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जटामांसी के फायदे और नुकसान

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जटामांसी (Jatamansi) को नारडोस्टेयस जटामांसी, बालछड़, स्पाइक्नाड व अन्य नामों से भी जाना जाता है। यह मुख्य रूप से हिमालय में पाई जाती है। इसमें अवसाद, तनाव और थकान को कम करने वाले गुण पाए जाते हैं और इसको न्यूरोप्रोटेक्टिव जड़ी बूटी के रूप में आमतौर पर आयुर्वेद में इस्तेमाल किया जाता है। मस्तिष्क या सिर से जुड़ी समस्याओं के लिए जटामांसी औषधि एक रामबाण इलाज है। ये पहाड़ों पर ही बर्फ में पैदा होती है। इसके रोयेंदार तने तथा जड़ ही दवा के रूप में उपयोग में आते हैं। आयुर्वेद की दृष्टि से जटामांसी कई औषधीय गुणों से भरपूर है, जो इम्यून सिस्टम, दिल, रक्तचाप आदि बीमारियों से बचाती है। यह दिल की धड़कन को संतुलित रखने में भी लाभकारी होती है।

जटामांसी की जड़ें इसका मुख्य औषधीय हिस्सा है। जटामांसी के पत्ते भी हर्बल और पारंपरिक चिकित्सा में उपयोग किए जाते हैं। दुर्गन्ध, शामक, रोगाणुरोधी और सूजन को कम करने वाले गुणों की वजह से इसको आवश्यक तेल के रूप में प्रयोग किया जाता है। जटामांसी औषधीय जड़ी- बूटी का इस्तेमाल तीक्ष्ण गंध वाला परफ्यूम और दवा बनाने के लिए भी किया जाता है।

जटामांसी के फायदे मिर्गी के लिए - 

जटामांसी ऑक्सीडेटिव तनाव के खिलाफ मजबूत सुरक्षा प्रदान करती है। यह तंत्रिका तंत्र में हार्मोन के संतुलन को बनाए रखने में मदद करती है और इस तरह यह मिर्गी के रोगियों को स्ट्रोक के ख़तरे से बचाती है। आयुर्वेद में, जटामांसी रूट पाउडर को अकेले प्रयोग नहीं किया जाता है, यह अन्य जड़ी बूटी या आयुर्वेदिक दवाओं के साथ मिलाकर प्रयोग की जाती है। 1000mg जटामांसी रूट पाउडर, 500mg वाच पाउडर (Vacha) और 125mg अभ्रक भस्म को मिलाएँ। यह मिश्रण दिन में दो बार 1 चम्मच शहद या ब्राह्मी रस के साथ लें। 

जटामांसी के लाभ करें मानसिक थकावट को दूर -

जटामांसी मानसिक थकावट को कम करती है और एक स्नायू टॉनिक के रूप में कार्य करती है। आयुर्वेद के अनुसार, यह स्वस्थ शांतिदायक दवा कार्यों को उत्तेजित और मस्तिष्क को पोषण प्रदान करती है। यह ज्ञान से संबंधी प्रदर्शन को बेहतर बनाती है, स्नायू कमजोरी को दूर करती है। लंबे समय से हो रही थकान की वजह से भी कई लोग अवसाद और तनाव से ग्रस्त रहते हैं। जटामांसी का अश्वगंधा के साथ सेवन CFS (Chronic Fatigue Syndrome) से जुड़े तनाव के लिए एक शानदार उपाय है। तनाव को कम करने वाले और इन जड़ी बूटियों की एंटीऑक्सीडेंट गतिविधियां भी CFS की वजह से हुए ऑक्सीडेटिव तनाव को कम करने मदद करती है। 

मानसिक थकान में, जतामंसी पाउडर (चूर्ण) को कम खुराक में शुरू करना चाहिए। 500 मिलीग्राम दिन में दो बार मानसिक थकान को कम करने और दिमाग़ पर आरामदायक प्रभाव के लिए पर्याप्त और प्रभावी खुराक है। छोटी अवधि के लिए उच्च खुराक का उपयोग करने की बजाय इसका एक लंबी अवधि के लिए कम मात्रा में उपयोग सबसे अच्छा है।

जटामासी का उपयोग बचाएं अनिद्रा से -

ये धीमे लेकिन प्रभावशाली ढंग से काम करती है। अनिद्रा की समस्‍या होने पर सोने से एक घंटा पहले एक चम्‍मच जटामांसी की जड़ का चूर्ण ताजे पानी के साथ लेने से लाभ होता है। जटामांसी नींद की गुणवत्ता में सुधार और अनिद्रा को कम कर देती है।

जटामासी चूर्ण है सिर दर्द में प्रभावी -

आयुर्वेद के अनुसार, जटामांसी सिर दर्द साथ होने वाले कान के पास दर्द, आंख के आसपास कष्टदायी दर्द आदि के लिए प्रभावी समाधान है। इसके अलावा तनाव और थकान के कारण सिर दर्द की परेशानी हो जाती है। इससे छुटकारा पाने के लिए जटामांसी, तगर, देवदारू, सोंठ, कूठ आदि को समान मात्रा में पीसकर देशी घी में मिलाकर सिर पर लेप करें, सिर दर्द में लाभ होगा।

जटामांसी की जड़ों का उपयोग करे दिमाग तेज - 

जटामांसी दिमाग के लिए एक रामबाण औषधि है, यह धीमे लेकिन प्रभावशाली ढंग से काम करती है।जटामांसी याददाश्त में सुधार और भुलक्कड़पन को कम कर देती है। इसके अलावा यह याददाश्त को तेज करने की भी अचूक दवा है। यह स्मृति हानि वाले लोगों में स्मृति एजेंट के रूप में कार्य करती है। एक चम्मच जटामांसी चूर्ण को एक कप दूध में मिलाकर पीने से दिमाग तेज होता है। यह अच्छा परिणाम प्रदान करती है जब ब्राह्मी, अश्वगंधा या शंखपुष्पी के साथ संयोजन के रूप में प्रयोग की जाती है। 

जटामांसी का पौधा है अवसाद में उपयोगी - 

जटामांसी अवसाद का मुकाबला करने में मदद करती है। यह शांति और स्थिरता की भावना के द्वारा अवसाद को कम करने वाले एक एजेंट के रूप में काम करती है।

कोई शक नहीं, यह अवसाद के लिए एक प्रभावी दवा है और उसके उपचार के लिए पसंद की दवा के रूप में प्रयोग की जाती है। आक्रामक लक्षणों के साथ अवसाद में लाभ लेने के लिए यह मुख्य रूप से अकेले इस्तेमाल की जाती है। यह आक्रामक, आत्म विनाशकारी और हिंसक व्यवहार को कम करता है। यह बेचैनी, गुस्सा, कुंठा, चिड़चिड़ापन, नींद और ऊर्जा की कमी को भी कम करता है। यह जीवन शक्ति और ताक़त बढ़ाती है।

जटामांसी और लौह भस्म के साथ उदास अवसाद के उपचार के लिए प्रयोग की जाती है। इसके लिए 40 ग्राम जटामांसी, 20 ग्राम हींग और 10 ग्राम लौह भस्म को मिलाकर मिश्रण तैयार किया जाता है। 250-500mg दिन में 2 बार जटामांसी के गर्म अर्क के साथ इसका सेवन करें।

जटामांसी के गुण हैं चिंता को दूर करने का उपाय - 
जटामांसी में चिंता को कम करने वाले गुण होते हैं। यह बेचैनी और घबराहट की भावना कम करता है, दिल की दर को सामान्य, चिंता, कंपन, चिंता की वजह से सोने में मुश्किल आदि को नियंत्रित करने और चिंता विकारों के इलाज के लिए उपयोग किया जाता है। यह चिंता विकारों में कंपन को नियंत्रित करने के लिए और अधिक प्रभावी है। 

बुखार से बचाएँ जटामांसी के गुण -
बुखार और संक्रमण के कुछ मामलों में रोगी जलन सनसनी, थकान और बेचैनी महसूस करते हैं। इन लक्षणों में, जटामांसी के साथ प्रवाल पिष्टी अत्यधिक उपयोगी होती है। 

जटामांसी का उपयोग करे त्वचा में सुधार - 
जटामांसी त्वचा के रंग में सुधार करने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। जटामांसी की जड़ को गुलाबजल में पीसकर चेहरे पर लेप की तरह लगायें। इससे कुछ दिनों में ही चेहरा खिल उठेगा।

मासिक धर्म में हैं उपयोगी जटामांसी के फायदे - 
20 ग्राम जटामांसी, 10 ग्राम जीरा और 5 ग्राम कालीमिर्च मिलाकर चूर्ण बनाएं। एक- एक चम्मच की मात्रा में दिन में तीन बार सेवन करें। इससे मासिक धर्म के दौरान दर्द में आराम मिलता है। 

जटामांसी खाने के फायदे हैं रजोनिवृत्ति के समय -
जटामांसी रजोनिवृत्ति के लक्षणों को कम कर देता जैसे मूड स्विंग्स, सोने में परेशानी,  ध्यान लगाने में परेशानी, कमजोर याददाश्त, सिर दर्द, चिड़चिड़ापन, चक्कर आना, थकान, तनाव, चिंता आदि। जटामांसी और सारस्वतारिष्ट दोनों रजोनिवृत्ति के अवांछित लक्षणों को नियंत्रित करने के लिए बहुत उपयोगी हैं। इसके अलावा, शतावरी भी जटामांसी के साथ प्रयोग किया जा सकता है।

बालछड़ के फायदे फॉर हेयर - 
रात में जटामांसी का एक पाव मोटा चूर्ण थोड़े से पानी में भिगो दें और सुबह मन्द आँच पर पकायें। चार भाग शेष रहने पर छानकर उसमें 1 पाव तिल का तेल और 5 तोला जटामांसी का कल्क (चटनी) मिलाकर दोबारा पकायें। थोड़ा सा तेल रहने पर उतार लें। इस तेल के प्रयोग से बाल झड़ना बन्द होते हैं, जूएँ शीघ्र नष्ट होती है। बाल शीघ्र बढ़ते हैं, मुलायम तथा काले रहते हैं। परंपरागत रूप से, यह बालों को काला और चमकदार बनाने के लिए प्रयोग किया जाता है। यह रूसी को भी नियंत्रित करता है। चिकने, रेशमी, मोटे और स्वस्थ बालों के लिए इसका नियमित रूप से उपयोग करें।

रक्तचाप को सामान्य रखें जटामांसी के लाभ - 
जटामांसी में हृदय को सुरक्षित रखने वाले गुण होते हैं। जटामांसी एक उत्कृष्ट हृदय टॉनिक के रूप में काम करती है। यह दिल के कार्यों को बढ़ाती है और हृदय की दर को सामान्य रखती है। यह लिपिड चयापचय को बरकरार रखता है और हृदय के ऊतकों को ऑक्सीडेटिव चोट से बचाती है।

आयुर्वेद में, जटामांसी रक्त परिसंचरण में सुधार रक्तचाप को सामान्य करने के लिए जानी जाती है। जटामांसी का मुख्य प्रभाव रक्त परिसंचरण पर पड़ता है। यह शरीर में तंग संचलन के कारण सभी परिस्थितियों में मदद करती है। दोनों स्थितियों उच्च रक्तचाप (हाई ब्लड प्रेशर) और निम्न रक्तचाप में रक्त चाप को सामान्य करने के लिए इस्तेमाल की जा सकती है। उच्च रक्तचाप के लिए, 1 ग्राम जटामांसी, 500 mg सरपगंधा और 2 ग्राम पुनर्नवा को मिलकर सेवन करें और निम्न रक्तचाप के लिए 500 mg जटामांसी, 2 ग्राम अश्वगंधा और 65 ग्राम शुद्ध कुचला को मिक्स करके सेवन करें।

जटामांसी का उपयोग करे पेट दर्द को कम - 
जटामांसी में हल्के वातहर और मजबूत ऐन्टीस्पैज़्माडिक गुण होते हैं, जो गैस और पेट दर्द को कम करने में मदद करते हैं। जटामांसी और मिश्री एक समान मात्रा में लेकर उसका एक चौथाई भाग में सौंफ, सौंठ और दालचीनी मिलाकर चूर्ण बनाएं और दिन में दो बार 4 से 5 ग्राम की मात्रा में रोजाना सेवन करें। ऐसा करने से पेट के दर्द में आराम मिलता है। 


जटामांसी के अन्य फायदे -

जटामांसी के अन्य फायदे इस प्रकार हैं - 
  • जटामांसी के बारीक चूर्ण से मालिश करने से ज्यादा पसीना आना कम हो जाता है।
  • जटामांसी के टुकड़े मुंह में रखकर चूसते रहने से मुंह की जलन एवं पीड़ा कम होती है।
  • जटामांसी चूर्ण को वाच चूर्ण और काले नमक के साथ मिलाकर दिन में तीन बार नियमित सेवन करने से हिस्टीरिया, मिर्गी, पागलपन जैसी बीमारियों से राहत मिलती है।यदि कोई व्यक्ति दांतों के दर्द से परेशान है तो, जटामांसी की जड़ का चूर्ण बनाकर मंजन करें। इससे दांत के दर्द के साथ- साथ मसूढ़ों के दर्द, सूजन, दांतों से खून, मुंह से बदबू जैसी समस्याएं भी दूर हो जाती है।
  • जटामांसी को पीसकर आंखों पर लेप की तरह लगाने से बेहोशी दूर हो जाती है।
  • जटामांसी को मूत्र में से ग्लूकोज (चीनी) के उत्सर्जन को कम करने के लिए प्रयोग किया जाता है। चंद्रप्रभा वटी के साथ, यह गुर्दे के कार्यों में सुधार और सामान्य गुर्दे की सीमा को पुनर्स्थापित करता है।

जटामांसी के नुकसान - 
जटामांसी के नुकसान निम्न हैं 
  • जटामांसी के ज्यादा उपयोग या सेवन करने से गुर्दों को नुकसान पहुंचने या पेट दर्द की शिकायत हो सकती है।
  • उच्च रक्तचाप वाले लोगों को इसके सेवन से पहले डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए।
  • जटामांसी के अत्यधिक उपयोग से एलर्जी हो सकती है। यदि आपकी त्वचा संवेदनशील है तो जटामांसी का इस्तेमाल करने से पहले अपने डॉक्टर की सलाह जरूर लें। अन्यथा एलर्जी का खतरा हो सकता है।
  • मासिक धर्म के समय इसका ज़्यादा उपयोग परेशानी पैदा कर सकता है।
  • गर्भावस्था और स्तनपान की अवधि के दौरान इसका उपयोग नहीं करना चाहिए। 
  • जटामांसी का जरुरत से ज्यादा इस्तेमाल करने से बचें नहीं तो उल्टी, दस्त जैसी बीमारियां आपको परेशान कर सकती है।


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