परिवृत्त पार्श्वकोणासन का नाम तीन शब्दों के मेल से बना है: परिवृत्त, पार्श्व, और कोण। परिवृत्त मतलब “घूमा या मुड़ा हुआ”, पार्श्व यानी छाती के दाएँ-बाएँ का भाग या बगल और कोण मतलब कोना। इस लेख में परिवृत्त पार्श्वकोणासन के फायदों और उसे करने के तरीको के बारे में बताया है। साथ ही इस लेख में परिवृत्त पार्श्वकोणासन के दौरान बरती जाने वाली सावधानियों के बारे में भी जानकारी दी गई है। लेख के अंत में परिवृत्त पार्श्वकोणासन से संबंधित एक वीडियो शेयर किया गया है।
परिवृत्त पार्श्वकोणासन के फायदे -
- हर आसन की तरह परिवृत्त पार्श्वकोणासन के भी कई लाभ होते हैं। उनमें से कुछ हैं यह:
- टाँगों, घुटनों और टख़नों में खिचाव लाता है और उन्हे मज़बूत बनाता है।
- कूल्हों, छाती और फेफड़ों, कंधों, गर्दन और रीढ़ की हड्डी में खिचाव लाता है।
- सहनशक्ति बढ़ाता है।
- पेट के अंगों को उत्तेजित करता है।
- आपके शारीरिक संतुलन (physical balance) को बढ़ाता है।
- साइटिका, कब्ज, हाज़में में दिक्कत, बांझपन, कमर दर्द और ऑस्टियोपोरोसिस से राहत दिलाने में मदद करता है।
परिवृत्त पार्श्वकोणासन करने से पहले आप यह आसन कर सकते हैं इनसे आपकी हॅम्स्ट्रिंग, कूल्हे और जांघे पर्याप्त मात्रा में खुल जाएँगे।
- पादंगुष्ठासन
- पादहस्तासन
- उत्थित त्रिकोणासन
- परिवृत्त त्रिकोणासन
- उत्थित पार्श्वकोणासन
- परिवृत्त पार्श्वकोणासन करने की विधि हम यहाँ विस्तार से दे रहे हैं, इसे ध्यानपूर्वक पढ़ें।
- ताड़ासन में खड़े हो जायें। श्वास अंदर लें और 4 से 4.5 फीट पैर खोल लें।
- अपने बायें पैर को 45 से 60 दर्जे अंदर को मोड़ें, और दाहिने पैर को 90 दर्जे बहार को मोड़ें। बाईं एड़ी के साथ दाहिनी एड़ी संरेखित करें।
- अपने बाईं एड़ी को मज़बूती से ज़मीन पर टिकाए रखें और दाहिने घुटने को मोड़ें जब तक की घुटना सीधा टखने की ऊपर ना आ जाए। अगर आप में इतना लचीलापन हो तो अपनी जाँघ को ज़मीन से समांतर कर लें।
- धीरे से अपने धड़ को दाहिनी ओर 90 दर्जे तक मोड़ें। ऐसा करने के बाद धड़ को आगे की तरफ झुकाएं। ध्यान रहे की आप कूल्हे के जोड़ों से झुकें ना कि पीठ के जोड़ों से।
- अब श्वास अन्दर भरते हुए बाएं हाथ को सामने से लेते हुए दाए पंजे की बाहरी तरफ भूमि पर टिका दें। अगर आपके लिए यह संभव ना हो तो पंजे को एड़ी के पास लगायें।
- अपने बाएँ हाथ को छत की और आगे तरफ बढ़ायें। अंत में आपके बाएँ हाथ और पैर एक सीध में होने चाहिए। अब अपने सिर को उपर की तरफ उठाएँ ताकि आप अपने बाएँ हाथ की उंगलियों को देख सकें।
- कुल मिला कर पाँच बार साँस अंदर लें और बाहर छोड़ें ताकि आप आसन में 30 से 60 सेकेंड तक रह सकें। धीरे धीरे जैसे आपके शरीर में ताक़त और लचीलापन बढ़ने लगे, आप समय बढ़ा सकते हैं — 90 सेकेंड से ज़्यादा ना करें।
- जब 5 बार साँस लेने के बाद आप आसान से बाहर आ सकते हैं। आसन से बाहर निकलने के लिए सिर को सीधा कर लें, दाए हाथ को नीचे कर लें, बाएं हाथ को उठा लें, और फिर धड़ को भी उठा लें, धड़ को वापिस सीधा कर लें और पैरों को वापिस अंदर ले आयें। ख़तम ताड़ासन में करें।
- दाहिनी ओर करने के बाद यह सारे स्टेप बाईं ओर भी करें।
अगर आपका नीचे वाला हाथ ज़मीन पर ना पहुँचे, तो आप दोनो अपनी दाहिनी तरफ दोनो हाथों को प्रणाम मुद्रा में रख सकते हैं।शुरुआत में आपको अपना संतुलन बनाए रखने में दिक्कत हो सकती है। अगर ऐसा हो तो अपने पैर के नीचे फोल्ड करके तौलिया या कोई और ऐसी वस्तु रख लें जिस पर आप अपना पैर टीका सकें।
परिवृत्त पार्श्वकोणासन करने में क्या सावधानी बरती जाए -
- पीठ या रीढ़ की हड्डी में चोट हो तो परिवृत्त पार्श्वकोणासन ना करें। केवल एक अनुभवी शिक्षक के पर्यवेक्षण के साथ इस मुद्रा को करें।
- जिन्हे दस्त, सिर दर्द, या कम रक्त दबाव की समस्या हो, वह परिवृत्त पार्श्वकोणासन ना करें।
- अगर आपको दिल की कोई समस्या हो तो दीवार से सट कर अभ्यास करें। अपना उपर वाला हाथ सीधा उठा कर रखने की जगह कूल्हे पर रखें।
- अगर आपको हाई बीपी की शिकायत हो तो आख़िरी मुद्रा में सिर ऊपर की तरफ उठाने की जगह नीचे की तरफ रखें ताकि आपकी दृष्टि आपके पैर की उंगलियों पर हो।
- अगर आपकी गर्दन में दर्द हो तो आख़िरी मुद्रा में सिर ऊपर की तरफ उठाने की जगह सीधा रखें ताकि आपकी गर्दन पर ज़ोर ना पड़े (ध्यान रखें की नीचे भी ना देखें)।
- अपनी शारीरिक क्षमता से अधिक जोर न लगायें।
- प्रसारित पादोत्तासन
- पर्श्वोत्तनासन
- उत्थित हस्त पादंगुष्ठासन
- अर्ध बद्ध पद्मोत्तासन
परिवृत्त पार्श्वकोणासन का वीडिओ -
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