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मुफ़्त ही मुफ़्त- गुजराती लोक-कथा

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भीखू भाई जरा कंजूस थे। एक दिन उनका मन नारियल खाने का हुआ। लेकिन इसके लिए न तो वे बाजार जाना चाहते थे न ही पैसे खर्च करना। वे सीधे खेत में जाकर बूढ़े बरगद के नीचे बैठ गए और सोचने लगे-क्या करूं? फिर उठे, घर आए, जूते पहने और छड़ी उठाकर बाजार निकल पड़े. केवल यह जानने के लिए नारियल आजकल कितने में बिक रहे हैं। बाजार में जब नारियल वाले ने पूछने पर बताया कि एक नारियल दो रुपये में है तो भीखू भाई की आँखें फैल गईं। उन्होंने कहा-बहुत ज्यादा है। एक रुपये में दे दो। नारियल वाला तैयार नहीं हुआ। भीखू भाई ने उससे पूछा-अच्छा तो बताओ, एक रुपये में कहाँ मिलेगा? नारियल वाले ने जब बताया कि मंडी में तब भीखू भाई फौरन उसी तरफ चल पड़े।

मंडी में व्यापारियों की ऊँची-ऊँची आवाजें गूंज रही थीं। भीखूभाई ने इधर-उधर देखा और बहुत जल्दी उन्हें नारियलवाला दिख गया। उन्होंने उससे एक नारियल का दाम पूछा। नारियल वाले ने कहा-सिर्फ एक रुपया में, जो चाहो ले जाओ। भीखू भाई ने उसकी तरफ पचास पैसे बढ़ाते हुए कहा-पचास पैसे काफी हैं। मैं इस नारियल को लेता हूँ और तुमं, यह लो, पकड़ो पचास पैसा। नारियल वाले ने झट उनके हाथ से नारियल छीन लिया और कहने लगा-हो सकता है। बंदरगाह पर तुम्हें पचास पैसे में मिल जाए।

भीखू भाई सागर के किनारे एक नाव वाले के पास दो चार नारियल पड़े देख उससे पूछ बैठे-एक नारियल कितने में दोगे? नाव वाले ने जवाब दिया–पचास पैसे में। भीखू भाई हैरान रह गये। उन्होंने कहा-इतनी दूर से पैदल आया हूँ। पचास पैसे बहुत ज्यादा हैं। मैं तुम्हें पच्चीस पैसे दूंगा। नाव वाला तैयार नहीं हुआ। हाँ, उसने भीखू भाई को नारियल के बगीचे में जाने की सलाह दी।

भीखू भाई जब नारियल के बगीचे में पहुँच गए। वहाँ के माली को देखकर उससे पूछा-यह नारियल कितने पैसे में बेचोगे? माली ने जवाब दिया-बस पच्चीस पैसे का एक। भीखू भाई को पच्चीस पैसे भी ज्यादा लगे। उन्होंने माली से कहा-मैं बहुत थक गया हूँ। मेरी बात मानो, एक नारियल मुफ़्त में ही दे दो। इसपर माली ने कहा-अगर मुफ़्त में नारियल चाहिये तो पेड़ पर चढ़ जाओ और जितने चाहो तोड़ लो ।

भीखू भाई बेहद खुश हुए। उन्होंने जल्दी-जल्दी पेड़ पर चढ़ना शुरू कर दिया। बहुत जल्दी ऊपर चढ़ गए। फिर वे टहनी और तने के बीच आराम से बैठ गए और दोनों हाथों को आगे बढ़ाने लगे सबसे बड़े नारियल को तोड़ने के लिए। अचानक उनके पैर फिसल गए। उनहोंने एकदम से नारियल को पकड़ लिया। उनके दोनों पैर हवा में झूलते रह गए। उन्होंने माली से मदद की विनती की। माली मदद देने से मना कर दिया। तभी ऊँट पर सवार एक आदमी वहाँ से गुजरा। भीखूभाई ने उससे मदद माँगी। वह तैयार हो गया। ऊँट की पीठ पर खड़े होकर उसने भीखू भाई के पैरों को पकड़ लिया। ठीक उसी समय हरे-भरे पत्ते खाने की लालच में ऊँट ने गर्दन झुकाई और अपनी जगह से हट गया। नतीजा हुआ कि वह आदमी ऊँट की पीठ से फिसल गया। अपनी जान बचाने के लिए उसने भीखूभाई के पैरों को कसकर पकड़ लिया।

इतने में एक घुड़सवार वहाँ आया। पेड़ से लटके दोनों जनों ने उससे मदद माँगी। घुड़सवार ने सोचा-मैं घोड़े की पीठ पर चढ़कर इनकी मदद कर देता हूँ। फिर वह घोड़े पर उठ खड़ा हुआ। लेकिन घोड़े ने भी वही किया जो ऊँट ने किया था। हरी घास के चक्कर में घोड़ा जरी आगे बढ़ा और छोड़ चला अपने मालिक को ऊँटवाले के पैरों से लटकते हुए। नारियल के पेड़ से अब तीन जने झूल रहे थे।

घुड़सवार ने भीखूभाई से कहा-काका! काका! कसके पकड़े रहना। मैं आपको सौ रुपए दूंगा। इसके बाद ऊँटवाले ने कहा-मैं आपको दौ सौ । रुपए दूंगा, लेकिन नारियल को छोड़ना नहीं। भूखूभाई सौ और दो सौ के चक्कर में कुछ ज्यादा ही खुश हो गए। खुशी से उन्होंने अपनी दोनों बाहों को फैला दिया। इतने में नारियल हाथ से छूट गया। परिणामस्वरूप घुड़सवार, ऊँटवाला और भीखूभाई तीनों जमीन पर धड़ाम से गिर पड़े। और दूसरे ही क्षण एक बहुत बड़ा नारियल भीखूभाई के सिर पर आ फूटा।

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