बहुत पुरानी बात है। एक राजा की सात बेटियां थीं। एक दिन उसने अपनी बेटियों को बुलाया और पूछने लगा, ‘मैं तुम्हें कैसा लगता हूं?’ बड़ी बेटी ने कहा, ‘आप मुझे मीठे लगते हैं।’ दूसरी से पूछा तो उसने भी यही उत्तर दिया। फिर तीसरी, चौथी, पांचवीं और छठी से पूछा। उन्होंने भी यही बात दोहराई। किसी ने गुड़ की तरह, किसी ने शक्कर की तरह, किसी ने शहद की तरह, किसी ने मिश्री की तरह पिता को मीठा बताया। जब सातवीं बेटी से पिता ने पूछा तो उसने कहा,
‘पिताजी! आप मुझे नमक की तरह मीठे लगते हो।’
यह सुनकर राजा को क्रोध आ गया। वह सातवीं बेटी से बोला, ‘तुमने मुझे ऐसा क्यों कहा?’ लड़की बोली ‘पिताजी मैंने जो महसूस किया है, वैसा ही कहा है।’ छोटी लड़की के मुख से ऐसा सुनकर राजा क्रोधित हो उठा। उसने अपने सेवकों को दरबार में बुलाया और आदेश दिया कि नगर के किसी कोढ़ी आदमी को उठा लाओ। सेवकों ने पूछा, ‘महाराज आप ऐसा क्यों कर रहे हैं?’ राजा ने कहा, ‘मुझे अपनी छोटी लड़की की शादी उससे करनी है।’ राजा की बात सुनकर सब लोग चिंता में डूब गए। सभी मंत्रीगणों ने राजा को ऐसा अन्याय न करने की सलाह दी। लेकिन राजा ने उनकी एक न सुनी।
सेवक कोढ़ी की खोज में निकल पड़े। तभी उन्हें पता चला कि किसी अन्य राज्य का एक राजा है, जिसके शरीर में एक साधु के शाप के कारण कोढ़ फूट पड़ा है। उसकी जरा-सी भूल के कारण साधु क्रोधि हो उठा था और उसने राजा को शाप दिया था कि ‘तू अपने जिस देह-सौंदर्य का अभिमान करता है, वह शीघ्र ही समाप्त हो जाएगा और तू कोढ़ी कहलाएगा।’ कोढ़ी हो जाने के बाद उसके दरबारियों ने उसे निकालकर जंगल में फेंक दिया था। सेवकों ने कोढ़ी राजा को जंगल से ढूंढ़ निकाला और उसे उठाकर अपने राजा के राज-दरबार में ले आए।
राजा ने अपनी सबसे छोटी बेटी का विवाह रस्मो-रिवाज के साथ कोढ़ी राजा के साथ कर दिया। राजा की बेटी ने अपनी जरा भी उदासी प्रकट न होने दी।
राजकुमारी राजमहल के वैभवपूर्ण जीवन को छोड़कर अपने पति को लेकर महल से बाहर निकल गई। भीख मांगकर उसने कोढ़ियों को बिठाने वाला एक ठेला खरीदने के लिए पैसे जोड़ लिए। वह रोज उस ठेले में अपने पति को बिठाकर भीख मांगने जाया करती।
एक दिन अपने कोढ़ी पति का कहा मानकर रानी उसे सरोवर के पास ठेले में बैठा छोड़कर भीख मांगने चली गई। कोढ़ी राजा ने देखा कि सरोवर में कुछ कौवे डुबकी लगा रहे हैं और हंस बनकर सरोवर से बाहर निकल रहे हैं। यह दृश्य देखकर वह हैरान हुआ। अचानक उसके दिमाग में एक विचार कौंधा और वह सोचने लगा, ‘क्यों न मैं भी सरोवर में डुबकी लगाऊं। यदि कौवा हंस बनकर बाहर निकल सकता है तो मैं भी शायद पहले जैसा सुंदर नौजवान राजा बन जाऊं।’ फिर उसने सोचा कि यदि मैं सुंदर नौजवान युवक बनकर निकलूंगा तो मेरी पत्नी मुझे पहचानेगी नहीं। यह सोचकर उसने एक उंगली को पानी से बाहर रखकर डुबकी लगाने का फैसला किया, ताकि उसकी पत्नी उसे पहचान सके। इतना सोचकर वह पानी में कूद पड़ा। डुबकी लगाकर वह पानी से बाहर निकला तो उसका सपना साकार हो चुका था। वह मुस्कुराता हुआ ठेले पर बैठ गया।
रानी जब काम से वापस आई तो उसने देखा कि उसके पति के स्थान पर एक सुंदर नौजवान ठेले पर बैठा हुआ उसकी ओर देखकर मुस्कुरा रहा है। उसके मन में ख्याल आया कि इस नौजवान ने उसके कोढ़ी पति को मार डाला है और अब उससे शादी करना चाहता है। यह सोचते ही उसकी आंखें क्रोध से लाल हो गईं। वह तुरंत उसके पास पहुंची और गुस्से में लाल-पीली हो युवक से बोली, ‘बता, मेरा पति कहां है?’ युवक ने कहा, ‘मैं ही तेरा पति हूं।’ परंतु वह न मानी और रोते हुए बोली, ‘तुम मुझसे झूठ कह रहे हो। मेरा पति ही मेरा परमेश्वर है। मुझे किसी भ्रम में डालने की कोशिश न करो, मेरा पति मुझे लौटा दो।’ नौजवान युवक यह सब देखकर अपनी पत्नी के सच्चे प्रेम की मन-ही-मन सराहना करने लगा। उसने अपना हाथ, जो अब तक पीछे छुपा रखा था, सामने किया और अपनी वह उंगली दिखाई जिसमें कोढ़ का निशान अभी भी बाकी था। वह अपने पति को पहचान गई।
इस चमत्कार को देखकर रानी के आश्चर्य तथा खुशी का ठिकाना न रहा। रानी ने हाथ जोड़कर प्रभु को धन्यवाद दिया। राजा अपनी रानी के साथ अपने राज्य में लौटा। समस्त प्रजा अपने स्वस्थ राजा को पाकर फूली न समाई।
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