रत्ती क्या होता है?-आयुर्वेद में वर्णित गुणकारी पौधों में से एक है रत्ती का पौधा। इसे सामान्य बोलचाल की भाषा में गुंजा के नाम से भी जाना जाता है। यह तार की दिखने वाला बेल या लता के रूप में बढ़ने वाला पौधा है जो दुनिया के उष्णकटिबंधीय और गर्म क्षेत्रों में बहुतायत में पाया जाता है। इस पौधे के बीज लाल रंग के लेकिन विषैले होते हैं और इसकी पत्तियां इमली के पौधे जैसी दिखती हैं।
रत्ती के पौधे का वैज्ञानिक नाम 'ऐब्रस प्रिकैटोरियस' है जो ग्रीक भाषा से लिया गया है। ऐब्रस का मतलब है सुंदर, आकर्षक जबकि प्रिकैटोरियस का मतलब है प्रार्थना करना। इस पौधे को 'रोजरी पी' के नाम से भी जाना जाता है।
सदियों से रत्ती का प्रयोग पारंपरिक चिकित्सा और विभिन्न स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के इलाज के रूप में किया जाता रहा है। टेटनस, सांप काटने और ल्यूकोडर्मा (इस ऑटोइम्यून बीमारी में त्वचा पर सफेद धब्बे दिखाई देते हैं, जिसे विटिलिगो भी कहा जाता है) जैसी बीमारियों के इलाज में रत्ती को काफी प्रभावी माना जाता है। रत्ती या गुंजा से होने वाले लाभ के साथ-साथ कई प्राचीन भारतीय ग्रंथों में इसे जहरीला भी बताया गया है और इसलिए इसके उपयोग से पहले इसे शुद्ध करने के तरीकों के बारे में भी ग्रंथों में बताया गया है। शुद्ध किए गए गुंजा के बीज का स्वाद कड़वा और कसैला होता है। यह कफ और वात दोष को ठीक करने में भी मदद करता है।
रत्ती (गुंजा) के पौधे के बारे में सामान्य जानकारियां
वानस्पतिक नाम: ऐब्रस प्रिकैटोरियस।
परिवार का नाम: फबेसियाए।
सामान्य नाम: जैक्वेरिटी बीन, रोजरी पी, प्रीकैटरी बीन, क्रैब्स आई, गुंजा, मुलाटी, रति, बुद्धिस्ट रोजरी बीड्स, इंडियन लिकोरिस रूट।
संस्कृत नाम: रक्तिका, गुंजा, काकांति।
पौधे के प्रयोग में लाए जाने वाला हिस्सा: बीज जड़, पत्तियां।
भौगोलिक वितरण: रत्ती का पौधा मूल रूप से भारतीय है और यह देश के मैदानी और हिमालय के क्षेत्र में यह पाया जाता है। इसके अलावा दुनिया के कई अन्य हिस्से जैसे सीलोन, चीन, दक्षिण-अफ्रीका, ब्राजील और वेस्ट इंडीज में भी रत्ती का पौधा उगाया जाता है।
दिलचस्प तथ्य: प्राचीन भारत में कीमती पत्थरों और सोने का वजन करने के लिए सुनार, रत्ती के बीज का इस्तेमाल किया करते थे। इस पौधे के 1 बीज का वजन 1 रत्ती यानी करीब 125 मिलीग्राम होता है। हालांकि आधुनिक समय में इसके बीज का वजन 105 मिलीग्राम माना गया। हिंदू ग्रंथों में रत्ती (गुंजा) को विशेष तौर पर महत्वपूर्ण वर्णन मिलता है और ऐसा माना जाता है कि गुंजा में कुछ जादुई गुण भी होते हैं।
रत्ती (गुंजा) के प्रकार -
विभिन्न ग्रंथों और किताबों में रत्ती या गुंजा के दो प्रकारों का जिक्र मिलता है। इनमें श्वेत गुंजा या सफेद रत्ती और रक्त गुंजा या लाल रत्ती शामिल है। इन दोनों में से सफेद रत्ती को अत्यधिक विषैला माना जाता है।
रत्ती की प्रकृति न्यूरोटॉक्सिक (नसों और मस्तिष्क को नुकसान पहुंचाने वाला) और साइटोटॉक्सिक (शरीर की कोशिकाओं को नुकसान पहुंचाने वाला) होती है। इसके अलावा रत्ती में पाए जाने वाले यौगिक एब्रिन की प्रकृति एंटीजेनिक यानी प्रतिजनी होती है। यही कारण है कि यह शरीर में प्रवेश करते ही एंटीबॉडी के उत्पादन को बढ़ावा देता है। एब्रिन, एक प्रकार का टॉक्सालब्युमिन (प्रोटीन का एक प्रकार) है जो आरबीसी संलग्नता (एग्लूटिनेशन) का कारण बनता है जिसके परिणामस्वरूप हीमॉलिसिस (लाल रक्त कोशिकाओं का टूटना) होता है और साथ ही फैट की कमी की भी समस्या होती है।
गुंजा में पाए जाने वाले विषाक्त पदार्थों के संपर्क में आने से गैस्ट्रोएन्टराइटिस, निर्जलीकरण और शॉक की समस्या हो सकती है। इसके अलावा अगर गुंजा के बीज को निगल लिया जाए तो यह गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल ट्रैक्ट (जठरांत्र पथ), किडनी, लसीका तंत्र, स्प्लीन (तिल्ली) और लिवर सहित कई अंगों को प्रभावित कर सकता है। इतना ही नहीं इस पौधे के अर्क के सीधा संपर्क में आने से आंखों को भी नुकसान हो सकता है।
रत्ती या गुंजा के कारण होने वाली विषाक्तता के निम्नलिखित लक्षण हो सकते हैं:
- मुंह और भोजन की नली में जलन
- सांस लेने में तकलीफ होना
- उल्टी के साथ खून आना
- पेट में गंभीर इंफेक्शन (गैस्ट्रोएन्टराइटिस)
- उल्टी आना
- पेट दर्द
- डायरिया
- काला या टारयुक्त मल
- कमजोरी
- होंठ, त्वचा और नाखूनों का नीला पड़ना
- बेहोशी
- अचेतना या मूर्छा
- कन्वल्शन
- पेशाब कम आना (बाद के स्टेज में)
- आंखों के संपर्क में आने पर आंख आना या अंधापन।
उपरोक्त लक्षणों के नजर आने, मुंह में बीज के अवशेष और गैस्ट्रिक एस्पिरेट के माध्यम से रत्ती की विषाक्तता को डायग्नोज किया जा सकता है। अगर समय पर इसका निदान और उपचार हो जाए तो ज्यादातर मामलों में यह घातक नहीं होता है। रत्ती विषाक्तता होने पर प्राथमिक चिकित्सा के तौर पर सबसे पहले व्यक्ति के वायुमार्ग को साफ किया जाता है और उनके मुंह से बचे किसी भी अवशेष को निकालने का प्रयास किया जाता है। अगर आंखों में इसका संपर्क हो जाए तो आंखों को अच्छी तरह से धो लेना चाहिए।
जिन लोगों को इस प्रकार की विषाक्तता हो जाती है उन्हें एंटी-एब्रिन इंजेक्शन दिया जाता है ताकि विषाक्तता के साथ ही गैस्ट्रिक लैवेज (आंत में मौजूद विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालना) की समस्या भी दूर हो सके। इसके अलावा रत्ती या गुंजा विषाक्तता को दूर करने के लिए घरेलू उपचार के तौर पर अमरंथस स्टेनोसिस (अमरंथ या राजगीरा) के जूस को मिश्री के साथ दिया जाता है। हालांकि अगर आपको खुद में या किसी और में ऊपर बताए गए लक्षण दिखें तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें।
जैसा कि हमने ऊपर बताया है कि कई ग्रंथों में रत्ती के बीज की विषाक्तता को दूर करने के भी उपाय बताए गए है। ऐसा ही एक उपाय है- रत्ती के बीजों को कॉटन की थैली में रखकर गाय के दूध में लगभग 6 घंटे तक उबालने से इसकी विषाक्तता दूर हो जाती है और औषधीय उपयोगों के लिए यह बीज पूरी तरह से साफ हो जाता है। दिलचस्प बात यह है कि रत्ती के बीज और पत्ते पोषक तत्वों से भरपूर माने जाते हैं और देश के कई हिस्सों में तमाम प्रकार के स्वास्थ्य संबंधी लाभ के लिए इसे प्रयोग में लाया जाता है।
गुंजा के फायदे -
गुंजा कई प्रकार की स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं को दूर करने में प्रभावी हो सकता है। आइए ऐसे ही कुछ फायदों के बारे में जानते हैं।
रत्ती के फायदे माइग्रेन के कारण होने वाले सिरदर्द में -
आयुर्वेद में रत्ती (गुंजा) के पौधे को माइग्रेन के इलाज में इस्तेमाल किया जाता है। चूहों और मेंढकों पर किए गए अध्ययन में पाया गया कि यह पौधा सेरोटोनिन के स्तर को प्रभावित करता है जो माइग्रेन के कारण होने वाले सिरदर्द को नियंत्रित करने में मदद करता है। सेरोटोनिन एक न्यूरोट्रांसमीटर (ऐसा रसायन जो मस्तिष्क कोशिकाओं के बीच संकेतों को भेजने में मदद करता है) है। यह दर्द, मूड और नींद को नियंत्रित करता है। सेरोटोनिन रक्त वाहिकाओं के फैलने और सिकुड़ने को भी प्रभावित करता है। सेरोटोनिन स्तर में परिवर्तन माइग्रेन की समस्या का कारण बन सकता है।
भारत में किए गए एक अध्ययन के अनुसार, रत्ती के पौधे में मौजूद पांच अलग-अलग यौगिक माइग्रेन के कारण होने वाले सिरदर्द को रोकने में फायदेमंद हो सकते हैं। हालांकि इसके एंटीमाइग्रेन प्रभावों को जानने के लिए अभी और अधिक अध्ययन की आवश्यकता है।
गुंजा के फायदे गठिया रोगियों में -
गठिया के रोगियों को जोड़ों में सूजन और दर्द की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। आमतौर पर दवाओं और थेरेपी के माध्यम से इसका इलाज किया जाता है। चूहों पर की गई एक स्टडी में इस बात के संकेत मिले हैं कि रत्ती के अर्क में एंटी-इंफ्लेमेटरी ऐक्टिविटी होती है जो गठिया को मैनेज करने में असरदार हो सकती है।
ए.प्रिकैटोरियस यानी रत्ती की पत्तियों के पानी में घुले हुए अर्क का उपयोग करते हुए एक दूसरी स्टडी में एल्बिनो चूहों पर भी इसी से मिलते जुलते नतीजे मिले थे। हालांकि, नैदानिक अध्ययनों की अनुपस्थिति के कारण, मनुष्यों में रत्ती के पत्ते कितने प्रभावी हैं इसकी पुष्टि नहीं की जा सकती। इस बारे में जानने के लिए अभी और अधिक शोध की आवश्यकता है।
रत्ती के फायदे बालों को झड़ने से रोकने में -
पारंपरिक तौर पर तिल के तेल के में रत्ती के बीज के पाउडर को मिलाकर लगाने से एलोपेसिया और बालों के झड़ने से रोकने में फायदा मिलता है। भारत में की गई एक इन विट्रो (लैब में की गई) स्टडी से संकेत मिलता है कि रत्ती के बीज का अर्क 5-अल्फा रिडक्टेस की गतिविधि को रोकने में मदद करता है। यह टेस्टोस्टेरोन को डिहाइड्रोटेस्टोस्टेरोन में बदलने से रोकता है। डिहाइड्रोटेस्टोस्टेरोन, एक एंड्रोजेन (पुरुष सेक्स हार्मोन) है जो एंड्रोजेनिक एलोपेसिया या मेल/फीमेल पैटर्न बॉल्डनेस के लिए जिम्मेदार होता है।
चूहों पर किए गए एक अन्य अध्ययन में पाया गया कि रत्ती के बीज का तेल बालों के विकास को बढ़ावा देने के साथ-साथ स्कैल्प में फंगल संक्रमण को कम करने में फायदेमंद होता है। हालांकि इसकी पुष्टि के लिए अभी और क्लिनिकल स्टडीज की आवश्यकता है। बालों के झड़ने की समस्या या एलोपेसिया के इलाज के तौर पर गुंजा के बीज के तेल को प्रयोग में लाने से पहले आयुर्वेदिक चिकित्सक से सलाह जरूर लें।
रत्ती के फायदे कैंसर रोगियों के लिए -
कई अध्ययनों में रत्ती पौधे के अर्क को एंटीकैंसर और एंटीट्यूमर गुणों से युक्त बताया गया है। चूहों पर किए गए अध्ययन में इसके संकेत मिले हैं। अध्ययन के दौरान शोधकर्ताओं ने चूहों को ए.प्रिकैटोरियस के बीजों का पानी में मिला हुआ अर्क दिया। शोधकर्ताओं ने पाया कि यह सार्कोमा (संयोजी ऊतकों में कैंसर) के विकास को कम करने में प्रभावी हो सकता है।
इसके अलावा बैंगलोर में किए गए एक लैब टेस्ट में शोधकर्ताओं ने पाया कि रत्ती का अर्क स्तन कैंसर की कोशिकाओं में एपोप्टोसिस (कोशिकाओं की मृत्यु) को बढ़ावा देने में असरदार है। एमसीएफ-7 स्तन कैंसर सेल लाइन पर किए गए एक अन्य अध्ययन में भी इसकी पुष्टि होती है। 'इंडियन जर्नल ऑफ फार्मास्युटिकल साइंसेज' में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, ए.प्रिकैटोरियस, मोनोसाइट ल्यूकेमिया सेल लाइन में कोशिकाओं को मारने में प्रभावी हो सकता है।
रत्ती के लाभ -
रत्ती के पौधे को पारंपरिक रूप से कुत्ते, चूहे या बिल्ली जैसे जानवरों के काटने या खरोचने से हुए घाव और टेटनेस के इलाज में प्रयोग में लाया जाता है। इसमें लैक्सेटिव (मलोत्सर्ग को बढ़ाने वाला), कामोत्तेजक (कामेच्छा को बढ़ाने वाला) और एक्सपेक्टोरेंट (अतिरिक्त कफ को हटाने में मदद करने वाला) प्रॉपर्टीज होती हैं। रत्ती के पौधे की जड़, पत्तियां और बीजों में कई सक्रिय यौगिक भी पाए जाते हैं जो इसे औषधीय गुण प्रदान करते हैं। पौधे के विभिन्न हिस्सों को उपयोग में लाने से पहले इन्हें साफ और शुद्ध किया जाता है ताकि इसमें मौजूद विषैले तत्वों को हटाया जा सके। आइए रत्ती के पौधे से होने वाले स्वास्थ्य लाभ के बारे में जानते हैं:
गुंजा के लाभ मलेरिया दूर करने के लिए -
मलेरिया एक प्रकार का संक्रमण है जो मादा एनोफिलीज मच्छरों के काटने से फैलता है। बीमारी फैलाने वाले मच्छरों की लार ग्रंथियों के माध्यम से मलेरिया के परजीवी इंसान के शरीर में प्रवेश करते हैं और फिर उस व्यक्ति में बुखार, सिरदर्द और कंपकंपी जैसे लक्षण दिखाई देते हैं। अफ्रीकी देश मैडागैस्कर में पारंपरिक रूप से रत्ती के पौधे का उपयोग मलेरिया के इलाज के लिए किया जाता रहा है। इन विट्रो (लैब में हुए अध्ययन) और इन विवो (जानवरों पर किए गए अध्ययन) दोनों ही अध्ययनों में रत्ती के पौधे की पत्तियों के अर्क को एंटी मलेरिया गुणों से युक्त माना गया है।
अध्ययनों के अनुसार, रत्ती के पौधे का अर्क मलेरिया परजीवी प्लास्मोडियम को मारने में प्रभावी है जिससे संक्रमण को फैलने से रोका जा सकता है। इसके अलावा चूहों पर किए गए अध्ययन में पाया गया कि रत्ती के पत्तियों का अर्क वजन बढ़ने से रोकने और सफेद रक्त कोशिकाओं और हीमोग्लोबिन को बेहतर बनाने में प्रभावी साबित हो सकता है। भारत में किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि रत्ती की पत्तियों का इथेनॉल अर्क प्लास्मोडियम परजीवी के खिलाफ भी प्रभावी हो सकता है।
रत्ती के रोगाणुरोधी लाभ -
लैब टेस्ट में पाया गया है कि ऐब्रस प्रिकैटोरियस के पत्ते, बीज का तेल और जड़ का अर्क निम्न प्रकार के बैक्टीरिया के खिलाफ असरदार है:
- स्टैफिलोकोकस ऑरियस (मुलायम ऊतकों और त्वचा को प्रभावित करता है)
- एंटेरोकोकस फेकैलिस (यूरिन इंफेक्शन (यूटीआई) का कारण बनता है)
- स्यूडोमोनस एरुजिनोसा (निमोनिया और रक्त संक्रमण का कारण बनता है)
- ई कोलाई (दस्त और पेचिश का कारण बनता है)
भारत में किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि ए.प्रिकैटोरियस का एंटी माइक्रोबियल गुण, इसमें पाए जाने वाले फ्लैवनॉल्स, ऐल्कलॉयड्स, ग्लाइकोसाइड्स और फेनॉल्स जैसे यौगिकों के कारण होता है। ‘रिसर्च जर्नल ऑफ मेडिसिनल प्लांट्स’ में प्रकाशित एक हालिया अध्ययन में बताया गया कि रत्ती के पत्तियों का अर्क एस ऑरियस, ई कोलाई और पी एरुगिनोसा सहित कई अन्य प्रकार के मल्टीड्रग रेजिस्टेंट बैक्टीरिया जो घाव को संक्रमित कर सकते हैं, को नष्ट करने में प्रभावी हो सकता है।
रत्ती के लाभ डायबिटीज दूर करने के लिए -
वैसे तो डायबिटीज के इलाज में रत्ती के पौधे का रस या अर्क कितना प्रभावी है, इस बारे में कोई क्लिनिकल डेटा उपलब्ध नहीं है, बावजूद इसके दक्षिण अफ्रीका की कुछ जनजातियों में पारंपरिक रूप से डायबिटीज को मैनेज करने के लिए इसका प्रयोग किया जाता रहा है। इसके अलावा कुछ प्रीक्लीनिकल अध्ययनों से भी यह संकेत मिलते हैं कि इस पौधे के विभिन्न हिस्से ब्लड शुगर को नियंत्रित करने में प्रभावी हो सकते हैं।
भारत में किए गए एक ऐसे ही अध्ययन में पाया गया कि ऐब्रस प्रिकैटोरियस के पत्ते के अर्क में एंटीहाइपरग्लाइसेमिक गुण पाया जाता है जो शरीर में इंसुलिन स्राव को बढ़ावा देता है। एक अन्य अध्ययन में पाया गया कि रत्ती के पत्तियों का अर्क अग्नाशय में मौजूद क्षतिग्रस्त बीटा कोशिकाओं को ठीक करने में मदद करता है। इसके अतिरिक्त इस पौधे का अर्क डायबिटीज मेलिटस से जुड़े वजन बढ़ने की समस्या को कम करने में भी मददगार हो सकता है।
डायबिटिक खरगोशों पर किए गए एक अध्ययन में वैज्ञानिकों ने पाया कि रत्ती के पौधे में पाया जाने वाला मेंथाल-क्लोरोफॉर्म अर्क में एंटीहाइपरग्लाइसेमिक गुण होता है जिसका असर क्लोरप्रोपामाइड नाम की दवा के समान होता है जिसका इस्तेमाल टाइप-2 डायबिटीज को मैनेज करने में किया जाता है।
रत्ती के अन्य फायदे -
उपरोक्त फायदों के अलावा रत्ती के निम्न स्वास्थ्य संबंधी फायदे भी हो सकते हैं, हालांकि इनके वैज्ञानिक प्रमाण उपलब्ध नहीं हैं:
- अफ्रीका के कुछ हिस्सों में रत्ती के बीज का उपयोग दर्दनाक सूजन और तपेदिक के उपचार के लिए किया जाता है।
- कंजंक्टिवाइटिस, अर्टिकैरिया और एक्जिमा जैसी बीमारियों के उपचार में भी आयुर्वेदिक डॉक्टर रत्ती का प्रयोग करते रहे हैं।
- माना जाता है कि चावल के स्टार्च यानी मांड के साथ एक ग्राम रत्ती के बीज के पाउडर का सेवन करने से 15 दिनों के भीतर लिकोरिया को कम करने में मदद मिल सकती है।
- सर्दी और बुखार के इलाज में भी रत्ती के पत्तों को कारगर माना जाता है।
- मक्खन या घी के साथ रत्ती के बीज (लगभग 100 ग्राम) के सेवन से पेट के दर्द को कम करने में मदद मिल सकती है।
- रत्ती की सूखी जड़ों से बने काढ़े का उपयोग हेपेटाइटिस और ब्रोंकाइटिस के इलाज के लिए किया जाता है।
- रेबीज से बचाव के लिए भी रत्ती को प्रभावी औषधि माना जाता है।
- दूध के साथ लगभग छह ग्राम रत्ती के बीज का सेवन करने से घुटनों के दर्द से राहत मिलती है।
- ल्यूकोडर्मा या विटिलिगो और मुंहासे के इलाज के लिए पारंपरिक दवाओं में रत्ती के पौधे को भी प्रयोग में लाया जाता रहा है।
रत्ती (गुंजा) के दुष्प्रभाव -
कच्चा सेवन करने पर रत्ती का पौधा जहरीला हो सकता है। हालांकि, विषहरण प्रक्रिया के बाद भी पौधे के कुछ संभावित दुष्प्रभाव हो सकते हैं, जिसमें निम्नलिखित शामिल हैं:
- रत्ती के सेवन से गर्भपात का खतरा होता है लिहाजा गर्भवती महिलाओं को इसके सेवन से बचना चाहिए।
- रत्ती को एंटीस्पर्मेटोजेनिक माना जाता है यानी यह शुक्राणु उत्पादन की प्रक्रिया को भी प्रभावित कर सकता है।
- जर्नल ऑफ़ इंडियन सिस्टम ऑफ़ मेडिसिन में प्रकाशित एक केस सीरीज़ में यह देखने को मिला कि रत्ती के बीज से बने पेस्ट के कारण खुजली, लालिमा और चकत्ते की समस्या हुई।
- रत्ती में एंटीहाइपरग्लाइसेमिक प्रभाव देखा गया है। यदि आपको लो ब्लड शुगर की समस्या है या फिर ब्लड ग्लूकोज को नियंत्रित करने की दवाओं का सेवन कर रहे हैं तो रत्ती के सेवन से पहले डॉक्टर से सलाह जरूर लें।
- यदि आपको लंबे समय से कोई बीमारी है या पहले से किसी दवा का सेवन कर रहे हैं, तो रत्ती को प्रयोग में लाने से पहले चिकित्सक से परामर्श जरूर लें।
रत्ती (गुंजा) की खुराक -
रत्ती एक जहरीला पौधा है और अगर बेहद कम मात्रा में भी इसे कच्चा खाया जाए तो यह जानलेवा साबित हो सकता है। इस पौधे को किसी भी रूप में प्रयोग में लाने से पहले किसी अनुभवी आयुर्वेदिक चिकित्सक से परामर्श कर लेना चाहिए। वर्ल्ड जर्नल ऑफ फार्मास्युटिकल एंड मेडिकल रिसर्च में प्रकाशित एक लेख के अनुसार, रत्ती के पौधे के निम्नलिखित औषधीय खुराक का जिक्र मिलता है:
विषहरण किया हुआ (डिटॉक्सिफाइड) बीज का पाउडर: 30 से 125 मिलीग्राम (प्रतिदिन 250 मिलीग्राम से अधिक नहीं होना चाहिए)
रत्ती की जड़: 500 से 2000 मिलीग्राम (प्रतिदिन 4 ग्राम से अधिक नहीं होना चाहिए)।
यहां पर यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि यह मानक खुराक नहीं है और आपकी आयु और सेहत के अनुसार खुराक जानने के लिए डॉक्टर से संपर्क करें।
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