आयुर्वेद का अर्थ सिर्फ कड़वी दवाइयां और काढ़ा पीने के अलावा भी बहुत कुछ होता है। अस्वास्थ्यकर आहार या पर्यावरण के दोषों के कारण होने वाली स्वास्थ्य समस्याओं से बचने या उनसे पीड़ित होने पर उन्हें नियंत्रित रखकर एक स्वस्थ जीवन जीने के लिए आयुर्वेद है । ऐसी ही समस्याओं में से एक है पीसीओएस। महिलाओं में पीसीओएस (पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम) की समस्या के आयुर्वेदिक उपचार में विभिन्न जड़ी बूटियों, थेरेपीज और स्वस्थ जीवन शैली का समावेश होता है, जिसके द्वारा स्त्री की स्थिति में सुधार किया जाता है और इसके कारण होने वाले दुष्प्रभावों से छुटकारा पाने में मदद मिलती है।
क्या आयुर्वेद पीसीओएस के इलाज में मदद कर सकता है
आयुर्वेद पीसीओएस उपचार के लिए काफी प्रभावी है। पीसीओएस के आयुर्वेदिक उपचार में, प्रजनन क्षमता को बढ़ावा देने और हार्मोन का संतुलन बनाए रखने के लिए जड़ी-बूटियों का उपयोग किया जाता है। इसके लिए स्त्री को विभिन्न उपचारों और संतुलित आहार के नियमों का पालन करना पड़ता है। ये सभी पीसीओएस संबंधित समस्याओं को काबू करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
आयुर्वेद के अनुसार पीसीओएस के क्या कारण हैं
आयुर्वेद के अनुसार मानव शरीर में तीन प्रकार के बल होते हैं, वात, पित्त और कफ। जिन्हें लक्षण या दोष भी कहा जाता है। ये शरीर के अंदर फैलकर और महत्वपूर्ण शारीरिक कार्य करने में सहायक होते हैं। ऊर्जा के इन बलों के सामंजस्य में रुकावट की वजह से बीमारियां होती हैं ।
आयुर्वेद के अनुसार, पुरुषों और महिलाओं दोनों में, शुक्र धातु (वीर्य) पाई जाती है जो कि प्रजनन स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण है। इसमें एंड्रोजन (पुरुष) और एस्ट्रोजन (महिला) हार्मोन होते हैं। इन हार्मोनों के स्तर में कोई भी असंतुलन, बांझपन की वजह बन सकता है। आमतौर पर, महिलाओं में हार्मोन के असंतुलन के कारण पुरुष हार्मोन एंड्रोजन का अत्यधिक स्राव करने लगता है, जिससे अंडाशय में गांठ का निर्माण होता है, और जिसे चिकित्सीय रूप से पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम (पीसीओएस) के रूप में जाना जाता है।
आयुर्वेद के अनुसार पीसीओएस में क्या करें और क्या न करें
किसी अन्य उपचार पद्धति की तरह आयुर्वेदिक उपचारों में भी आपको एक प्रभावी उपचार के लिए कुछ निश्चित मापदंडों का पालन करना होता है। पीसीओएस से ग्रसित महिलाएं क्या करें और क्या न करें इस बारे में जानकारी अधोलिखित है
स्त्री को छाछ के अपवाद के साथ दूध और दूध उत्पादों के सेवन में कटौती करने की सलाह दी जाती है।
- कम वसा वाले दूध का चयन करना ही बेहतर है। दूध का सेवन करने से पहले, उसे उबाल लें। आप दूध में कफ की प्रकृति को बढ़ने से रोकने के लिए दूध उबालने से पहले एक चुटकी अदरक या हल्दी डाल सकते हैं।
- एक प्राकृतिक नींद प्रतिरूप का पालन करें, दोपहर में सोने से बचें क्योंकि यह रात में आपके निंद्रा चक्र को बाधित कर सकता है।
- सभी प्रकार के जंक फूड को अलविदा कहें।
- अपने आहार में लाल मांस, तला हुआ भोजन और अंडे आदि की मात्रा जहाँ तक हो सके सीमित रखें। हालांकि, आप कभी-कभार मछली खा सकती हैं।
- चीनी युक्त पदार्थों को स्वास्थ्य के लिए हानिकारक माना जाता है क्योंकि चीनी शरीर में कफ बढ़ाती है। आप इसके बदले में शहद ले सकते हैं, जो कि कफ को कम करता है।
- आपको बीन्स का सेवन करने की अनुमति है लेकिन नट्स के सेवन से बचें।
- आलू या शकरकंद के सेवन से भी बचें क्योंकि इनके सेवन से आपका वजन बढ़ जाता है।
- जो शारीरिक या मानसिक कार्य आपकी क्षमता से परे हैं उन्हें करने से बचें, साथ ही तनाव जैसी सभी नकारात्मक भावनाओं से भी बचना चाहिए।
- गर्भ निरोधकों का सीमित उपयोग करें।
- आपको संतुलित आहार लेने की सलाह दी जाती है।
- गेहूँ या चावल का सेवन मध्यम मात्रा में ही करें क्योंकि ये कफ बढ़ाने के लिए जाने जाते हैं।
- अपने आहार में दालचीनी, लहसुन, और मेथी जैसी जड़ी-बूटियों को शामिल करें।
- हर्बल चाय जैसे कि स्पीयरमिंट टी या ग्रीन टी पिएं।
- धूम्रपान, शराब और नशीले पदार्थों से बचें, क्योंकि ये तत्व मासिक धर्म चक्र को नकारात्मक रूप से प्रभावित करते हैं।
पीसीओएस के इलाज के लिए प्रभावी जड़ी बूटियां
पीसीओएस उपचार में स्त्री की प्रजनन प्रणाली को मजबूत करने और हार्मोन के संतुलित स्तर के लिए कई जड़ी-बूटियों का मिश्रण शामिल है। इतना ही नहीं, ये जड़ी-बूटियां अंडाशय में गांठ के कारण उत्पन्न होने वाली सूजन से राहत दिलाने में भी सहायक होती हैं। कुछ जड़ी-बूटियां अन्य मुद्दों जैसे पाचन संबंधी विकार, वजन में वृद्धि, इंसुलिन संवेदनशीलता आदि में भी अद्भुत काम करती हैं। संक्षेप में, ये हर्बल दवाएं एलोपैथिक उपचार के समान ही कार्य करती हैं। हालांकि, एलोपैथिक दवा के विपरीत, यदि आप अपने आयुर्वेदिक चिकित्सक की सलाह पर इनका सेवन करती हैं तो इनका शरीर पर कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ता है।
आपकी जानकारी के लिए पीसीओएस का इलाज करने के लिए कुछ जड़ी-बूटियों के बारे में जानकारी अधोलिखित है:
1. शतावरी (अस्परागस रेसमोसस)
शतावरी विटामिन ए, बी 1, बी 2, सी, ई, फोलिक एसिड और मैग्नीशियम, फास्फोरस, कैल्शियम और आयरन जैसे खनिजों का एक समृद्ध स्रोत है। ये खूबियां इस जड़ी बूटी को एक आदर्श एंटीऑक्सीडेंट बनाती है जो महिलाओं में प्रजनन प्रणाली की रक्षा करती है। यह मधुमेह विरोधी गुणों के कारण इंसुलिन संवेदनशीलता को बेहतर बनाने में भी मदद करती है। इसका एक और लाभ यह है कि यह प्रजनन क्षमता को बेहतर बनाने में भी सहायक है।
2. शिलाजीत (प्यूरिफाइड अस्फाल्टम)
शिलाजीत अपने एंटीइंफ्लेमेटरी गुणों के लिए जाना जाता है। यह इम्युनिटी बढ़ाने के लिए प्रसिद्ध है, जो महिलाओं की प्रजनन प्रणाली को फिर से जीवंत करता है पीसीओएस से पीड़ित महिलाओं को भारी रक्तस्राव होता है, जिसके परिणामस्वरूप शरीर में आयरन की कमी हो जाती है। इस जड़ी बूटी के सेवन से आयरन की कमी नहीं होती तथा यह शरीर में उसकी मात्रा को बढ़ाने के लिए जानी जाती है।
3. हल्दी (करकुमा लोंगा)
हल्दी को इसके उपयोग की विविधता के लिए जाना जाता है। इसे खाना पकाने, सौंदर्य उत्पादों और यहाँ तक कि औषधीय प्रयोजनों के लिए भी किया जाता है। इसके औषधीय गुण महिलाओं को बहुत राहत प्रदान करते हैं। हल्दी इंसुलिन प्रतिरोध क्षमता को बेहतर बनाने, महिला प्रजनन प्रणाली को डिटॉक्सीफाई करने, मुँहासे हटाने आदि में सहायता करती है।
4. विभीतकी (टर्मिनलिया बेलेरिका)
पीसीओएस से पीड़ित महिलाओं के लिए इस औषधीय पौधे के कई स्वास्थ्य संबंधी लाभ हैं, तथा शरीर मैं मौजूद शर्करा के चयापचय में सुधार एक ऐसा ही लाभ है। विभीतकी, एंटीइंफ्लेमेटरी और एंटीमाइक्रोबियल गुणों से परिपूर्ण है। इसके अतिरिक्त, यह पाचन संबंधी जटिलताओं को ठीक करने के लिए भी जाना जाता है।
5. दालचीनी (सिन्नामोमम ज़ीलेनिकुम)
खुशबूदार और स्वादिष्ट दालचीनी रक्त में मौजूद शर्करा के स्तर को नियंत्रित करने में भी मदद करती है। यह प्रजनन क्षमता को बढ़ाने और इंसुलिन संवेदनशीलता में सुधार के लिए भी जानी जाती है।
6. कारावेल्लाका (मोमोर्डिका चारेंटिया)
भले ही इसका स्वाद कड़वा हो लेकिन यह फल, एंटीडायबिटिक गुणों से भरपूर होता है। इसके फायदों में पाचन विकारों का इलाज, सूजन से राहत, इम्युनिटी को बढ़ाना और कैंसर से बचाव आदि हैं।
7. गुडूची (टीनोस्पोरा कोर्डिफोलिया)
यह शरीर में रक्त शर्करा को विनियमित करने के लिए जाना जाता है। इसकी सबसे बड़ी विशेषता यह है, कि यह महिलाओं में यौनरुचि और इम्युनिटी बढ़ाने के लिए काफी प्रभावी होता है। गुडुची का उपयोग यकृत की स्थिति जैसे हेपेटाइटिस और विभिन्न प्रकार के कैंसर के इलाज के लिए किया जाता है।
8. नीम (आज़ादिरचता इंडिका)
नीम एंटीबैक्टीरियल, ऐंटिफंगल, एंटीडायबिटिक और शामक गुणों से भरा है। इसीलिए इसका उपयोग विभिन्न उपभोक्ता उत्पादों में जैसे टूथपेस्ट से लेकर सभी सौंदर्य उत्पादों और दवाओं में किया जाता है। यह एक अद्भुत, रक्त शोधक पदार्थ है और त्वचा को स्वस्थ बनाए रखने में मदद करता है। नीम का उपयोग मुँहासे और लगभग सभी प्रकार के त्वचा विकारों के इलाज के लिए भी किया जाता है।
9. आंवला (एंबलिका ऑफाइसिनालिस)
भारत में बेहद लोकप्रिय यह फल विटामिन सी का उत्तम स्रोत है और यह एक एंटीऑक्सीडेंट भी है। यह सूजन और वजन कम करने में सहायक है। आंवला में मौजूद फाइबर, स्वस्थ पाचन तंत्र को बनाए रखने में मदद करते हैं। यह इम्युनिटी को मजबूत करने के लिए भी अच्छा है।
10. लोधरा (सिम्प्लोको रेसमोसा)
लोधरा फ्लेवोनॉल ग्लूकोसाइड्स नामक यौगिकों का एक समृद्ध स्रोत है जो गर्भाशय के विकारों को कम करने में अत्यधिक प्रभावी है। इसके अन्य लाभ डिम्बग्रंथि के हार्मोन को विनियमित करना और प्रजनन क्षमता में सुधार हैं।
11. मेशाशृंगी (जिमनेमा सिल्वेस्ट्रे)
इस जड़ी बूटी का उपयोग गर्भाशय के स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए किया जाता है। यह इंसुलिन संवेदनशीलता और मधुमेह विरोधी गुणों में सुधार के लिए जाना जाता है।
12. अशोक (सराका इंडिका)
अशोक एंटीइंफ्लेमेटरी गुणों से भरपूर होता है। यह एंडोमीट्रियम की मरम्मत में सहायता करता है और सूजन के कारण इसकी क्षति-ग्रस्त संवेदनशील परत का उपचार करता है। यह एस्ट्रोजन के स्तर को भी नियमित करने में कारगर होता है। इसमें एंटीमाइक्रोबियल और एंटीफंगल गुण भी होते हैं जो बैक्टीरिया और फंगल (विशेष रूप से कैंडिडा) से होने वाले संक्रमण से मूत्र मार्ग को बचाने में मदद करते हैं।
13. हरीतकी (टर्मिनलिया चेबुला)
टर्मिनलिया चेबुला विटामिन सी और अन्य खनिजों जैसे सेलेनियम, तांबा, पोटेशियम और मैंगनीज का एक समृद्ध स्रोत है। इस औषधीय टॉनिक में एंटीट्यूमर, एंटीइंफ्लेमेटरी गुण होते हैं, और यह शरीर की विभिन्न जटिलताओं जैसे कि कब्ज, पेट फूलना, कोलाइटिस, आदि में कारगर होता है।
14. नागरा (ज़िंगबीर ऑफ़िसिनेल)
आम बोलचाल की भाषा में इसे अदरक कहा जाता है, यह दुनिया भर में सबसे अधिक इस्तेमाल की जाने वाली जड़ी-बूटियों में से एक है। अदरक एंटी-कैंसर गुणों से परिपूर्ण होता है जो गर्भाशय को कैंसर तथा अन्य संक्रमणों से बचाता है क्योंकि जिन महिलाओं में पीसीओएस पाया जाता वे अन्य महिलाओं की बजाय जल्दी एंडोमीट्रियल कैंसर की चपेट में आ जाती हैं। अदरक मासिक धर्म के दौरान होने वाले दर्द से राहत दिलाने में भी काम आता है।
15. उशीरा (वेटिवरिया ज़िज़ानियोइड्स)
थकान दूर करने के लिए वेटिवर तेल का ठंडा प्रभाव एक आदर्श उपाय है। यह मांसपेशियों को आराम देता है और गर्भाशय की ऐंठन को कम करता है। त्वचा की समस्याओं के इलाज के लिए वेटिवर के लाभकारी प्रभाव देखे गए हैं। इसे मधुमेह से ग्रस्त लोगों के लिए फायदेमंद कहा जाता है।
16. देवदारू (सेडरस देवदार)
यह अपने एंटीइंफलेमेटरी, मांसपेशियों को आराम देने वाले गुणों के लिए जाना जाता है। इसका उपयोग मासिक धर्म के दौरान ऐंठन को कम करने, मोटापे के इलाज के लिए भी किया जाता है। यह मधुमेह के इलाज में भी काफी प्रभावशाली होता है।
17. अश्वगंधा (विथानिया सोमनीफेरा)
अश्वगंधा एक प्राकृतिक ऊर्जास्रोत और मिजाज को नियंत्रित करने का एक अचूक उपाय है। यह एडाप्टोजेन का एक समृद्ध स्रोत है जो हमारे शरीर को आंतरिक और बाहरी तनावों के अनुकूल करने में मदद करता है।
18. जावा प्लम (यूजेनिया जम्बोलाना)
हम भारत में इसे ‘जामुन’ के नाम से जानते हैं। यह शरीर में रक्त शर्करा और कोलेस्ट्रॉल के स्तर को नियंत्रित करने में सहायक है। यह स्वादिष्ट फल, कैंसर रोधी और लिवर की रक्षा करने वाले गुणों से भरपूर है।
19. यशद भस्म (जिंक कैलक्स)
यह आमतौर पर जस्ते के नाम से जाना जाता है, इम्युनिटी बढ़ाने और रक्त शर्करा को विनियमित करने के लिए अच्छा है।
20. किराततिक्त (स्वर्तिया चिरायता)
स्वर्तिया चिरायता अपने एंटीइंफ्लेमेटरी और रक्त शर्करा के विनियमन आदि गुणों के लिए प्रसिद्ध है।
यह एक इम्युनिटी बूस्टर भी है, यह लिवर को स्वस्थ बनाए रखता है और त्वचा के विकारों के खिलाफ अच्छी तरह से काम करता है।
21. वृक्षामला (गार्सिनिया कैंबोजिया)
यह अद्भुत फल, सिट्रस फलों के परिवार से आता है और इसमें हाइड्रॉक्सीसिट्रिक एसिड (एचसीए) की प्रचुर मात्रा पाई जाती है। एचसीए आपके शरीर को बेहतर व्यायाम करने में मदद करता है । यह आपकी भूख को नियंत्रण में रखकर वजन घटाने में सहायक होता है।
पीसीओएस के लिए आयुर्वेदिक उपचार
पीसीओएस के उपचार के लिए निम्नलिखित आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धतियों का पालन किया जाता है:
1. बस्ती (हर्बल एनीमा)
इसके लिए औषधीय तेल या काढ़े की आवश्यकता होती है, जो मलाशय के माध्यम से शरीर के अंदर डाला जाता है। यह पीसीओएस जैसी स्वास्थ्य समस्याओं के लिए कारण बनने वाले वात को शरीर से निकालने में मदद करता है।
2. विरेचन (हर्बल सफाई)
इस उपचार प्रक्रिया का प्रयोग, शरीर से पित्त जैसे विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालने के लिए किया जाता है। इसमें उन दवाइयों का उपयोग शामिल है जो मलाशय के माध्यम से दोषों को बाहर निकालने के लिए मलोत्सर्ग को प्रवृत्त करती हैं।
3. वमन (हर्बल उल्टी)
इस प्रक्रिया में शरीर में मौजूद वातित कफ से छुटकारा पाने के लिए उल्टी को प्रवृत्त करने वाली दवाओं का प्रयोग किया जाता है। यह एक दर्द रहित उपचार प्रक्रिया है, जो विषाक्त पदार्थों से छुटकारा दिलाती है, और हार्मोन को संतुलित करने में मदद करती है।
पीसीओएस के लिए आयुर्वेद द्वारा अनुशंसित योग आसन
आयुर्वेद, पीसीओएस से पीड़ित लोगों के लिए योगासन करने की अनुशंसा करता है। इसके अलावा, यह आपको घर पर पीसीओएस के लिए आयुर्वेदिक उपचार का अभ्यास करने में मदद करता है। आप कुछ योगासन जैसे प्राणायाम, तितली मुद्रा, भारद्वाजासन, पद्म साधना, सूर्य नमस्कार, सर्वांगासन, आदि का अभ्यास कर सकती हैं। आप बेहतर परिणामों के लिए अपने आहार में पीसीओएस उपचार हेतु आयुर्वेदिक दवाओं को भी शामिल कर सकती हैं।
आपकी जीवनशैली, आपके स्वास्थ्य और पीसीओएस स्थिति को भी प्रभावित करती है। परिणामों में सुधार के लिए नीचे दिए गए बिंदुओं का अनुसरण करें:
मोटापे से बचें
मोटापा, इंसुलिन प्रतिरोध का कारण होता है, जो स्थिति को और बिगाड़ते हुए पीसीओएस को तीव्र करता है। आप वजन कम करके अपने इंसुलिन प्रतिरोध और अत्यधिक एंड्रोजन स्तर को कम कर सकती हैं।
स्वस्थ आहार
स्वास्थ्यप्रद भोजन का ही सेवन करें और तली हुई चीजों, रेड मीट तथा उन वस्तुओं के सेवन से बचें जिसमें कार्बोहाइड्रेट और वसा की ज्यादा मात्रा होती है क्योंकि ये आपके शरीर में इंसुलिन बढ़ाते हैं। उन खाद्य पदार्थों का सेवन अधिक मात्रा में करें जिनमें फाइबर की प्रचुर मात्रा पाई जाती है।
आयुर्वेद का उद्देश्य स्वस्थ जीवन है। जो स्त्रियां पीसीओएस से ग्रस्त हैं वे शांत रहें और घबराएं नहीं। हालांकि, समग्र तरीके से इस समस्या से छुटकारा पाने के लिए विशेषज्ञ डॉक्टर की सलाह लेना हमेशा बेहतर है।
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