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महार्षि च्यवन मुनि आश्रम तपोस्थली

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मान्यता है इसी सरोवर मे देव बैद्यों मे अमृत डाल कर महार्षि को स्नान कराया था जिससे उन्हे युवा अवस्था इसमे स्नान करने से मिली  । 

गोण्डा। जनपद मुख्यालय से लगभग 5 किमी दूर गोन्डा बलरामपुर मार्ग पर स्थित सुभागपुर के पास है महर्षि च्यवनमुनि_आश्रम और कुंड । आश्रम के सामने सरोवर से चमनई ( च्यवन) नदी निकली है जो मनवर मे मिल जाती है।  महार्षि च्यवन मुनि का तपोस्थलि पर हर बर्ष की तरह भव्य  मेला लगा। जहाँ हजारो भक्तो ने श्रद्धा भाव से स्नान दान किया।  स्थल ऐतिहासिक दृष्टि गत है इस पावन स्थल की गाथायें बेद ग्रन्थो मे भी बर्णित है।  कहते है यहा सच्चे मन से स्नान करने से  अनेको प्रकार के रोग कष्ट बाधाये दूर हो जाती है। 

महान ऋषि भृगु के पुत्र थे च्यवन ऋषि, इनकी माता का नाम पुलोमा था. ऋषि च्यवन को महान ऋषियों की श्रेणी में रखा जाता है इनके विचारों एवं सिद्धांतों द्वारा ज्योतिष में अनेक महत्वपूर्ण बातों आगमन हुआ इस कारण यह ज्योतिष गुरू रुप में भी प्रसिद्ध हुए तथा इनके द्वारा रचित ग्रंथों से ज्योतिष तथा जीवन के सही मार्गदर्शन का बोध हुआ.

च्यवन ऋषि जन्म कथा-

ऋषि भृगु की पत्नी का नाम पुलोमा था एक बार जब भृगु ऋषि अपनी पत्नी के पास नहीं होते हैं तब राक्षस पुलोमन, उनकी पत्नी पुलोमा जबरन अपने साथ ले जाने के लिए आता है वह पुलोमन को बलपूर्वक ले जाने लगता है उस समय पुलोमा गर्भवती होती हैं और इस कारण इस संघर्ष में शिशु गर्भ से बाहर गिर जाते है और बालक के तेज से राक्षस पुलोमन भस्म हो जाता है,  तथा पुलोमा पुन: अपने निवास स्थान भृगु ऋषि के पास आ जाती हैं .गर्भ से गिर जाने के कारण इनका नाम च्यवन पड़ा.

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महर्षी च्यवन एक ऋषि थे जिन्होने जड़ी-बुटियों से 'च्यवनप्राश' नामक एक औषधि बनाकर उसका सेवन किया तथा अपनी वृद्धावस्था से पुनः युवा बन ब गए थे। महाभारत के अनुसार, उनमें इतनी शक्ति थी कि वे इन्द्र के वज्र को भी पीछे धकेल सकते थे। वे अत्यन्त तपस्वी थे।

उसका वर्णन पुजारी प्रेम प्रकाश तिवारी ने बताया-

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च्यवन ऋषि से संबंधित मुख्य घटनाएँ,ऋषि च्यवन और सुकन्या -

च्यवन मुनि यही पर तप किया। राज पुत्री राजा शर्याति की पुत्री शुकन्या यहा  घूमने आयी मुनि घोर तपस्या मे लीन जिससे उनके शरीर पर घासे, व दींमको का अड्डा बन गया। जिससे देख कौतूहल बस राज कन्या वहा गयी। जहा सिर्फ आंखे चमक रही थी। उत्सुकता बश किसी से कुदेरना शुरु किया। जिससे मुनि की  चेतना जागी और दोनों आंख से अन्धे हो गये। गलती की क्षमा मांगते राज पुत्री शुकन्या ने मुनि से विवाह कर लिया और तब परीक्षा लेने देव बैद्य अश्विनी और कुमारं ने शुकन्या से मिले देवताओं ने उसे देखा। साक्षात देवराज इन्द्र की पुत्री समान दर्शनीय अंगो वाली उस राजकन्या को देखकर। अश्विनीकुमारों ने उसके पास जा यह बात कही।  तुम किसकी पुत्री और किसकी पत्नी हो इस वन में क्या करती हो ! मद्रे! हम तुम्हारा परिचय प्राप्त करना चाहते हैं। तुम बातें ठीक ठीक बताओं तब सुकन्या ने लज्जित होकर उन दोनों श्रेष्ठ देवताओं से कहा- ‘देवेश्वरो  आपको विदीत होना चाहिए कि में राजा शर्याति की पुत्री और महर्षि च्यवन की पत्नी हूँ। ‘मेरा नाम इस जगत में सुकन्या प्रसिद्ध है। मैं सम्पूर्ण हृदय से सदा अपने पतिदेव के प्रति निष्ठा रखती हूँ। ‘ यह सुनकर अश्विनीकुमारों ने पुनः हंसते हुए कहा- ‘कल्याणि! तुम्हारे पिताने इस अत्यन्त बूढ़े पुरुष के साथ तुम्हार ा विवाह कैसे कर दिया भीरू ! इस वन में तुम विद्युत की भाँति प्रकाशित हो रही हो। भामिने! देवताओं के यहाँ भी तुम जैसी सुन्दरी को हम नहीं देख पाते हैं।  तुम्हारे अंगो पर आभूषण नहीं है। तुम उत्तम वस्त्रों से भी वंचित हो और तुमने कोई श्रृंगार भी नहीं धारण किया है तों भी इस वन की अधिकाधिक शोभा बढ़ा रही हो।
                  
कहां आप और कहां अंन्धा बुढा जपल्ला  सुन्दरी! यदि तुम समस्त भूषणों से भूषित हो जाओ और अच्छे-अच्छे वस्त्र पहन लो, तो उस समय तुम्हारी जो शोभा होगी, वैसी इस मल और पकं से युक्त मलिन वेश में नहीं हो रही हैा। ’कल्याणि ! तुम ऐसी अनुपत सुन्दरी होकर काम भोग से शून्य इस जरा जर्जर बूढ़े पति की उपासना कैसे करती हो। ‘पवित्र मुस्कान वाली देवी! वह बूढ़ा तो तुम्हारी रक्षा और पालन पोषण में भी समर्थ नहीं है। अतरू तुम च्यवन को छोड़कर हम दोनों मे किसी एक को अपना पति चुन लो। ‘देवकन्या के समान सुन्दरी राजकुमारी! बूढ़े पति के लिये अपनी इस जवानी को व्यर्थ न गंवाओं। ‘उनके ऐसा कहने पर सुकन्या ने उन दोनों देवताओं से कहा- देवेश्वरो! मैं अपने पतिदेव च्यवन मुनि में ही पूर्ण अनुराग रखती हूं, अतः आप मेरे विषय में इस प्रकार की अनुचित आंशका न करें। ‘ तब उन दोनो ने पुनः सुकन्या से कहा- हम देवताओं के श्रेष्ठ वैद्य है। तुम्होर पति को तरुण युवा और मनोहर रूप में सम्पन्न बना देगें। 
                          
तब तुम इस तीनों मे से किसी एक को अपना पति बना लेना। इस शर्त के साथ तुम चाहो तो अपने पति को यहाँ बुला लो’। राजन! उन दोनो की यह बात सुनकर सुकन्या च्यवन मुनि के पास गयी और अश्विनीकुमारों ने जो कहा था, वह सब उन्हें कह सुनाया। यह सुनकर च्यवन ने अपनी पत्नी से कहा- ‘प्रिय! देववैद्यो ने जैसा कहा है, वैसा करो’।

च्यवन सुंदर रूप की प्राप्ति

पति की आज्ञा पाकर सुकन्या अश्विनीकुमारों से कहा- ‘आप मेरे पति को रूप और यौवन से सम्पन्न बना दें। ‘उसका यह कथन सुनकर अश्विनीकुमारों ने राजकुमारी सुकन्या से कहा- ‘तुम्हारे पति देव इस जल में प्रवेश करें। ‘तब च्यवन मुनि ने सुन्दर रूप की अभीलाषा लेकर शीघ्रता पूर्वक उस सरोवर के जल में प्रवेश किया। साथ ही दोनो अश्विनी और कुमार भी उस सरोवर में प्रवेश कर गये तदनन्तर दो घड़ी के पश्चात वे उन सबकी युवावस्था थी। उन्होंने कानों मे चमकिले कुण्डल धारण कर रक्खे थे। वेभभूषा भी उनकी एक सी ही थी और वे सभी मन की प्रीती बढ़ाने वाले थे। सरोवर से बाहर आकर उन सब ने एक साथ कहा- ‘शुभे! भद्रे! वरवर्णिनि! हममें से किसी एक को, जो तुम्हारी रुचि के अनुकूल हो, अपना पति बना लो।  जिसको भी तुम मन से चाहती हो। उसी को पति बनाओ। ‘देवी सुकन्या ने उस सबको एक जैसा रूप धारण किये खड़े देख मन और बुद्धि से निश्चय कर के अपने पति को ही स्वीकार किया। महातेजस्वी च्यवन मुनि ने अनुकूल पत्नी, तरुण अवस्था और मनोवांछित रूप पाकर बढ़े हर्ष का अनुभव किया और दोनों अश्विनीकुमारों से कहा- ‘आप दोनो ने मुझ बूढ़े को रूपवान और तरुण बना दिया, साथ ही मुझे यह भार्या भी मिल गयी इसलिये मै प्रसन्न होकर आप दोनों को यज्ञ में देवराज इन्द्र के सामने ही सोमपान का अधिकारी बना दूंगा।

यह मैं आप लोगों से सत्य कहता हूँ। यह सुनकर दोनों अश्विनीकुमार प्रसन्नचित हो देवलोक को लौट गये । च्यवन मुनि तथा सुकन्या देवदम्पति की भाँति रहने  लगे । मान्यता है इसी सरोवर मे देव बैद्यों मे अमृत डाल कर महार्षि को स्नान कराया था जिससे उन्हे युवा अवस्था इसमे स्नान करने से मिली  । अनेको प्रकार की घातक बीमारी रोगो से मुक्ति मिलती है। आज हजारो महिला पुरुष बच्चो श्रद्धालुओ ने इस कुड मे स्नान कर बैतरणी पार उतरने के लिए गौ पूजन किया। वा यथाशक्ति दान दक्षिणा दिया मेले मे लैय्या चूरा, गट्टा, तथा मिट्टी के करवा की जम कर खरीदारी हुयी बच्चो ने झूले का लुफ्त उठाया।  

ऋषि च्यवन और अश्चिनीकुमार-

सुकन्या बहुत पतिव्रता थी वह च्यवन ऋषि की सेवा दिन रात लगी रहती. एक दिन च्यवन ऋषि के आश्रम में , देवों के वैद्य अश्‍वनीकुमारआ आते हैं. सुकन्या उचित प्रकार से उनका आदर-सत्कार एवं पूजन करती है. उसके इस आदर भाव व पतिव्रत से से प्रसन्न अश्‍वनीकुमार उसे आशीर्वाद प्रदान करते हैं वह च्यवन ऋषि को उनका यौवन व आंखों की ज्योती प्रदान करते हैं आँखों की ज्योती और नव यौवन पाकर च्यवन मुनि बहुत प्रसन्न होते हैं वह अश्चिनीकुमारों को सौमपान का अधिकार दिलवाने का वचन देते हैं.

यह सुनकर अश्विनी कुमार प्रसन्न होकर और उन दोनों को आशीर्वाद देकर वहाँ से चले जाते हैं. शर्याति जब च्यवन ऋषि के युवा हो जाने के बारे में सुनते हैं तो बहुत प्रसन्न होते हैं व उनसे मिलने जाते हैं. ऋषि च्यवन,  राजा से कहकर एक यज्ञ का आयोजन कराते हैं. जहां वह यज्ञ का कुछ भाग अश्विनी कुमारों को प्रदान करते हैं. तब देवराज इन्द्र आपत्ति जताते हैं और अश्‍वनीकुमारों को यज्ञ का भाग देने से मना करते हैं

परंतु च्यवन ऋषि, इन्द्र की बातों को अनसुना कर देते हैं इससे क्रोधित होकर इन्द्र ने उन पर वज्र का प्रहार करने लगते हैं किंतु  ऋषि च्यवन अपने तपोबल से वज्र को रोककर एक भयानक राक्षस उत्पन्न करते हैं. वह राक्षस इन्द्र को मारने के लिए दौडता है इन्द्र ने भयभीत होकर अश्‍वनीकुमारों को यज्ञ का भाग देना स्वीकार कर लेते हें और च्यवन ऋषि से क्षमा मांगते हैं च्यवन ऋषि का क्रोध शांत होता है और वह उस राक्षस को भस्म करके इन्द्र को कष्ट से मुक्ति प्रदान करते हैं.

ऋषि च्यवन द्वारा रचित ग्रंथ -
च्यवन मुनी द्वारा अनेक ग्रंथों की रचना हुई. उनके द्वारा रचित च्यवन स्मृति में उन्होंने विभिन्न तथ्यों के महत्व को दर्शाया. इसमें उन्होंने गोदान के महत्व के विषय में लिखा इसके साथ ही बुरे कार्यों से बचने का मार्ग एवं प्रायश्चि का विधान भी बताया. भास्कर संहिता में इन्होंने सूर्य उपासना और दिव्य चिकित्सा से युक्त "जीवदान तंत्र" भी रचा है जो एक महत्वपूर्ण मंत्र है. अनेक महान राजाओं ने इनके निर्णयों को अपने धर्म कर्म में शामिल किया.

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