-बल, बुद्धि, विद्या, शौर्य, पराक्रम, दृढ़ता की अद्भुत प्रेरणास्रोत हैं मंगलकारी पवनपुत्र हुनमान
कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मंगलवार की अद्र्घ रात्रि में देवी अंजनि के उदर से हनुमान जन्मे थे। देश के कई स्थानों में इस दिन को हनुमान जन्मोत्सव के रूप में भक्ति भाव से मनाया जाता है।इस दिन वाल्मीकि रामायण व सुंदरकांड व हनुमान चालीसा का पाठ कर चूरमा, केला व अमरूद आदि फलों का प्रसाद वितरित किया जाता है। शास्त्रों में हनुमान की राम के प्रति अगाध श्रद्घा व भक्ति को बताया गया है।ऐसी ही एक कथा में यह प्रमाणित भी होता है। भगवान श्रीराम लंका पर विजय कर अयोध्या लौटे। जब हनुमान को अयोध्या से बिदाई दी गई तब माता सीता ने उन्हें बहुमूल्य रत्नों से युक्त माला भेंट में दी, पर हनुमान संतुष्ट नहीं हुए व बोले माता इसमें राम-नाम अंकित नहीं है। तब माता सीता ने अपने ललाट का सौभाग्य द्रव्य सिंदूर प्रदान कर कहा कि इससे बड़ी कोई वस्तु उनके पास नहीं है। हनुमान को सिंदूर देने के साथ ही माता सीता ने उन्हें अजर-अमर रहने का वरदान भी दिया। यही कारण है कि हनुमान जी को तेल व सिंदूर अति प्रिय हैजीवन में शक्ति और सिद्धि की कामना को पूरी करने के लिए श्रीहनुमान उपासना अचूक मानी जाती है। श्रीहनुमान व उनका चरित्र जीवन में संकल्प, बल, ऊर्जा, बुद्धि, चरित्र शुद्धि, समर्पण, शौर्य, पराक्रम, दृढ़ता के साथ जीवन में हर चुनौतियों या कठिनाइयों का सामना करने व उनसे पार पाने की अद्भुत प्रेरणा है। श्री हनुमान चिरंजीवी भी माने जाते हैं। ऐसी अद्भुत शक्तियों व गुणों के स्वामी होने से ही वे जाग्रत देवता के रूप में पूजनीय हैं। इसलिए किसी भी वक्त हनुमान की भक्ति तन, मन व धन से संपन्न बनाने वाली मानी गई है। हनुमान जयंती से यह विशेष हनुमान मंत्र आरंभ करना अत्यंत मंगलकारी है। असके चमत्कारी असर से चारों तरफ से खुशियां बरसने लगेंगी। स्नान के बाद श्री हनुमान की पंचोपचार पूजा यानी सिंदूर, गंध, अक्षत, फूल, नैवेद्य चढ़ाकर करें। गुग्गल धूप व दीप जलाकर नीचे लिखा हनुमान मंत्र लाल आसन पर बैठ साल और जीवन को सफल व पीड़ामुक्त बनाने की इच्छा से बोलें और अंत में श्री हनुमान की आरती करें।
ॐ नमो हनुमते रुद्रावताराय
विश्वरूपाय अमित विक्रमाय
प्रकटपराक्रमाय महाबलाय
सूर्य कोटिसमप्रभाय रामदूताय स्वाहा।।
नरक चतुर्दशी -को छोटी दीपावली भी कहते हैं। इसे छोटी दीपावली इसलिए कहा जाता है क्योंकि दीपावली से एक दिन पहले, रात के वक्त उसी प्रकार दीए की रोशनी से रात के तिमिर को प्रकाश पुंज से दूर भगा दिया जाता है जैसे दीपावली की रात को। इस रात दीए जलाने की प्रथा के संदर्भ में कई पौराणिक कथाएं और लोकमान्यताएं हैं। (एक कथा के अनुसार आज के दिन ही भगवान श्री कृष्ण ने अत्याचारी और दुराचारी नरकासुर का वध किया था और सोलह हजार एक सौ कन्याओं को नरकासुर के बंदी गृह से मुक्त कर उन्हें सम्मान प्रदान किया था। इस उपलक्ष में दीयों की बारात सजायी जाती है।)कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को उपरोक्त कारणों से नरक चतुर्दशी, रूप चतुर्दशी और छोटी दीपावली के नाम से जाना जाता है। और इसके बाद क्रमशः दीपावली, गोधन पूजा और भाई दूज मनायी जाती है।पौराणिक कथा के अनुसार इसी दिन कृष्ण ने एक दैत्य नरकासुर का संहार किया था। सूर्योदय से पूर्व उठकर, स्नानादि से निपट कर यमराज का तर्पण करके तीन अंजलि जल अर्पित करने का विधान है। संध्या के समय दीपक जलाए जाते हैं।
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