, तुलसीदास चंदन घिसें, तिलक देत रघुबीर" हिंदू धर्म में तिलक की परंपरा वैदिक काल से चलती चली आ रही है। ब्रह्मण्ड पुराण, गरुड़ पुराण, पद्म पुराण, गर्ग संहिता एवं विष्णु संहिता में तिलक का वर्णन विस्तार से किया गया है। मस्तक पर लगाया जाने वाले तिलक की परंपरा भारत और हिंदू धर्म में अत्यंत प्राचीन है। हिंदू धर्मानुसार मनुष्य के मस्तक के मध्य में विष्णु भगवान निवास करते हैं इसलिए तिलक भी इसी स्थान पर लगाया जाता है। इसके अलावा तिलक लगाना देवी मां की आराधना से भी जुड़ा है। हिंदू धर्म में तिलक लगाने से पूर्व नित्यक्रिया से निवृत्त होकर स्नानादि के बाद तिलक लगाना चाहिए। तिलक हमेशा दोनों भौहों के बीच आज्ञाचक(चेतना केंद्र) पर भृकुटी पर लगाया जाता है। 

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तिलक लगाने के फायदे

स्नाने दाने जपे होमो देवता पितृकर्म च । 
तत्सर्वं निष्फलं यान्ति ललाटे तिलकं विना ।। 

अर्थात तिलक के बिना ही यदि तीर्थ स्नान, जप कर्म, दानकर्म, यज्ञ होमादि, पितर हेतु श्राद्ध कर्म तथा देवो का पुजनार्चन कर्म किया जाता है तो कर्म का फल नहीं मिलता है अर्थात कर्म निष्फल रहता है।  आमतौर पर जब आप किसी को तिलक  लगाए हुए देखते हैं तो आपके मन में एक सवाल उठता है कि आखिर तिलक लगाने से क्या फायदा मिलता है? कहीं इसे केवल दिखावे के लिए तो नहीं लगाया जाता है, तो हम आपको बता दें कि तिलक लगाने का अपना एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण है। दरअसल तिलक या टीका लगाने से आध्यात्मिक भावना के साथ-साथ दूसरों के लाभ की कामना भी है। आमतौर पर लोग कुमकुम, मिट्टी, हल्दी, भस्म और अक्षत का टीका लगाते हैं। कुमकुम का तिलक लगाने से आकर्षण बढ़ाकर स्फूर्तिवाला बनाता है। केसर का तिलक लगाने से मान-सम्मान में वृद्धि होती है। चंदन का तिलक लगाने से शीतलता मिलती है। भस्म का तिलक लगाने से अचानक आने वाले संकटों से मुक्ति मिलती है। वहीं कुछ लोग अपने तिलक को दिखाना नहीं चाहते हैं तो वे जल से माथे पर तिलक लगाते हैं। पुरुष को हमेशा चंदन का तिलक लगाना चाहिए और स्त्री को हमेशा कुमकुम का तिलक लगाना चाहिए।     
पद्म पुराण में बताया गया है की।....

वाम्-पार्श्वे स्थितो ब्रह्मा
दक्षिणे च सदाशिवः
मध्ये विष्णुम् विजनियात
तस्मान् मध्यम न लेपयेत् 

अर्थात तिलक के बायीं ओर ब्रह्मा जी विराजमान हैं, दाहिनी ओर सदाशिव एवं मध्य में श्री विष्णु का स्थान है। इसलिए मध्य भाग में कुछ लेपना नहीं चाहिए। 

तिलक लगाने के नियम

तिलक बनाते समय पद्म पुराण में वर्णित निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करें:

ललाटे केशवं ध्यायेननारायणम् अथोदरे
वक्ष-स्थले माधवम् तु गोविन्दम कंठ-कुपके 
विष्णुम् च दक्षिणे कुक्षौ बहौ च मधुसूदनम् 
त्रिविक्रमम् कन्धरे तु वामनम् वाम्-पार्श्वके 
श्रीधरम वाम्-बहौ तु ऋषिकेशम् च कंधरे 
पृष्ठे-तु पद्मनाभम च कत्यम् दमोदरम् न्यसेत् 
तत प्रक्षालन-तोयं तु वसुदेवेति मूर्धनि

माथे पर तिलक लगाते समय ॐ केशवाय नमः का जाप (ध्यान) करें। नाभि के ऊपर- ॐ नारायणाय नमः, वक्ष-स्थल - ॐ माधवाय नमः,कंठ - ॐ गोविन्दाय नमः, उदर के दाहिनी ओर - ॐ विष्णवे नमः, दाहिनी भुजा - ॐ मधुसूदनाय नमः, दाहिना कन्धा - ॐ त्रिविक्रमाय नमः, उदर के बायीं ओर - ॐ वामनाय नमः, बायीं भुजा - ॐ श्रीधराय नमः, बायां कन्धा - ॐ ऋषिकेशाय नमः, पीठ का ऊपरी भाग - ॐ पद्मनाभाय नमः, पीठ का निचला भाग - ॐ दामोदराय नमः के जाप (ध्यान) के साथ तिलक लगाये। अंत में जो भी गोपी-चन्दन बचे उसे ॐ वासुदेवाय नमः का उच्चारण करते हुए शिखा में पोंछ लेना चाहिए। 

माथे पर तिलक लगाने के अलावा हिन्दू परंपराओं में गले, हृदय, दोनों बाजू, नाभि, पीठ, दोनों बगल आदि मिलाकर शरीर के इन्हीं 12 स्थानों पर तिलक लगाने का विधान है।

तिलक लगाने का महत्व

हिंदू धर्म में तिलक का अपना ही एक अलग महत्व है। यदि आप किसी महत्वपूर्ण कार्य के लिए जाते हैं या शुभ घटना से लेकर धार्मिक कार्यों, अनुष्ठानों या कहीं यात्रा पर जाते हैं तो शुभकामना के तौर पर तिलक लगाना शुभ माना जाता है। यदि कहं पर धार्मिक अनुष्ठान होता है तो सर्वप्रथम विघ्नहर्ता गणपति की पूजा की जाती है फिर सभी के माथे पर तिलक लगाया जाता है। मान्यता है कि सूने मस्तक को अशुभ माना जाता है और तिलक देवी का आशीर्वाद माना जाता है। अगर हम वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखे तो तिलक लगाने से व्यक्ति में आत्मविश्वास और आत्मबल का विकास होता है। तिलक लगाने से आपके मस्तक को ऊर्जा और शांति मिलती है। इससे दिमाग में सेराटोनिन और बीटा एंडोर्फिन का स्राव संतुलित तरीके से होता है, जिससे उदासी दूर होती है और मन में उत्साह जागता है तथा सिरदर्द की समस्या का भी निवारण होता है। हल्दी का तिलक लगाने से त्वचा शुद्ध होती है क्योंकि हल्दी में एंटीबैक्टीरियल तत्व होते हैं। 

तिलक लगाने का विधान

विष्णु संहिता में तिलक लगाने के विधान के बारे विस्तार से वर्णन किया गया है। किस अंगुली से किस तरह का तिलक लगाना चाहिए, इसके बारे में बताया गया है। हाथ की 4 अंगुलियों का इस्तेमाल तिलक लगाने के लिए किया जाता है। तिलक हमेशा उत्तर की ओर मुख करके लगाना चाहिए। 

अंगूठे से लगाया गया तिलक मोक्ष प्राप्ति वाला होता है। 
तर्जनी अंगुली से तिलक लगाने से शत्रुओं का नाश होता है। 
मध्यमा अंगुली से तिलक लगाने से आयु में वृद्धि होती है और व्यक्ति धनवान बनता है। 
अनामिका अंगुली से तिलक लगाने से सुख-शांति प्राप्त होती है और मान-सम्मान में बढ़ोत्तरी होती है।

ध्यान रखने योग्य बात यह है कि देवी-देवताओं को अनामिक अंगुली से ही तिलक लगाना चाहिए। 

तिलक कई प्रकार के होते हैं:- 

मृतिका, भस्म, चंदन, रोली, केसर, सिंदूर, कुंकुम, गोपी आदि।  सनातन धर्म में शैव, शाक्त, वैष्णव और अन्य मतों के अलग-अलग तिलक होते हैं। तिलक केवल एक तरह से नहीं लगाया जाता। हिंदू धर्म में जितने संतों के मत हैं, जितने पंथ है, संप्रदाय हैं उन सबके अपने अलग-अलग तिलक होते हैं। 
  • शैव परंपरा में ललाट पर चंदन की आड़ी रेखा या त्रिपुंड लगाया जाता है
  • शाक्त सिंदूर का तिलक लगाते हैं। सिंदूर उग्रता का प्रतीक है। यह साधक की शक्ति या तेज बढ़ाने में सहायक माना जाता है।
  • वैष्णव परंपरा में चौंसठ प्रकार के तिलक बताए गए हैं। इनमें प्रमुख हैं- लालश्री तिलक-इसमें आसपास चंदन की व बीच में कुंकुम या हल्दी की खड़ी रेखा बनी होती है।
  • विष्णुस्वामी तिलक यह तिलक माथे पर दो चौड़ी खड़ी रेखाओं से बनता है। यह तिलक संकरा होते हुए भौंहों के बीच तक आता है। 
  • रामानंद तिलक विष्णुस्वामी तिलक के बीच में कुंकुम से खड़ी रेखा देने से रामानंदी तिलक बनता है। 
  • श्यामश्री तिलक इसे कृष्ण उपासक वैष्णव लगाते हैं। इसमें आसपास गोपीचंदन की तथा बीच में काले रंग की मोटी खड़ी रेखा होती है। 
  • अन्य तिलक गाणपत्य, तांत्रिक, कापालिक आदि के भिन्न तिलक होते हैं। कई साधु व संन्यासी भस्म का तिलक लगाते
चांदन का तिलक : चंदन का तिलक लगाने से पापों का नाश होता है, व्यक्ति संकटों से बचता है, उस पर लक्ष्मी की कृपा हमेशा बनी रहती है, ज्ञानतंतु संयमित व सक्रिय रहते हैं। चंदन का तिलक ताजगी लाता है और ज्ञान तंतुओं की क्रियाशीलता बढ़ाता है। चन्दन के प्रकार : हरि चंदन, गोपी चंदन, सफेद चंदन, लाल चंदन, गोमती और गोकुल चंदन।  
 
कुमकुम का तिलक:- कुमकुम का तिलक तेजस्विता प्रदान करता है।

मिट्टी का तिलक:- विशुद्ध मिट्टी के तिलक से बुद्धि-वृद्धि और पुण्य फल की प्राप्ति होती है।
 
केसर का तिलक:-  केसर का तिलक लगाने से सात्विक गुणों और सदाचार की भावना बढ़ती है। इससे बृहस्पति ग्रह का बल भी बढ़ जाता है और भाग्यवृद्धि होती है।
 
हल्दी का तिलक:- हल्दी से युक्त तिलक लगाने से त्वचा शुद्ध होती है।
 
दही का तिलक:- दही का तिलक लगाने से चंद्र बल बढ़ता है और मन-मस्तिष्क में शीतलता प्रदान होती है।
 
इत्र का तिलक:- इत्र कई प्रकार के होते हैं। अलग अलग इत्र के अलग अलग फायदे होते हैं। इत्र का तिलक लगाने से शुक्र बल बढ़ता हैं और व्यक्ति के मन-मस्तिष्क में शांति और प्रसन्नता रहती है।

तिलकों का मिश्रण:- अष्टगन्ध में आठ पदार्थ होते हैं- कुंकुम, अगर, कस्तुरी, चन्द्रभाग, त्रिपुरा, गोरोचन, तमाल, जल आदि। पंचगंध में गोरोचन, चंदन, केसर, कस्तूरी और देशी कपूर मिलाया जाता है। गंधत्रय में सिंदूर, हल्दी और कुमकुम मिलाया जाता है। यक्षकर्दम में अगर, केसर, कपूर, कस्तूरी, चंदन, गोरोचन, हिंगुल, रतांजनी, अम्बर, स्वर्णपत्र, मिर्च और कंकोल सम्मिलित होते हैं।
 
गोरोचन:- गोरोचन आज के जमाने में एक दुर्लभ वस्तु हो गई है। गोरोचन गाय के शरीर से प्राप्त होता है। कुछ विद्वान का मत है कि यह गाय के मस्तक में पाया जाता है, किंतु वस्तुतः इसका नाम 'गोपित्त' है, यानी कि गाय का पित्त। हल्की लालिमायुक्त पीले रंग का यह एक अति सुगंधित पदार्थ है, जो मोम की तरह जमा हुआ सा होता है। अनेक औषधियों में इसका प्रयोग होता है। यंत्र लेखन, तंत्र साधना तथा सामान्य पूजा में भी अष्टगंध-चंदन निर्माण में गोरोचन की अहम भूमिका है। गोरोचन का नियमित तिलक लगाने से समस्त ग्रहदोष नष्ट होते हैं। आध्यात्मिक साधनाओं के लिए गारोचन बहुत लाभदायी है।

तिलक लगाने के मंत्र

01-केशवानन्न्त गोविन्द बाराह पुरूषोत्तम ।
     पुण्यं यशस्यमायुष्यं तिलकं में प्रसीदतु ।।

02- कान्ति लक्ष्मीं धृतिं सौख्यं सौभाग्यमतुलं बलम् ।
       ददातु चन्दनं नित्यं सततं धारयाम्यहम् ।।

जब आप किसी और को तिलक करे :---

स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवा:
स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदा: । 

स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः
स्वस्ति ना ब्रहुस्पतिर्दधातु ।। 

ॐभद्रं कर्णेभिःश्रुणुयाम देवा भद्रं पश्येमाक्षभिर्यजत्राः। 
स्थिरैरङ्गैस्तुष्टुवा घुम सस्तनूभिर्व्यशेम देवहितं यदायु: ।। 

ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ।। 

अर्थात महती कीर्ति वाले ऐश्वर्या शाली इंद्र हमारा कल्याण करें, जिसको संसार का विज्ञान और जिसका सब पदार्थों में स्मरण हैं, सबके पोषणकर्ता वह पूषा (सूर्य) हमारा कल्याण करें। जिनकी चक्रधारा के समान गति को कोई नहीं रोक सकता, वे गरुड़देव हमारा कल्याण करें। देववाणी के स्वामी बृहस्पति हमारा कल्याण करें।  यजमान के रक्षक देवताओं हम दृढ़ अंगों वाले शरीर से पुत्र आदि के साथ मिलकर आपकी स्तुति करते हुए,कानों से कल्याण की बातें सुने, नेत्रों से कल्याणमयी वस्तुओं को देखें देवताओं की उपासना योग्य आयु को प्राप्त करें। 

किस दिन कौन-सा तिलक लगाना चाहिए
  1. सोमवार भगवान शिव का दिन होता है इसलिए सफेद तिलक या भस्म लगाना शुभ माना जाता है। इससे मन शांत और निर्मल रहता है।
  2. मंगलवार का दिन बजरंगबली को समर्पित होता है। इस दिन लाल या सिंदूरी तिलक लगाना शुभ माना जाता है। इससे मनुष्य पूरे दिन ऊर्जावान रहता है।
  3. बुधवार का दिन भगवान गणपति का होता है। इस दिन सादे सिंदूर का तिलक लगाना चाहिए, इससे मनुष्य के निर्णय लेने की क्षमता का विकास होता है और सफलता मिलती है।
  4. गुरुवार देव गुरु का दिन होने के कारण पीत वर्ण यानि पीले रंग का तिलक लगाना चाहिए। जिससे सकारात्मक ऊर्जा और विचारों का आगमन होता है।
  5. शुक्रवार मां लक्ष्मी का दिन होता है इस दिन लाल चंदन लगाना शुभ माना जाता है, जिससे मनुष्य को सुख-समृद्धि और वैभव प्राप्त होता है।
  6. शनिवार को शनिदेव और यमराज का दिन कहा जाता है। इस दिन मस्तक पर विभूति, भस्म और लाल चंदन लगाना शुभ माना जाता है। 
  7. रविवार का दिन भगवान सूर्य और विष्णु को समर्पित रहता है। इस दिन लाल चंदन या हरि चंदन लगाने से भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है और इंसान निर्भीक बनता है।
सनातन धर्म में शैव, शाक्त, वैष्णव और अन्य मतों के अलग-अलग तिलक होते हैं। प्रत्येक सम्प्रदाय का अपना अपना तिलक चिन्ह होता है जिससे व्यक्ति को देख कर यह पता चल जाता है कि वह किस सम्प्रदाय का अनुयायी है। तीर्थों में देवताओं के दर्शनार्थ उपस्थित होने पर माथे पर तिलक लगाकर शुभकामनाएं एवं आशीर्वाद दिया जाता है ताकि भक्तों को उसके दर्शन का पूर्ण एवं मनोवांछित फल प्राप्त हो सके। उत्तर भारत में तिलक हमेशा आरती के साथ बड़े ही आदर सत्कार द्वारा लगाया जाता है जो कि प्रसन्नता, सफलता, सात्विकता एवं शुभकामनाओं का प्रतीक माना गया है। 


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