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अजगर पति बना: त्रिपुरा की लोक-कथा

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त्रिपुरा के पहाड़ी अंचल में दो सुंदर बहनें रहती थीं। उनके बालपन में ही उनकी माता का स्वर्गवास हो गया। उनके पिता अचाइ (पुरोहित) थे। उन्होंने पत्नी की मृत्यु के पश्चात दूसरा विवाह नहीं किया। उन्हें भय था कि विमाता उनकी पुत्रियों का लालन-पालन ठीक ढंग से नहीं कर पाएगी। पिता के स्नेह-दुलार में पुत्रियाँ पली-बढ़ीं।

अचाइ (पुरोहित) की आमदनी बहुत कम थी। वह झूम खेती (स्थान बदलकर की जाने वाली खेती) के द्वारा आजीविका कमाता था। उसकी पुत्रियाँ भी पिता की परेशानी समझती थीं। अतः वे अपने पिता से अनुचित माँग नहीं करती थीं।

वर्षा ऋतु में उनके कष्ट और भी बढ़ जाते। कई वर्षों से मकान की मरम्मत नहीं हो पाई थी। अतः बरसात का पानी घर में घुस जाता। यूँ तो उनका घर एक ऊँचे मचान पर था किंतु पानी वहाँ भी पहुँच जाता। एक दिन दोनों बहनें खेत से थककर लौटीं। पूरे घर में पानी भरा हुआ था। छोटी बहन के मुँह से आह निकली। वह तड़पकर बोली, "दीदी, अब हम क्या करें?" "ठहरो, देखती हूँ शायद कुछ मायदूल (भात का बना त्रिपुरी भोजन) पड़ा होगा। अभी उसे खाकर ही भूख मिटाते हैं।" कहकर बड़ी बहन ने सात्वंना दी।

बड़ी बहन ने थैला टटोला किंतु खाने को कुछ नहीं मिला। सब कुछ बरसात के पानी में भीगकर खराब हो गया था। उसकी आँखों में आँसू आ गए। छोटी बहन का दुख वह सह न सकी, उसने प्रतिज्ञा की कि "मैं उसी को अपना पति मानूँगी, जो मेरे घर को सँवार देगा।"

जिस तरह सबके कष्ट दूर होते हैं, उसी तरह वह दुखभरी रात्रि भी बीत गई। अगले दिन जब दोनों बहनें घर लौटीं तो घर की कायापलट देखकर दंग रह गईं। सारे घर की मरम्मत की गई थी तथा खाने-पीने का सारा सामान भी मौजूद था। इतने खाद्य पदार्थ उन्होंने पहले कभी नहीं देखे थे। अचाइ ने भी घर का परिवर्तन देखा तो उत्साह के साथ बोला, "हो नहो, यह तो वनदेवी की कृपा है। उससे तुम लोगों का कष्ट नहीं देखा गया। इसलिए उसने हमारी सहायता की है।" पिता तो भरपेट खाकर सो गए किंतु बड़ी बहन उनके अनुमान से संतुष्ट न थी।

वह चाँदनी रात में बाहर आकर खड़ी हो गई। तभी उसकी नजर एक विशालकाय अज़गर पर पड़ी। वह अजगर उनके घर से निकलकर जा रहा था। बड़ी बहन ने उसी क्षण निर्णय ले लिया कि वह अजगर को ही अपना पति मानेगी। उसे पूरा विश्वास था कि उनके घर की दशा सँवारने में अजगर का ही हाथ है। छोटी बहन के लाख समझाने पर भी वह अकेले खाना खाने नहीं बैठी। तब हार कर छोटी बहन ने अपने जीजा जी को पुकारा "कुमुइ, कुमुइ, माइटानानि फाइदिदो।' (जीजा जी, जीजा जी। खाना खाने आइए।) यह आवाज सुनते ही अजगर घर में आ पहुँचा। दोनों बहनें उसके विशाल स्वरूप से घबरा गईं किंतु वह शांति से भोजन करके लौट गया।

यह क्रम काफी समय तक चलता रहा। एक दिन अचाइ (पुरोहित) को पता चला तो वह आग-बबूला हो उठा। उसकी सुंदरी पुत्री एक अजगर को पति माने, यह उसे स्वीकार न था। जब बड़ी बेटी खेत पर गई तो उसने छोटी बेटी से कहा, "तुम रोज की तरह जीजा जी को पुकारो।"

छोटी ने समझा कि शायद उससे मिलना चाहते हैं। उसने फिर हाँक लगाई- "कुमुइ, कुमुइ माइटानानि फाइदिदो।' अजगर ज्यों ही मचान के पास पहुँचा, आड़ में छिपे अचाइ (पुरोहित) ने तेज हथियार से उसके टुकड़े-टुकड़े कर दिए। छोटी फूट-फूटकर रोने लगी। बड़ी बहन ने जब अपने अजगर की मृत्यु का समाचार सुना तो वह दुखी हो गई। कुछ ही दिनों में उसके मन में अजगर के प्रति प्रेम-भाव जाग गया था। उससे वियोग की कल्पना से वह भयभीत हो उठी। बिना एक शब्द कहे वह नदी की ओर चल दी।

छोटी बहन भी उसके पीछे चल दी। बड़ी ने आँखें बंद कीं और रोती-रोती नदी के पानी में उतरती चली गईं। बेचारी छोटी उसे पुकारते रही। "मत जाओ, दीदी। मत जाओ, दीदी।" बड़ी बहन ज्यों ही नदी में उतरी तो सीधे एक राजभवन में पहुँच गई। जल के नीचे इतना सुंदर महल देखकर वह दंग रह गई। प्रवेश द्वार पर उसका अजगर पति स्वागत के लिए खड़ा था। उसके बाद वह वहीं सुखपूर्वक रहने लगी।

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