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गाजर की उन्नत खेती कैसे करें ?

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गाजर की खेती भारत के ज्यादातर हिस्सों में की जाती है. गाजर का जड़ वाला भाग मनुष्य के खाने योग्य होता है. जबकि जमीन के बहार वाला भाग पशुओं के खाने के लिए उपयोग में लिया जाता है. गाजर की हरी पत्तियां मुर्गियों के खाने के रूप में भी इस्तेमाल की जाती हैं. इसके अलावा ग्रामीण परिवेश में इसकी कच्ची पत्तियों का उपयोग देशी सब्जियां बनाने में किया जाता है.

गाज़र का उपयोग भारत में ज्यादातर सब्जी के रूप में किया जाता है. सब्जी में गाजर का इस्तेमाल कच्चा (सलाद) और पकाकर दोनों तरीकों से किया जाता है. सब्जी के अलावा गाजर का उपयोग आचार, मुरब्बा, जूस और हलवा बनाने में किया जाता है. गाजर का हलवा लोगों द्वारा काफी ज्यादा पसंद किया जाने वाला व्यंजन बन चुका है.

गाजर का रंग अधिकांश लाल ही पाया जाता हैं. लेकिन आज लाल रंग के अलावा पीले और हलके काले रंग में भी पाई जाती हैं. गाजर के अंदर कई तरह की विटामिन पाई जाती हैं. जिनमें विटामिन ए, बी, सी, डी, ई, जी और के शामिल हैं. लेकिन विटामिन ए इसमें सबसे ज्यादा पाई जाती है. गाजर का उपयोग दवाइयों में भी किया जाता है. गाजर के अंदर बिटा-केरोटिन नामक तत्व पाया जाता है, जो कैंसर रोग के नियंत्रण के काम आता है. गाजर के इस्तेमाल से आँखों की रोशनी और पाचन संबंधित रोगों से भी छुटकारा मिलता है.

गाजर की खेती काफी कम समय में ही तैयार हो जाती हैं. जिससे किसान भाई अपने खेत से तीन फसल एक साल में ले सकते हैं. गाजर की की फसल को बेचने में भी ज्यादा परेशानी नही आती जिस कारण अब किसान भाई इसकी खेती बड़ी मात्रा में करने लगे हैं.

उपयुक्त मिटटी

गाजर की खेती के लिए दोमट मिट्टी को सबसे उपयुक्त माना जाता है. दोमट मिट्टी के अलावा और भी कई तरह की मिट्टी में इसे बोया जा सकता हैं. इसके लिए मिट्टी की पी. एच. का मान भी 6.5 के आसपास ही होना चाहिए. साथ ही मिट्टी का भुरभुरा होना जरुरी होता है. क्योंकि इससे गाजर लम्बी और मजबूत बनती है. मिट्टी को भुरभुरा करने के लिए हर जुताई के बाद उस पर पाटा लगाना चाहिए.

जलवायु और तापमान

गाजर की खेती के लिए ज्यादा तापमान की जरूरत नही होती. इसे ठण्ड के मौसम में ही बोया जाता है. जिसके लिए तापमान 25 डिग्री तक होना चाहिए. इस तापमान में गाजर का रंग और आकार काफी बढ़िया बनता है. जबकि इसकी बुवाई के टाइम तापमान 10 डिग्री तक सही माना जाता है. इस तापमान की जरूरत पौधे को उसकी जड़ बनने तक होती है. अगर शुरुआत में जड़ें लम्बी बनती है तो पैदावार के साथ साथ फसल के अच्छे दाम भी मिल जाते हैं. क्योंकि लम्बी जड़ें बनने के बाद गाजर का आकर काफी अच्छा बन जाता है.

गाजर की उत्तम किस्में

गाजर की कई तरह की किस्में पाई जाती हैं. लेकिन कुछ किस्में ऐसी हैं जिनको बोने से किसान भाइयों को अच्छी पैदावार मिल जाती है. अगर आप गाजर की खेती करना चाह रहे हैं तो आज हम आपको इन्ही उत्तम किस्मों के बारें में बताने वाले हैं.

पूसा केसर
इस किस्म को लाल रंग की गजरों के लिए सबसे उत्तम किस्म माना जाता हैं. इस किस्म की गाजर की पत्तियां छोटी और गहरे हरे रंग की होती हैं. जबकि इनकी जड़ें काफी लम्बी पाई जाती हैं. इसकी फसल को तैयार होने में 90 से 110 दिन का टाइम लगता है. एक हेक्टेयर में इसकी पैदावार 300 से 350 क्विंटल तक हो जाती है.

पूसा (मेघाली)
यह किस्म छोटी टॉप वाली संकर किस्म है, जिसमें कैरोटिन की मात्रा सबसे ज्यादा पाई जाती है. गाजर की इस किस्म के गूदे का रंग नारंगी होता है. इस किस्म की बुवाई अगेती (टाइम से पहले) फसल के रूप में की जाती है. जिस कारण इसकी बुवाई अगस्त और सितम्बर माह के शुरुआत तक कर देनी चाहिए. इस फसल को तैयार होने में 100 से 110 दिन का टाइम लग सकता है. एक हेक्टेयर में इसकी पैदावार 300 क्विंटल तक होती है.

पूसा यमदागिनी
इस किस्म की गजरों का रंग संतरे के जैसा होता है. इस किस्म को आई. ए. आर. आई. के केन्द्र कटराइन द्वारा विकसित किया गया था. इस किस्म की बुवाई भी सितम्बर माह तक कर देनी चाहिए. इस किस्म की पैदावार क्षमता 200 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक होती है.

पूसा आसिता
इस किस्म की पैदावार ज्यादातर मैदानी क्षेत्रों में की जाती है. इस किस्म की गाजरों का रंग काला दिखाई देता हैं. इसकी बुवाई सितम्बर माह के लास्ट में करनी चाहिए. आज बाज़ारों में इसकी मांग काफी ज्यादा बढ़ गई है. एक हेक्टेयर में इसकी पैदावार 200 क्विंटल से भी ज्यादा हो जाती है.

नैन्टस
इस किस्म की गाजर का रंग भी नारंगी होता है. इस किस्म की गाजर का आकार बेलनाकार होती हैं. इनके अंदर का तना भी मुलायम और मीठा होता है. इस किस्म की बुवाई सितम्बर माह में कर देनी चाहिए. इसको पूरी तरह से तैयार होने के लिए 110 दिन से भी ज्यादा का समय लगता है. इस किस्म की पैदावार बाकी किस्मों से कम होती है. एक हेक्टेयर में इसकी पैदावार 100 से 125 क्विंटल तक ही हो पाती है.

इनके अलावा और भी कई किस्में हैं जिन्हें अलग अलग जगहों के हिसाब से उगाया जाता हैं. जिनमें पूसा नयन ज्योति, पूसा वृष्टि, चैन्टने, गाजर नं- 29, हिसार गेरिक, हिसार रसीली और हिसार मधुर जैसी कई किस्में शामिल हैं.

खेत की जुताई
गाजर की खेती के लिए खेत की जुताई काफी महत्वपूर्ण मानी जाती हैं. गाजर की फसल के लिए शुरुआत में खेत की तीन से चार बार अच्छे से जुताई करें. हर जुताई के टाइम पाटा लगाये ताकि मिट्टी के ढेले फुट जाए. जिसके बाद उसमें गोबर की खाद डालकर उसकी अच्छे से जुताई करें. फिर उसमें पानी देकर खेत में नमी बनाए. जिसके बाद फिर से उसकी जुताई करें. खेत की जुताई तब तक करें जब तक जमीन भुरभुरी ना हो जाए.

गाजर की बुवाई का टाइम और तरीका
गाजर की बुवाई के लिए खेत को समतल कर दें. जिसके बाद समतल जमीन में बीज का छिडकाव कर उसे हलकी जोत के साथ मिट्टी में मिला दें. ध्यान रखे की बीज मिट्टी में एक से आधा इंच नीचे तक ही जा पायें. इसके बाद 30 से 40 सेंटीमीटर की दूरी वाले बड़े हल से उसमें मेंड बना दें. हल के द्वारा बनाई गई इन मेंड को क्यारियाँ का रूप दे दें जिसे फसल को पानी देने में आसानी होगी.

गाजर की फसल की बुवाई उसकी किस्मों के आधार पर की जाती हैं. एशियाई क़िस्मों की बुवाई अगस्त माह से अक्टूबर माह के शुरुआत तक कर देनी चाहिए. जबकि यूरोपियन क़िस्मों की बुवाई के लिए अक्टूबर और नवम्बर का महिना सबसे उपयुक्त रहता है. गाजर की बुवाई के लिए एक हेक्टेयर में 6 से 8 किलो बीज की जरूरत होती है.

सिचाई का तरीका
गाजर की फसल को पहला पानी बुवाई के तुरंत बाद दे देना चाहिए. जिसके बाद शुरुआती सप्ताह में दो बार पानी दे. जब बीज जमीन से बाहर निकल आये तब उसे सप्ताह में एक बार पानी दें. जब तक पौधे की जड़ें नही बन जाती तब तक उसे सप्ताह में एक बार ही पानी दें. लेकिन अगर ज्यादा गर्मी हो तो खेत में आवश्यकता के अनुसार पानी देते रहे. जिससे खेत में नमी लगातार बनी रहे.

जब पौधे की जड़ें एक महीने बाद लम्बी बढ़ने लगे तो पानी की मात्रा कम कर देनी चाहिए. जिसे जड़ें लम्बी बनती है. जब जड़ें पूरी लम्बाई तक बढ़ जाए तो पानी की मात्रा बढ़ा दें. इस दौरान पौधों को 3 दिन के अंतराल में पानी दें. इससे पौधे की जड़ें मोटी होने लगती हैं. और ज्यादा पानी देने पर गाजर में मिठास भी बढता है.

खरपतवार नियंत्रण
गाजर की फसल में खरपतवार नही होनी चाहिए. क्योंकि खरपतवार के होने पर फसल की वृद्धी पर प्रभाव पड़ता है. इस कारण खेत की जुताई के टाइम ही खेत को खरपतवार नियंत्रक दवाइयों से उपचारित कर लें. उसके बाद उसमें बुवाई करें. उसके बाद फसल के साथ उगने वाली खरपतवार को निकाल दें. इसमें खरपतवार के अलावा ज्यादा नीलाई गुड़ाई की आवश्यकता नही होती है. लेकिन पौधों की जड़ें दिखाई दे तो उन पर मिट्टी चढ़ा दें.

गाजर की खेती के लिए उर्वरक की मात्रा
किसी भी फसल के लिया उर्वरक की उचित मात्रा सबसे जरुरी होती है. उर्वरक के सही इस्तेमाल से पैदावर में भी फर्क पड़ता हैं. गाजर की खेती के लिए जुताई के टाइम एक हेकटेयर में 30 गाड़ी तक सड़ी हुई गोबर की खाद डालें. जिसके बाद जब खेत में पानी देकर (पलेव करने के बाद) बुवाई के लिए तैयार किये हुए खेत में, बुवाई से पहले लास्ट जुताई करते टाइम 30 किलोग्राम नाइट्रोजन और 30 किलोग्राम पौटाश प्रति हेक्टेअर के हिसाब से डालें. बुवाई करने के लगभग 6 सप्ताह बाद फिर से खेत में 30 किलोग्राम नाइट्रोजन टॉप ड्रेसिंग के रूप में दे. इससे पैदावार में इजाफा होता है.

गाजर के पौधे को लगने वाले रोग
गाजर में वैसे तो काफी कम ही रोग देखने को मिलते हैं. लेकिन कुछ रोग हैं जो इसके पौधे में लग जाते हैं. जिनके रोकथाम के लिए उचित टाइम पर उन्हें दवाइयाँ देकर हटा दें.

आद्र विगलन
गाजर के पौधे में ये रोग फसल की बुवाई के शुरुआत में ही लग जाता है. फसल को ये रोग पिथियम अफनिड़रमैटम की वजह से होता है. इसके लगने पर कभी कभी तो पौधा अंकुरित ही नही हो पाता है. और अगर अंकुरित पौधे पर ये रोग लगता है तो पौधा उसी अवस्था में सड़कर गल जाता है. इसकी रोकथाम के लिए बीज को गोमूत्र से उपचारित कर लेना चाहिए.

सक्लेरोटीनिया विगलन
इस रोग की शुरुआत में पौधे की पत्तियां पीली दिखाई देने लगती हैं और जल्द झड़ने लग जाती हैं. फल पर इस रोग का लक्ष्ण सूखे दाग के रूप में दिखाई देने लगता है. जिससे पौधा जल्द ही खराब हो जाता है. इसकी रोकथाम के लिए फसल उगने से पहले ही खेत को थायरम 30 की एक किलो मात्रा को एक हेक्टेयर में छिडकें या फिर कार्ब्रेन्डाजिम 50 की एक किलो मात्रा को एक हज़ार लिटर पानी में मिलाकर छिडकाव करें.

कैरट वीविल
यह एक किट के द्वारा लगने वाला रोग है. इस रोग के लगने के लक्ष्ण पौधे के फलों पर दिखाई देता हैं. जमीन से बहार दिखाई देने वाले गाजर के उपरी हिस्सों पर ये किट आक्रमण करते हैं. जिससे गज़र के उपरी हिस्से पर सुरंग की तरह छिद्र दिखाई देते हैं. इसकी रोकथाम के लिए इनिडाक्लोप्रिड 17.8 एस.एल. की 1 मि.लि.मात्रा को 3 लिटर पानी में मिलकर पौधे पर छिडकाव करें.

रस्ट फ्लाई
ये भी कीटों के द्वारा लगने वाला एक रोग हैं जो पौधे की जड़ों पर शुरुआत में ही लगता हैं. इस रोग में किट पौधे के शुरुआत में ही उसकी जड़ों में सुरंग बना देते हैं जिससे पौधा जल्द ही नष्ट हो जाता है. इसकी रोकथाम के लिए क्लोरपयरीफॉस 20 ई.सी. की 2.5 लिटर मात्रा का एक हेकटेयर के हिसाब से छिडकाव करें.

गाज़र की खुदाई
गाजर की खेती तीन से चार महीनों की होती है. जिस कारण किसान भाई अपनी भूमि में एक साल में तीन फसलों का लाभ भी ले पाते हैं. जिसे उनकी आर्थिक स्थति अच्छी होती है. गाजर की फसल की खुदाई उस टाइम करें जब फसल पूरी तरह तैयार हो जाये.

गाजर की खुदाई करने से पहले खेत में पानी देकर नमी बना दें. जिससे गाजर को आसानी से जमीन से निकाला जा सके. गाजरों को निकालने के बाद उसे पानी से अच्छे से साफ़ कर उसे तुरंत मार्केट में बेच देना चाहिए. क्योंकि इसका ज्यादा दिनों तक भंडारण करना काफी मुश्किल होता है.

पैदावार और लाभ
गाजर की पैदावार उसकी किस्म पर निर्भर करती हैं. कई किस्में ऐसी हैं जिनसे किसान भाइयों को एक हेक्टेयर से 300 से 350 क्विंटल तक पैदावर मिल जाती है. जबकि कुछ किस्में ऐसी होती हैं जिसने 100 क्विंटल के आसपास ही पैदावार मिल पाती हैं.

जल्द तैयार की हुई फ़सलों से किसान भाइयों की अच्छी खासी कमाई हो जाती हैं. क्योकि शुरुआत में इनका भाव काफी ज्यादा होता है. जिससे किसान भाइयों का मुनाफा काफी ज्यादा हो जाता है. लेकिन कभी कभी मंडी में कम दाम मिल पाने की वजह से भी किसानों को नुक्सान उठाना पड़ जाता है. अच्छी पैदावार और अच्छा दाम मिलने पर किसान भाई एक हेक्टेयर से 3 लाख तक कमाई कर सकते हैं.

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