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गंगाजी की कथा

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कन्या के रूप में गंगाजी का आना
एक बार गुरु रविदास ने एक भंडारा किया। इस भंडारे में कन्या के रूप में स्वयं गंगाजी आईं। कन्या के अलौकिक रूप पर एक राजा मोहित हो गया। उसने गुरु रविदास के पास संदेश भेजा कि इस लड़की के साथ मेरा विवाह करवा दो, नहीं तो तुम्हें दंडित किया जाएगा। गुरु रविदास ने जब यह बात गंगाजी से कही तो गंगाजी ने कहा, यह राजा है, यह सीधे ढंग से नहीं मानेगा और परेशान करेगा। इसको बारात लाने के लिए कह दीजिए। राजा धूमधाम से बारात लेकर गुरु रविदास के द्वार पर आया।

लड़की के रूप में गंगाजी सोलह श्रृंगार करके बाहर आई और कुंड में कूद गई, कुंड से जल की ऐसी धारा निकली जिसमें राजा और सारे बाराती डूब गए, सबको पता चल गया कि कन्या के रूप में स्वयं गंगाजी गुरु रविदास के पास आई थीं।

उलटी गंगा का बहाना
समयानुसार गुरु रविदास के पिता का देहांत हुआ तो उनकी अर्थी लेकर गुरु रविदास गंगा के किनारे अंतिम संस्कार करने के लिए पहुँचे। वहाँ पंडों ने अंतिम संस्कार करने की अनुमति नहीं दी और कहा कि यहाँ से आधा मील पीछे आप यह क्रिया कर सकते हैं। सब लोग अर्थी को उठाकर आधा मील पीछे ले गए। उसी स्थान पर चिता बनाकर अग्नि दी गई। इतने में गंगाजी की एक बड़ी लहर उठी और वह चिता को अपनी लपेट में ले गई। वहाँ से गंगा का उलट प्रवाह आया था, इसलिए इस स्थान का नाम उलटी गंगा पड़ गया।

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