गोण्डा लाइव न्यूज एक प्रोफेशनल वेब मीडिया है। जो समाज में घटित किसी भी घटना-दुघर्टना "✿" समसामायिक घटना"✿" राजनैतिक घटनाक्रम "✿" भ्रष्ट्राचार "✿" सामाजिक समस्या "✿" खोजी खबरे "✿" संपादकीय "✿" ब्लाग "✿" सामाजिक "✿" हास्य "✿" व्यंग "✿" लेख "✿" खेल "✿" मनोरंजन "✿" स्वास्थ्य "✿" शिक्षा एंव किसान जागरूकता सम्बन्धित लेख आदि से सम्बन्धित खबरे ही निःशुल्क प्रकाशित करती है। एवं राजनैतिक , समाजसेवी , निजी खबरे आदि जैसी खबरो का एक निश्चित शुल्क भुगतान के उपरान्त ही खबरो का प्रकाशन किया जाता है। पोर्टल हिंदी क्षेत्र के साथ-साथ विदेशों में हिंदी भाषी क्षेत्रों के लोगों के बीच बहुत लोकप्रिय है और भारत में उत्तर प्रदेश गोण्डा जनपद में स्थित है। पोर्टल का फोकस राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों को उठाना है और आम लोगों की आवाज बनना है जो अपने अधिकारों से वंचित हैं। यदि आप अपना नाम पत्रकारिता के क्षेत्र में देश-दुनिया में विश्व स्तर पर ख्याति स्थापित करना चाहते है। अपने अन्दर की छुपी हुई प्रतिभा को उजागर कर एक नई पहचान देना चाहते है। तो ऐसे में आप आज से ही नही बल्कि अभी से ही बनिये गोण्डा लाइव न्यूज के एक सशक्त सहयोगी। अपने आस-पास घटित होने वाले किसी भी प्रकार की घटनाक्रम पर रखे पैनी नजर। और उसे झट लिख भेजिए गोण्डा लाइव न्यूज के Email-gondalivenews@gmail.com पर या दूरभाष-8303799009 -पर सम्पर्क करें।

कालहस्ती मंदिर की कथा- आंध्र प्रदेश की लोक कथा

Image SEO Friendly

कहते है कि नील और फणेश नाम के दो भील लड़के थे। उन्होंने शिकार खेलते समय वन में एक पहाड़ी पर भगवान शिव की लिंग मूर्ति देखी। नील उस मूर्ति की रक्षा के लिए वही रूक गया और फणीश लौट आया।

नील ने पूरी रात मूर्ति का पहरा इसलिए दिया ताकि कोई जंगली पशु उसे नष्ट न कर दे। सुबह वह वन में चला गया। दोपहर के समय जब वह लौटा तो उसके एक हाथ में धनुष, दूसरें में भुना हुआ मांस, मस्तक के केशो में कुछ फूल तथा मुंह में जल भरा हुआ था। उसके हाथ खाली नहीं थे, इसलिए उसने मुख के जल से कुल्ला करके भगवान को स्नान कराया। पैर से मूर्ति पर चढ़े पुराने फूल व पत्ते हटाए। बालों में छिपाए फूल मूर्ति पर गिराए तथा भुने हुए मांस का टुकडा भोग लगाने के लिए रख दिया।

दूसरे दिन नील जब जंगल गया तो वहां कुछ पुजारी आए। उन्होंने मंदिर को मांस के टूकड़ों से दूषित देखा। उन्होंने मंदिर की साफ सफाई की तथा वहां से चले गए। इसके बाद यह रोज का क्रम बन गया। नील रोज जंगल से यह सब सामग्री लाकर चढ़ाता और पुजारी उसे साफ कर जाते। एक दिन पुजारी एक स्थान पर छिप गए ताकि उस व्यक्ति का पता लगा सके, जो रोज रोज मंदिर को दूषित कर जाता है।

उस दिन नील जब जंगल से लौटा तो उसे मूर्ति में भगवान के नेत्र दिखाई दिए। एक नेत्र से खून बह रहा था। नील ने समझा कि भगवान को किसी ने चोट पहुंचाई है। वह धनुष पर बाण चढ़ाकर उस चोट पहुंचाने वाले व्यक्ति को ढूंढने लगा। जब उसे कोई नही मिला तो वह कई प्रकार की जड़ी बूटियां ले आया तथा वह भगवान की आंख का उपचार करने लगा।

परंतु रक्त धारा बंद न हुई। तभी उसे अपने बुजुर्गों की एक बात याद आई, “मनुष्य के घाव पर मनुष्य का ताजा चमड़ा लगा देने से घाव शीघ्र भर जाता है”। नील ने बिना हिचक बाण की नोक घुसाकर अपनी एक आंख निकाली तथा उसे भगवान के घायल नेत्र पर रख दिया।

मूर्ति के नेत्र से रक्त बहना तत्काल बंद हो गया। छिपे हुए पुजारियों ने जब यह चमत्कार देखा तो वह दंग रह गए। तभी मूर्ति की दूसरी आंख से रक्त धारा बहने लगी। नील ने मूर्ति की उस आंख पर अपने पैर का अंगूठा टिकाया ताकि अंधा होने के बाद वह टटोलकर उस स्थान को ढ़ूंढ़ सके। इसके बाद उसने अपना दूसरा नेत्र निकाला तथा उसे मूर्ति की दूसरी आंख पर लगा दिया।

तभी वह स्थान अलौकिक प्रकाश से भर गया। भगवान शिव प्रकट हो गए, तथा उन्होंने नील का हाथ पकड़ लिया। वे नील को अपने साथ शिवलोक ले गए। नील का नाम उसी समय से कण्णप्प (तमिल में कण्ण नेत्र को कहते है) पड़ गया। पुजारियों ने भी भगवान तथा भोले भक्त के दर्शन किए तथा अपने जीवन को सार्थक किया।

कण्णप्प की प्रशंसा में आदि शंकराचार्य जी ने एक श्लोक में लिखा है—"रास्ते में ठुकराई हुई पादुका ही भगवान शंकर के अंग झाड़ने की कूची बन गई। आममन (कुल्ले) का जल ही भगवान का दिव्याभिषेक जल हो गया और मांस ही नैवेद्य बन गया। अहो! भक्ति क्या नहीं कर सकती? इसके प्रभाव से एक जंगली भील भी भक्तबतंस (भक्त श्रेष्ठ) बन गया"।।

मंदिर में मुख्य स्थान पर भगवान शिव की लिंग रूप मूर्ति है। यही वायुतत्व लिंग है। इसलिए पुजारी भी इसका स्पर्श नहीं करते। मूर्ति के पास स्वर्णपट्ट स्थापित है, उसी पर माला इत्यादि चढ़ाकर पूजा की जाती है। इस मूर्ति में मकड़ी, हाथी तथा सर्प के दांतों के चिन्ह स्पष्ट दिखाई देते है। कहा जाता है कि सबसे पहले मकड़ी, हाथी तथा सर्प ने भगवान शिव की आराधना की थी। उनके नाम पर ही श्री कालहस्तीश्वर नाम पड़ा है। श्री का अर्थ है मकड़ी, काल का अर्थ सर्प तथा हस्ती का अर्थ है हाथी।

No comments:

Post a Comment

कमेन्ट पालिसी
नोट-अपने वास्तविक नाम व सम्बन्धित आर्टिकल से रिलेटेड कमेन्ट ही करे। नाइस,थैक्स,अवेसम जैसे शार्ट कमेन्ट का प्रयोग न करे। कमेन्ट सेक्शन में किसी भी प्रकार का लिंक डालने की कोशिश ना करे। कमेन्ट बॉक्स में किसी भी प्रकार के अभद्र भाषा का प्रयोग न करे । यदि आप कमेन्ट पालिसी के नियमो का प्रयोग नही करेगें तो ऐसे में आपका कमेन्ट स्पैम समझ कर डिलेट कर दिया जायेगा।

अस्वीकरण ( Disclaimer )
गोण्डा न्यूज लाइव एक हिंदी समुदाय है जहाँ आप ऑनलाइन समाचार, विभिन्न लेख, इतिहास, भूगोल, गणित, विज्ञान, हिन्दी साहित्य, सामान्य ज्ञान, ज्ञान विज्ञानं, अविष्कार , धर्म, फिटनेस, नारी ब्यूटी , नारी सेहत ,स्वास्थ्य ,शिक्षा ,18 + ,कृषि ,व्यापार, ब्लॉगटिप्स, सोशल टिप्स, योग, आयुर्वेद, अमर बलिदानी , फूड रेसिपी , वाद्ययंत्र-संगीत आदि के बारे में सम्पूर्ण जानकारी केवल पाठकगणो की जानकारी और ज्ञानवर्धन के लिए दिया गया है। ऐसे में हमारा आपसे विनम्र निवेदन है कि आप किसी भी सलाह,उपाय , उपयोग , को आजमाने से पहले एक बार अपने विषय विशेषज्ञ से अवश्य सम्पर्क करे। विभिन्न विषयो से सम्बन्धित ब्लाग/वेबसाइट का एक मात्र उद्देश आपको आपके स्वास्थ्य सहित विभिन्न विषयो के प्रति जागरूक करना और विभिन्न विषयो से जुडी जानकारी उपलब्ध कराना है। आपके विषय विशेषज्ञ को आपके सेहत व् ज्ञान के बारे में बेहतर जानकारी होती है और उनके सलाह का कोई अन्य विकल्प नही। गोण्डा लाइव न्यूज़ किसी भी त्रुटि, चूक या मिथ्या निरूपण के लिए जिम्मेदार नहीं है। आपके द्वारा इस साइट का उपयोग यह दर्शाता है कि आप उपयोग की शर्तों से बंधे होने के लिए सहमत हैं।

”go"