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उम्र से पहले मेनोपॉज, कहीं ये तो नहीं इसकी असली वजह

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एचआईवी और मेनोपॉज यानी रजोनिवृत्ति दोनों का आपस में कोई संबंध नहीं है। HIV (ह्यूमन इम्युनोडेफिशियंसी वायरस) एक लेन्टीवायरस है, जिससे एचआईवी होता है और आगे चलकर यह एड्स जैसी घातक बीमारी का रूप ले लेता है। दूसरी तरफ मेनोपॉज की बात करें तो यह महिलाओं में मध्यम उम्र (मिडिल एज) में होने वाला एक शारीरिक परिवर्तन है, जिसके तहत उनका मासिक धर्म स्थायी रूप से बंद हो जाता है। अब प्रश्न यह है कि हम इन दोनों की बात एक साथ क्यों कर रहे हैं? इसका उत्तर हाल में हुई एक स्टडी में छिपा है। इस स्टडी के अनुसार जिन महिलाओं को एचआईवी संक्रमण होता है उनका मेनोपॉज जल्दी हो जाता है। चलिए जानते हैं इस स्टडी के बारे में और मेनोपॉज से जुड़े अन्य फैक्ट भी।

मेनोपॉज की उम्र
  • अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और यूरोप - 50 से 52 साल
  • एशिया महाद्वीप - 45 से 55 वर्ष
  • अफ्रीका महाद्वीप - 48 साल
  • दक्षिण अमेरिका महाद्वीप - 49 साल
  • सिंगापुर - 49 साल
  • भारत - 46.2 साल
एचआईवी पीड़ितों में तीन साल पहले मेनोपॉज 
एक समय था जब उचित इलाज के अभाव में एचआईवी जल्द ही एड्स में बदल जाता था और ऐसे लोगों की असामयिक मौत हो जाती थी। मेडिकल सुविधाएं बढ़ने के साथ-साथ अब एचआईवी से संक्रमित लोगों की औसत उम्र भी बढ़ी है और यह 70 वर्ष तक पहुंच गई है। ऐसे में अब वे भी उम्र के साथ होने वाले बदलावों और एजिंग की अन्य स्वास्थ्य समस्याओं से गुजरते हैं। द नॉर्थ अमेरिकन मेनोपॉज सोसाइटी (NAMS) के जरनल मेनोपॉज में छपी एक स्टडी के अनुसार एचआईवी से संक्रमित महिलाओं में मेनोपॉज जल्दी हो जाता है। अमेरिका में मेनोपॉज की औसम उम्र 50-52 वर्ष है, जबकि एचआईवी संक्रमित महिलाओं में यह शारीरिक परिवर्तन तीन साल पहले यानी 48 साल की औसत उम्र में हो जाता है।

पूर्व में हुई रिसर्च के अनुसार एचआईवी से संक्रमित महिलाओं में 40 से 45 साल की उम्र में मेनोपॉज हो जाता था। कुछ मामलों में यह 40 साल से कम उम्र में हो जाता था, जिसे प्राइमरी ओवरियन इनसफिशिएंसी (POI) कहते हैं। हालांकि, द नॉर्थ अमेरिकन मेनोपॉज सोसाइटी की इस स्टडी के बारे में दावा किया गया है कि यह अपनी तरह की पहली रिसर्च है जिसमें एचआईवी संक्रमित महिलाओं में मेनोपॉज की औसत उम्र का जिक्र किया गया है।

जल्दी मेनोपॉज होने के अन्य कारण
  • हेपेटाइटिस सी
  • शादी की स्थिति (शादीशुदा महिलाओं में जल्दी होता है)
  • जन्म स्थान (भारतीयों में जल्दी होता है मेनोपॉज)
  • खास जीन
  • स्मोकिंग
  • कीमोथेरेपी
  • पेल्विक ऑर्गन सर्जरी
क्या कहते हैं डॉक्टर 
द नॉर्थ अमेरिकन मेनोपॉज सोसाइटी (NAMS) ने इस स्टडी के संबंध में एक प्रेस रिलीज जारी की है। इसमें उन्होंने मेडिकल डॉयरेक्टर डॉ. स्टीफनी फ्यूबियन के हवाले से बताया है कि स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़े प्रोफेशनल्स को ध्यान देना चाहिए कि एचआईवी से संक्रमित महिला मरीजों में प्रीमीच्योर या जल्दी रजोनिवृत्ति हो सकती है। उन्हें चाहिए कि वे अपनी मरीजों को इसके संबंध में उचित सलाह दें और काउंसिलिंग करें साथ ही मेनोपॉज का उनके शरीर पर पड़ने वाले असर के बारे में भी उन्हें सचेत करें।

हॉट फ्लैशेस भी करते हैं परेशान
रजोनिवृत्ति से करीब दो साल पहले से ही हॉट फ्लैशेस महिलाओं को परेशान करते हैं। मेनोपॉज से करीब एक साल पहले यह अपने चरम पर होते हैं और इसके बाद भी कई सालों तक रह सकते हैं। इस दौरान अचानक शरीर का तापमान बढ़ना, रात में बार-बार नींद टूटना, शरीर का लाल पड़ना, दिल की धड़कन तेज होना, घबराहट और थकान इसके प्रमुख लक्षण हैं।

सिंगापुर में के.के वुमंस एंड चिल्ड्रंस हॉस्पिटल से जुड़े फैमिली मेडिसिन सर्विस एंड मेनोपॉज की प्रमुख और कंसल्टेंट फैमिली फिजिशियन डॉ. आंग सेंग बिन बताती हैं कि पिछले कुछ वर्षों में मेनोपॉज से जुड़ी समस्याओं पर राय लेने के लिए उनके पास आने वाली महिलाओं की संख्या तीस फीसदी तक बढ़ गई है। इनमें हॉट फ्लैशेस, चिड़चिड़ापन और नींद में खलल पड़ना प्रमुख समस्याएं हैं। डॉ. आंग सिंगहेल्थ ग्रुप से जुड़ी हैं और हेल्थएक्सचेंज डॉट एसजी से उन्होंने यह बातें कही हैं।

डिप्रेशन का कारण बन सकता है मेनोपॉज 
जो महिलाएं पूर्व में डिप्रेशन से पीड़ित रही हैं उनमें मेनोपॉज एक बार फिर डिप्रेशन का कारण बन सकता है। नींद न आने की समस्या से जूझ रही महिलाओं को अपने स्ट्रेस को मैनेज करना सीखना होगा। इसके अलावा माइंड-बॉडी थेरेपी (मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए) के साथ ही और परिवार एवं दोस्तों से ज्यादा घुलने-मिलने से भी उन्हें इन लक्षणों से छुटकारा मिल सकता है। 


मेनोपॉज के बाद शारीरिक संबंध
मेनोपॉज किसी महिला की सेक्सुअल लाइफ को बहुत ज्यादा प्रभावित करता है। मेनोपॉज के बाद उन्हें संबंध बनाने में दर्द होना, कामेच्छा की कमी, योनि का सूखापन (वजाइनल ड्राइनेस) जैसी समस्याओं से गुजरना पड़ता है। इससे भी बुरी बात यह है कि यह समस्या वक्त के साथ और बढ़ती जाती है। डॉ. आंग कहती हैं चिकत्सकों को अपने मरीज की सेक्सुअल, मेडिकल और मानसिक हिस्ट्री की पूरी जांच करनी चाहिए। मरीज की मानसिक और शारीरिक स्थिति को बेहतर करने की कोशिश करनी चाहिए। ऐसी दवाएं जो वजाइनल ड्राइनेस को बढ़ाती हैं उनसे बचना चाहिए और वजाइनल लुब्रिकेंट व एस्ट्रोजेन क्रीम लगाने के लिए दिया जाना चाहिए।

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