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कार्तिक संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा

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संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत प्रत्येक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को किया जाता है । कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को किया जाने वाला व्रत, कार्तिक संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत कहलाता है। इसे करवा चतुर्थी भी कहते हैं । इस दिन ‘पिंग’ गणेश की पूजा की जाती है । सौभाग्यवती स्त्रियाँ इस दिन अपने पति के लम्बी उम्र के लिये व्रत रखती है। गणेश जी को करवा अर्पित करती हैं। यह व्रत स्त्रियों को अखण्ड सौभाग्य प्रदान करती है। इस व्रत से मनुष्य को सर्वसिद्धि प्राप्त होती है। भविष्य पुराण में कहा गया है कि जब मन संकटों से घिरा महसूस करे, तो गणेश चतुर्थी का व्रत करें । इससे कष्ट दूर होते हैं और धर्म, अर्थ, मोक्ष, विद्या, धन व आरोग्य की प्राप्ति होती है ।

कार्तिक संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा
पार्वती जी कहती है कि हे भाग्यशाली! लम्बोदर! भाषणकर्ताओं में श्रेष्ठ! कार्तिक कृष्ण चतुर्थी को किस नाम वाले गणेश जी की पूजा किस भांति करनी चाहिए।

श्रीकृष्ण जी ने कहा कि अपनी माता की बात सुनकर गणेश जी ने कहा कि कार्तिक कृष्ण चतुर्थी का नाम संकटा है। उस दिन पिंग नामक गणेश जी की पूजा करनी चाहिए। पूजन पूर्वोक्त विधि से करना उचित हैं। भोजन एक बार करना चाहिए। व्रत और पूजन के बाद ब्राह्मण भोजन कराकर स्वयं मौन होकर भोजन करना चाहिए। मैं इस व्रत का महात्म्य कह रहा हूँ, सावधानी पूर्वक श्रवण कीजिये। कार्तिक कृष्ण चतुर्थी को घी और उड़द मिलाकर हवन करना चाहिए। ऐसा करने से मनुष्य को सर्वसिद्धि प्राप्त होती हैं।

श्रीकृष्ण जी ने कहा कि वृत्रासुर दैत्य ने त्रिभुवन को जीत करके सम्पूर्ण देवों को परतंत्र कर दिया। उसने देवताओं को उनके लोकों से निष्काषित कर दिया। परिणामस्वरूप देवता लोग दसों दिशाओं में भाग गए। तब सभी देव इंद्र के नेतृत्व में भगवान विष्णु के शरणागत हुए। देवों की बात सुनकर विष्णु ने कहा कि समुद्री द्वीप में बसने के कारण वे निरापद होकर बलशाली हो गए हैं। पितामह ब्रह्मा जी से किसी देवों के द्वारा न मरने का उन्होंने वर प्राप्त कर लिया हैं। अतः आप लोग अगस्त्य मुनि को प्रसन्न करे। वे मुनि समुद्र को पी जाएंगे। तब दैत्य लोग अपने पिता के पास चले जाएंगे। आप लोग सुख पूर्वक स्वर्ग में निवास करने लगेंगे। अतः आप लोगों का कार्य अगस्त्य मुनि की सहायता से पूरा होगा। ऐसा सुनकर सब देवगण अगस्त्य मुनि के आश्रम में गये और स्तुति के द्वारा उन्हें प्रसन्न किया। मुनि ने प्रसन्न होकर कहा कि हे देवताओं! डरने की कोई बात नहीं हैं, आप लोगों को मनोरथ अवशय ही पूरा होगा। मुनि की बात से सब देवता अपने अपने लोक को चले गए। इधर मुनि को चिंता हुई कि एक लाख योजन इस विशाल समुद्र को मैं कैसे पी सकूंगा? तब गणेश जी का स्मरण करके संकट चतुर्थी के उत्तम व्रत को विधिपूर्वक संपन्न किया। तीन महीने तक व्रत करने के बाद गणेश जी उन पर प्रसन्न हुए। उसी व्रत के प्रभाव से अगस्त्य जी ने समुद्र को सहज ही पान करके सूखा डाला। गणेश जी की इस बात से पार्वती जी अत्यंत प्रसन्न हुई। कृष्ण जी कहते है कि हे महाराज युधिष्ठिर! आप भी चतुर्थी का व्रत कीजिये। इसके करने से आप शीघ्र ही सब शत्रुओं को जीतकर अपना राज्य पा जायेंगे। श्रीकृष्ण के आदेशानुसार युधिष्ठिर ने गणेश जी का व्रत किया। व्रत के प्रभाव से उन्होंने शत्रुओं को जीतकर अखंड राज्य प्राप्त कर लिया।

कार्तिक संकष्टी चतुर्थी व्रत पूजन विधि 
प्रात: काल उठकर नित्य कर्म से निवृत हो स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण कर लें। श्री गणेश जी का पूजन पंचोपचार (धूप, दीप, नैवेद्य, अक्षत, फूल) विधि से करें। इसके बाद हाथ में जल तथा दूर्वा लेकर मन-ही-मन श्री गणेश का ध्यान करते हुये व्रत का संकल्प करें। संध्या होने पर दुबारा स्नान कर स्वच्छ हो जायें। श्री गणेश जी के सामने सभी पूजन सामग्री के साथ बैठ जायें। विधि-विधान से गणेश जी का पूजन करें। वस्त्र अर्पित करें। नैवेद्य के रूप में लड्डू अर्पित करें। चंद्रमा के उदय होने पर चंद्रमा की पूजा कर अर्घ्य अर्पण करें। उसके बाद गणेश चतुर्थी की कथा सुने अथवा सुनाये। घी और उड़द मिला कर हवन करें। तत्पश्चात् गणेश जी की आरती करें। व्रत और पूजन के बाद ब्राह्मण को भोजन करा कर खुद मौन रह कर भोजन करें। स्त्रियाँ चंद्रमा को अर्घ्य देने के पश्चात् अपने पति की आरती और पूजा करें।

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