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महर्षि यमदग्नि का पावन आश्रम

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जमदग्नि ऋषि एक ऋषि थे, जो भृगुवंशी ऋचीक के पुत्र थे तथा जिनकी गणना सप्तऋषियों में होती है। पुराणों के अनुसार इनकी पत्नी रेणुका थीं, व इनका आश्रम सरयू नदी के तट पर था। वैशाख शुक्ल तृतीया इनके पांचवें प्रसिद्ध पुत्र प्रदोषकाल में जन्मे थे जिन्हें परशुराम के नाम से जाना जाता है। 

सरयू नदी (अन्य नाम घाघरा, सरजू, शारदा) हिमालय से निकलकर उत्तरी भारत के गंगा मैदान में बहने वाली नदी है जो बलिया और छपरा के बीच में गंगा में मिल जाती है। अपने ऊपरी भाग में, जहाँ इसे काली नदी के नाम से जाना जाता है, यह काफ़ी दूरी तक भारत (उत्तराखण्ड राज्य) और नेपाल के बीच सीमा बनाती है। सरयू नदी की प्रमुख सहायक नदी राप्ती है जो इसमें उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले के बरहज नामक स्थान पर मिलती है। इस क्षेत्र का प्रमुख नगर गोरखपुर इसी राप्ती नदी के तट पर स्थित है और राप्ती तंत्र की अन्य नदियाँ आमी, जाह्नवी इत्यादि हैं जिनका जल अंततः सरयू में जाता है। बहराइच, सीतापुर, गोंडा, फैजाबाद, अयोध्या, टान्डा, राजेसुल्तानपुर, दोहरीघाट, बलिया आदि शहर इस नदी के तट पर स्थित हैं। 

सरयू नदी को इसके ऊपरी हिस्से में काली नदी के नाम से जाना जाता है, जब यह उत्तराखंड में बहती है। मैदान में उतरने के पश्चात् इसमें करनाली या घाघरा नदी आकर मिलती है और इसका नाम सरयू हो जाता है। उत्तर प्रदेश के पश्चिमी क्षेत्रों में इसे शारदा भी कहा जाता है।

ज्यादातर ब्रिटिश मानचित्रकार इसे पूरे मार्ग पर्यंत घाघरा या गोगरा के नाम से प्रदर्शित करते रहे हैं किन्तु परम्परा में और स्थानीय लोगों द्वारा इसे सरयू (या सरजू) कहा जाता है। इसके अन्य नाम देविका, रामप्रिया इत्यादि हैं। यह नदी बिहार के आरा और छपरा के पास गंगा में मिल जाती है।

धार्मिक मान्यतायें का उल्लेख-

यह एक वैदिक कालीन नदी है जिसका उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है। इस संदर्भ में यह वितर्क किया जाता है कई ऋग्वेद में इंद्र द्वारा दो आर्यों के वध की कथा (RV.4.13.18) में जिस नदी के तट पर इस घटना के होने का वर्णन है वह यही नदी है। इसकी सहायक राप्ती नदी के भी अरिकावती नाम से उल्लेख का वर्णन मिलता है।

रामायण की कथा में सरयू अयोध्या से होकर बहती है जिसे दशरथ की राजधानी और राम की जन्भूमि माना जाता है। वाल्मीकि रामायण के कई प्रसंगों में इस नदी का उल्लेख आया है। उदाहरण के लिये, विश्वामित्र ऋषि के साथ शिक्षा के लिये जाते हुए श्रीराम द्वारा इसी नदी द्वारा अयोध्या से इसके गंगा के संगम तक नाव से यात्रा करते हुए जाने का वर्णन रामायण के बाल काण्ड में मिलता है। कालिदास के महाकाव्य रघुवंशम् में भी इस नदी का उल्लेख है। बाद के काल में रामचरित मानस में तुलसीदास ने इस नदी का गुणगान किया है।

बौद्ध ग्रंथों में इसे सरभ के नाम से पुकारा गया है। कनिंघम ने अपने एक मानचित्र पर इसे मेगस्थनीज द्वारा वर्णित सोलोमत्तिस नदी (Solomattis River) के रूप में चिन्हित किया है और ज्यादातर विद्वान टालेमी इसे द्वारा वर्णित सरोबेस (Sarobes) नदी के रूप में मानते हैं।

संगम-

संगम का अर्थ है मिलन, सम्मिलन। भूगोल में संगम उस जगह को कहते हैं जहाँ पानी की दो या दो से अधिक धाराएँ मिल रही होती हैं। जैसे इलाहाबाद में गंगा, यमुना (और, लोककथाओं के अनुसार, सरस्वती) के मिलन स्थल को त्रिवेणी संगम कहते हैं।

त्रिमोहिनी संगम कटिहार

भारत की सबसे बड़ी उत्तरायण गंगा बिहार के भागलपुर से होते हुए कटिहार ज़िले में प्रवेस करती है।भारत की सबसे बड़ी उत्तरायण गंगा का संगम त्रिमोहिनी संगम है।जिसमें गंगा,कोशी और एक कलबलिया कि छोटी धार आ कर सबसे उत्तरायण गंगा से संगम करती है।ये संगम बिहार के कटिहार ज़िले अंतर्गत कटरिया गांव के निकट स्थित है।

त्रिवेणी संगम इलाहाबाद

इलाहाबाद का संगम हिन्दुओं के लिए पवित्र है। प्रयाग (इलाहाबाद) में गंगा- यमुना और सरस्वती नदी का संगम है। धार्मिक महत्व और ऐतिहासिक कुम्भ मेला प्रत्येक 12 वर्षों में यही लगता है। वर्ष 1948 में महात्मा गांधी समेत कई राष्ट्रीय नेताओं की राख का विसर्जन यही किया गया थी।

गंगा और यमुना के संगम का यह विवरण ऋग्वेद के नवीनतम खंडों में उल्लेख किया गया है जिसके अनुसार,"जो लोग उस जगह पर स्नान करते हैं जहां दो नदियां एक साथ बहती हैं,उन्हें स्वर्ग की प्राप्ति होती हैं"। पुराणों के अनुसार, एक तीसरी नदी भी है जिसे सरस्वती कहा जाता है।

ऋग्वेद में सन्दर्भ-

ऋग्वेद की चौथे पुस्तक (मंडल ?) को छोड़कर सरस्वती नदी का सभी (मंडलों) पुस्तकों (?) में कई बार उल्लेख किया गया है। केवल यही ऐसी नदी है जिसके लिए ऋग्वेद की ऋचा ६.६१,७.९५ और ७.९६ में पूरी तरह से समर्पित स्तवन दिये गये हैं।

प्रशस्ति और स्तुति:
वैदिक काल में सरस्वती की बड़ी महिमा थी और इसे 'परम पवित्र' नदी माना जाता था, क्यों कि इसके तट के पास रह कर तथा इसी नदी के पानी का सेवन करते हुए ऋषियों ने वेद रचे औ‍र वैदिक ज्ञान का विस्तार किया। इसी कारण सरस्वती को विद्या और ज्ञान की देवी के रूप में भी पूजा जाने लगा। ऋग्वेद के 'नदी सूक्त' में सरस्वती का इस प्रकार उल्लेख है कि 'इमं में गंगे यमुने सरस्वती शुतुद्रि स्तोमं सचता परूष्ण्या असिक्न्या मरूद्वधे वितस्तयार्जीकीये श्रृणुह्या सुषोमया' सरस्वती, ऋग्वेद में केवल 'नदी देवी' के रूप में वर्णित है (इसकी वंदना तीन सम्पूर्ण तथा अनेक प्रकीर्ण मन्त्रों में की गई है), किंतु ब्राह्मण ग्रथों में इसे वाणी की देवी या वाच् के रूप में देखा गया, क्योंकि तब तक यह लुप्त हो चुकी थी परन्तु इसकी महिमा लुप्त नहीं हुई और उत्तर वैदिक काल में सरस्वती को मुख्यत:, वाणी के अतिरिक्त बुद्धि या विद्या की अधिष्ठात्री देवी भी माना गया। ब्रह्मा की पत्नी के रूप में इसकी वंदना के गीत गाये गए हैं **ऋग्वेद में सरस्वती को नदीतमा की उपाधि दी गयी है। उसकी एक शाखा २.४१.१६ में इसे "सर्वश्रेष्ठ माँ, सर्वश्रेष्ठ नदी, सर्वश्रेष्ठ देवी" कह कर सम्बोधित किया गया है। यही प्रशंसा ऋग्वेद के अन्य छंदों ६.६१,८.८१,७.९६ और १०.१७ में भी की गयी है।

ऋग्वेद के मंत्र ७.९.५२ तथा अन्य जैसे ८.२१.१८ में सरस्वती नदी को "दूध और घी" से परिपूर्ण बताया गया है। ऋग्वेद के श्लोक ३.३३.१ में इसे 'गाय की तरह पालन करने वाली' बताया गया है

ऋग्वेद के श्लोक ७.३६.६ में सरस्वती को सप्तसिंधु नदियों की जननी बताया गया है।

सरयू नदी के उत्तरी कछार में महर्षि जमदग्नि आश्रम जो आज भी उपेक्षित है -
गोण्डा उत्तर प्रदेश के देवीपाटन मंडल मुख्यालय व अयोध्या से 45 किलोमीटर की दूरी पर स्थित महर्षि यमदग्नि आश्रम उपेक्षित है। यहां के पवित्र कुंड में जलकुंभी उग आई हैं। संत निवास जर्जर अवस्था में पहुंच गया है। भाजपा सरकार में पर्यटन विभाग ने सुंदरीकरण के लिए सवा करोड़ रुपए की कार्य योजना बनवाई जो आज तक धूल चाट रही है। सरयू नदी के उत्तरी कछार के तरबगंज तहसील की ग्राम पंचायत जमथा में महर्षि जमदग्नि आश्रम स्थित है। यहां के बारे में कहा जाता है कि आश्रम ऋषि यमदग्नि का पावन ये स्थान। हरत पाप अज्ञान को शिव का बचन प्रमान। यमदग्नि कुंड के तट पर प्राचीन शिवालय स्थित है। इसका जीर्णोद्धार 1865 में हुआ है। इसके बगल महर्षि यमदग्नि का मंदिर है। पास में पुराना खपरैल संत निवास है। जो जर्जर अवस्था में पहुंच चुका है। 

बताया जाता है कि 1880 में ऋषिकेष के पितामह शिवपाल पाण्डेय जो अग्रेजी सरकार में शिमला में कार्यरत थे। उन्होंने एक रात स्वप्न में यमदग्नि कुंड की स्थिति देखी। जिसमें कमल पुष्प खिले थे। भौंरे इंतजार कर रहे थे। सोपान कुंड के ऊपरी तट पर शिवालय देखा जिसमें भगवान शंकर विराजमान हैं। इसके बाद एक समिति गठित हुई जिसे शिवालय के जीर्णोद्धार के लिए जिम्मेदारी दी गई। वर्ष 1904 से शिव पार्वती विवाह का आयोजन हो रहा है। 

यह स्थान 84 कोसी परिक्रमा में शामिल है। इसी क्षेत्र में ऋषि पराशर व अष्टावक्र मुनि का आश्रम है। भगवान शंकर के अनुज भग ऋुषि के वंशज यमदग्नि ऋषि का आश्रम आध्यात्म ज्ञान, ज्योतिष व शिक्षा विद्या का केन्द्र रहा है। आज भी यहां पर पढ़े लिखे लोगों की तादाद अधिक है। लगभग 60 अधिवक्ता यहां के रहने वाले हैं। यहां पर परिक्रमा करने वाले परशुराम जयंती के दिन आते हैं और भण्डारा कर पूजन स्नान करते हैं। 

ऐतिहासिक व पौराणिक स्थल का विकास ठप है। तत्कालीन भाजपा सरकार में यह स्थान पर्यटन के नक्शे में शामिल किया गया और क्षेत्रीय मंत्री रमापति शास्त्री के प्रयास से सवा करोड़ की कार्य योजना तैयार की गई। शासन से हरी झण्डी मिली लेकिन सरकार बदल गई। तभी से यह कार्य योजना धूल चाट रही है। यहां के बुजुर्ग राम अभिलाख पाण्डेय का कहना है कि यहां पर आदिकाल से संत समागम होता रहा है और भगवान परशुराम के ऐतिहासिक युद्ध का चित्रण किया गया है। 

राजा सहस्त्रबाहु के आतंक से भगवान परशुराम ने लोगों को छुटकारा दिलाया। वे राजतंत्र के खिलाफ पहले क्रांतिकारी थे। यहां के लोगों में दर्द है कि यह ऐतिहासिक स्थल उपेक्षा का शिकार है। पवित्र कुंड जहां लोग स्नान करते थे वहां आज जलकुंभी उग आई है। आसपास में अतिक्रमण हो रहा है। नया संत निवास निर्माणाधीन पड़ा है। सवा हेक्टयर में फैला यह आश्रम अब उपेक्षा का शिकार है। देखरेख न होने से आश्रम के कई हिस्सों पर लोगों ने अतिक्रमण कर लिया है। 



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