आज के आधुनिकता की चकाचौध व अवैज्ञानिक सोच ने पूरी दुनिया के लोगो की जिन्दगी को नर्क से भी बदतर बनाकर रख दिया। जिसका नतीजा यह देखने को मिल रहा कि जहां पहले के लोगो की स्वस्थ्य रहने की आयु लगभग सौ वर्षो से ऊपर होता था। परन्तु आधुनिकता के दौर में पहले के लोगो द्वारा चलन में लाये जा रहे उपयोगी सामानो को हंसी का पात्र बनाकर उसे लगातर दरकिनार करते जा रहे। जिसका नतीजा आज यह देखने को मिल रहा है कि आज के समय में लोग 40 वर्ष की आयु पार करते ही तमाम तरह के बीमारियो से ग्रस्त होते जा रहे है। और तो और वे इन्ही बीमारियो के चलते असमय काल के गाल में समाते जा रहे।
आज हम बात करते है चारपाई की - हमारे पूर्वज दूरदर्शी एंव प्राकृतिक विज्ञान के सोच को ध्यान में रखकर ही किसी कार्य को किया करते थे। ऐसा नही है कि हमारे पूर्वजो को लकडी चीरना नही आता था ? या वे काष्ठ कला से अनभिज्ञ थे। वे भी लकड़ी चीरकर उसकी पट्टियाँ बनाकर डबल बेड बना सकते थे। डबल बेड बनाना कोई रॉकेट साइंस नहीं ? लकड़ी की पट्टियों में कीलें ही ठोंकनी होता हैं। परन्तु इन्ही अवैज्ञानिक सोच ने बच्चों का पुराना पालना को भी लकडी का पाट से बनाकर उसे भी बिगाड़ कर रख दिया है।
क्या है चारपाई -
चारपाई अथवा खटिया या खाट चार पायों वाला एक प्रकार का छोटा-सा पलंग होता है, जो बाँस, बाँध,, सूतली या फिर निवाड़, आदि से बनाया जाता है। मुख्य रूप से इसका प्रयोग सोने तथा उठने-बैठने के लिए होता है। कभी-कभी इसका प्रयोग अन्न आदि को सूखाने के लिए भी किया जाता है। चारपाई को खाट भी कहते हैं। भारत के अधिकांश ग्रामीण इलाकों में इसका प्रयोग अधिक होता था। काफी पुराने समय से ही चारपाई घरेलू इस्तेमाल की वस्तुओं में महत्त्वपूर्ण रही है। इसकी खासियत का अन्दाजा इसी से लग जाता है कि चारपाई पर हिन्दी फिल्मों में कई गाने भी बनाये जा चुके हैं। किंतु अब चारपाई का स्थान आधुनिक डबल बेड पलंग और फोल्डिंग पलंग आदि ने ले लिया है, जिसके वजह से इसका प्रयोग अब कम होता जा रहा है। चारपाई में भले ही कोई साइंस नहीं ,परन्तु एक समझदारी है कि कैसे शरीर को अधिक आराम मिल सके। चारपाई बनाना एक कला है, उसे रस्सी से बुनना पड़ता है और उसमें दिमाग और श्रम लगता है।
चारपाई का इतिहास-
चारपाई नारियल की रस्सियों या बाँध से बुनी जाती थीं। इसे कपड़े की चौड़ी पट्टियों से भी बुना जाता था। बुनी हुई बड़ी-बड़ी चारपाईयाँ घर की आरामगाह से लेकर आँगन, छत, बैठक व दरवाजे की शोभा होती थी। शादी-विवाह में इन्हें सम्मान की दृष्टि से देखा जाता था। माना जाता है कि वर्ष 1845 में चारपाई का चलन शहरों में सामने आया। दस अँगुलियों के जादू का कमाल चारपाई कैसे कहलाया, इस पर भी कई किस्से हैं, लेकिन चौपाये से इसे जोड़कर देखा जाता है।
चारपाई की संरचना-
आज के आधुनिक पलंग के समान चारपाई को बनाने में तीन-चार दिन का समय नहीं लगता। यह बस कुछ ही समय में बनकर तैयार हो जाती है। चारपाई बनाने के लिए निम्न सामान की आवश्यकता होता है-
चारपाई बनाने के लिए आवश्यक सामान-
- चार बाँस या लकडी के चार पटिया
- चार पाये
- बाँध
- निवाड़,सुतली
चारों बाँसों या लकडी के चारो पाटिया को जोड़कर उन्हें चार पायों के सहारे खड़ा किया जाता है। इसके बाद चारपाई में एक तरफ से लगभग एक से डेढ फीट लगभग छोड कर बाँध से चारपाई को बाधा जाता है । इसके बाद निवाड या सुतली से बीनकर चारपाई को तैयार करते हैं। इसे आम बोलचाल की भाषा में खटिया या खाट भी कहा जाता है। कीमत में कम और उठाने तथा रखने में आसान होने के कारण चारपाई हर घर की जरूरत थी। लेकिन आज शहरी क्षेत्र के घरों में चारपाई तलाशने से भी नहीं मिलती। इसका प्रयोग बहुत कम हो गया है।
लुप्त होती चारपाई-
पहले गलियों-मोहल्लों में चारपाई बीनने वालों की आवाजें आया करती थीं, किंतु अब ये आवाजें सुनाई नहीं देतीं। अब चारपाई बीनने वाले शायद ही मिले सकें। वर्तमान समय में नायलान की पट्टी से महज आधे घंटे में एक फोल्डिंग पलंग कसकर तैयार कर दिया जाता है। इनका इस्तेमाल आमतौर पर घर की छतों पर होता है। बाजार में आज कई प्रकार के पलंग या चारपाई बेचे जा रहे हैं। बेंत से भी इन्हें बनाया जा रहा है। आधुनिक घरों के हिसाब से इनकी खरीदी होती है, लेकिन बाँध से निर्मित चारपाई अब बहुत कम देखने को मिलती है। ग्रामीण क्षेत्रों में अभी भी चारपाई का चलन थोड़ी मात्रा में है। चारपाई की बिटिया भी लोगों की दुलारी होती थी, जिसे मचिया कहा जाता था। मचिया छोटे स्टूल के आकार की चार पाँवों व छोटे बाँसों से बनी और रस्सियों या बाँध से बुनी होती थी। इस पर बैठकर बड़े बूढ़े-बूढ़ियाँ तमाम अहम मसले तय करते थे। घर-घर में मचिया कहीं भी डाल ली जाती थी। इसे बैठक या चौपाल में भी खास जगह हासिल होती थी। यह भले ही सिंहासन नहीं कहला पाई हो, लेकिन सम्मानजनक आसन रही। लोग मुहावरे या हसी में कहते थे कि आज फंलाने कि खटियां खडी है ,कही आप भी तो नहीं इस आर्टिकल को पढ़ कर किसी की खटिया खड़ी करने की सोच रहे है ?
चारपाई और डबल बेड में अन्तर-
चारपाई और डबल बेड में काफी असमानता देखने को मिलता है जिसे निम्न प्रकार से समझा जा सकता है ।
डबल बेड पर सोने के फायदे और नुकसान-
- डबल बेड मे फाम के गद्दे होने की वजह से सोने में गद्देदार एवं काफी आराम दायक महसूस होता है ,जबकि स्वास्थ्य की दृस्टि से काफी नुकसान दायक है ।
- डबल बेड के नीचे अंधेरा होता है,जिससे उसमे रोग के कीटाणु पनपते हैं ।
- डबल बेड वजन में भारी होने के साथ-साथ ही रख-रखाव में एक निश्चित स्थान घेर लेता है।
- डबल बेड की हम रोज-रोज साफ-सफाई नही कर सकते।
- गर्मियों में ड़बल बेड गर्म हो जाता है इसलिए वातानुकूलित की अधिक जरुरत महसूस होता है।
- डबल बेड स्वास्थ्य के दृष्टि से नुकसान दायक होता है जो तमाम प्रकार के बीमारियो को जन्म देता है।
- डबल बेड पर सोने से सारी रात,शरीर में दर्द एंव नित नए बीमारियो को जन्म देता है।
- डबल बेड पर सोने के बदले हजारों रुपये की दवा और खर्च डॉक्टर पर व्यय होता है।
- जब हम सोते हैं तब माथा और पांव के मुकाबले पेट को अधिक खून की जरूरत होती है,इसलिए सोते समय डबल बेड स्वास्थ्य को काफी नुकसान पंहुचा सकती है।
- खाना खाकर सोने के बाद खाना पचाने के लिए पेट को ज्यादा खून की जरूरत होती है। डबल बेड पर सोने से पेट को सही मात्रा में खून नहीं मिल पाता है , जिससे पाचन तंत्र हमेशा गड़बड़ रहता है।
- डबल बेड पर सोने से कमर में दर्द, कुल्हों के दर्द जैसी समस्या हमेशा बनी रहती है । जिससे आप बेड पर सारी रात करवटें बदलते रहते हैं। नींद न पूरी होने से इंसान चिड़चिड़ा हो जाता है ।
- डबल बेड सोने से यदि पति-पत्नी के बीच किसी प्रकार का विवाद या कहासुनी होती है तो ऐसे में डबल बेड पर सोते समय गुस्से में पति डबल बेड के एक सिरे के तरफ सो जाता है । और पत्नी डबल बेड के दूसरे सिरे की तरफ सो जाती है । परन्तु सोते समय पति और पत्नी के बीच में दूरी बनी रहती है ।जिसका नतीजा सुबह तक सो कर उठने के समय दोनों के दाम्पत्य जीवन में कटुता आ जाती है जो कई दिनों तक बरकरार रहता है ।
- डबल बेड पर सोने से गर्भवती महिलाओ के लिए भी काफी नुकसान होता है । गर्भवती महिलाओ को प्रसव के समय शिशु जन्म देने में काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है ,जिससे मेजर आपरेशन के द्वारा शिशु को जन्म देने की सम्भावना बनी रहती है ।
- डबल बेड पर सोने से शिशु के विकास में काफी बाधक होता है , शिशु के खेलते समय गिरने की सम्भावना बनी रहती है । यदि डबल बेड पर प्लास्टिक की सीट न बिछी हो तो शिशु के मल -मूत्र त्यागने की स्थिति में दुर्गन्ध फैलने की संभावना भी बनी रहती है जिससे कीटाणु पनप सकते है ।
चारपाई पर सोने के फायदे-
चारपाई अपने नाम के अनुसार ही समय-समय पर अपने गुणो को भी प्रकट करता है,चारपाई में चार प्रकार के गुण विद्यमान है। चारपाई पर सोने से जहां एक तरफ स्वास्थ्य सही रहता है तो वही दूसरी तरफ दाम्पत्य जीवन में आपसी मधुरता को भी स्वस्थ्य बनाये रखता है। इसके साथ ही गर्भवती महिलाओ के लिए भी काफी लाभदायक होता है , गर्भवती महिलाओ को प्रसव के समय शिशु जन्म देने में काफी आसानी होती है,जिससे नार्मल डिलेवरी आसानी से संभव है । तो वही छोटे बच्चो का पालना शिशुओ के विकास में काफी कारगर होता है जिससे बच्चो का स्वास्थ्य भी ठीक प्रकार से रहता है ।
- सूरज का प्रकाश बहुत बढ़िया कीटनाशक होता है,खटिये को धूप में रखने से खटमल इत्यादि भी नहीं लगते हैं। जिससे किसी प्रकार के कीटाणु नही पनप पाते है
- चारपाई वजन में हल्का होने के साथ ही रख-रखाव में भी कम जगह को घेरता है।
- चारपाई को रोज सुबह खड़ा कर दिया जाता है जिससे सफाई भी हो जाता है।
- चारपाई पर नीचे से हवा लगने के कारण गर्मी बहुत कम लगती है ।
- चारपाई स्वास्थ्य के दृष्टि से बहुत ही लाभदायक होता है यदि किसी को डॉक्टर आराम का लिख देता है। भारतीय चारपाई ऐसे मरीजों के बहुत काम की होती है ।
- चारपाई पर सोने से सारी रात अपने आप सारे शरीर का एक्यूपंक्चर होता रहता है ।
- गर्मी में छत पर चारपाई डालकर सोने का आनंद ही अलग प्रकार का है । ताजी हवा,बदलता मौसम, तारों की छाव,चन्द्रमा की शीतलता जीवन में उमंग भर देती है ।
- प्रत्तेक घर में एक स्वदेशी बाण की बुनी हुई चारपाई होनी चाहिए स्वदेशी चारपाई के बदले हजारों रुपये की दवा और डॉक्टर का खर्च बचाया जा सकता है।
- जब हम सोते हैं तब माथा और पांव के मुकाबले पेट को अधिक खून की जरूरत होती है,इसलिए सोते समय चारपाई स्वास्थ्य को काफी फायदेमंद होता है।
- खाना खाकर सोने के बाद खाना पचाने के लिए पेट को ज्यादा खून की जरूरत होती है। चारपाई पर सोने से पेट को सही मात्रा में खून मिलता है , जिससे पाचन तंत्र हमेशा सही रहता है।
- चारपाई पर सोने से कमर में दर्द, कुल्हों के दर्द जैसी समस्या नही होता है । जिससे आप चारपाई पर सारी रात सकून से सो सकते हैं।
- चारपाई पर सोने से यदि पति-पत्नी के बीच किसी प्रकार का विवाद या कहासुनी होती है तो ऐसे में चारपाई पर सोते समय गुस्से में पति एक पटिया को पकड़ कर सो जाता है । और पत्नी दूसरे पटिया को पकड़ कर सो जाती है । परन्तु सोते समय पति और पत्नी कब एक हो जाते है ,यह उन्हें पता ही नहीं चलता,जिसका नतीजा सुबह तक सो कर उठने के समय दोनों के दाम्पत्य जीवन में मधुरता आ जाती है ।
- चारपाई पर सोने से गर्भवती महिलाओ के लिए भी काफी फायदेमंद होता है । गर्भवती महिलाओ को प्रसव के समय शिशु को जन्म देने में आसानी होता है ,जिससे नार्मल डिलेवरी के द्वारा शिशु को जन्म देने की सम्भावना बनी रहती है ।
- चारपाई पर सोने से शिशु के विकास में काफी कारगर होता है , शिशु के खेलते समय गिरने की सम्भावना नहीं रहता । यदि चारपाई पर प्लास्टिक की सीट न बिछी हो तो शिशु के मल -मूत्र त्यागने की स्थिति में चारपाई को धुलकर साफ किया जा सकता है , जिससे कीटाणु नहीं पनप सकते है ।
धार्मिक दृष्टि कोड से चारपाई और डबल -
चारपाई और डबल बेड धार्मिक दृष्टि कोड से अशुद्ध होता है,साथ ही आलस्य का पर्याय होता है । इसी वजह से व्रत में चारपाई और डबल बेड का इस्तेमाल वर्जित है । यदि आप व्रत है तो ऐसे में आपको चौकी या तख्त अथवाा जमीन पर चटाई बिछा कर सोने के लिए इस्तेमाल करना उचित होगा। परन्तु यदि आप रीढ की हड्डी की समस्या से ग्रस्त है तो,ऐसे में चारपाई और डबल बेड दोनो ही आपके लिए नुकसान दायक हो सकता है। हां आप चारपाई और डबल बेड की जगह चौकी या तख्त या जमीन पर चटाई बिछा कर सोने के लिए इस्तेमाल कर सकते है। एक अध्ययन से यह भी पता चला है कि अच्छी कुदरती नींद यानी जमीन पर सोने से मस्तिष्क स्वस्थ रहता है। इस तरह सोने से तनाव आपसे दूर रहेगा साथ ही जीवन में आपको किसी भी प्रकार की बीमारी नहीं छुएगी। और यदि आप एक विद्यार्थी,सन्यासी , या ब्रम्हचर्य का जीवन व्यतीत कर रहे है । तो ऐसे में आपको चौकी या तख्त अथवाा जमीन पर चटाई बिछा कर सोना सर्वथा उचित होगा ।
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