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श्री चित्रगुप्त जी महाराज एवं कलम-दवात की पूजन विधि

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पूजा स्थान को साफ़ कर एक चौकी पर कपड़ा विछा कर श्री चित्रगुप्त जी का फोटो स्थापित करें यदि चित्र उपलब्ध न हो तो कलश को प्रतीक मान कर चित्रगुप्त जी को स्थापित करें ।  दीपक जला कर गणपति जी को चन्दन ,हल्दी,रोली अक्षत ,दूब ,पुष्प व धूप अर्पित कर पूजा अर्चना करें।  श्री चित्रगुप्त जी को भी चन्दन ,हल्दी,रोली अक्षत ,पुष्प व धूप अर्पित कर पूजा अर्चना करें।  फल ,मिठाई और विशेष रूप से इस दिन के लिए बनाया गया पंचामृत (दूध ,घी कुचला अदरक ,गुड़ और गंगाजल )और पान सुपारी का भोग लगायें ।  इसके बाद परिवार के सभी सदस्य अपनी किताब,कलम,दवात आदि की पूजा करें और चित्रगुप्त जी के समक्ष रक्खें ।  अब परिवार के सभी सदस्य एक सफ़ेद कागज पर एप्पन (चावल का आंटा,हल्दी,घी, पानी )व रोली से स्वस्तिक बनायें |उसके नीचे पांच देवी देवतावों के नाम लिखें ,जैसे -श्री गणेश जी सहाय नमः ,श्री चित्रगुप्त जी सहाय नमः ,श्री सर्वदेवता सहाय नमः आदि।  इसके नीचे एक तरफ अपना नाम पता व दिनांक लिखें और दूसरी तरफ अपनी आय व्यय का विवरण दें ,इसके साथ ही अगले साल के लिए आवश्यक धन हेतु निवेदन करें । फिर अपने हस्ताक्षर करें ।  इस कागज और अपनी कलम को हल्दी रोली अक्षत और मिठाई अर्पित कर पूजन करें । 

अब श्री चित्रगुप्त जी का ध्यान करते हुए निम्न लिखित मंत्र का कम से कम ११ बार उच्चारण करें –

मसीभाजन संयुक्तश्चरसि त्वम् ! महीतले। 
लेखनी कटिनीहस्त चित्रगुप्त नमोस्तुते।। 
चित्रगुप्त ! मस्तुभ्यं लेखकाक्षरदायकं । 
कायस्थजातिमासाद्य चित्रगुप्त ! नामोअस्तुते।। 
अब सभी सदस्य श्री चित्रगुप्त जी की आरती गावें। 

इसके पश्चात् ख़ुशी पूर्वक श्री चित्रगुप्त जी महराज और श्री गणेश जी महाराज से अपने और अपने लोगों के लिए मंगल आशीर्वाद प्राप्त करते हुए शीश झुकाएं एवं प्रसाद का वितरण करें । 

श्री चित्रगुप्त जी की आरती –
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जय चित्रगुप्त यमेश तव ,शरणागतम ,शरणागतम।  जय पूज्य पद पद्मेश तव शरणागतम ,शरणागतम ।। 

जय देव देव दयानिधे ,जय दीनबंधु कृपानिधे ।  कर्मेश तव धर्मेश तव शरणागतम ,शरणागतम।। 

जय चित्र अवतारी प्रभो ,जय लेखनीधारी विभो।  जय श्याम तन चित्रेश तव शरणागतम ,शरणागतम।। 

पुरुषादि भगवत् अंश जय ,कायस्थ कुल अवतंश जय ।  जय शक्ति बुद्धि विशेष तव शरणागतम ,शरणागतम ।। 

जय विज्ञ मंत्री धर्म के ,ज्ञाता शुभाशुभ कर्म के ।  जय शांतिमय न्यायेश तव शरणागतम ,शरणागतम ।। 

तव नाथ नाम प्रताप से ,छूट जाएँ भय त्रय ताप से।  हों दूर सर्व क्लेश तव शरणागतम ,शरणागतम ।। 

हों दीन अनुरागी हरि, चाहें दया दृष्टि तेरी।  कीजै कृपा करुणेश तव शरणागतम ,शरणागतम ।। 

वृहद् पूजन विधि –
इस विशेष पर्व पर श्री चित्रगुप्त जी महाराज एवं धर्मराज के पूजन से पहले पूजा स्थल पर कलश स्थापना (वरुण पूजन कर) वरुण देवता का आवाहन करें।  फिर गणेश अम्बिका का पूजन कर उनका आवाहन करें । तत्पश्चात ईशान कोण में वेदी बनाकर नवग्रह की स्थापना कर आवाहन करें ।  इसके पश्चात् दवात,कलम,पत्र-पूजन एवं तलवार की स्थापना कर नीचे दी गयी विधि से पूजन करें। 

पूजन एवं हवन सामग्री –
धूप, दीप, चन्दन, लाल फूल, हल्दी, रोली, अक्षत, दही, दूब, गंगाजल, घी, कपूर, कलम ( बिना चिरी हुई ), दवात, कागज, पान, सुपारी, गुड़, पांच फल, पांच मिठाई, पांच मेवा, लाई, चूड़ा, धान का लावा, हवन सामग्री एवं हवन के लिए लकड़ी आदि । 

सामग्री पर पवित्र जल छिड़कते हुए प्रभु का स्मरण करें। 
नमस्तेस्तु चित्रगुप्ते, यमपुरी सुरपूजिते। 
लेखनी-मसिपात्र, हस्ते, चित्रगुप्त नमोस्तुते ।। 

स्वस्तिवाचन –
ॐ गणना त्वां गणपति हवामहे, प्रियाणां त्वां प्रियेपत्र हवामहे निधीनां त्वां निधिपते हवामहे वसो मम आहमजानि गर्भधामा त्वमजासि गर्भधम। 

ॐ गणपत्यादि पंचदेवा नवग्रहाः इन्द्रादि दिग्पाला दुर्गादि महादेव्यः इहा गच्छत स्वकीयाम् पूजां ग्रहीत भगवतः चित्रगुप्त देवस्य पूजमं विघ्नरहित कुरूत । 

ध्यान –
तच्छरी रान्महाबाहुः श्याम कमल लोचनः कम्वु ग्रीवोगूढ शिरः पूर्ण चन्द्र निभाननः  ।। 
काल दण्डोस्तवोवसो हस्ते लेखनी पत्र संयुतः। निःमत्य दर्शनेतस्थौ ब्रह्मणोत्वयक्त जन्मनः ।। 

लेखनी खडगहस्ते च- मसि भाजन पुस्तकः । कायस्थ कुल उत्पन्न चित्रगुप्त नमो नमः ।। 
मसी भाजन संयुक्तश्चरोसि त्वं महीतले । लेखनी कठिन हस्ते चित्रगुप्त नमोस्तुते  ।। 

चित्रगुप्त नमस्तुभ्यं लेखकाक्षर दायक। कायस्थ जाति मासाद्य चित्रगुप्त मनोस्तुते ।। 
योषात्वया लेखनस्य जीविकायेन निर्मित। तेषा च पालको यस्भात्रतः शान्ति प्रयच्छ मे  ।। 

आवाहन-
 हे! चित्रगुप्त जी मैं आपका आवाहन करता हूँ  ।। 

ॐ आगच्छ भगवन्देव स्थाने चात्र स्थिरौ भव  ।। यावत्पूजं करिष्यामि तावत्वं सान्निधौ भव ।। 

ॐ भगवन्तं श्री चित्रगुप्त आवाहयामि स्थापयामि  ।। 

आसन-
ॐ इदमासनं समर्पयामि । 
भगवते चित्रगुप्त देवाय नमः ।। 

पाद्य-
ॐ पादयोः पाद्यं समर्पयामि। 
भगवते चित्रगुप्त देवाय नमः ।। 

आचमन-
ॐ मुखे आचमनीयं समर्पयामि। 
भगवते चित्रगुप्ताय नमः।। 

स्नान-
ॐ स्नानार्तः जलं समर्पयामि। 
भगवते श्री चित्रगुप्ताय नमः।। 

वस्त्र-
ॐ पवित्रों वस्त्रं समर्पयामि। 
भगवते श्री चित्रगुप्त देवाय नमः ।। 

पुष्प-
ॐ पुष्पमालां च समर्पयामि।
भगवते श्री चित्रगुप्तदेवाय नमः।। 

धूप-
ॐ धूपं माधापयामी ।
भगवते श्री चित्रगुप्तदेवाय नमः।। 

दीप-
ॐ दीपं दर्शयामि।
भगवते श्री चित्रगुप्त देवाय नमः ।। 

नैवेद्य
ॐ नैवेद्यं समर्पयामि ।
भगवते श्री चित्रगुप्त देवाय नमः ।। 

ताम्बूल-दक्षिणा
ॐ ताम्बूलं समर्पयामि
ॐ दक्षिणा समर्पयामि
भगवते श्री चित्रगुप्त देवाय नमः।। 

दवात -लेखनी मंत्र
लेखनी निर्मितां पूर्व ब्रह्यणा परमेष्ठिना। 
लोकानां च हितार्थाय तस्माताम पूजयाम्ह्यम ।। 

पुस्तके चर्चिता देवी , सर्व विद्यान्न्दा भवः। 
मदगृहे धन-धान्यादि-समृद्धि कुरु सदा ।। 

लेखयै ते नमस्तेस्तु , लाभकत्रर्ये नमो नमः । 
सर्व विद्या प्रकाशिन्ये , शुभदायै नमो नमः।। 

अब परिवार के सभी सदस्य एक सफ़ेद कागज पर एप्पन ( चावल का आंटा,हल्दी,घी, पानी ) व रोली से स्वस्तिक बनायें ।  उसके नीचे पांच देवी देवतावों के नाम लिखें ,जैसे -श्री गणेश जी सहाय नमः ,श्री चित्रगुप्त जी सहाय नमः ,श्री सर्वदेवता सहाय नमः आदि । 

इसके नीचे एक तरफ अपना नाम पता व दिनांक लिखें और दूसरी तरफ अपनी आय व्यय का विवरण दें ,इसके साथ ही अगले साल के लिए आवश्यक धन हेतु निवेदन करें ।  फिर अपने हस्ताक्षर करें  । 

इस कागज और अपनी कलम को हल्दी रोली अक्षत और मिठाई अर्पित कर पूजन करें । 

अब श्री चित्रगुप्त जी का ध्यान करते हुए निम्न लिखित मंत्र का कम से कम ११ बार उच्चारण करें –

मसीभाजन संयुक्तश्चरसि त्वम् ! महीतले । 
लेखनी कटिनीहस्त चित्रगुप्त नमोस्तुते ।। 

चित्रगुप्त ! मस्तुभ्यं लेखकाक्षरदायकं  । 
कायस्थजातिमासाद्य चित्रगुप्त ! नामोअस्तुते ।। 

भगवान चित्रगुप्त महाराज की पूजा कथा
भीष्म पितामह ने पुलस्त्य मुनि से पूछा के हे महामुनि संसार में कायस्थ नाम से विख्यात मनुष्य किस वंश में उत्पन्न हुये हैं तथा किस वर्ण में कहे जातेहैं इसे में जानना चाहता हूँ।  इस प्रकार के वचन कहकर भीष्म पितामह ने पुलस्त्य मुनि से इस पवित्र कथा को सुनने के इक्छा जाहिर की पुलस्त्य मुनि नेप्रसन्न होकर गंगा पुत्र भीष्म पितामह से कहा – हे गंगेय में कायस्थ उत्पत्ति की पवित्र कथा का वर्णन आपसे करता हूँ । जो इस जगत का पालन कर्ता हैवही फिर नाश करेगा उस अब्यक्त शांत पुरुष लोक – पितामह ब्रम्हा ने जिस तरह पूर्व में इस संसार की कल्पना की है।  वही वर्णन में कर रहा हूँ –

मुख से ब्राम्हण बाहु से क्षत्रिय, जंघा से वैश्य, पैर से शूद्र, दो पाँव चार पाँव वाले पशु से लेकर समस्त सर्पादि जीवो का एक ही समय में चन्द्रमा, सूर्यादिग्रहों को और बहुत से जीवो को उत्पन्न कर ब्रम्हा में सूर्य के समान तेजस्वी ज्येष्ठ पुत्र को बुलाकर कहा हे सुब्रत तुम यत्न पूर्वक इस जगत की रक्षा करो । सृष्टि का पालन करने के लिये ज्येष्ठ पुत्र को आज्ञा देकर ब्रम्हा ने एकाग्रचित होकर दस हजार सौ वर्ष की समाधि लगाई अंत में विश्रांत चित्त हुयेतदउपरांत उस ब्रम्हा के शरीर से बड़ी भुजाओ वाले श्याम वर्ण, कमलवत शंक तुल्य गर्दन, चक्रवत तेजस्वी, अति बुद्धिमान हाथ में कलम-दवात लियेतेजस्वी, अतिसुन्दर विचित्रांग, स्थिर नेत्र वाले, एक पुरुष अव्यक्त जन्मा जो ब्रम्हा के शरीर से उत्पन्न हुआ है ।  भीष्म उस अव्यक्त पुरुष को नीचे ऊपरदेखकर ब्रम्हा जी ने समाधि छोडकर पूछा हे पुरुषोत्तम हमारे सामने स्थित आप कौन हैं।  ब्रम्हा का यह वचन सुनकर वह पुरुष बोला हे विधे में आप हीके शरीर से उत्पन्न हुआ हूँ इसमें किंचित मात्र भी संदेह नहीं है। हे तात अब आप मेरा नाम करण करने योग्य हैं ।  सो करिये और मेरे योग्य कार्य भी कहिये । यह वाक्य सुनकर ब्रम्हा जी निज शरीर रज पुरुष से हंसकर प्रसन्न मुद्रा से बोले की मेरे शरीर से तुम उत्पन्न हुये हो इससे तुम्हारी कायस्थ संज्ञाहै । और पृथ्वी पर चित्रगुप्त तुम्हारा नाम विख्यात होगा ।  हे वत्स धर्मराज की यमपुरी धर्माधर्म वितार के लिये तुम्हारा निश्चित निवास होगा। हे पुत्रअपने वर्ण में जो उचित धर्म है उसका विधि पूर्वक पालन करो और संतान उत्पन्न करो इस प्रकार ब्रम्हा जी भार युक्त वर को देकर अंतर्ध्यान हो गये श्रीपुलस्त्य मुनि ने कहा है हे कुरूवंश के वृद्धि करने वाले भीष्म चित्रगुप्त से जो प्रजा उत्पन्न हुई है ।  उसका भी वर्णन करता हूँ सुनिये – चित्रगुप्त का प्रथमविवाह सूर्यनारायण के बड़े पुत्र श्राद्धादेव मुनि की कन्या नंदनी एरावती से हुआ इसके चार पुत्र उत्पन्न हुये प्रथम भानु जिनका नाम धर्मध्वज है जिसनेश्रीवास्तव कायस्थ वंश बेल को जन्म दिया ।  द्वितीय पुत्र मतिमान जिनका नाम समदयालु है ।  जिसने सक्सेना वंश बेल को जन्म दिया ।  तृतीय पुत्र चारुजिनका नाम युगन्धर है ।  जिसने माथुर कायस्थ वंश बेल को जन्म दिया। चतुर्थ पुत्र सुचारू जिनका नाम धर्मयुज है जिसने गौंड कायस्थ वंश को जन्मदिया । 

चित्रगुप्त का दूसरा विवाह सुशर्मा ऋषि की कन्या शोभावती से हुआ इनसे आठ पुत्र हुये प्रथम पुत्र करुण जिनका नाम सुमति है जिसने कर्ण कायस्थको जन्म दिया।  द्वितीय पुत्र चित्रचारू जिनका नाम दामोदर है | जिसने निगम कायस्थ को जन्म दिया।  तृतीय पुत्र जिनका नाम भानुप्रकाश है ।  जिसनेभटनागर कायस्थ को जन्म दिया जिनका नाम युगन्धर है ।  अम्बष्ठ कायस्थ को जन्म दिया । पंचम पुत्र वीर्यवान जिनका नाम दीन दयालु है । जिसनेआस्थाना कायस्थ को जन्म दिया शास्त्हम पुत्र जीतेंद्रीय जिनका नाम सदा नन्द है।  जिसने कुलश्रेष्ट कायस्थ को जन्म दिया ।  अष्टम पुत्र विश्व्मानुजिनका नाम राघवराम है जिसने बाल्मीक कायस्थ को जन्म दिया है।  हे महामुने चित्रगुप्त से उत्पन्न सभी पुत्र सभी शास्त्रों में निपुण उत्पन्न हुये धर्माधर्म को जानने वाले महामुनि चित्रगुप्त ने सभी पुत्रो को पृथ्वी में भेजा और धर्म साधना के शिक्षा दी और कहा की तुम्हे देवताओं का पूजन पितरो काश्राद्ध तथा तर्पण, ब्राम्हणों का पालन पोषण और सदेव अभ्यागतो की यत्न पूर्वक श्रद्धा करनी चाहिये।  हे पुत्र तीनो लोको के हित के लिये यत्न कर धर्मकी कामना करके महर्षिमर्दिनी देवी का पूजन अवश्य करें ।  जो प्रकृति रूप माया चण्ड मुण्ड का नाश करने वाली तथा समस्त सिद्धियों को देने वाली है उसका पूजन करें जिसके प्रभाव से देवता लोग भी सिद्धियों को पाकर स्वर्ग लोक को गए और स्वर्ग के अधिकार को पाकर सदेव यज्ञ में भाग लेने वाले हुये।  ऐसी देवी के लिये तुम सब उत्तम मिष्ठानादि समर्पण करो जिससे वह चण्डिका देवताओं की भाँती तुमको भी सिद्ध देने वाली होवे और वैष्णव धर्म काअवलंबन कर मेरे वाक्य का प्रति पालन करो सभी पुत्रो को आज्ञा देकर चित्रगुप्त स्वर्ग लोक चले गये स्वर्ग जाकर चित्रगुप्त धर्मराज के अधिकार मेंस्थित हुये। हे भीष्म इस प्रकार चित्रगुप्त की उत्पत्ति मैंने आपसे कही । 

अब में उन लोगो का विचित्र इतिहास और चित्रगुप्त का जैसा प्रभाव उत्पन्न हुआ सो भी कहता हूँ सुनिये – श्री पुल्सत्य मुनि बोले की धर्माधर्म को जानतेहुये नित्य पाप कर्म में रत पृथ्वी पर सौदास नामक राजा पैदा हुआ, उस पापी दुराचारी तथा धर्म कर्म से रहित राजा ने जिस प्रकार स्वर्ग में जाकर पुण्य केफल का भोग किया वह कथा सुना रहा हूँ ।  राजनीति को नहीं जानते हुये राजा ने अपने राज्य में ढिंडोरा पिटवा दिया की दान धर्म हवन श्राद्ध तर्पणअतिथियों का सत्कार जप नियम तथा तपस्या का साधन मेरे राज्य में कोई ना करे ।  देवी आदि की भक्ति में तत्पर वहां के निवासी ब्राम्हण लोग उसकेराज्यों को छोड़ वहीँ से अन्य राज्यों में चले गये ।  जो रह गये यज्ञ हवन श्रद्धा तथा तर्पण कभी नहीं करते थे।  हे गंगा पुत्र तबसे उसके राज्य में कोई भीयज्ञ हवन आदि पुण्य कर्म नहीं कर पता था।  उस समय पुण्य उस राज्य से ही बाहर हो गया था | ब्राम्हण तथा अन्य वर्ण के लोग नाश करने लगे ।  अबआपको उस दुष्ट राजा का कर्म फल सुनाता हूँ हे भीष्म कार्तिक शुक्ल पक्ष की उत्तम तिथि द्वितीय को पवित्र होकर सभी कायस्थ चित्रगुप्त का पूजनकरते थे । वे भक्ति भाव से परिपूर्ण होकर धूपदीपादि कर रहे थे देव योग से राजा सौदस भी घूमता हुआ वहां पंहुचा और पूजन देखकर पूछने लगा यहकिसका पूजन कर रहे हो तब वे लोग बोले की राजन हम लोग चित्रगुप्त की शुभ पूजा कर रहे हैं ।  यह सुनकर राजा सौदस ने कहा की में भी चित्रगुप्त कीपूजा करूँगा यह कहकर सौदस ने विधि पूर्वक स्नानादिकर मन से चित्रगुप्त की पूजा की, इस भक्तियुक्त पूजा करने से उसी क्षण राजा सौदस पाप रहितहोकर स्वर्ग चला गया इस प्रकार चित्रगुप्त का प्रभावशाली इतिहास मैंने आपसे कहा । अब हे तृप श्रेष्ठ और क्या सुनने की आपकी इक्छा है । यह सुनकर भीष्म पितामह ने महर्षि पुलस्त्य मुनि से कहा हे विपेन्द्र किस विधि से वहां उस राजा सौदस ने चित्रगुप्त का पूजन किया जिसके प्रभाव से हे मुनि राजा सौदस स्वर्ग लोक को चला गया।  श्री पुलस्त्य मुनि जी बोले – हे भीष्म चित्रगुप्त के पूजन कि संपूर्ण विधि में आप से कह रहा हूँ घृत से बने निवेध,ऋतुफल, चन्दन, पुष्प, रीप तथा अनेक प्रकार के निवेध, रेशमी और विचित्र वस्त्र से मेरी, शंख मृदंग, डिमडिम अनेक बाजे का भक्ति भाव से पति पूर्ण होकर पूजन करें।  हे विद्वान नवीन कलश लाकर जल से पतिपूर्ण करें उस पर शक्कर भरा कटोरा रखें और यतनपूर्वक पूजन कर ब्राम्हण को दान देवें ।  पूजन का मंत्र भी इस प्रकार पढ़े – दवात कलम और हाथ में खल्ली लेकर पृथ्वी में घूमने वाले हे चित्रगुप्त आपको नमस्कार हे चित्रगुप्त आप कायस्थजाती में उत्पन्न होकर लेखकों को अक्षर प्रदान करते हैं।  जिसको आपने लिखने की जीविका दी है ।  आप उनका पालन करते हैं । इसलिये मुझे भी शांतिदीजिए ।  हे राजेन्द्र कुरूवंश को बढाने वाले हे भीष्म इन मंत्रो के संकल्प पूर्वक चित्रगुप्त का पूजन करना चाहिये । इस प्रकार राजा सौदस ने भक्ति भाव सेपूजन कर निजराज्य का शाशन करता हुआ कुछ ही समय में मृत्यु को प्राप्त हुआ हे भारत यमदूत राजा सौदस को भयानक यमलोक में ले गये । चित्रगुप्तने यमराज से पूछा की यह दुराचारी पाप कर्मरत सौदस राजा है ।  जिसने अपनी प्रजा से पापकर्म करवाया है । इस प्रकार धर्मराज से पूछे गये धर्माधर्म कोजानने वाले महामुनि चित्रगुप्त जी हंसकर उस राजा के लिये धर्म विपाक युक्त शुभ वचन बोले हे धर्मराज -

यह राजा यद्दपि पाप कर्म करने वाला पृथ्वी में प्रसिद्ध है। और में आपकी प्रसन्नता से पृथ्वी में पूज्य हूँ हे स्वामिन आपने ही मुझे वह वर दिया है |आपका सदेव कल्याण हो आपको नमस्कार है। हे देव आप भली भाँती जानते है और मेरी भी मति है की यह राजा पापी है तब भी इस राजा ने भक्ति भावसे मेरी पूजा की है इससे में इससे प्रसन्न हूँ।  हे इष्टदेव इस कारण यह राजा बैकुंठ लोक को जाए ।  चित्रगुप्त का यह वचन सुनकर यमराज ने राजा सौदस का बैकुंठ जाने की आज्ञा दी और राजा सौदस बैकुंठ लोक को चला गया श्री पुल्सत्य मुनि जी ने कहा हे भीष्म जो कोई सामान्य पुरुष या कायस्थचित्रगुप्त जी की पूजा करेगा वह भी पाप से छूटकर परमगति को प्राप्त करेगा । हे गंगेय आप भी सर्व विधि से चित्रगुप्त की पूजा करिये ।  जिसकी पूजाकरने से हे राजेन्द्र आप भी दुर्लभ लोक को प्राप्त करेंगे ।  पुलस्त्य मुनि के वचन सुनकर भीष्म जी ने भक्ति मन से चित्रगुप्त जी की पूजा की | चित्रगुप्तकी दिव्य कथा को जो श्रेष्ठ मनुष्य भक्ति मन से सुनेगे वे मनुष्य समस्त व्याधियों से छूटकर दीर्घायु होंगे और मरने पर जहाँ तपस्वी लोग जाते है।  ऐसे  विष्णु लोक को जायेंगे । 

अब सभी सदस्य श्री चित्रगुप्त जी की आरती गावें। 
इसके पश्चात् ख़ुशी पूर्वक श्री चित्रगुप्त जी महराज और श्री गणेश जी महाराज से अपने और अपने लोगों के लिए मंगल आशीर्वाद प्राप्त करते हुए शीश झुकाएं एवं प्रसाद का वितरण करें । 


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