हुआ यह कि भारत में विकास कार्यक्रम चल रहा था। एक सड़क निकाली गई जिसने घने जंगल को दो हिस्सों में बाँट दिया। उत्तरी हिस्से में शेर रह गए और दक्षिणी हिस्से में गीदड़ रह गए।
तो एक दिन गीदड़ों के मुसाहिब ने कहा कि हुज़ूर! आप इस जंगल के राजा क्यों नहीं बन जाते।
तो गीदड़ ने कहा कि शेर की तरह मुझे शिकार करना और रौब जमा कर जंगल का राजा बनना नहीं आता!
दोस्तों-मुसाहिबों ने राय दी कि आप उत्तरी जंगल में जाकर शेर से जंगल का राजा बनने के सारे गुरुमन्त्र ले आइए!
गीदड़ उत्तरी जंगल में पहुँचा और डरते-डरते उसने शेर से निवेदन किया कि महाराज! दक्षिण के जंगल में कोई शेर राजा नहीं है। यदि आपकी सहमति मिल जाए तो मैं दक्षिणी जंगल का राजा बन सकता हूँ।
शेर ने कहा-बन जाओ। मुझे कोई आपत्ति नहीं है।
गीदड़ बोला-पर हुज़ूर! मुझे राजा बनने और शिकार करने के नियम तो सिखा दीजिए!
शेर तैयार हो गया-
उसने कहा-देखो! मेरा शरीर तन गया!
-जी, तन गया!
-मेरी मूँछें खड़ी हो गईं!
-जी, हो गईं!
-मेरी पूंछ ऐंठने लगी!
-जी, ऐंठने लगी!
तभी शेर ने सामने से गुजरते एक जंगली सुअर पर आक्रमण किया और उसे मार डाला।
गीदड़ लौट कर जंगल में आया। उसने राजा बनने के लिए मजमा इकट्ठा किया। और शेर की तरह शिकार करने वाला सरंजाम तैयार किया। सारे मुसाहिब और चापलूस जमा थे।
गीदड़ ने पूछा-मेरा शरीर तन गया?
चापलूसों ने कहा-जी, तन गया!
-मेरी मूँछें खड़ी हो गईं!
-जी, हो गईं।
-मेरी पूँछ ऐंठने लगी!
-जी, ऐंठने लगी!
और तभी गीदड़ ने अपनी आवाज में दहाड़ते हुए सामने खड़े जंगली सुअर पर आक्रमण किया। और हुआ यह कि जंगली सुअर के दाँतों ने उसका पेट फाड़ दिया।
गीदड़ वहीं जमीन पर लहुलूहान गिर पड़ा।
लोगों ने पूछा-सरकार! यह क्या हुआ?
तो गीदड़ ने कराहते हुए जवाब दिया-मुझे तो अपने ही दोस्तों ने मरवा दिया...
(‘महफ़िल’ से)
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