प्रेग्नेंसी के दौरान हर महिला के मन में कई सवाल होते हैं। खासकर पहली बार प्रेगनेंट होने वाली महिलाओं को डिलीवरी को लेकर अधिक घबराहट महसूस होती है। डिलीवरी को लेकर महिलाओं के मन में कई प्रश्न आते हैं, जैसे कि डिलीवरी कैसे होती है, इसमें कितना समय लगता है आदि।
सभी प्रेग्नेंट महिलाओं के मन की चिंताओं को ध्यान में रखते हुए आगे आपको नॉर्मल डिलीवरी के बारे में विस्तार से बताया जा रहा है। इस लेख में आप जानेंगे कि नॉर्मल डिलीवरी के लक्षण क्या हैं, नॉर्मल डिलीवरी कैसे होती है, नॉर्मल डिलीवरी कितने समय चलती है, नॉर्मल डिलीवरी में बच्चा कब और कैसे निकलता है आदि। साथ ही नॉर्मल डिलीवरी का वीडियो भी दिया गया है।
नॉर्मल डिलीवरी क्या है -
महिला द्वारा प्राकृतिक तरीके से बच्चे को जन्म की प्रक्रिया को नॉर्मल डिलीवरी कहा जाता है। इसका मतलब सिजेरियन डिलीवरी की बजाय बच्चा प्राकृतिक तरीके से महिला की योनि से ही बाहर आता है।
किसी प्रकार की चिकित्सीय समस्या न होने पर महिलाएं नॉर्मल डिलीवरी के माध्यम से बच्चे को जन्म देने का चयन कर सकती है। बच्चे के जन्म की प्राकृतिक प्रक्रिया बच्चे के स्वास्थ्य और मां को जल्द ठीक करने में मददगार होती है।
अगर आप नॉर्मल डिलीवरी करवाना चाहती हैं तो इसको आसान बनाने के लिए कोई शोर्टकट मौजूद नहीं हैं। लेकिन कुछ उपायों को अपनाने से स्वस्थ और नॉर्मल डिलीवरी की संभावनाएं बढ़ जाती हैं।
नॉर्मल डिलीवरी के प्रकार -
नार्मल डिलीवरी के लिए आपको दो विकल्प दिए जाएंगे -
प्राकृतिक चाइल्ड बर्थ (natural childbirth)
यदि आप एक प्राकर्तिक प्रसव (यानी दर्द निवारक दवाओं के इस्तेमाल के बिना) का निर्णय लेते हैं, तो आपको सभी प्रकार की संवेदनाएं महसूस होंगी। दो उत्तेजनाएं जिनका आपको सबसे अधिक अनुभव होगा वे दर्द और दबाव होंगे। जब आप पुश करना शुरू करते हैं, तो दबाव से थोड़ी राहत मिलेगी। जैसे ही शिशु जन्म नलिका में नीचे की ओर उतरता है आप संकुचन के दौरान निरंतर दबाव का अनुभव करेंगी और साथ ही दबाव में वृद्धि भी महसूस करेंगी। आपको ऐसा महसूस होगा की आपको मल त्याग करना है क्युकी जन्म के समय बच्चा उन्ही तंत्रिकाओं से होकर गुज़रता है।
एपीड्यूरल (epidural) का इस्तेमाल
यदि आप एपिड्यूलल दवा का इस्तेमाल करते हैं तो प्रसव के दौरान आप क्या अनुभव करते हैं यह एपिड्युल ब्लॉक की प्रभावशीलता पर निर्भर करेगा। यदि दवा ठीक से तंत्रिकाओं को सुन्न करती हैं, तो आप कुछ भी महसूस नहीं करेंगी। यदि यह मामूली रूप से प्रभावी हैं, तो आप कुछ दबाव महसूस कर सकती हैं। यदि यह हलके या कम रूप से प्रभावी है, तो प्रसव के दौरान आपको कुछ दबाव महसूस होगा जो आपके लिए असहज हो भी सकता है और नहीं भी। यह आपकी दबाव संवेदनाओं को सहन करने की क्षमता पर निर्भर करता है। आपको योनि में हो रहा खिंचाव और एपीसीओटॉमी (episiotomy) शायद ही महसूस हों।
नॉर्मल डिलीवरी के लक्षण -
स्वस्थ महिला को बिना किसी परेशानी के नॉर्मल डिलीवरी हो सकती है। आपकी सक्रिय जीवनशैली, सामान्य ब्लड प्रेशर (रक्तचाप) और भ्रूण की स्थिति (पोजीशन) इसकी ओर संकेत करते हैं कि आपकी नॉर्मल डिलीवरी होने की सम्भावना बहुत अच्छी है। इसके अलावा नॉर्मल डिलीवरी के अन्य लक्षण और संकेतों के बारे में नीचे विस्तार से बताया जा रहा है।
- गर्भावस्था के 30 वें सप्ताह से गर्भावस्था के 34वें सप्ताह के बीच जब भ्रूण अपने सिर की पोजीशन को बदलकर नीचे की ओर कर ले, तो आप समझ जाएं कि वह जन्म के लिए तैयार है।
- भ्रूण के सिर से माता की श्रोणि (पेल्विक) के आसपास के हिस्से में दबाव पड़ता है और ब्लेडर भी सिकुड़ जाता है, जिसकी वजह से उनको बार-बार पेशाब आने लगता है।
- गर्भ में पलने वाले बच्चे की पोजीशन (स्थिति) बदलने और सिर के नीचे की ओर आने से महिलाओं की पीठ के निचले हिस्से में दबाव की वजह से दर्द होने लगता है।
- योनि से सफेद, गुलाबी और रक्त की तरह तरल पदार्थ ज्यादा स्त्रावित होने लगता है। सामान्यतः यह स्वस्थ और नॉर्मल प्रेग्नेंसी का ही संकेत होता है।
- हार्मोन बदलाव के कारण आपका पेट ठीक न रहना, इसमें आपको पेट में ऐंठन और अन्य समस्याएं हो सकती है।
- स्तनों में सूजन भी नॉर्मल डिलीवरी की ओर संकेत करती है। जैसे-जैसे महिला प्रेग्नेंसी के अंतिम चरण में पहुंचती हैं, उनको स्तनों में भारीपन महसूस होने लगता है।
- गर्भाशय में भ्रूण तरल पदार्थ की थैली के अंदर होता है, जिसको तोड़कर ही वो जन्म लेता है, लेकिन कई बार प्रसव से पूर्व ही द्रव से भरी थैली खुल जाती है। इस अवस्था में आपको तुरंत डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए।
नॉर्मल डिलीवरी कैसे होती है -
नॉर्मल डिलीवरी को तीन चरणों में बांटा जाता है। इन चरणों को नीचे बताया जा रहा है।
1. नार्मल डिलीवरी का पहला चरण –
इस चरण में गर्भाशया ग्रीवा के पतले और खुलने की प्रक्रिया होती है। यह प्रक्रिया एक घंटे या उससे से भी अधिक समय तक हो सकती है, जब तक कि गर्भाशय ग्रीवा 3 सेंटीमीटर तक न खुल जाए। इस चरण को तीन भागों में बांटा जाता है, इस प्रकार:
लेटेंट (Latent phase/ शुरूआती) –
इस चरण में महिलाएं प्रसव संकुचन को हर तीन से पांच मिनट के अंतराल में महसूस करने लगती हैं, लेकिन कई महिलाओं में संकुचन की समय अवधि अलग-अलग भी हो सकती है।
- आप क्या महसूस कर सकती हैं – शुरूआती दर्द में आपको बार बार पेशाब जाने की इच्छा होती है।
- इस दौरान क्या करें – इस स्थिति के बारे में आपको घर की किसी बुजुर्ग या अन्य महिला को बता देना चाहिए कि बच्चा आने वाला है। अगर आप अकेली हैं तो ऐसे में आपको तुरंत डॉक्टर को फ़ोन करना चाहिए।
एक्टिव (Active; क्रियाशील) –
इस चरण में गर्भवती महिलाओं का गर्भाशय ग्रीवा (Cervix) तीन से सात सेंटीमीटर तक खुल जाती है।
- आप क्या महसूस कर सकती हैं - इस समय दबाव लगातार बढ़ने से आपको असहज महसूस होने लगता है। यह दबाव मासिक धर्म में होने वाले पीठ के निचले हिस्से में दर्द की तरह मेहसूस होगा।
- इस दौरान क्या करें - डिलीवरी के लिए अस्पताल जाने के लिए आपको पैदा होने वाले बच्चे और अपना सामान पैक कर लेना चाहिए। इसके साथ ही आपको अपने घर के अन्य लोगों से किसी अन्य विषयों पर बात करनी चाहिए। यह सब करने से आपका ध्यान प्रसव को लेकर चिंता और घबराहट से कुछ समय के लिए हट जाएगा। इस समय आराम करें और मन को शांत रखें।
ट्रांज़िशन (transition; परिवर्तनकाल) –
इस चरण में गर्भाशय ग्रीवा की चौड़ाई सात सेंटीमीटर से बढ़कर दस सेंटीमीटर तक हो जाती है।
- आप क्या महसूस कर सकती हैं – इस समय आपको श्रोणि के निचले हिस्से में दबाव महसूस होता है। इस दौरान गर्भाशय के द्रव की थैली फटने की संभावनाएं भी बढ़ जाती हैं। इस दौरान होने वाला दर्द तीव्र और लंबे समय तक बना रहता है। साथ ही यह रुक-रुककर होने के बजाय लगातार होने लगता है।
- इस दौरान क्या करें – डिलीवरी के लिए अस्पताल पहुंचे। साथ ही इस समय होने वाले संकुचन की सही स्थिति को समझें। अगर योनि से द्रव स्त्रावित हो तो उसके रंग, गंध और समय को नोट कर लें। शांत रहने के लिए ब्रीथिंग (सांस / श्वसन) एक्सरसाइज करें।
2. नार्मल डिलीवरी का दूसरा चरण
- बच्चे का बाहर आना –इस समय बच्चा गर्भाशय से बाहर आता है।
- आप क्या महसूस कर सकती हैं – इस समय गर्भाशय ग्रीवा के अधिक फैलाव के कारण संकुचन तीव्र और ज्यादा देर तक रहता है। यह संकुचन 45 से 60 सेकंड तक रह सकता है, जो हर तीन से चार मिनट बाद होने लगता है। कई बार संकुचन डेढ़ मिनट या उससे भी कम समय में बार-बार होने लगता है। महिलाओं के लिए यह सबसे मुश्किल समय होता है।
- इस दौरान क्या करें – ऐसा तीन से पांच घंटों तक होता है। ऐसे में अपनी पोजीशन को बदलते रहें और किसी से अपनी पीठ पर हल्के हाथों से मालिश करवाएं। इस समय आपको नियमित रूप से सांस लेनी चाहिए। दर्द के बारे में सोचने की बजाय अपने बच्चे के बारे में सोचें, और पुश करना न रोकें। कोशिश करें कि चीखने की बजाय, आप अपनी शक्ति बच्चे को बाहर पुश करने में उपयोग करें।
3. नार्मल डिलीवरी का तीसरा चरण
- गर्भनाल का बाहर आना –गर्भनाल का बाहर आना प्रसव का अंतिम चरण होता है। इसमें पूरी गर्भनाल योनि से बाहर आ जाती है। नॉर्मल डिलीवरी का यह अंतिम चरण माना जाती है। प्रसव के बाद इस प्रक्रिया में 15 से 30 मिनट का समय लगता है। यह एक प्राकृतिक प्रक्रिया होती है। महिला को संक्रमण से बचाने के लिए डॉक्टर यह काम करते हैं। इसके अलावा पेट के निचले हिस्से में मसाज की जाती है, ताकि गर्भाशय की मांसपेशियां सिकुड़ कर बच्चे के बाहर आने के बाद गर्भनाल आदि भी पूरी तरह से बाहर आ जाये।
- आप क्या महसूस कर सकती हैं – बच्चे के जन्म के बाद नाल आदि अपने आप बाहर आ जाती है। आपको ऐसा महसूस होगा कि जैसे वह फिसल कर बाहर निकल गयी है।
- इस दौरान क्या करें – आप नर्स को बता दें, वह उसे साफ़ कर देंगी और आपके पेट के निचले हिस्से पर मसाज करेंगी।
नॉर्मल डिलीवरी कितने समय तक चलती है -
सामान्य तौर पर, पहली बार मां बनने वाली महिलाओं को नॉर्मल डिलीवरी में करीब सात से आठ घंटों का समय लगता है, जबकि दोबारा मां बनने पर यह समय कम हो जाता है। गर्भाशय ग्रीवा के फैलाव के आधार पर आपकी डिलीवरी का समय कम या ज्यादा हो सकता है। गर्भाशय ग्रीवा का पूरी तरह से फैलाव और भ्रूण का सिर दिखने के बाद भी बच्चे को बाहर आने में करीब एक घंटे का समय लग सकता है।
लेकिन हर महिला की स्थिति अलग होती है। अगर डिलीवरी में समय कम या ज्यादा लगे, तो घबराएं नहीं। अपने डॉक्टर की बात सुनें, वह आपका ख्याल रखेंगे।
नॉर्मल डिलीवरी में बच्चा कब और कैसे निकलता है -
डिलीवरी के समय खुद पर भरोसा रखें और बच्चे को बाहर की ओर पुश करते समय सभी निर्देशों का पालन करें। इस दौरान आप अपनी पूरी ताकत से बच्चे को बाहर की ओर पुश करने का प्रयास करें। इस समय ज्यादा न चीखें, क्योंकि ऐसा करना आपके प्रयासों को कम कर सकता है। संकुचन के बीच के अंतराल में आराम करें और जैसे ही संकुचन शुरू हो दोबारा प्रयास करें। डॉक्टर द्वारा रुकने के लिए कहने पर आपको पुश करना बंद करना होगा।
नॉर्मल डिलीवरी के जोखिम और जटिलताएं -
- बच्चे के जन्म के बाद अवसाद (Postpartum depression) - जन्म देने के तुरंत बाद होने वाली गंभीर उदासी और निराशा। काउंसिलिंग और एन्टीडिस्पेंन्ट्स इसके उपचार के विकल्प हैं।
- योनि और गर्भाशय ग्रीवा को क्षति (Injury to vagina and cervix)
- श्रोणि में दर्द (Pelvic pain)
- श्रोणि अंग स्थानच्युति (Pelvic orgal prolapse)- यह तब होता है जब मूत्राशय, गर्भाशय और / या गुदा योनि में या योनि के मुख तक फैल जाते हैं।
- नाभीय गर्भनाल स्थानच्युति (Umbilical Cord Prolapse)
- जन्म के समय शिशु को क्षति पहुंच सकती है
नार्मल डिलीवरी के बाद शरीर में बदलाव -
जैसे आपके शरीर में जन्म देने से पहले कई परिवर्तन आएं, जन्म देने के बाद भी इसमें कई बदलाव आएंगे।
आप निम्न शारीरिक बदलाव अनुभव कर सकते हैं:
- एपीसीओटमी या लेसेरेशन साइट पर दर्द (Pain at the site of the episiotomy or laceration) - एपीसीओटॉमी आपके चिकित्सक द्वारा पेरिनेम (योनि और गुदा के बीच का क्षेत्र) में लगाया गया चीरा होता है
- स्तन में पीड़ा का अनुभव होना
- बवासीर
- हॉट और कोल्ड फ्लैशेस (Hot and Cold Flashes)
- मल और मूत्र की असंयमितता (Urinary and fecal incontinence)
- जन्म देने के बाद भी संकुचन अनुभव करना (After pains)
- योनि स्त्राव
- बेबी ब्लूज (Baby blues; जन्म देने के कुछ दिनों या हफ़्तों बाद तक चिड़चिड़ापन महसूस होना, दुखी होना, या रोना)
- स्ट्रेच मार्क्स।
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